Magazine - Year 1979 - July 1979
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Language: HINDI
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मरणोत्तर जीवन एक सचाई एक तथ्य
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हालीवुड की अभिनेत्री ‘किमनोवाक’ ‘द अमोरम एडवंचर्स माल फ्लेडंर्स’ फिल्म की शूटिंग के लिए इंग्लैण्ड गयी थी। ‘आउट डोर’ सूटिंग के लिए ‘केंटरावरी’ में स्थित ‘चिंलहम कैसल’ नाम प्राचीन किले के आस-पास का स्थान चुना गया। इस किले क अधिकाँश भाग बारहवीं सदी का बना है तथा शेष 300 वर्ष पूर्व बनाया गया है। किले के जिस भाग में अभिनेत्री ‘किम नोवाक’ को ठहराया गया वह बारहवीं सदी का था। बिजली आदि की सुविधाएँ बाद में की गई थीं। ‘किम नोवाक’ शूटिंग के उपरान्त थककर वापस लौटती, भोजन करने के बाद थोड़ी देर टेलीविजन देखती तदुपरांत सो जाती। यह क्रम नित्य का था।
एक रात्रि टेलीविजन में संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। संगीत के जादुई प्रभाव से ‘किम’ के पाँव संगीत की लहरों के साथ थिरकने लगे वह नृत्य करने में तन्मय हो गई। अचानक उसे ऐसा लगा कि किन्हीं बलिष्ठ हाथों ने उसे घेर लिया है तथा जबरन नृत्य करवा रहा हैं। आरम्भ में उसने इसे मन का भ्रम समझा किन्तु जब उसने अपने थिरकते हुए पैरों को नृत्य से रोकना चाहा तो पाया कि किसी व्यक्ति के दो हाथ उसे जबरन घुमाते जा रहे हैं। न चाहते हुए भी वह नृत्य करने लिए बाध्य थी। देखने पर सामने कोई स्पष्ट नहीं दिखायी दे रहा था। भय से शरीर से पसीना निकलने लगा। टेलीविजन पर संगीत की ध्वनि धीमी हो गई किन्तु उस अदृश्य व्यक्ति पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने साथ अभिनेत्री किम को तेजी से नचाये जा रहा था। काफी समय के बाद अदृश्य हाथों की पकड़ समाप्त हुई। ‘किम’ बेहोश होकर एक किनारे गिर पड़ी। चैतन्य स्थिति में आने पर उसने कमरे में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई किन्तु कोई भी दिखाई नहीं पड़ा।
इस घटना को उल्लेख अभिनेत्री ‘किम’ ने तत्काल अपने किसी अन्य साथी से नहीं किया तथा उत्सुकतावश आगे क्या होता है, यह देखने के लिए अपने अन्दर साहस बाँधने लगी। उस रात के बाद उसने टेलीविजन देखना तो छोड़ दिया किन्तु अदृश्य प्रेतात्मा अपनी उपस्थिति का प्रमाण अन्य रूप में देने लगी। ‘किम’ कमरे की बत्ती जलाती तो वह गुल कर देता। बत्ती बुझाकर वह सोने जाती तो कोई हाथ आगे बढ़कर बिजली का स्विच आन कर देता। कितनी बार कमरे की रखी व्यवस्थित वस्तुएँ अस्त-व्यस्त फैली हुई मिलतीं कभी-कभी खिड़की के दरवाजे बन्द होने पर भी उन पर लगे परदे जोरों से हिलने लगते। कई बार ‘किम’ ने अनुभव किया कि ‘कोई’ उसके हाथों से पहनने वाले कपड़े छीनने का प्रयास कर रहा है। शूटिंग के समाप्ति दिन में प्रत्येक रात्रि इन घटनाओं के क्रम चलता रहा। फिल्म की शूटिंग की समाप्ति पर सारी घटनाओं का उल्लेख ‘किम’ ने अपने साथी अभिनेता ‘रिचर्ड जानसन’ से किया।
‘रिचर्ड-जानसन’ को उक्त महल में रहने वाली प्रेतात्मा की जानकारी पहले से थी। उसने कहा कि “वह प्रेतात्मा तेरहवीं सदी के प्रसिद्ध राजा ‘किंगजान’ की है। 11 अक्टूबर 1216 को राजा ‘जान’ अपने दुश्मनों के चंगुल से भागकर शरण प्राप्त करने के लिए उसी किले में रुका था। दूसरे दिन ‘किंग जान’ एक खाई को पार करने का प्रयास कर रहा था तो नौका दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी आत्मा की आसक्ति इस किले के साथ अब भी बनी है जानसन ने कहा कि मृतात्मा ‘जान’ की उपस्थिति पिछले साढ़े चार सौ वर्षों से इस किले में बनी हुई है। इसका आभास समय-समय पर उस कमरे में रुकने वालों को होता रहता है।
यह घटना जहाँ प्रेतात्मा के अस्तित्व का प्रमाण देती है वहीं उसकी अतृप्त मनोवृत्तियों पर भी प्रकाश डालती हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा की अतृप्त आकाँक्षाएँ एवं वासनाएँ स्थूल शरीर के साथ समाप्त नहीं हो जाती वरन सूक्ष्म शरीर के साथ उनके संस्कार बने रहते हैं। यह अतृप्त वासनाएँ एवं इच्छाएं मृत्यु के उपरान्त भी जीवात्मा को उद्विग्न बनायें रहती हैं, जिसकी पूर्ति के लिए जीवात्मा को प्रेत-योनि धारण करनी पड़ती है।
प्रत्येक धर्मशास्त्र, वस्तु एवं व्यक्ति से मोह एवं आसक्ति के परित्याग की बात कहता है। द्रष्टा ऋषियों एवं मनीषियों द्वारा शास्त्रों धार्मिक ग्रन्थों में प्रतिपाद्य यह सिद्धान्त कभी अवैज्ञानिक नहीं हो सकता। उनके कथन के पीछे ठोस मनोवैज्ञानिक आधार हैं। वे इस तथ्य से अवगत थे व्यक्ति अपने साथ जीवन काल के संस्कार को सूक्ष्म शरीर के साथ लेकर मरता है। यदि वे संस्कार निम्नस्तर के अतृप्त वासनाओं एवं इच्छाओं के होते हैं तो मृत्यु के उपरान्त भी जीवात्मा को उद्विग्न बनाए रहते हैं। जीवात्मा को इनके रहते हुए कभी शान्ति नहीं मिल पाती। इन अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही जीवात्मा प्रेत योनि में भटकती रहती है तथा जिस भी व्यक्ति, अथवा वस्तु से आसक्ति अथवा विद्वेष रहता है उसके इर्द-गिर्द मंडराती रहती है।
यह आसक्ति प्रेम मूलक ही नहीं द्वेष मूलक भी होती है। विक्षुब्ध आत्माएँ अपने जीवनकाल के उन व्यक्तियों को क्षति पहुँचाती है जिनसे उन्हें द्वेष रहता है, वहीं कुछ प्रेतात्माएँ अपने ‘प्रिय’ एवं निकटवर्ती व्यक्तियों को सहयोग करती हैं। कभी-कभी यह आसक्ति इतनी गहरी देखी जाती है कि प्रेतात्मा अपने प्रेमपात्र को स्पष्ट निर्देशन देती है।
स्ट्रामवर्ग जून 1961 को ‘जेमी केलघन’ शराब के नशे में दुत्त अन्धेरे को चीरता हुआ अपने फ्लैट की ओर वापस लौट रहा था। एक तो अँधेरी रात ऊपर से ठण्डी हवा के झोंकों से शरीर रोमाँचित हो उठता था। अचानक पीछे से आवाज आयी ‘रुको’! केलघन से पीछे मुड़कर देखने का प्रयास किया किन्तु कोई भी दिखायी न पड़ा। आवाज की ध्वनि नीरव वातावरण में अब भी गुँजित हो रही थी। ‘शराब’ का नशा इस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर गायब हो गया। वह सोचने लगा कहीं यह मन का भ्रम तो नहीं, तभी उसे आवाज पुनः सुनाई पड़ी ‘बेटा’। यह आवाज उसे परिचित सी लगी। उसे अपनी माँ का ध्यान आया जो 27 वर्ष पूर्व मर चुकी थी। वह सोचने लगा, तो फिर क्या यह उसकी माँ की प्रेतात्मा है। अदृश्य आवाज ने पुनः उसका ध्यान तोड़ते हुए कहा, “बेटा तुम्हें इन कुकृत्यों को छोड़ देना चाहिए। तुम नहीं जानते कि मुझे कितना कष्ट उठाना पड़ रहा है। जब तक तुम अपने दुष्कृत्यों को छोड़ नहीं देते, मुझे शान्ति मिलना असम्भव है”। माँ की इन वेदना पूर्ण बातों को सुनकर केलघन का हृदय झंकृत हो उठा। वह सोचने लगा “कि क्या उसके कारण ही माँ को प्रेतयोनि में भटकना पड़ा है। उसकी उद्विग्नता एवं अशान्ति का कारण क्या स्वयं वह है।” केलघन ने तत्काल मन में यह संकल्प लिया कि “आज से कभी मैं शराब नहीं पीऊँगा।” तथा अपने आचरण को श्रेष्ठ बनाऊँगा। इस बात की परख के लिए कि वह आवाज उसकी माँ की है या किसी अन्य की। उस अदृश्य प्रेतात्मा से ‘केलघन’ ने कहा “कि यदि तु मेरी माँ हो और मुझे देख रही हो तो, अपने हाथों से हमें छूकर आभास कराओ”। यह कहना था कि ‘माँ’ ने अपना ममता भरा हाथ केलघन की बाँह पर रख दिया। माँ के हाथ का निशान उसके कमीज की बाँह पर उभर आया। यह हाथ का चिन्ह कमीज के साथ आज भी लन्दन के ‘पर- गेटरी म्यूजियम’ जिसे ‘हाउस आफ शैडोज’ प्रेतात्माओं का घर कहा जाता है में सुरक्षित रखा है।
प्रस्तुत घटना इस बात का प्रमाण है कि जीवन काल में अत्याधिक व्यक्ति विशेष से आसक्ति मरणोत्तर जीवन को भी उद्विग्न बनाए रहती है। कभी-कभी तो जीवित व्यक्ति की गहरी संवेदनाएँ भी प्रेतात्मा’ को उपस्थित होकर अपना परिचय देने को बाध्य करती हैं। ऐसी ही एक घटना अमेरिका की विधवा महिला “श्रीमती एलिस वैल” के साथ घटित हुई जिसका प्रकाशन अमेरिका ने अधिकाँश प्रमुख पत्रों में हुआ था।
श्रीमती एलिस वैल शाम को थकी-माँदी बाजार से लौटी। सामान को एक ओर पटक, बेलचा उठाकर अँगीठी में कोयला डालने का प्रयास करने लगी। बेलचा उठाते ही वे काँपने लगी। बेलचा उन्होंने एक दिन पूर्व ही खरीदा था तथा बिल्कुल स्वच्छ एवं चमकदार था। यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई कि उस पर ‘राबर्ट कैनेडी’ का बिंब उभर आया था यह चेहरा उनकी हत्या के समय का था। ठीक वैसा ही था जैसा हत्या के उपरान्त 1968 में देखा गया। सिर पीछे की ओर झुका था, आँखें बन्द थीं तथा चेहरे पर खून के धब्बे स्पष्ट दिखायी दे रहे थे। बिंब को देख श्रीमती ‘बेल’ द्रवित हो उठीं। सहसा उन्हें यह अहसास हुआ कि “कहीं यह भ्रम तो नहीं है।” उन्होंने बेलचे के ऊपर बने बिंब को हाथ से छूकर देखा, यह जानकर और भी भय मिश्रित आश्चर्य हुआ कि भयानक शीत में रखा हुआ बेलचे का वह भाग जहाँ बिंब दृष्टि गोचर हो रहा था; गरम था और मुलायम भी।
बेलचे का उलटकर दूसरी ओर देखा तो पाया कि वह वैसा ही ठण्डा एवं कठोर था जैसा कि उस मौसम में होना चाहिए।
श्रीमती ‘वेल’ अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सकीं। कहीं यह दृष्टि भ्रम तो नहीं, ऐसा समझकर कि ‘मैं’ ‘राबर्ट’ की प्रशंसक रही हूँ तथा उनकी मृत्यु से हमें गहरा सदमा पहुँचा है, किसी ने मनोरंजन की दृष्टि से यह चित्र तो नहीं बना दिया है, उन्होंने बेलचे पर उभरे चित्र को हाथों से रगड़ा; किन्तु यह सोचना असत्य था। बेलचे पर रग-रोशन के प्रयोग का कहीं चिन्ह नहीं था तथा उसमें ‘ताप’ अब भी उसी प्रकार बना था। श्रीमती ‘वेल’ ने सोचा यदि यह मेरी चेतना का भ्रम है तो यह सब दृश्य किसी अन्य को दिखायी नहीं देना चाहिए। तथ्य की परीक्षा के लिए बेलचे को मुलायम कपड़े में लपेटकर साथ लिए हुए अपने पड़ोसी ‘वोलोन’ दम्पत्ति के यहाँ पहुँची। उनके सामने ‘बेलचे’ को रखते हुए श्रीमती वेल ने पूछा “कि क्या उन्हें कुछ दिखायी दे रहा है। श्रीमती ‘वोलोन’ ने तेज स्वर में कहा ‘यह तो राबर्ट कैनेडी हैं, जिनकी हत्या अमेरिका में कर दी गई थी। देखा! उनके चेहरे से अब भी रक्त टपकता मालूम हो रहा है।” बेलचे की गर्मी का आभास उनको भी ठीक वैसा ही हुआ जैसा कि श्रीमती वेल को। सन्देह की अब बिल्कुल ही गुँजाइश नहीं थी।
बेलचे पर उभरा हुआ चित्र किसी व्यक्ति द्वारा बनाया गया है अथवा अन्य कोई रहस्य मय कारण से बना है इस बात के परीक्षण के लिए चित्रकला विशेषज्ञ को बुलाया गया। ‘बेलचे’ पर बने रंगीन चित्र पर तेजाब आदि डालकर परीक्षण किया गया। ‘बेलचे’ की धातु में छेद तो हो गया किन्तु बिंब ठीक वैसा ही बना रहा। विशेषज्ञ ने परीक्षण के उपरान्त घोषणा की कि “यह चित्र मानव निर्मित नहीं है। इसके पीछे किसी दैवीय शक्ति का हाथ है। इसका प्रमाण है बेलचे का गरम होना”।
अगले दिन लोगों की भीड़ यह देखने के लिए उमड़ पड़ी। अनेकों व्यक्तियों ने बेलचे पर उभरे चित्र का फोटोग्राफ लेने का प्रयत्न किया। किन्तु यह देखकर निराशा हुई कि फिल्म पर कोई चित्र नहीं आया साथ ही बेलचे पर उभरा चित्र भी लुप्त हो गया। इस घटना का विस्तृत विवरण उत्तरी इंग्लैंड के (साउथ शोल्डस) से निकलने वाले पत्र “सण्डे- मिरर” में प्रकाशित हुआ।
प्रख्यात परा-मनोविज्ञानी डा. “टिमोंरी वेलजोन्स” ने ‘बेलचे’ में कैनेडी भी प्रेतात्मा की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि “केनेडी की मृत्यु से ‘श्रीमती वेल’ को मानसिक आघात लगा। उनकी सम्वेदनाओं ने सूक्ष्म आध्यात्मिक वातावरण में केन्द्रीभूत होकर इस बिंब की स्टष्टि की, जो किसी भी वास्तविक चित्र से अधिक यथार्थ है ‘बेलचे’ का गरम होना इस, बार का प्रमाण है कि ‘केनेडी’ की प्रेतात्मा द्रवित होकर उक्त चित्र में उपस्थित है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की उष्णता एवं कोमलता से बना ‘बिंब’ मानस पटल पर ही प्रतिबिंबित होते हैं। ‘कैमरे’ का फिल्म इतना सम्वेदन शील नहीं होता कि उस पर इस प्रकार के बिंब आ सकें।
मरणोत्तर जीवन की सच्चाई एवं प्रेतात्माओं के अस्तित्व के तथ्य से अब इन्कार नहीं किया जा सकता। परामनोविज्ञान भी इसका समर्थन कर रहा है। इस क्षेत्र में गहन शोध की आवश्यकता है। इस दिशा में यदि प्रयास चल पड़े तो मरणोत्तर जीवन की गुत्थियों, मनुष्य के क्रिया कलाप से मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध, कर्मफल जीवात्मा के स्वरूप एवं अमरता के सिद्धान्त को समझ सकने में विशेष योगदान मिलेगा।