Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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प्यार (Kavita)
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प्यार मन बहलाव का साधन नहीं है।
प्यार है वह जो हमें भू से उठादे,
प्यार वह है जो हमें भू से मिलादे।
प्यार है वह जो हमें जीना सीखादे,
प्यार है वह जो सरस जीवन बनादे। पर बिगड़ता प्यार में जीवन नहीं है- प्यार,
मन बहलाव का साधन नहीं है॥
कौन कहता है किरण नभ की परी है?
थकित-रवि के व्यथित उर की आग है वह। आँसुओं को तुम रुदन क्यों मानते हो?
विकल-मन का मूक विगलित राग है वह।
जो स्वरों का मानता बन्धन नहीं है-
प्यार मन बहलाव का साधन नहीं है॥ आज भी मेरे हृदय में एक सिहरन,
आज भी मेरे हृदय में एक तड़पन।
मैं वही हूँ तुम वही हो,जग वही है,
आज भी तुम्हारा चिर मधुर मन। किन्तु, कारण हीन आकर्षण नहीं है- प्यार,
मन बहलाव का साधन नहीं है॥
प्यार वह है जो हमें भू से मिलादे।
प्यार है वह जो हमें जीना सीखादे,
प्यार है वह जो सरस जीवन बनादे। पर बिगड़ता प्यार में जीवन नहीं है- प्यार,
मन बहलाव का साधन नहीं है॥
कौन कहता है किरण नभ की परी है?
थकित-रवि के व्यथित उर की आग है वह। आँसुओं को तुम रुदन क्यों मानते हो?
विकल-मन का मूक विगलित राग है वह।
जो स्वरों का मानता बन्धन नहीं है-
प्यार मन बहलाव का साधन नहीं है॥ आज भी मेरे हृदय में एक सिहरन,
आज भी मेरे हृदय में एक तड़पन।
मैं वही हूँ तुम वही हो,जग वही है,
आज भी तुम्हारा चिर मधुर मन। किन्तु, कारण हीन आकर्षण नहीं है- प्यार,
मन बहलाव का साधन नहीं है॥