Magazine - Year 1956 - Version 2
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Language: HINDI
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अपने परिजनों से
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1—सवा वर्ष से चल रहे विशद् गायत्री महायज्ञ का इतना विशाल कार्यक्रम जिसकी कल्पना मात्र से मस्तिष्क चकराता था, परम शांतिपूर्ण रीति से सम्पन्न हुआ इस सफलता में उस सर्वशक्ति मान माता की प्रेरणा एवं सहायता दो प्रधान है ही, पर आप सज्जनों का सहयोग श्रम एवं उत्साह भी कम महत्व का नहीं है। आप लोगों ने इस आयोजन को सफल बनाने में जिस सच्ची भावना और श्रद्धा पूर्वक सहयोग दिया उसके लिए यज्ञ संचालक आत्माएं आपकी हृदय से कृतज्ञ हैं और सच्चे मन से आपका अभिनंदन करते हुए कल्याण कारक शुभ कामनाएं करती हैं। इस पुनीत आयोजन में लगा हुआ सहयोग, श्रम एवं तप आपके लिये निश्चित रूप से कल्याण कारक होगा।
2— आपके क्षेत्र में अनेक सज्जन महायज्ञ में भागीदार तथा संरक्षक रहे हैं, उन सबके लिये अलग अलग कृतज्ञता ज्ञापन कर सकना कठिन है, इसलिये आपको यह कार्य सौंप रहे हैं कि हमारे प्रतिनिधि के रूप से इन पंक्ति यों के पाठक सभी भागीदारों और संरक्षकों एवं प्रेमियों की सेवा में उपस्थित होकर हमारी कृतज्ञता तथा शुभ कामना तथा अभिनन्दन पहुँचा दें।
3— पूर्णाहुति के दिनों में कार्य की अत्यधिक व्यस्तता होने के कारण कितने ही पत्रों का ठीक समय पर उत्तर न दिया जा सका तथा उस अवसर पर मथुरा पधारने वाले महानुभावों से भी जी भर कर बातें करने का अवसर न मिल सका, अपनी इस विवशता का हमें खेद है। साथ ही विश्वास भी है कि ‘आत्मा की एकता’ के वैज्ञानिक आधार पर हम लोग एक दूसरे तक बिना वाणी और बिना लेखनी के भी बहुत कुछ कह सुन सकते हैं। इस अवसर पर विशेष रूप से इस प्रक्रिया को काम में लिया गया है। तदनुसार स्वजनों को विचार विनिमय में कुछ अड़चन न रही होगी ऐसी आशा है।
4— पन्द्रह मास पूर्व किन्हीं विशेष शक्ति यों एवं आत्माओं की प्रेरणा से यह यज्ञ आरम्भ किया गया था। इस समय संसार का वातावरण अनेक दृष्टियाँ से अत्यन्त क्षुब्ध था, विश्व को- मानव समाज को नष्ट करने वाली अनेक विभीषिकायें मुँह बाये खड़ी थी। तत्वदर्शी लोगों ने उस व्यापक अनिष्ट को शाँत करने के लिये कुछ उपाय किये, उन्हीं में एक उपाय विशद् गायत्री महायज्ञ भी था। इसकी पूर्णता से जो परिणाम हुआ है उससे मानव जाति की अन्तरात्मा बहुत समय तक सन्तोष की साँस ले सकती है। यज्ञ से पूर्ण करने वाले आप सब सहयोगियों का कार्य निश्चित रूप से इतना महान है कि उसकी प्रशंसा करना उसका महत्व घटाने जैसा होगा। ऐसी परमार्थमयी प्रवृत्तियाँ ही विश्व कल्याण का सच्चा हेतु होती हैं।
5— संकल्पित संख्या का जप, हवन ब्रह्मभोज आदि पूर्ण हो गया, साथ ही अनिष्ट शान्ति का एक बड़ा कार्य भी बहुत हदतक सम्पन्न हो गया। पर अपना उद्देश्य इससे भी बहुत अधिक है। इस मानव जाति में सतोगुणी तत्वों की अधिक मात्रा में अभिवृद्धि चाहते हैं जिससे दुष्टता, स्वार्थपरता, बेईमानी, वासना अनीति एवं अशान्ति की प्रवृत्तियाँ घटे और उनके स्थान पर मनुष्य के अन्तः करण में सत्य, प्रेम, न्याय, उदारता, सेवा, संयम, कर्त्तव्य पालन जैसी सद्भावनाओं की तीव्रगति से वृद्धि हो। ऐसा परिवर्तन होने पर ही विश्व शान्ति का उद्देश्यपूर्ण होगा। अदृश्य जगत में ऐसा धार्मिक एवं सतोगुणी वातावरण पैदा करना विश्व शान्ति का दूसरा कार्यक्रम है। अब इस दशा में काम करने की आवश्यकता है। अनिष्ट शाँति से तो आधा ही उद्देश्य पूरा हुआ अभी शेष आधा पूरा करने के लिये मानव अन्तरात्मा में सतोगुण एवं धार्मिकता के तत्व भरने के लिये अभी और भी कठिन प्रयत्न करने की आवश्यकता है। अब हम और शाँति में न बैठेंगे, उद्देश्य को पूरा करने के लिये आगे भी वैसी ही निष्ठा से कार्य करेंगे जैसा गत 15 महीनों में किया है।
6— हमारे आगामी कार्यक्रम के दो अंग है 1-साधनात्मक 2-शिक्षात्मक। साधनात्मक कार्य से जप, जप, यज्ञ आदि आध्यात्मिक प्रक्रियाएं रहेंगी। शिक्षात्मक कार्यों में वाणी से लेखनी से, दृश्यों से या अन्य प्रकार से जन मानस की दिशा मोड़ने का कार्य किया जाएगा, इसे प्रचारात्मक या रचनात्मक कार्य कह सकते हैं। हमें तथा आपको कंधे कंधा मिलाकर कार्य करना है। इन दोनों ही कार्यों की पूर्णता के लिये इस छोटे से जीवन का अधिकाँश भाग खपा देने का व्रत लेकर हम लोग परमार्थ का पुण्य साधन और जीवन को सच्चे अर्थों में सफल बनाने का स्वार्थ साधन भी कर सकेंगे। इन दोनों ही प्रकार के साधनात्मक और शिक्षात्मक मार्गों द्वारा विश्व मानव की सेवा करने के लिये आपकी अन्तरात्मा को तीव्र संवेदना के साथ आह्वान करते हैं। क्योंकि इतने विशाल पैमाने पर कार्य करने के लिए, आप जैसी मनस्वी आत्माओं की बड़ी संख्या में आवश्यकता है।
7—आप अपने आजीविका सम्बन्धी एवं अन्य आवश्यक कार्यों में से कुछ समय नियमित रूप से उपरोक्त कार्यक्रमों के लिये निकालने का प्रयत्न करें। जो लोग “समय और श्रम का चंदा” चाहे वह कितना ही कम क्यों न हों दे सकेंगे तथा विश्व मानव की सेवा के लिये साधनात्मक एवं शिक्षात्मक कार्यक्रमों में तत्परता प्रकट करेंगे उन्हें ‘व्रतधारी” माना जायगा। पिछले अंकों में कर्मयोगी व्रतधारी तथा आत्मदानी की तीन श्रेणियाँ बनाई गई थीं। पूर्णाहुति के अवसर पर आने वाले सज्जनों से भी तीन प्रकार के फार्म भराये गये थे, वह योजना रद्द करके अब सब के लिये एक ही श्रेणी व्रतधारी रखी गई है। क्योंकि भावना तीनों की एक है। परिस्थितियों के कारण ही समय देने में थोड़ी न्यूनाधिकता करनी पड़ती है। कार्य भावना द्वारा ही होता है। इसलिये तत्व एक ही प्रधान रहने से अब एक ही श्रेणी रखी जा रही है। प्रतिज्ञापत्र साथ में है। आप स्वयं व्रतधारी बनें, जो परखे हुये व्यक्ति अपने वहाँ हैं उन्हें व्रतधारी बनावें तथा और भी नये व्यक्ति यों को जल्दी में नहीं वरन् धीरे-2 पकाकर व्रतधारी बनने के लिये तत्पर करें। साँस्कृतिक सेवा शृंखला को बढ़ाना और मजबूत करना है, साथ में नया फार्म भेज रहे हैं। इसके एक-एक अक्षर की नकल अपने हाथ से करके व्रतधारी को प्रतिज्ञापत्र भरना चाहिये। छपा हुआ फार्म केवल नकल करने के लिये नमूना स्वरूप है। आपके प्रयत्न से अनेक व्रतधारी बनेंगे ऐसी आशा है।
8—साधनात्मक कार्यक्रम में 108 यज्ञों का एक संकल्प पूर्णाहुति के समय पर मथुरा में किया था। उसकी आवश्यकता जन मानस में धार्मिक एवं सात्विक प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करने की दृष्टि से अत्याधिक है। उस सामूहिक संकल्प की पूर्णाहुति गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ सुदी 15 ता॰जुलाई 56 के दिन करने का) निश्चय किया गया है। इस संकल्प को पूर्ण करने के लिये हमारे प्रत्येक परिजन को लग जाना चाहिये। जहाँ-जहाँ गायत्री महायज्ञ के भागीदार या संरक्षक हैं वहाँ-वहाँ छोटे या बड़े रूप में एक यज्ञ गुरुपूर्णिमा के दिन उस क्षेत्र में अवश्य होना चाहिये। मथुरा में जिस आधार पर 15 महीने का विशद् गायत्री महायज्ञ हुआ था उसी आधार पर छोटे, बड़े यज्ञ प्रत्येक स्थान पर हों। इसके लिये यहां यत्न किया जाय:—
9—गुरुपूर्णिमा के दिन अपने क्षेत्र में एक सामूहिक यज्ञ कराने के लिये उत्साही गायत्री उपासक कटिबद्ध हो, इन संयोजकों में उत्साह और परिश्रम की समुचित मात्रा होनी चाहिये। जहाँ दो, तीन व्यक्ति भी ऐसे स्वभाव के तथा एक मन के मिल जायं वहाँ सब कार्य पूरा हुआ ही समझना चाहिये। ऐसे दो तीन संयोजकों का संगठित होकर यज्ञ कराने का संकल्प कर लेना यज्ञ की सफलता की तीन, चौथाई समस्या का हल हो जाना है। जहाँ ढीले स्वभाव के, आधे मन से काम करने वाले, संकोची, निराश प्रवृत्ति के कार्यकर्ता हों वहाँ सफलता भी संदिग्ध रहती है। आप प्रयत्न करें कि आपके सहायक कुछ अच्छे कार्यकर्ता मिल जावें, यदि ऐसा हुआ तो 108 यज्ञों में से एक यज्ञ आपके यहाँ भी निश्चित रूप से हो सकता है।
10—यह यज्ञ संयोजक संगठन बैसाख सुदी 15 से अपना कार्य आरम्भ करदें, और दो महीने (जेष्ठ आषाढ़) अपने निकटवर्ती क्षेत्र में घर घर जाकर धर्म कार्य के लिए लोगों से समय की भिक्षा माँगे। जो जितना समय दे सके उसको उतने समय में गुरु पूर्णिमा तक गायत्री जप करने, और गायत्री मन्त्र लिखने का कार्य सौंपे। इन सब के जपों का हिसाब रखने की भी व्यवस्था करनी चाहिए। जिस प्रकार यहाँ से भागीदार के छपे फार्म भेजे जाते थे। वैसे ही हाथ के बने यदि फार्मों पर सब भागीदारों का हिसाब तथा पूरे नाम पते लिखने चाहिए।
11—जप प्रारम्भ कराने की योजना बैसाख सुदी 15 से आरम्भ करके गुरु पूर्णिमा तक बराबर जारी रखना चाहिए। समय बीतते जाने पर नये उपासक संभव है 10-20 दिन ही जप कर सकें तो भी हानि कुछ नहीं, जितना कुछ हो जाय उतना ही सही, जिसको जितना समय मिले वह उतना जप करे। चूँकि यह सामान्य जप है, अनुष्ठान नहीं, इसलिए इसमें ब्रह्मचर्य उपवास आदि की कोई शर्त नहीं है।
12—आषाढ़ सुदी 15 (गुरु पूर्णिमा) ता॰ 22 जुलाई को इस आयोजन का हवन रखना चाहिए। स्थानीय परिस्थिति के अनुसार छोटा या बड़ा—कम या अधिक आहुतियों का-एक दिन या लगातार कई दिन का हवन रखा जा सकता है। हवन में प्रतिदिन अधिक से अधिक नर नारियों को भाग लेने का अवसर देना चाहिए। समय कम और जनसंख्या अधिक होने की दशा में 24-24 आहुतियों की कई पारी बदली जा सकती हैं। हवन सामग्री, वितरण करने का प्रसाद, यज्ञ मण्डप का निर्माण आदि कार्यों के खर्च को एक व्यक्ति करे इसकी अपेक्षा यह उत्तम है कि अधिक व्यक्ति यों का थोड़ा थोड़ा सहयोग सामान, श्रम और समय के रूप में लिया जाय। जो कमी पड़े उसकी पूर्ति कुछ साधन सम्पन्न व्यक्ति कर सकते हैं। हवन व्यय के लिए नकदी के रूप में कुछ न लेकर सामान या श्रम माँगा जाय जो उत्तम है।
13—कुछ थोड़े व्यक्ति यों को भोजन करा देने की अपेक्षा ब्रह्मभोज का यह तरीका अधिक उत्तम है कि प्रसाद रूप में खीर हलुआ आदि कोई वस्तु बड़े परिमाण में बनाकर, यज्ञ में उपस्थित लोगों को तथा न आ सकने वाले लोगों के घरों पर थोड़ा थोड़ा प्रसाद पहुँचाने का आयोजन किया जाय। इस अवसर पर सस्ती वाली पुस्तकों का वितरण भी ज्ञानमय प्रसाद के रूप में उपयुक्त होगा। दस-पाँच रुपये का गायत्री साहित्य भी प्रत्येक यज्ञ के अवसर पर अवश्य वितरण किया जाय।
14—उपरोक्त योजना के अंतर्गत जहाँ छोटे या बड़े यज्ञ हो सकेंगे वहाँ गायत्री केन्द्र’ मान लिया जायगा। गायत्री तपोभूमि की शाखा के रूप में उन से भविष्य में भी धार्मिक आयोजनों की आशा की जाती रहेगी। एक व्यक्ति उस केन्द्र का प्रधान सेवक रहेगा, उसे सूचना आदि देने से लेकर अन्य व्यवस्थाओं तक में अधिक कार्य भार सौंपा जायगा। इन यज्ञों में जिन जिन सज्जनों ने जितना जप, हवन आदि में सहयोग दिया हो उनका पूरा पता तथा सहयोग का पूरा विवरण मथुरा भेजना चाहिए। इस सहयोग के आधार पर ही उन्हें गायत्री परिवार का सदस्य माना जायगा तथा यहाँ से उनकी सदस्यता एवं सहयोग कार्यों के अभिवंदन का एक सुन्दर प्रमाण-पत्र भेजा जायगा।
15—विशद् गायत्री महायज्ञ मथुरा में पूर्ण हुआ। ऐसी ही जिम्मेदारी हर जगह के गायत्री उपासकों पर डालकर उन्हें संगठित एवं कार्य क्षेत्र में अवतीर्ण होने के लिए यह गुरु पूर्णिमा के यज्ञों की योजना बनाई है। जहाँ इस आयोजना में परिजनों के श्रम, साहस, उत्साह एवं निष्ठा की परीक्षा है वहाँ लोकहित का महान् प्रयोजन भी छिपा हुआ है। 24 लक्ष आहुतियों का हवन 24 करोड़ जप गुरु पूर्णिमा तक पूरा होने की आशा है। यह संकल्प विश्व में धार्मिक एवं सात्विक भावनाओं की अभिवृद्धि के लिए है। परमार्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के यह आयोजन अतीव फलप्रद सिद्ध होगा।
16—जहाँ सामूहिक बड़े यज्ञ न हो सकें वहाँ पारिवारिक छोटे हवन भी गुरु पूर्णिमा के दिन जा सकते हैं। इस प्रकार छोटे बड़े मिलाकर एक हजार यज्ञों तथा 24 करोड़ गायत्री जप हो जाने की आशा की जाती है। यज्ञों के अन्त में प्रवचनों की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। जहाँ अच्छे विद्वान वक्त न हों वहाँ अखण्ड ज्योति के कोई लेख सुनाये जा सकते हैं। इस प्रकार साँस्कृतिक पुनरुत्थान कार्यक्रम का मंगलाचरण प्रत्येक स्थान पर होने के उपरान्त स्थान स्थान पर धार्मिक शिक्षा का कार्यक्रम किया जाना है, जिसकी रूपरेखा मार्च 56 की अखण्ड ज्योति में विस्तार पूर्वक छापी जा चुकी है।
17—ता॰ 1 जून से 15 जून तक नैतिक शिक्षा के लिए 15 दिन को तपोभूमि में शिक्षण शिविर होगा। यों शिक्षाएँ सभी के लिए उपयोगी हैं पर विशेषतया विद्यार्थियों को गर्मियों की छुट्टियों के दिनों में गुरु-कुल पद्धति की उत्तम शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले इस दृष्टि से यह आयोजन किया गया है। विद्यार्थी लोग या जिनकी भी इच्छा हो प्रसन्नता पूर्वक इस शिक्षासत्र में आ सकते हैं।
18—गायत्री तपोभूमि में “साँस्कृतिक विद्यालय” की नियमित कक्षाएं आरम्भ हो गई हैं। 20 प्रकार के विविध प्रयोजनों को पूर्ण करने वाले यज्ञों की क्रियात्मक शिक्षा, वेदपाठ, गायत्री गीता, 16 संस्कारों का विधान, भारतीय संस्कृति की तात्विक विशेषताओं का परिचय, कथा कीर्तन के उपयोगी संगीत, व्यवहारिक शिष्टाचार, लाठी चलाना आसन आदि व्यायाम शिक्षाएं, प्रवचन करने की शैली, यज्ञोपवीत बनाकर अपने गुजारे लायक कमा लेने की शिक्षा, साधारण चिकित्सा ज्ञान एवं औषधि निर्माण आदि जीवन को समुचित बनाने वाली एवं लोक सेवा के लिए उपयोगी सिद्ध होने वाली शिक्षाएं सुव्यवस्थित रीति से दी जा रही है। शिक्षा की कोई फीस नहीं है। जिन्हें अवकाश कम है वे तीन महीने में भी उपरोक्त शिक्षा पूरी कर सकते हैं। जिन्हें अवकाश हो उन्हें एक वर्ष उपरोक्त शिक्षा की पूर्णता के लिए ठहरना चाहिए। छात्रों को अपना भोजन भार स्वयं उठाना चाहिए। असमर्थों के लिए तपोभूमि की ओर से भी भोजन व्यवस्था की जा सकती है। शिक्षा की नियमावली अलग से माँग कर विद्यार्थी आवेदन पत्र भेजें।
19—तपोभूमि की भोजन व्यवस्था आजकल हमारी धर्मपत्नी सँभालती हैं, उसकी सहायता के लिए एक दो देवियों की और आवश्यकता है। परिश्रमी, स्वस्थ साधु स्वभाव की एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त महिलाएं जो इस कार्य में हाथ बँटाना चाहें अपना पूरा परिचय लिखें। उनके निर्वाह की आवश्यक सुविधा यहाँ रहेगी।
20—अखण्ड ज्योति का यह मई का अंक पूर्व सूचनानुसार 15 दिन लेट छप रहा है। यज्ञ की व्यस्तता के कारण तथा अपना प्रेस इन दिनों बन्द होने के कारण यह अंक समय पर न निकल सका। जल्दी में पृष्ठ भी कम छापे जा रहे हैं। इस अंक के लिए अनेक महत्व पूर्ण लेख आये थे, उन्हें छापने में पूरा एक महीना लग जाता। जो फोटो यज्ञ के समय लिये गये व उनके ब्लाक भी समय पर तैयार न हो सके। सभी लेख और चित्र एक अंक में छपने में काफी देर हो जाती और मई जून का संयुक्तांक निकालना पड़ता पहले कुछ ऐसा ही विचार भी हुआ था पर पीछे उसे बदल दिया। जून का अंक 5-6 तारीख तक यहाँ से निकल जायगा उसमें यज्ञ के समय लिये गये अनेक चित्र भी होंगे! बचे हुए लेख भी छपेंगे।
21—यज्ञ कार्य में आय से बहुत अधिक खर्च हुआ। उसकी पूर्ति में अखण्ड ज्योति के ग्राहकों का एक वर्ष के लिए जमा किया गया चन्दा भी खर्च हो गया है। अगले महीनों के अंक निकालने में कठिनाई पड़ेगी। पाठक यदि कुछ नये ग्राहक बढ़ाने की कृपा कर सकें तो उस चन्दे की आय से अगले अंकों के ठीक प्रकार छपते रहने की व्यवस्था में सुविधा होगी यों पत्रिका तो चालू ही रहेगी, पर इस वर्ष एक तो पृष्ठ अधिक बढ़े, मूल्य उसके मुकाबले में केवल आठ आना ही बढ़ा, इस दृष्टि से वैसे भी घाटा चल रहा था, दूसरे जमा चन्दा यज्ञ की मदद में खर्च हो जाने से यह अड़चन और बढ़ गई है। इस वर्ष पत्रिका चलाने में जो कठिनाई आ रही है, उसे यदि पाठक चाहें तो कुछ नये ग्राहक बढ़ाने का प्रयत्न करके आसानी से दूर कर सकते हैं। इस पुनीत प्रयत्न में अनेक आत्माओं तक सद्ज्ञान का प्रकाश पहुँचाने एवं अपना कार्य क्षेत्र विस्तृत करने का पुण्य लाभ तो स्पष्ट ही है। जिनके लिए संभव हो वे इस दिशा में प्रयत्न अवश्य करें।
22—साँस्कृतिक पुनरुत्थान कार्यक्रम को देशव्यापी बनाने के लिए ऐसे आत्म दानियों की बड़ी आवश्यकता है, जिनके लिए पीछे पारिवारिक जिम्मेदारी न हो और योग्यता,उत्साह, स्वास्थ्य एवं सेवा भावना की प्रचुरता हो। ऐसे नर नारियों को समुचित शिक्षा देकर देश के कोने कोने में बिखेरने की आवश्यकता है। ऐसी आत्माओं की तृष्णा और वासना के चंगुल में से निकलकर संस्कृति की धर्म की सेवा तथा आत्म कल्याण की साधना में लगने के लिए गायत्री तपोभूमि सादर आमन्त्रित करती है।
23—पूर्णाहुति के समय ऐसा विचार किया गया था कि विभिन्न स्थानों पर बड़े यज्ञ हों और उनके साथ बड़े साँस्कृतिक सम्मेलन भी हों। ऐसे आयोजनों में हमने स्वयं भी जाने की इच्छा प्रकट की थी। पर अब उस रूपरेखा में कुछ परिवर्तन किया गया है। 108 यज्ञों का संकल्प गुरु पूर्णिमा के दिन पूर्ण करने का निश्चय किया गया है। यह कार्यभार प्रत्येक स्थान के गायत्री उपासकों पर छोड़ दिया गया है। इन छोटे यज्ञों में जो गायत्री उपासक एवं धर्म प्रेमी एकत्रित होंगे, इन्हें साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना के सम्बन्ध में विस्तृत विचार दिये जायेंगे, जो अखंड ज्योति के अगले अंक में छपेंगे। अलग पुस्तिकाएं उसकी छापी जायेंगी। यह विचार उन यज्ञों के अन्त में हमारे सन्देश एवं अनुरोध के रूप में सुनाये जायं। इस प्रकार सब जगह हमारे पहुँचने एवं यज्ञों का आयोजन संक्षिप्त रूप से इसी बार एक साथ पूरा हो जायगा।
24—गायत्री ज्ञान प्रसार तथा साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना को व्यापक रूप से फैलाने तथा गायत्री परिवार के सदस्यों से व्यक्ति गत विचार विनिमय करने की दृष्टि से क्षेत्रीय सम्मेलन के रूप में ज्ञानयज्ञ करने का विचार किया है। एक विस्तृत क्षेत्र के परिजन एक स्थान पर दो दिन तक एकत्रित हों, और परस्पर विचार विनिमय,परिचय,प्रश्नोत्तर,एवं आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने में दो दिन लगाये जायँ। हवन आयोजनों में जो बहुत सा समय लगता है उसमें इस प्रकार के परस्पर आत्मीय मिलन की गुञ्जाइश कम थी। इसलिए ज्ञान यज्ञों में हमने अपने जाते रहने का प्रोग्राम बनाया है। केंद्रीय स्थानों पर जहाँ उस क्षेत्र के लोग आसानी से पहुँच सकें तथा रेल आदि की समुचित सुविधा हो वहाँ ‘गायत्री ज्ञान यज्ञ’ रखे जायं। इन यज्ञों का कार्यक्रम गुरु पूर्णिमा के बाद आरम्भ होगा।
25—गुरु पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले यज्ञों के लिए यदि कहीं हवन सामग्री बनाने की ठीक व्यवस्था न हो सके तो शुद्ध और शास्त्रोक्त विधि से बनाई हवन सामग्री लागत मूल्य पर तपोभूमि से मंगाई जा सकती है।