Magazine - Year 1956 - Version 2
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गायत्री उपासना से ही वास्तविक कल्याण
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(श्री ब्रह्मचारी स्वामी रामकल्याणनन्द जी, बडोरा)
इस लेख के लेखक ने गत 24 अप्रैल को गायत्री तपोभूमि में होने वाले नरमेध यज्ञ में आत्मदान किया था। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के असाधारण अनुभव लिखकर गायत्री उपासना की महत्ता पर प्रकाश ढाला है।
—सम्पादक
तीन मास ग्यारह दिन की जिस दिन मेरी आयु हुई, मैं श्री बालक नाथजी खरखडा—कोटा निवासी के चरणों में अर्पित कर दिया गया। माँ बाप के नैसर्गिक वात्सल्य से वञ्चित होकर वहीं मेरा पालन-पोषण हुआ। तेरह वर्ष की उमर में गौ चारण का कार्यभार दिया गया, इससे मुझे काफी प्रसन्नता मिली। गुरु जी महाराज की हमारे ऊपर बड़ी कृपा थी, जिससे चार गुरुभाइयों के साथ हमें भी अपनी कैलास यात्रा में साथ लिये गये। वहाँ कुछ ऐसे कन्द खाने को मिले, जिससे मस्तिष्क का सन्तुलन भंग हो गया। कुछ उन्मत्त के समान रहने लगा। उसी समय ड़ड़ड़डो़त विद्या की शिक्षा मुझे मिली, पर इससे मेरे अंतःकरण को शान्ति नहीं मिली। फिर तो मैंने इस शान्ति की खोज में नानक, कबीर, दादू, अलखनामी, दसनामी, प्रणामी, विश्वासी एवं इस्लामी थीं के दरवाजे खटखटाये पर योग्य पुरुषों के अभाव में सर्वत्र ही मंत्र सिद्धि की भरमार देखी और मैंने से भी सीखा, पर कहीं भी शान्ति की प्राप्ति नहीं हुई। अन्त में भैंरूं वटुक को सिद्ध कर मैं इस कलियुग में पूजित होने लगा। मेरा प्रभाव काफी बढ़ गया। चमत्कार दिखाकर लोगों को ठगना ही हमारा व्यापार हो गया, पर प्रत्यक्ष जीवन में किसी का उपकार और कल्याण नहीं कर सका। चेलों की संख्या भी बढ़ती चली गयी। हम जादूगरी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गये। इस भाँति मेरे जीवन के सत्तावन वर्ष बीत गये।
एक बार भगवान की कृपा से मेरे मन में एक कूप बनवाने की शुभेच्छा का उदय हुआ। कूप खनने पर नीचे में पत्थर निकल आया। मैंने दस पन्द्रह मजदूरों को वह पत्थर तोड़ने के लिये भेज दिया और कहा मैं भी थोड़ी देरी के बाद आता हूँ। आते ही मैंने देखा कि कूप के निकट एक वृद्धा नारी गायत्री प्रतिमा का पूजन-अर्चन कर रही है। मुझे देखते ही बड़ा गुस्सा आया और डाँट कर बोला-तुम मुझे जानती नहीं, मैं सुप्रसिद्ध जादूगरी बाबा हूँ। मेरा भैरवनाथ जी प्रत्यक्ष है। जल्दी यहाँ से भागो, नहीं तो पागल बना दूँगा। मेरे बारबार डाँटने और फटकारने पर भी वह वृद्धा नारी जरा विचलित नहीं हुई और स्नेह करुणा स्वर में बोली-अब केवल एक माला जप करके मैं चली जाऊंगी। उसकी निर्भीकता मुझ से सही नहीं गयी। मैंने क्रोध से अधीर होकर जैसे उसकी गायत्री प्रतिमा को मारने के लिये लात उठायी कि सहसा मैं कुँए में जैसे किसी के द्वारा उठाकर फेंक दिया गया। कुआँ तीस हाथ के लगभग गहरा था, पर इतने गहरे में गिरने पर भी मुझे विशेष चोट न आयी केवल बाँये हाथ में थोड़ी सी चोट आयी थी। भयाक्रान्त होकर मैं मूर्च्छित हो गया था। जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैंने कुँए में भी उसी वृद्धा माता को खड़ी पाया। मैंने लोगों से खाट रस्सी से बाँध कर नीचे गिराकर उसी के द्वारा शीघ्र मुझे बाहर निकालने के लिये कहा तथा बोला उस वृद्धा पुजारिनी को भी कहीं जाने न देना। मैं शीघ्र बाहर आया पर उस उपासिका को कहीं नहीं देखा। चारों ओर मेरे आदेश से लोगों ने घोड़े दौड़ाये पर कहीं भी उसका पता न लगा।
वहाँ से मुझे अस्पताल लाया गया। डाक्टर ने जाँच कर बताया, इन्हें संघातिक चोट लगी है- शायद ही प्राण की रक्षा हो सके। रात में सोने पर स्वप्न में मुझे गायत्री उपासक श्री बालकृष्ण जी आये, उन्होंने कहाँ- डाक्टर ने तो एकदम निराशा ही प्रकट की है, अतः आप यदि यह मन्त्र प्रपञ्च छोड़ कर आज से गायत्री उपासना का सुदृढ़ संकल्प करें तो अवश्य आप के जीवन की रक्षा हो जायगी। पहले तो मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया, पर जब कई दिनों के इलाज से कोई लाभ न हुआ और मेरी जहाँ तक प्रसिद्धि थी, सर्वत्र यह खबर फैल गयी कि जादूगरी बाबा नहीं बचेंगे, तब मैंने अपने को मरा हुआ मान कर ही गायत्री माता की शरण ग्रहण करली और उसी दिन से आश्चर्य पूर्ण तीव्र गति मेरे स्वास्थ्य का सुधार होने लगा। स्वस्थ होते ही मैंने गुरु देव आचार्य श्रीराम शर्मा का आश्रय लिया और तत्परता से गायत्री उपासना में संलग्न हो गया गायत्री उपासना के द्वारा हमने जितने लोगों को विविध कष्टों एवं आपत्तियों से छुटकारा पाते हुए देखा और स्वयं किया, उसे लिखने से एक मोटी पुस्तक ही बन जायगी। तो भी एक विशेष घटना मैं लिखना चाहता हूँ।
एक बार एक सर्प से काटे व्यक्ति का औषधि तथा मन्त्र के द्वारा सभी उपचार किये जाने पर भी कोई लाभ न हुआ। वह मुमुर्षु दशा को प्राप्त हो गया। अचानक मैं भी वहाँ पहुँच गया और गायत्री मन्त्र से जल को अभिमन्त्रित कर उस पर छींटा मारा। वह बेहोश और मृतक प्रायः व्यक्ति आधे घंटे में उठकर बैठ गया और बिल्कुल स्वस्थ हो गया।
जो गायत्री उपासक हैं, उस पर जादूगर मन्त्रविद लोग अनिष्टकारी प्रयोग करते हैं तो उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उल्टे प्रयोगकर्ता के जीवन में ही वह अनिष्ट प्रतिफलित हो जाता है ऐसे अनेकों उदाहरण मैंने प्रत्यक्ष देखे हैं।
आज उसी की कृपा से गायत्री महायज्ञ में मुझे भी नरमेध करने का सौभाग्य मिला और गुरु देव एवं माता की अभव छत्रछाया मैंने संकल्प लिया है कि आज से सारी मानव जाति को माता की कृपा सुधा पिलाना ही मेरा ही एकमात्र व्रत है। ऐसी माता और गुरु देव की सदा जय हो।