Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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विशिष्टताओं से सम्पन्न ये तुच्छ जीव जन्तु
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उपेक्षित, असमर्थ एवं हेय समझे जाने वाले निम्न जीव-वस्तुओं की जीवनचर्या का गौर से समझें तो पता चलता है कि उनके अन्दर अनेकों ऐसी विशेषताएं हैं, जिन्हें देखकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। मनुष्य की विचारशीलता एवं अपनी सामर्थ्यों का घमण्ड टूट जाता है सर्वश्रेष्ठ होने का दावा यदि मनुष्य बुद्धिमता के आधार पर करता है तो उसका यह दम्भ मिथ्या सिद्ध होता है। अध्ययन करने पर वह ज्ञात होता है कि विचारशीलता के गुण नन्हें जीवों में भी विद्यमान हैं? भाषा द्वारा मनोभावों के आदान-प्रदान का क्रम मनुष्य तक ही सीमित नहीं है। वरन् अन्य जीव भी संकेतों द्वारा अपने भावों को व्यक्त करते हैं। कई बातों में तो ये मनुष्य से भी आगे हैं। इनमें अतीन्द्रिय क्षमताएं भी होती हैं जिससे प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों, घटनाओं की जानकारी बहुत समय पहले ही प्राप्त कर लेते हैं।
डा. फिशर एक कीट शास्त्री के रूप में प्रख्यात हैं। कीड़ों पर लम्बे अध्ययन एवं शोध कार्य के उपरान्त उन्होंने कहा कि चींटियों में सन्देश प्रसारित करने की एक विशेष प्रक्रिया है। उन्हें जब कहीं खाद्य पदार्थ की जानकारी मिलती है तो इसकी सूचना अन्यों को देने के लिए अपने पेट से एक विशिष्ट प्रकार का रासायनिक स्राव निकालती हैं। जिसकी गंध पाकर अन्य चींटियों को पता चल जाता है कि अमुक स्थान पर खाने योग्य पदार्थ है। वे कुछ ही क्षणों में ठीक उसी स्थान पर पहुँच जाती हैं जहाँ से उनको सूचना मिली थी। बिना किसी भेदभाव, झगड़े के उनका सहयोग चलता है। मिल-बांटकर खाने, संग्रह की संकीर्णता भरी प्रवृत्ति न अपनाने का इनका उदाहरण मानव जाति के लिए भी अनुकरणीय है।
गिलहरियों में संकेतों का आदान-प्रदान किस प्रकार होता है तथा उनके किस संकेत का क्या अर्थ होता है, इस पर ब्रिटेन के भूतपूर्व कृषि मंत्री जानटेलर ने बहुत दिनों तक अध्ययन किया? वे लिखते हैं कि एक समय दो नर गिलहरियों के बीच संकेतों के संचार में एक अपनी पूछ खड़ा करता है तो दूसरा इसके उत्तर में अपनी पूँछ नीची कर लेता है। यह इस बात का परिचायक है कि कहीं चलने की बात हो रही है जिसमें पहले के प्रस्ताव को दूसरे ने स्वीकार कर लिया? पहला नर गिलहरी अपनी पूँछ को घुमाता और आंखें तरेरता है तो दूसरा अपनी आंखें फैला देता है। एक अपने कान खड़े करता है तो दूसरा नीचे कर लेता है। इससे यह पता चलता है कि पहला नर दूसरे से शक्तिशाली है। उसके वर्चस्व को दूसरा भी स्वीकार करता है सभी गिलहरियों को अपनी शक्ति का बोध कराने के लिए एक गिलहरी को साथ लेकर शक्तिशाली नर तेजी से दौड़ता संपर्क साधता है। परिवार के मुखिया के समान वह अपने समूह के सभी गिलहरियों से साँकेतिक भाषा में उनके समाचार पूछता है।
डा. टेलर का कहना है कि विभिन्न ऋतुओं में वे ही संकेत भिन्न अर्थ प्रकट करते हैं। बसन्त में कान खड़े करना, पूँछ उठाने का अभिप्राय है कि उस गिलहरी को अधिक फल संग्रह करने का अधिकार है। वह अपनी पसन्द की मादा को सहयोगी के रूप में चुन सकता है। यह इस बात का प्रमाण है कि विचारशीलता का गुण इनमें भी पाया जाता है। सोचने की सीमा इनकी भले ही अपनी आवश्यकताओं के इर्द-गिर्द तक ही सीमित हो। किन्तु इस सीमित क्षेत्र में भी उनकी बुद्धिमता देखते बनती है। सीमित शक्ति, सीमित बुद्धि, सीमित साधनों में भी इनका जीवन हल्का फुल्का, उमंगों से भरा है। सामान्य जीव अभावों में भी इतना सुखी प्रसन्नता युक्त जीवन व्यतीत कर सकते हैं, तो फिर मनुष्य क्यों नहीं सुखी सन्तुष्ट रह सकता है? साधन, बुद्धि, सामर्थ्य हर दृष्टि से वह इन नन्हें जीवों से आगे है। इनसे भी मनुष्य प्रेरणा प्राप्त कर सकता है।
विकसित भाषा प्रणाली ही मात्र विचारों मनोभावों को व्यक्त करने का माध्यम हो सकती है यह आवश्यक नहीं। मानवेत्तर जीव अपनी साँकेतिक भाषा अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं को भली-भाँति दूसरों तक पहुँचा देते हैं डा. सी. के. कार्पेन्टर पेन्सिलबानिया स्टेट विश्व विद्यालय के साइकोलोजिस्ट हैं। एन्थ्रोपोलाजी विभाग के अध्यक्ष भी हैं। बन्दरों के आदतों एवं संकेतों का इन्होंने अध्ययन किया। कुछ रोचक तथ्यों के उद्घाटन हुए। यदि कुछ बन्दर मिल-जुलकर वृक्ष की डाली को हिलाते हैं तो इसका अर्थ है कि वे अन्य बन्दरों को सूचित कर रहे हैं कि उस पेड़ पर उनका अधिकार है। दूसरे बन्दरों को उस पेड़ का फल एवं चारा खाने का कोई अधिकार नहीं है। उनके इस संकेत से दूसरा समूह चला जाता है।
कौन-सी वस्तु खाने योग्य है कौन सी नहीं, यह परख करने की क्षमता भी जीवों में पूर्णतया विकसित होती है। अपनी प्रकृति एवं आवश्यकता के अनुरूप वे उन्हीं खाद्य पदार्थों का चुनाव करते हैं जो उनके लिए उपयोगी एवं लाभप्रद होते हैं। ब्रिटेन के चिड़िया घर की अधिष्ठात्री हैं श्रीमती देवरा क्लेमान। वह प्राणिशास्त्र विशेषज्ञ भी हैं। इन्होंने कुत्तों की चौदह विभिन्न जातियों का अध्ययन किया उनका कहना है कि खाद्य अखाद्य की परख कुत्ते तुरन्त कर लेते हैं। वे वस्तुएं जो कुत्तों के समक्ष कभी नहीं आयी हैं। उनमें खाने योग्य और न खाने योग्य के निर्धारण की प्रक्रिया विशिष्ट है। ऐसे पदार्थों को कुत्तों के समक्ष रख देने पर वे सर्वप्रथम अपनी घ्राण शक्ति से सूँघते हैं। पुनः उन वस्तुओं पर पेशाब करके सूँघते हैं। तत्पश्चात चयन करते हैं कि वह वस्तु ग्रहण करने योग्य है अथवा नहीं। श्रीमती ‘क्लेमान’ ने अपने अध्ययन के द्वारा पाया कि कुत्ते इस चुनाव की प्रक्रिया में कभी भूल नहीं करते हैं।
शरीर के लिए किसी भी नई वस्तु के उपयोगी अथवा अनुपयोगी के निर्धारण में वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रयोग परीक्षण करने पड़ते हैं। तब कहीं जाकर वह निश्चित हो पाता है कि वह वस्तु कैसी है। जब कि कुत्ते इसका निर्णय तुरन्त कर लेते हैं। परमात्मा ने जीवों की इन्द्रियों को इतना समर्थ बनाया है जिससे वे बिना किसी बाह्य साधनों के अपने लिए उपयोगी का चुनाव कर सकते हैं। उनकी यह क्षमता देखकर विस्मित रह जाना पड़ता तथा श्रेष्ठता का दम्भ टूट जाता है।
अधिक संवेदनशील होने दूसरों के दुःख क्लेशों में हिस्सा बटाने के कारण ही मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ जीव घोषित किया गया है। अन्यथा शक्ति, के क्षेत्र में तो अन्य जीव मनुष्य से कहीं बहुत आगे हैं। संवेदनशीलता का गुण इनमें भी पाया जाता है। कभी-कभी तो ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जिन्हें देखकर हृदय जीवों के प्रति श्रद्धा से भर उठता है तथा यह सोचना पड़ता है कि ये नन्हें जीव भी मनुष्य से कम नहीं हैं।
इस्लामाबाद (पाकिस्तान) के निकट की एक घटना है। एक ट्रक तीव्र गति से चला जा रहा था। सड़क पर एक कुतिया अपने नवजात शिशु को थन से लगाये दूध पिला रही थी। कुतिया ट्रक की चपेट में आकर तुरन्त मर गई। बच्चा असहाय माँ की लाश के निकट बैठा कातर दृष्टि से चारों ओर देख रहा था। सड़क के किनारे लगे पेड़ पर एक बन्दरिया बैठी थी। बच्चे की कातर दृष्टि से उसका ममत्व उमड़ पड़ा झट वृक्ष से उतरकर उसने पिल्ले को अपने सीने से लगा लिया। उसे दूध पिलाने लगी। कहते हैं कि वह दोनों कभी एक दूसरे को छोड़कर नहीं जाते। एक माँ के समान वह पिल्ले को दूध पिलाती, देख-भाल करती। कुछ समय, बाद पिल्ला मर गया। बन्दरिया को इतना अधिक सदमा पहुँचा कि उसने खाना, पीना तक छोड़ दिया। फलस्वरूप वह भी मर गई। अपने बच्चों तक ही आत्मीयता को सीमित रखने वाले मनुष्य के लिए यह घटना प्रेरणास्पद है। सामान्य जीव जिनकी सामर्थ्य अल्प है इतने संवेदनशील हो सकते हैं तो मनुष्य की सामर्थ्य, कई गुना अधिक है। उसकी सामर्थ्य का सदुपयोग एवं महत्ता तो आत्म विस्तार में ही निहित है।
इसी प्रकार की एक घटना का वर्णन दक्षिण अफ्रिका के वन में नियुक्त गेम वार्डन डेस्मोंड वाराडे करते हुए लिखते हैं कि मुझे शिकार करने में गहरी अभिरुचि थी। एक दिन ऐसी मार्मिक घटना घटी जिसने मेरे जीवन की दिशा-धारा ही बदल दी। झील के पास पानी पी रहे एक चीते को मैंने गोली मार दी। निकट जाकर देखा तो वह मादा थी। उसके थनों से दूध बह रहा था। मादा चीते को वहीं छोड़कर उसके बच्चों की खोज करने लगा। थोड़ी दूर पर झाड़ियों के झुरमुट में दो बच्चे खेल रहे थे। चीते के दोनों बच्चों को लेकर घर आया। मेरी कुतिया ने अभी कुछ दिनों पूर्व दो पिल्लों को जन्म दिया था। वह अपने बच्चों को दूध पिला रही थी चीते के दोनों बच्चे टकटकी लगाये पिल्लों को दूध पीते देख रहे थे। लगता था कि वे भी कुतिया से दूध की माँग कर रहे हों। कुतिया की दृष्टि इन पर पड़ी। एक अनहोनी घटना घटी। वह अपने बच्चों को छोड़कर चीते के बच्चों के पास दौड़ आयी। दोनों बच्चों को अपने थनों से लगा लिया। वे भी बिना किसी डर के दूध पीने लगे। कुछ दिनों तक वह चारों बच्चों को दूध पिलाती रही। सीमित दूध एवं दो अतिरिक्त का भार आ पड़ने के कारण वह कमजोर हो गई। यह देखकर मैंने अतिरिक्त दूध की व्यवस्था बनायी। कुतिया की इस संवेदनशीलता को देखकर हमने कभी भी जीवों को न मारने की शपथ ले ली।
बन्दर भी कितना संवेदनशील एवं सहयोगी हो सकता है इसका एक उदाहरण दुर्ग (म.प्र.) में पिछले दिनों देखने को मिला। पेड़ के नीचे एक राहगीर दिन में विश्राम कर रहा था। उसका बटुआ जिसमें दो हजार रुपये थे वहीं गिर पड़ा। उसके वहाँ से चले जाने पर वृक्ष पर बैठे बन्दर की दृष्टि बटुए पर पड़ी। वह व्यक्ति सारे दिन बटुए को ढूंढ़ता रहा। उसी रास्ते सायंकाल लौट रहा था। बन्दर बटुए को लिए उसका इन्तजार कर रहा था। जैसे ही वह यात्री लौटा बन्दर दौड़कर उसके पास जा पहुँचा। रुपयों से भरे बटुए को यात्री के समक्ष फेंककर वापस वृक्ष पर जा चढ़ा। अप्रत्याशित घटना से वह अवाक् रह गया। कृतज्ञता भरी दृष्टि से वह बन्दर का जाना देखता रहा।
मनुष्य समर्थ है विचारशील भी। किन्तु मात्र इस आधार पर वह अपनी श्रेष्ठता का दावा नहीं कर सकता बुद्धि तो जीवों में भी है। साँकेतिक भाषा प्रणाली जीवों के मनोभावों को व्यक्त एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करने में पूर्णतया समर्थ है। सूझ-बूझ की दृष्टि से भी वे मनुष्य से आगे ही हैं। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि मात्र मनुष्य ही एक समझदार प्राणी है।