Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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गायत्री-उपासना के अनुभव
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नौकरी प्राप्त हुई
श्री श्यामसुन्दर त्रिपाठी चिलौला (उन्नाव) से लिखते हैं कि मैं बहुत दिनों से नौकरी के लिये परेशान था। जहाँ भी जाता था निराशा ही दृष्टिगोचर होती। मैं सब तरफ से निराश हो चला, तब चिलौला के गायत्री शाखा- संचालक श्री रामपालसिंहजी की प्रेरणा से मैंने गायत्री माता का आँचल पकड़ा। एक महीना भी नहीं हुआ था कि 30 सितम्बर सन् 50 को मैं एक ऐसे कम्पीटीशन में बैठ गया जिसमें सफलता की आशा नाम मात्र को ही थी। पर जो आदमी लिये गये उनमें अपना नाम देखकर मैं आश्चर्य-चकित रह गया।
मोटर दुर्घटना से प्राण-रक्षा
श्री सुधाराम महाजन बिलासपुर से लिखते हैं कि गत मास कार्यवश रायपुर से कबर्धा जाने को ‘बस’ में सवार हुआ। शायद भावी दुर्घटना की पूर्व सूचना मुझे अव्यक्त रूप से हो रही थी, इससे रामपुर के ‘वेटिंग रूम’ में ही मैंने चालीसा के पाँच पाठ कर डाले। मोटर में भी मानसिक जप चल रहा था। लगभग 14 मील निकल जाने पर अचानक मोटर का अगला चक्का टूटकर अलग जा गिरा। हमारी गाड़ी बगल के खड्डे की ओर बढ़ चली और सभी यात्रियों की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। ड्राइवर ने कुशलता से ब्रेक लगाई और किसी भी यात्री को तनिक भी धक्का न लगते हुए गाड़ी सड़क के किनारे ऐसे रुक गई मानों किसी ने टेक लगाकर खड़ी कर दी हो। ईश्वर का नाम लेते हुए सभी यात्री उतर पड़े। लोग कह रहे थे कि गाड़ी में कोई नेक आदमी जरूर है, जिसके कारण सब बाल-बाल बच गये।
यज्ञ में अज्ञात व्यक्ति से सहायता मिली
मेरवी (सौराष्ट्र) से एक गायत्री उपासक लिखते हैं कि श्रावण मास में गायत्री जी की आरती के समय यज्ञ करने वाले श्री करुणाशंकर भाई के मस्तक पर प्रकाश की किरणें दिखलाई पड़ने लगीं, जिससे सभी उपस्थित जनों को आश्चर्य हुआ। दूसरे दिन प्रातः काल के समय एक बारह वर्ष का लड़का 50/- का चेक मोरवी बैंक के ऊपर करुणाशंकर भाई के नाम का दे गया। पर देने वाले का कोई नाम न था। इस 50/- से नवरात्रि में यज्ञ कर दिया गया। उस समय भी उनके मस्तक पर प्रकाश की किरणें दिखलाई पड़ीं। यह सब माता की कृपा का चमत्कार ही है।
बीमारी दूर हो गयी
जिला रायपुर (मध्यप्रदेश) के एक सज्जन लिखते हैं कि ता. 20 सितम्बर को मैं रायगढ़ के छातादेई नाम के मौजा में गया था और लोगों को गायत्री-जप का उपदेश दे रहा था। कुछ लोगों ने कहा कि पास ही के मकान में 5 आदमी बहुत अधिक बीमार पड़े हैं। अगर तुम उनको अपने मन्त्र से आराम कर दो तो हमारा सब गाँव गायत्री का जप करेगा। इस पर मैंने उस घर में एक अनुष्ठान सवा लाख का आरम्भ किया और तीन दिन के भीतर सब अच्छे हो गये। इससे वहाँ की जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ है और सब जप करने लगे हैं।
ट्रैक्टर से जान बच गई
डेरापुर (कानपुर) से श्री सतीशचन्द्र लिखते हैं कि इसी नवरात्रि में जबकि मेरा 24000 का अनुष्ठान चल रहा था, एक दिन मैं खेत ट्रैक्टर चलाने गया और भूल से नेकर आदि न पहिन कर धोती ही पहने रहा। न मालूम कैसे धोती का एक अंश साइलैंसर पर पहुँच गया और उसमें भयंकर आग लग गई। मुझे गर्मी जान पड़ी पर मैं उस तरफ ध्यान न देकर खेत जोतता रहा। पर जब एक दम लौ उठी तो मैं घबराकर चलते ट्रैक्टर से कूद कर अलग खड़ा हो गया। उसी समय आग अपने आप बुझ गयी। पर ट्रैक्टर चलता जा रहा था, मैं दौड़ा पर एक झाँखर से टकराकर गिर पड़ा, जिससे बहुत से काँटे मेरे बदन में लग गये। पर इस ओर ध्यान न देकर मैं उठा और दौड़कर उसका स्विच बन्द किया। कितनी भीषण दुर्घटना हो जाती यदि मैं ट्रैक्टर को रोक न पाता दस हजार रुपये का ट्रैक्टर और मैं वहीं पर समाप्त हो जाते। माता ने हमें सब तरह से बचा लिया। मेरे शरीर पर पाँच-सात छाली के अतिरिक्त कोई हानि नहीं हुई।
चुनाव में सफलता मिली
श्री. कृष्णाकुमारीजी छिबरामऊ फर्रुखाबाद से लिखती हैं कि यहाँ के गायत्री-उपासक डॉ. जगदीश्वर दयाल स्थानीय बोर्ड की चेयरमैनी के लिये खड़े हुए थे। उनके मुकाबले में एक नामी रईस श्री राधेगोविन्दजी गुप्त खड़े थे। दोनों तरफ से बड़ा प्रचार हुआ, पर विरोधी उम्मीदवार के साधनों और खर्च को देखते हुए डॉक्टर साहब की आशा बहुत कम थी। जब चुनाव के केवल 16 घण्टे शेष रह गये और सब लोग निराशा का भाव प्रकट करने लगे तो मैंने संकल्प करके विधिपूर्वक जप करना आरम्भ कर दिया। माता बड़ी दयामयी हैं, उनकी कृपा से सब विघ्न-बाधाओं को पार करके डॉक्टर साहब चेयरमैनी के चुनाव में विजयी हो गये।
पुत्र का विवाह हो गया
श्री गोविन्ददास भार्गव, दिगौड़ा (टीकमगढ़) से लिखते हैं कि “जबसे मैंने गायत्री माता की शरण ली है मेरी कितनी ही मनोकामनायें पूरी होती जाती हैं। मैंने दिल में सोचा कि पुत्र की शादी इस वर्ष हो जानी चाहिये सो माता की कृपा से निर्विघ्न पूरी हो गई।”
ओलों से फसल की रक्षा हुई
श्री ब्रजबल्लभ जी, दिगौड़ा से लिखते हैं कि इस बार जब हमारे गाँव की फसल तैयार हो चुकी थी, ऐसे काले-काले बादल उठे कि हम सबका हृदय काँप उठा, क्योंकि ऐसे समय ओला पड़ने की पूरी आशंका रहती है। उस समय हम सब सत्संग में बैठे थे। हमने वहीं माता से प्रार्थना की कि ‘रक्षा करो’। माता ने प्रार्थना सुन ली माता कृपा न करती जो सैकड़ों किसानों का सर्वनाश हो जाता।
प्रेत बाधा दूर हो गई
भवानीशंकर पाठक सठई (छतरपुर) बुन्देलखंड से लिखते हैं कि “मेरी छोटी 2 वर्ष की बच्ची को कोई प्रेतात्मा कष्ट देती थी जिससे वह चिल्ला उठती थी और बहुत परेशान थी। जब वैद्य को दिखलाया तो उन्होंने कहा यह गायत्री-मंत्रों से अच्छी होगी। श्री शिवप्रसाद शर्मा ने गायत्री मन्त्र से झाड़ दिया तो दूसरे दिन वह बिलकुल निरोग हो गई।”
बुरे विचार बदल गये
श्री निरंजनकुमार पटेल, (महेसाना, गुजरात) से लिखते हैं कि आजकल के नवयुवकों की तरह मेरे विचार भी बहुत दूषित थे और पराई बहिन बेटियों की तरफ कुविचार और कुदृष्टि की भावना रखता था। पर जब मथुरा जाकर पूज्य आचार्यजी के आज्ञानुसार सवा लाख का अनुष्ठान किया तो मेरे विचारों में बड़ा अन्तर पड़ गया और हृदय की भावनायें बहुत शुद्ध हो गईं। इस अनुष्ठान के बाद मुझे जो आन्तरिक आनन्द प्राप्त हुआ उसका वर्णन मैं नहीं कर सकता।
रक्त-पित्त रोग से छुटकारा मिला
श्री जगदीश्वरप्रसाद भट्ट अध्यापक (पाला, मैहर, बुन्देलखण्ड) से लिखते हैं कि मई 1957 में मुझे रक्त-पित्त रोग का बड़े जोरों से दौरा हुआ। रक्त-स्राव अधिक मात्रा में होने से मैं एकदम निर्बल हो गया। मेरी दशा देखकर घर के सब लोग घबड़ाने लगे। पर मैंने उनको धीरज बंधाया और गायत्री-उपासना करने को कहा। इस पर सब बच्चे और स्त्री गायत्री जप करने लगे। माता की कृपा से एक सप्ताह के भीतर ही मेरा रोग पूर्णतया शाँत होकर इस संकट से छुटकारा मिला।
घर की हालत सुधर गई
श्री. यच.यू. नारायणराव बी.ए. साहित्यरत्न (रामानिया रोड, मैसूर) से लिखते हैं कि गत चैत्र में मैंने सहस्र गायत्री हवन किया था और शंकर जयन्ती पर 24 लाख का पुरश्चरण किया था। इसके फल से सब कामों में मुझे सफलता मिली है। मैं साहित्यरत्न परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया, मेरी नौकरी भी लग गई। इस प्रकार माता अपने भक्त की सब तरह से सहायता करती हैं।
गेहूँ की फसल अतिउत्तम हुई
महाशय लक्खीरामजी मलेसा (गुड़गाँवा) से लिखते हैं कि मैंने गत वर्ष खेत तैयार करके मुकाबले के लिये गेहूँ बोया और माता से सफलता की प्रार्थना की। जबकि और किसी के खेत में 2 मन से 4 मन प्रति एकड़ पैदावार हुई मेरे खेतों में बिना खाद के 5 मन से 8 मन तक गेहूँ उत्पन्न हुये।
कालस्वरूप सर्प से बचा
श्री. बजरंगसिंह, शाखामंत्री (रेउरी, सीतापुर) से लिखते हैं कि मैं घर के भीतर माता की सेवा पूजा में लगा था, इधर बाहर एक काला नाग सोने के तखत पर चढ़कर बिस्तर के भीतर जा बैठा मेरे छोटे भाई की स्त्री टट्टी को जा रही थी उसने देख लिया। इससे बिस्तर को लौट कर उसे मार दिया गया। माता की कृपा के बिना ऐसे छिपे काल से कौन रक्षा कर सकता था।
मृत्यु से रक्षा और घर जलने से बचा
सन्तबक्ससिंह अमीन, रेउरी (सीतापुर) लिखते हैं कि मैं रुपया वसूल करने बाहर गया था वापसी के वक्त मेरे शत्रुओं ने रुपया लेने की गरज से कुछ बदमाश लगा दिये। पर माता की दया उन्हीं में से एक बदमाश ने स्वयं पुलिस में जाकर इत्तला कर दी और सबको गिरफ्तार करा दिया। इसी प्रकार मेरे घर को जलाने की गरज से एक दुश्मन ने आग लगाने की चेष्टा की, पर उसी समय हवा का रुख बदल जाने से स्वयं उसका और दूसरे का घर जल गये और मेरा घर बच गया।
परीक्षा और नौकरी में सफलता
श्रीमती सरस्वतीदेवी (विजनौर) से लिखती हैं कि उनके पुत्र विश्वेन्द्रभूषण बीमार हो जाने पर भी बी.एस-सी. में फर्स्ट क्लास में पास हो गया और दूसरे रवीन्द्रभूषण बी.टी. में पास होकर तुरन्त नौकरी पा गये। ये दोनों माता की उपासना कर रहे थे। जिसने माता की शरण ली, वह अवश्य सफल हुआ यह मेरा अनुभव है।
18 साल बाद पुत्र का जन्म हुआ
श्री धुन्दीसिंह शर्मा (बड़ेसरा, अलीगढ़) से लिखते हैं कि हमारे यहाँ के श्री हुन्डीलाल टेलर मास्टर ‘अखण्ड-ज्योति’ का गायत्री अंक पढ़ने से गायत्री-उपासना में संलग्न हुये थे। 1955 की चैत्र