Magazine - Year 1985 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
गायत्री मंत्र में हजार अणुबमों से अधिक शक्ति
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कुछ समय पूर्व बम्बई के प्रख्यात साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ के सम्पादक संचालक श्री करेंजिया लन्दन गये थे। वहाँ रह रहे विश्व विख्यात विचारक कोयस्लर से भेंट की। इस भेंट में अन्य विषयों के अतिरिक्त परमाणु युद्ध की सम्भावना और उसकी विश्वव्यापी प्रतिक्रिया पर लम्बा वार्तालाप हुआ। इस संदर्भ में वे बहुत चिन्तित दिखाई पड़े। श्री करेंजिया ने पूछा- ‘‘यदि अणु आक्रमण हुआ तो हम अपनी रक्षा कैसे करेंगे?
इसके उत्तर में कोयस्तर ने कहा- ‘‘गायत्री मन्त्र में हजार परमाणु बमों से अधिक शक्ति है। यदि भारतवासी सामूहिक रूप से इस उपासना को आरम्भ कर दें तो उससे प्रकट होने वाली शक्ति आक्रमणकारियों के हौंसले पस्त कर सकती है।”
गायत्री मन्त्र के अर्थ स्वरूप और प्रभाव से अनेक लोग परिचित हैं पर उसकी भौतिक क्षेत्र में असाधारण रूप से कार्य कर सकने वाली क्षमता का अनुभव दूसरे लोगों ने नहीं किया जैसा कि उपरोक्त महान दार्शनिक ने।
साम्यवादी से अध्यात्मवादी के रूप में बदल जाने वाले इन महा विद्वान का परिचय पाठक जानना चाहेंगे। इसलिए उनके सम्बन्ध की कुछ संक्षिप्त जानकारियाँ नीचे की पंक्तियों में दी जा रही हैं।
आर्थर कोयस्लर वुडापेस्ट हंगरी में जन्मे। उनका परिवार सुसम्पन्न था, फिर भी रूसी हलचलों के उतार-चढ़ाव में उस परिवार को बुरे दिन भी देखने पड़े। कोयस्लर लम्बे समय तक साम्यवादी प्रचारक भी रहे और पत्रकार भी। उन दिनों साम्यवाद की सर्वोत्कृष्टता का जुनून उन पर सवार था और वे उसे जनता के उद्धार का एक मात्र उपाय मानते रहे।
कोयस्लर ने मात्र वाणी और लेखनी से ही प्रचार कार्य नहीं किया। वरन् समय आने पर उनने बन्दूक भी कन्धे पर उठाई और सेना में एक वरिष्ठ योद्धा की तरह काम करते रहे। वे जनरल फ्रेंको के विरुद्ध लड़े और पकड़े जाने पर जेल में बन्द भी रहे। वहाँ से किसी प्रकार भागे तो पेरिस में पकड़े गये। बाद में वे ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए और साम्यवाद के समर्थन में जो कुछ कर सकते करते रहे।
इस बीच उन्हें स्वतन्त्र चिन्तन का अकसर मिला और उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रचलित शासन प्रणालियों में से एक भी पूर्ण निर्दोष नहीं है। इन्हें मथ कर नवनीत निकाला जाना चाहिए और समाज व्यवस्था तथा शासन प्रणाली का अभिनव गठन इसी आधार पर किया जाना चाहिए। व्यक्ति के चिन्तन चरित्र और व्यवहार का स्वरूप भी नये ढाँचे में ढाला जाना चाहिए। वर्तमान मनुष्य की उपयुक्त जीवनचर्या अपनाने की मनःस्थिति में नहीं है। ऐसी दशा में व्यक्तियों के अनुरूप ही समाज एवं शासन का स्तर हो सकता है। इस चिन्तन ने उन्हें साम्यवादी परिधि में अवरुद्ध नहीं रहने दिया वरन् मानतावादी बन गये। उनने इंग्लैण्ड की नागरिकता ग्रहण कर ली। इसके उपरान्त वे क्रमशः अध्यात्मवाद की ओर अधिकाधिक झुकते चले गये।
अध्यात्मवाद का उद्गम उन्हें भारत लगा और वे एक बार लम्बी भारत यात्रा पर निकले। यहाँ उनका उद्देश्य किसी राजनैतिक पर्यवेक्षण का न था वरन् यह था कि गुप्त भारत की विशिष्टताओं को खोज निकाला जाय।
इस शोध प्रयास में अनेकों विशिष्ट व्यक्तित्वों से मिले। अनेकों पुरातन इतिहास का अवशेषों के आधार पर अध्ययन किया। हिमालय के रहस्यमय क्षेत्रों की यात्रा की और इस देश की पुरातन स्थिति और आधुनिक परिवर्तन का भी गम्भीर अध्ययन किया। यह यात्रा प्रयास उन्हें बहुत ही उपयोगी प्रतीत हुआ और उसका विवरण भी सार संक्षेप में प्रकाशित किया।
कोयस्लर के प्रकाशित ग्रन्थों में कितने ही बहुचर्चित और सारगर्भित हैं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं- (1) दि योगी एण्ड कक्रिसार (2) इन साइड एण्ड आउट लुक (3) लाइफ आफ्टर डैथ (4) एक्ट आफ क्रियेशन (5) लोटस एण्ड दि रावो (6) एरायवल्स एण्ड डिपार्चस् (7) पोस्ट इन दि मशीन (8) गाड दैट फेल्ड (9) डार्कनेस एट नून (10) जेन्स ऐ समिंग अप (11) व्रिक्स टू वायवल आदि। इनमें से डार्कनेस एट नून’ का समस्त संसार में अत्यधिक प्रचार हुआ। इन पुस्तकों में उनने अपने दृष्टिकोण को निर्भीकता पूर्वक व्यक्त किया है और भारत की वर्तमान धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में चल रहे पाखण्ड की कटु भर्त्सना भी की है। कारण कि उनका मौलिक चिन्तन बहुत अंश तक साम्यवादी प्रभाव से ही किसी हद तक प्रभावित बना रहा और उनने श्रद्धा की तुलना में आलोचना को अधिक मान्यता दी। इस पर भी उनने वे भारतीय संस्कृति, दर्शन एवं अतीत के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है और उसे मानव जाति के उत्कर्ष में उपयुक्त योगदान दे सकने योग्य कहा है।
मूर्धां ब्रह्मा शिखान्तो विष्णुर्ललाटं रुद्रश्चक्षुषी चन्द्रादित्यौ कर्णों शुक्रबृहस्पती नासापुटे अश्विनौ दन्तोष्ठावुभे सन्ध्ये मुखं मरुतः स्तनौ वस्वादियो हृदयं पर्जन्य उदरमाकाशो नाभिरग्निः कटिरिन्द्राग्नी जघनं प्राजापत्यमूरू कैलासमूलं जानुनी विश्वेदेवौ जंघे शिशिरः गुल्फानि पृथिवीवनिस्पत्यादीनि नखानि महती अस्थीनि नवग्रहा असृवके तुर्मांसमृतुसन्धयः कालद्वमास्फालनं संवत्सरोनिमेषोऽहोरात्रमिति वाग्देवीं गायत्रीं शरणमहं प्रपद्ये।
य इदं गायत्री रहस्यमधाते तेन ऋतसहस्त्रभिष्टं भवति। य इदं गायत्रीरहस्यधीते विसकृत पापं नाशयति। सर्वान् वेदानधीतो भवति। सर्वेषु तीर्थेषु स्नातो भवति।
-गायत्री रहस्योषनिषद्
गायत्री वाणी की अधिष्ठात्री देवी है। उसका सिर ब्रह्ममय, शिखान्त विष्णु, ललाट रुद्र, दोनों नेत्र- सूर्य, चन्द्र, कानों के दो छेद-शुक्राचार्य, बृहस्पति, नाक के दो छेद- दोनों अश्विनी कुमार, दाँत होठ- दोनों संध्याएं मुख- मरुत, स्तन- वसु, हृदय- मेघ, पेट- आकाश, नाभि- अग्नि, कटि- इन्द्र, जंघा- प्रजापति, उरु- कैलाश, घुटने- विश्वदेव, जंघा- शिशिर, गुल्फ- पृथ्वी, नख- महतत्व, अस्थि- नवग्रह, आंतें-केतु, माँस- ऋतु सन्धि, दोनों काल वर्ष निभेष- दिन-रात।
ऐसी विराट् ब्रह्म स्वरूपिणी महाशक्ति गायत्री की शरण में अपने को समर्पित करता हूँ।
इस गायत्री गुह्य रहस्य का जो अवगाहन करता है सो हजारों यज्ञ करने वाले की तरह श्रेयाधिकारी बनता है। उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। जिसने यह रहस्य जाना उसने मानो समस्त वेदों का अध्ययन कर लिया। सब तीर्थों में स्नान कर लिया।