Magazine - Year 1979 - July 1979
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
जीत के बाद भी सिर झुका (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अश्वपति ने राज्य विस्तार तो नहीं किया पर समर्थ नागरिक तैयार करने के लिये जो भी उपाय सम्भव थे, उसने किये। यही कारण था कि उसके राज्य में सब स्वस्थ, वीर, और बहादुर नागरिक थे। काना, कुबड़ा, दीन-हीन और आलसी उनमें से एक भी न था। अश्वपति के राज्य में जन्म लेते ही बच्चे राज्याधिकारियों के नियन्त्रण में सौंप दिये जाते थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध अश्वपति स्वयं करता था। उसका हर नवयुवक चरित्र बल, दृढ़ता, शौर्य और संयम की प्रतिमूर्ति था। यही कारण था कि उस छोटे-से राज्य से भी कोई टक्कर नहीं ले पाता था।
प्रतापी सम्राट पोरस से युद्ध करने के बाद सिकन्दर की सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया, उस समय सिकन्दर ने सोचा आस-पास के छोटे राज्य ही हस्तगत क्यों न कर लिये जायें? उसको एक वक्र दृष्टि अमृतसर के समीप रावी नदी के तट पर बसे अश्वपति के राज्य पर पड़ी। सिकन्दर ने अश्वपति की वीरता की गाथाएँ पहले ही सुन रखीं थीं, उसके सिपाही भी हिम्मत हार चुके थे, इसलिये उसने मुकाबले की अपेक्षा छल से रात में अश्वपति पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के लिये अनिश्चित अश्वपति के सैनिकों को सिकन्दर के सिपाहियों ने छल पूर्वक काटा और इस तरह यह युद्ध भी यूनानियों के हाथ रहा। महाराज अश्वपति बन्दी बना लिये गये। सिकन्दर ने अश्वपति के शौर्य की परीक्षा लेने के इरादे से उसे बन्धन मुक्त कर दिया और सन्धि कर ली। इस खुशी में दोनों नरेशों का एक सम्मिलित दरबार आयोजित किया गया। अश्वपति अपने खूँखार लड़ाका कुत्तों के लिये विश्व-विख्यात था, चार कुत्ते हमेशा अश्वपति के साथ रहते थे। जब वह दरबार में पहुँचे तब वह कुत्ते भी उनके साथ थे। सिकन्दर ने उनके पहुंचने ही व्यंग किया- महाराज यह “भारतीय कुत्ते” है? अश्वपति ने तुरन्त दिया- हाँ यह छिपकर आक्रमण नहीं करते, शेरों से भी मैदान में लड़ते हैं। लड़ाई का आयोजन किया गया।
उधर शेर इधर दो कुत्ते- लड़ाई छिड़ गई। शेर ने कुत्तों को लहू लुहान कर दिया पर कुत्तों ने भी शेर के छक्के छुड़ा दिए। शेष दो कुत्ते भी छोड़ दिये गये और तब शेर को भागते ही बना। पर कुत्तों ने उसके शरीर में ऐसे दाँत चुभाये कि शेर आहत! होकर वही गिर पड़ा। अश्वपति ने ललकार कर कहा-महाराज! आपकी सेना में कोई वीर है जो कुत्ते के दाँत शेर के माँस से अलग कर दे? बारी- बारी से कई योद्धा उठे और कुत्तों की टाँगे पकड़ कर खींचने लगे, कुत्तों की टाँगे टूट गई पर वे उनके दाँत छुड़ा न सके। सात फुट लम्बे अश्वपति ने अपने अंग रक्षक को संकेत किया। वह उठकर शेर के पास पहुँचा और कुत्ते को पकड़ कर एक ही झटका लगाया कि शेर की हड्डी और माँस सहित कुत्ता भी खिंच गया।
सिकन्दर ने युद्ध जीत लिया था पर इस यथार्थ के आगे वह अपना सिर झुकाये बैठा था।