Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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नोस्ट्राड्रेमस की भविष्य वाणियाँ
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फ्राँस में जन्मे महाप्राज्ञ नोस्ट्राड्रेमस का जन्म 1503 में और मरण 1555 में हुआ। वे डाक्टर आफ मेडीशन की उपाधि से अलंकृत थे। उनकी भविष्य वाणियाँ इतनी सही बैठती थीं कि तत्कालीन फ्राँस सम्राट चार्ल्स नवम उनके प्रति अत्यन्त श्रद्धावान रहे और अपने प्रमुख दरबारियों में उनकी नियुक्ति की।
नोस्ट्राड्रेमस ने अपने जीवन में एक पुस्तक लिखी ‘सेंचुरीज’ उसमें शताब्दियों के भावी घटनाक्रमों का वर्णन है। विगत 400 वर्षों में जो कुछ उनने लिखा है यह घटनाक्रम की दृष्टि से सही उतरता आया है। फलतः भविष्य में जो घटित होने वाला है उसके संबन्ध में भी उसके कथन को विश्व की अधिकाँश विज्ञजन विश्वास योग्य मानते हैं।
पुस्तक की मूल प्रति फ्राँस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। उसके कई भाषाओं में अनुवाद तथा प्रकाशन हुए हैं। उसे संसार की बहुचर्चित प्रतिष्ठा प्राप्त पुस्तक माना जाता है। हिटलर ने पुस्तक की लोकप्रियता देखते हुए कुछ अंश इस प्रकार छापे थे जिससे उसका पक्ष समर्थन होता था। पर वस्तुतः पुस्तक में उल्लेख का प्रतिकूल है। उसमें लिखा है कि “हिटलर और नाजी असंख्य यहूदियों की हत्या करने के बाद दुनिया से स्वयं भी समाप्त हो जायेंगे”
नोस्ट्राड्रेमस की फ्राँस से बाहर नहीं गये इसलिये कहीं की तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर भविष्य का अनुमान लगाना उनके लिये कठिन था। फिर भी उपरोक्त पुस्तक में उनने जो लिखा है वह आश्चर्य रीति से घटित होता चला गया है। फ्राँस के राष्ट्रपति मितराँ ने सन् 1983 में दी गई एक भेंट वार्ता में स्पष्ट रूप से कहा था कि वे “सेंचुरीज” पुस्तक के एक श्रद्धावान पाठक हैं।
जो घटनाऐं सही घटित हो चुकी हैं जो होने वाली हैं उसका विस्तृत विवरण जानने के लिये अंग्रेजी में प्रकाशित उनकी मूल पुस्तक को ही पढ़ना होगा। पर यहाँ ऐसा कुछ अति संक्षेप में लिखा जा रहा है जिसकी इन दिनों हम भारतीयों को दिलचस्पी हो सकती है।
उसके कुछ प्रसंग इस प्रकार है-
“विश्व में 20 वीं शताब्दी के उपरान्त उस देश का वर्चस्व होगा जिसकी सीमा पर तीन समुद्र मिलते हैं और जहाँ “गुरुवार को पवित्र दिन माना जाता है” (ऐसा देश हिन्दुस्तान ही हो सकता है। दक्षिण भारत में तीन समुद्रों की सीमाएं मिलती हैं और हिन्दुओं का पवित्र दिन गुरुवार है।)
“मुसलमान वर्ग ईसाइयों के शिकंजे में फंस जायेगा। और उसकी अपनी कोई स्वतंत्र भूमिका न रहेगी।
हिन्दुस्तान और यूरोप के संबंध घनिष्ठ हो जायेंगे। और बात यहाँ तक बढ़ेगी कि इस गुट में रूस भी सम्मिलित हो जायेगा।
-सन् 1999 में 7 वर्ष तक भारी उथल-पुथल के रहेंगे और संसार की परिस्थितियों में भारी हेर-फेर हो जायेगा।
-इसी अवधि में एक निर्णायक युद्ध होगा जिसमें 2 लाख 50 हजार हिन्दु मरेंगे पर अन्त में विजय उन्हीं की होगी।
-‘‘हिन्दू धर्म विश्व धर्म बनेगा और वेद मन्त्रों से ब्रह्माण्ड गूंजेगा। भारत विश्व का मार्गदर्शक बनेगा।”
इन भविष्य वाणियों के संबन्ध में आज तो अनुमान ही समाया जा सकता है। पर हैं वे सभी आश्चर्य जनक और अद्भुत।