Magazine - Year 1981 - Version 2
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Language: HINDI
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चेतना के विकास में परिवेश का महत्व
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जिस वातावरण में, जैसे व्यक्तियों के संपर्क में रहना पड़ता है, उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। मनुष्य को बहुत कुछ अपने भाग्य, भविष्य और व्यक्तित्व का निर्माता स्वयं कहा जाता है, परन्तु उसका इच्छित निर्माण भी तभी सम्भव होता है जबकि उपयुक्त वातावरण मिले। उपयुक्त वातावरण के अभाव में वे परिस्थितियाँ और सुविधाएँ उपलब्ध ही नहीं होतीं जो अभीष्ट विकास के लिए आवश्यक हैं। इसीलिए मनीषियों ने उच्चस्तरीय आत्मिक विकास के लिए सत्पुरुषों की संगति करने, परिमार्जित और परिष्कृत वातावरण में रहने तथा आत्म-विकास के लिए समुचित प्रयत्न करते रहने का निर्देश दिया है।
वातावरण, परिवेश या परिस्थितियाँ मनुष्य को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? इसका अच्छा उदाहरण जुड़वा बच्चों में देखा जा सकता है। एक साथ एक ही गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चों के स्वभाव, स्वास्थ्य, रंग, रूप और यहाँ तक कि चरित्र में भी अद्भुत साम्य देखा गया है। जन्म लेने के बाद भले ही परिस्थितियाँ भिन्न हो जांय, जुड़वा बच्चों को आगे चलकर भिन्न-भिन्न कार्य क्षेत्र अपनाना पड़े परन्तु उनमें वह साम्य फिर भी कम नहीं होता। यह साम्य किस स्तर तक, किस सीमा के अन्दर तक घटाया या बढ़ाया जा सकता है? इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों ने अनेक प्रयोग किये हैं और उनके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं। अमेरिका के बोस्टन शहर में जन्मी दो जुड़वा बच्चियों पर किये गए प्रयोग इस सम्बन्ध में एक ठोस प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
वहाँ जन्मी दो लड़कियाँ जिल और वरोनिका को तीन महीने तक तो एक साथ पलने दिया गया। फिर उन्हें अलग-अलग कर दिया गया। जिल के पालन-पोषण की जिम्मेदारी जिस महिला को दी गई थी उसके और भी बच्चे थे तथा वह कठोर शारीरिक श्रम की आदी और सख्त अनुशासन प्रिय स्वभाव की थी। अपने बच्चों को भी उसने अपनी इच्छा और रुचि के अनुसार साँचे में ढाला। वरोनिका की अभिभावक महिला सीधे सादे किस्म की गृहिणी थी और वह दूसरों से ज्यादा मिलना-जुलना भी पसन्द नहीं करती थी। एकान्त उसे बहुत अच्छा लगता था, जबकि जिल की अभिभावक महिला सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थी और एकान्त तो जैसे उसे काटने दौड़ता था।
जिल और वरोनिका के चेहरे मोहरे में अद्भुत साम्य था। दोनों को एक साथ देखने पर उन्हें अच्छी तरह पहचानने वाले व्यक्तियों के लिए यह निश्चित कर पाना कठिन हो जाता था कि कौन जिल है और कौन वरोनिका? उन्हें जब स्कूल में भरती कराया गया तो पाया गया कि उनके स्वभाव एक-दूसरे में बहुत सीमा तक मिलते हैं। अलग-अलग स्थानों में, अलग-अलग प्रकृति की महिलाओं के संरक्षण में रह कर भी उनके स्वभाव में कोई विशेष अन्तर आभासित नहीं होता था।
जुड़वा बच्चे जीव विज्ञान के लिए अभी भी एक पहेली हैं। वैज्ञानिकों ने इस विषय में अनुसंधान की व्यापक योजनाएँ बनाई हैं। अकेले अमेरिका में सौ से अधिक ऐसे केन्द्र हैं जहाँ जुड़वा बच्चों के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है। इन केन्द्रों में विभिन्न जुड़वा बच्चों के सम्पूर्ण जीवन की जानकारी एकत्रित की जाती है, उसका अध्ययन किया जाता है और उन्हें एक दूसरे से सम्बद्ध किया जाता है। अब तक हुए अध्ययन से प्राप्त विभिन्न निष्कर्षों के अनुसार औसतन 40 में से एक बच्चा जुड़वा होता है, अर्थात् 50 प्रसव होते हैं तो उनमें एक प्रसव से जुड़वा बच्चे जन्म लेते हैं।
जुड़वा बच्चों को जन्म के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। एक तो वह जिसमें दोनों बच्चों का एक साथ होता है, दूसरे बच्चे कुछ समय के अन्तर से होते हैं। इनमें से पहले वाले को युग्म जुड़वा बच्चे कहा जाता है तथा दूसरे प्रकार के बच्चों को सामान्य जुड़वा बच्चे। युग्म जुड़वा बच्चे एक ही डिम्ब से जन्म लेते हैं। देखने में वे अकसर एक जैसे लगते हैं, उनमें कोई अन्तर नहीं दिखाई देता। केवल उनकी अंगुलियों के निशान ही अलग होते हैं। वे अलग सैक्स के हो सकते हैं और शक्ल में भी कुछ अन्तर हो सकता है। किन्तु यह अन्तर ऐसा नहीं होता कि सामान्य दृष्टि से देखा या समझा जा सके। स्वभाव तो लगभग एक समान ही होता है।
बंकिंघम के मातृत्व शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने जुड़वा बच्चों में कुछ अन्तर पाए हैं, किन्तु यह अन्तर सामान्य या सामान्य गम्भीरता से देखने पर पता नहीं चलता। इस पर भी उनके विचारों, आदतों और स्वभाव में अद्भुत साम्य देखा गया। विंसेट तथा मारग्रेट नामक दो वैज्ञानिकों ने सैकड़ों जुड़वा बच्चों पर शोध कर अनेक महत्वपूर्ण तथा विस्मयकारी निष्कर्ष ढूँढ़ निकाले हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक में कई जुड़वा बच्चों के उदाहरण दिये हैं। एक डॉक्टर की पत्नी का उदाहरण इसमें बेहद दिलचस्प है। नाम था उसका डोंग मार्टिन। वह एक पार्टी में सम्मिलित थी और हँस-हँसकर अपने मित्रों से बोल-बतिया रही थी। अचानक न जाने क्या हुआ कि वह उदास हो गई और फूट-फूटकर रोने लगी। डा. विसेंट भी उसी पार्टी में उपस्थित थे। मार्टिन को इस प्रकार रोते देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ समय बाद उन्होंने इसके कारण तलाशते हुए पाया कि पार्टी में जिस समय मार्टिन रो उठी थी, उस समय उसकी जुड़वा बहन अचानक बीमार पड़ गई थी।
बंकिंघम शहर की ही एक और घटना का उल्लेख है। मारग्रेट एक परिवार में अतिथि थे। भेजवान परिवार की गृहिणी पूरी तरह सामान्य थी। वह प्रसन्न और स्वस्थ चित्त से अतिथियों का सत्कार कर रही थी। अचानक रसोई में से उनके कराहने का स्वर सुनाई दिया। मारग्रेट सहित परिवार के अन्य लोग दौड़े आए। देखा टैडी उसी प्रकार कराहते हुए रसोई के अपने काम में लगी है। पूछने पर उसने बताया अचानक उसके चेहरे, पीठ और पैरों में इस प्रकार दर्द होने लगा था, जैसे वह किसी दुर्घटना में आहत हो गई हो और उसे चोट लगी हो।
टैडी काफी समय तक उसी स्थिति में रही। चोट लगने जैसे दर्द का तत्काल कोई कारण समझ में नहीं आया पीछे पता चला कि उसी समय टैडी की बहन बैब्स एक कार दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गई थी। उसके चेहरे, पीठ और पैरों पर काफी चोटें आईं थीं तथा वह इस दुर्घटना के कारण बेहोश हो गई थी।
इस तरह की घटनाएँ अन्य जुड़वा बच्चों में भी पाई गई हैं। प्रायः उनमें से किसी एक को कोई तकलीफ होती है तो दूसरे को भी पता चल जाता है और बहुत बार वैसी ही पीड़ा वे भी अनुभव करने लगते हैं। ब्रिटेन की लेबर पार्टी के संसद सदस्य डगलस की बेटी कैथरीन ने जिस समय एक बच्चे को जन्म दिया उसी समय, उसकी जुड़वा बहन हेलन के पेट में भी सख्त पीड़ा हो रही थी। मानचेस्टर की बारबरा मैरिगन ने भी छः घण्टे तक अपनी जुड़वा बहन के साथ प्रसव वेदना झेली। प्रो. जे.एच. कैमरान ने लिवरपूल के एक मैकेनिक का विचित्र विवरण दिया है। जिसे न कहीं चोट आई न कोई बीमारी हुई फिर भी वह एक सप्ताह तक चलने फिरने में असमर्थ रहा कारण कि उसके एक जुड़वा भाई की टाँग एक दुर्घटना में टूट चुकी थी।
जुड़वा बच्चों में शारीरिक और मानसिक रूप से इतनी साम्यता होती है कि उन्हें एक ही व्यक्तित्व के दो बिम्ब कहा जाये तो भी अत्युक्ति नहीं होगी। अनेक जुड़वाओं में, वे कहीं भी रहें, एक दूसरे तक अपने विचार और सम्वेदना सम्प्रेषित करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है और कई बार इस क्षमता से बहुत लाभ होता देखा गया है।
यह समानता क्यों उत्पन्न होती है? इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक गम्भीरता से शोध कर रहे हैं। अमरीकी विशेषज्ञ विंसेट का कथन है कि यदि युग्म जुड़वा बच्चों में शारीरिक दृष्टि से समानता होती है तो इस बात की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है कि वे मानसिक दृष्टि से भी एक समान हैं। ऐसा क्यों होता है? इसके उत्तर में कहा गया है कि उन बच्चों का विकास गर्भाशय के भीतर ही एक सी ही स्थितियों में होता है। उस समान स्थिति में पलने के कारण अलग-अलग देह धारी होते हुये भी उनके व्यक्तित्व तथा आचरण में समानता आ जाती है।
एक ही गर्भ में पलने वाले बच्चों के गुणसूत्र भी एक से होते हैं। कभी-कभी इन बच्चों का गर्भाधान और विकास अलग प्रकार के गुणसूत्रों से भी होता है। एक ही प्रकार के गुणसूत्रों वाले बच्चों को ‘आईडेंटिकल ट्विन्स’ कहते हैं। ऐसे बच्चे समान लिंगी होते हैं अर्थात् या तो पुरुष होते हैं अथवा स्त्री। गर्भ में जिन बच्चों का विकास अलग-अलग गुणसूत्रों से होता है, उन्हें ‘फ्रैटरनल ट्विन्स’ कहते हैं। ऐसे बच्चों के लिंग भिन्न-भिन्न भी हो सकते हैं अर्थात् एक पुलिंग हो सकता है और एक स्त्रीलिंग। कोई आवश्यक नहीं कि ये भिन्न लिंग के हों ही सही, परन्तु ऐसे सम्भावना हो सकती है। ‘आईडेंटिकल ट्विन्स’ में इस तरह की सम्भावना बिल्कुल नहीं रहती।
लन्दन हॉस्पीटल के ‘साइकीआर्टो इन्स्टीट्यूट’ के डा. जेम्स शील्ड ने जुड़वा बच्चों पर काफी अनुसंधान कार्य किया है तथा उनमें पाई जाने वाली समानताओं के वैज्ञानिक कारण प्रस्तुत किये हैं। उनके अनुसार एक ही गुण सूत्रों से विकसित बच्चों के शरीर, स्वरूप, स्वभाव, आदतों, व्यवहार, रुचियों और मस्तिष्कीय क्षमताओं में आश्चर्यजनक समानता होती है। इसका कारण दोनों का एक ही परिवेश में पलना और विकसित होना है। ऐसे बच्चे जब गर्भ में होते हैं तो गर्भिणी द्वारा किये जाने वाले आहार तथा उसकी दिनचर्या का दोनों पर समान रूप से प्रभाव पड़ता है। उन्हें गर्भ में ही एक ही प्रकार का पोषण मिलता है। वे एक ही श्वास लेते हैं। कुछ मिला कर समान परिस्थितियों एवं समान स्तर का पोषण मिलने के कारण ही उनमें समानताएँ पाई जाती हैं।
वातावरण और परिवेश गर्भस्थ शिशु को ही नहीं मनुष्य को भी असाधारण रूप में प्रभावित करता है। इस सिद्धांत या तथ्य को भारतीय मनीषियों ने भी समझा तथा व्यक्ति के उच्च स्तरीय विकास हेतु संस्कारी व्यक्तियों के सत्संग में रहने पर विशेष जोर दिया था। सत्संग का इसीलिए अत्यधिक महत्व बताया गया है कि उसमें जिन व्यक्तियों की संगति प्राप्त होती है, उनका तेजस् वातावरण में ऐसी सूक्ष्म विशेषताएँ उत्पन्न करता है, जिससे मनुष्य की चेतना अनायास ही प्रभावित होने लगती है और आत्मिक विकास की दिशा में अग्रसर होती है।
शारीरिक दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताएँ भले ही भिन्न-भिन्न हों, उनकी अलग-अलग सम्भावनाएँ हो किन्तु आत्मिक क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट सम्भावनाएँ लिये हुये होता है। ये सम्भावनाएँ तभी साकार होती हैं जब उनके अनुरूप परिस्थितियाँ उपलब्ध हों। पानी के भाप बन जाने और वाष्प शक्ति के रूप में बड़े-बड़े यन्त्र चलाने की सम्भावना है। किन्तु पानी हर कहीं वाष्प शक्ति में परिणत नहीं होता। उसके लिये उपयुक्त व्यवस्था बनानी पड़ती है। आत्मिक विकास की उच्च कक्षा में पहुँचने के लिये भी उच्चस्तरीय आत्माओं का संपर्क सान्निध्य आवश्यक है। वह संपर्क सान्निध्य चुम्बकीय विशेषता की तरह समीपवर्ती व्यक्तियों को अपने समान बना लेता है। अतः ऐसे व्यक्तित्वों के संपर्क में रहने के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिये, जिनके सान्निध्य में आत्मिक क्षमताओं का विकास हो सके। वैसे वातावरण और परिवेश में रहने का अवसर प्राप्त करना चाहिए जो चेतना का उच्चस्तरीय विकास सम्भव बना सके।