Magazine - Year 1985 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अणु विकिरण और यज्ञ विज्ञान
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मैक्सिको की एक महिला कैमिस्ट द्वारा अपने पति की हत्या कर डालने का सफल प्रयास किया गया। वह अपने पति से इस कदर चिढ़ गई थी कि उससे तलाक लेकर ही पीछा नहीं छुड़ाना चाहती थी वरन् यह चाहती थी कि वह दुनिया में ही न रहे।
इसके लिए उसने एक खास तरकीब अपनाई। जब वह भोजन करता तब उसकी थाली के नीचे “यूरेनियम” की थोड़ी मात्रा बखेर देती। उसके विकिरण का प्रभाव थाली पार करता हुआ खाद्य पदार्थ तक पहुँचता रहा। पति पहले दुर्बल, पीछे बीमार पड़ा और नाड़ियों की ऐंठन अकड़न से मर गया। रोग न होने पर भी इस तरह की मृत्यु का भेद पोस्टमार्टम के बाद पाया गया। उसकी नसों में यूरेनियम का विकिरण पाया गया।
अणु आयुधों के निर्माण में यूरेनियम का उपयोग होता है। उसके माध्यम से जो भी वस्तुएं बनती हैं वे विकिरण फैलाती हैं। रोगियों को अस्पताल में रेडियो आइस्टोणों का प्रचलन हुआ है। उसका तत्काल तो कोई खास असर देखने में नहीं आता पर धीरे धीरे उसका प्रभाव शरीर में फैलता रहता है और ल्युकोमिया- रक्त कैन्सर जैसे रोग उत्पन्न करता है।
अणु आयुधों की दिनों-दिन कितने ही देश घुड़दौड़ जैसी बाजी लगाये हुए हैं। उनके सही बनने न बनने की जाँच विस्फोट परीक्षणों द्वारा होती है। जमीन के अन्दर, हवा में, समुद्र में, रेगिस्तान में कहीं भी उसका प्रयोग परीक्षण क्यों न किया जाय थोड़े समय तो उसका असर कुछ मील की परिधि में ही होती है किन्तु वह धीरे-धीरे, समूचे वातावरण में फैलता जाता है और उसका प्रभाव, वनस्पतियों, प्राणियों तथा मनुष्यों पर विषाक्तता जैसा होता है। बिजली उत्पन्न करने के लिए अणु भट्टियाँ बन रही है। उसकी राख को कहाँ डाला जाय यह एक प्रश्न है। उसे जहाँ फेंका जाय। विकिरण दूर-दूर तक फैलता है और उस क्षेत्र के निवासी प्राणियों पर उसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
एक बार अमेरिका ने एटाल निर्जन द्वीप पर अणु परीक्षण किया था। देखा यह जाना था कि उसका प्रभाव कितनी दूर तक पड़ता है। विस्फोट के उपरान्त थोड़ी ही देर में वहाँ से 50 मील के अन्तर पर बसे हुए रोजलैण्ड द्वीप तक असर पहुँचा और वहाँ के निवासी तेजी से बीमार पड़ने लगे। पता चलते ही उन्हें जल्दी से हटाया गया। पर इतनी ही देर में वहाँ के ढेरों निवासी बीमार पड़े। कितने ही बीमार पड़े और कितने ही असाध्य रूप से बीमार हो गये और थोड़े समय में तड़प-तड़प कर मर गये।
यह एक घटना है। ऐसे-ऐसे अनेकों उदाहरण अनेक अणु आयुधों के निर्माण वाले देश कर चुके हैं, पर यह पता नहीं चलने दिया कि उसके कारण कितनी दूर के घेरे में उस विनाश लीला की चपेट में आये।
अणु विकिरण का असर धीरे-धीर होता है। वह पानी की लहरों की तरह चलती है और अपने प्रभाव से प्रभावित करती हुई संसार के समूचे क्षेत्र को देर सबेर में लपेट लेती है। अणु शक्ति का अस्त्रों के अतिरिक्त अन्य कितने ही कामों में प्रयोग हो रहा है और उनमें से अधिकाँश के द्वारा नाशकारी विकिरण फैल रहा है।
एक घटना इंग्लैण्ड की भी ऐसी ही प्रकाश में आई। विडर केल नामक स्थान में एक ‘रिएक्टर’ चल रहा था उसने कहीं से विकिरण लीक करना आरम्भ कर दिया। उसका असर बाजार में बिकने वाली खाद्य पदार्थों पर पड़ने लगा। बीमारियों का पता चलते ही ‘रिएक्टर’ तुरन्त बन्द करना पड़ा।
एक बार एक सुई की बराबर अणु विषाक्तता समुद्र में गिर पड़ी फलतः 24 घण्टे में 100 मील लम्बा और 15 मील चौड़ा समुद्र उससे प्रभावित हो चुका था।
अणु विकिरण वायुमण्डल में मिश्रित ‘ओजोन’ तत्व को जर्जर कर सकती है और सूर्य की किरणों को-पृथ्वी तक आने वाली छलनी को- अस्त-व्यस्त कर सकती है। फलतः बढ़े हुए तापमान से ध्रुवों की बर्फ पिघलने और समुद्रों में बाढ़ आने का खतरा हो सकता है।
वायुमण्डल में बिखरती रेडियो सक्रियता सैकड़ों वर्षों तक बनी रह सकती है और उसका पूरा प्रभाव मिटने में हजार वर्ष भी लग सकते हैं इस अवधि में उस प्रभाव से कितने बीमार पड़ेंगे। कितने अपंग होंगे और कितने बेमौत मरेंगे इस सम्बन्ध में कुछ कहा नहीं जा सकता।
सबसे बड़ा प्रश्न इस निर्माण में बचे हुए कचरे का है। अमेरिका की टेवेसी स्थित प्रख्यात ओकरिज नेशनल लैबोरेटरी में कचरे को जमीन में गाड़ने का निश्चय किया। एक सीमेंट कोठे में कचरा भरा और उसे 300 फीट गहरा गड्ढा खोदकर दफनाया। कुछ दिन तक इसे सफल प्रयोग माना जाता रहा। किन्तु पृथ्वी के भीतर की किसी भूकम्प जैसी हलचल से वह कमरा फट गया और विकिरण बाहर आकर वनस्पतियों, प्राणियों तथा मनुष्यों पर अपना घातक प्रभाव छोड़ने लगा। प्रयोग असफल माना गया।
अणु शक्ति से लाभ उठाने के लिए सभी आतुर हैं पर यह समझ में नहीं आ रहा है कि निर्माण काल के आरम्भ एवं अन्त में जो विकिरण फैलेगा उस अवशेष का क्या किया जा सकता है। उपास न निकला तो यह भस्मासुर महाविनाश रचकर रहेगा।
एक परीक्षण में इस विकिरण का कोमल शरीर बच्चों पर अधिक असर पाया गया। 24 बड़े देशों के पर्यवेक्षण में अफ्रीका में 44 बच्चों में से एक, आस्ट्रेलिया में से 53 में से एक। मिश्र में 86 में से एक, मलेशिया में 93 में से एक विकलांग पाया गया। सभी देशों का औसत फैलाने पर 116 में से एक बच्चा विकलाँग पाया गया। इसका कारण अणु विकिरण को माना गया। जहाँ विकिरण की भरमार है वहाँ यह विपत्ति भी अधिक है और जहाँ वायु अपेक्षाकृत शुद्ध है वहाँ दुष्प्रभाव भी कम हैं।
विकिरण की रोकथाम के सम्बन्ध में एक उपाय “यज्ञ” के प्रभाव को उपयोगी पाया जाता है। अणु विज्ञान नया नहीं है। भारत में महर्षि वैशेषिक ने अणु वाद की विस्तृत विवेचना की है। इससे प्रतीत होता है कि उन दिनों इस शक्ति का प्रयोग होता होगा और उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए यज्ञ प्रक्रिया को प्रोत्साहन दिया गया होगा।
चेचक के अन्वेषण कर्ता डा. डापकिन्स ने यज्ञ के धुएं को चेचक निवारण में बहुत उपयोगी पाया है। फ्राँस के वैज्ञानिक प्रो. विलवर्ट ने घी और शकर के धुँए को चेचक तपैदिक जैसी बीमारियों के विनाश में बहुत सहायक पाया है। डा. टायलिट ने किशमिश, घी, शकर के धुँए की टाइफ़ाइड में चमत्कारी लाभ दिखाता हुआ पाया है।
रूस में गाय के गोबर से लिपे मकानों पर विकिरण का कम प्रभाव पड़ते पाया गया है।
ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान हरिद्वार ने अपने प्रयोग परीक्षण में विभिन्न रोगों के लिए विभिन्न प्रकार के यज्ञ धूम को बहुत सफल पाया है। कैलीफोर्निया की अग्निहोत्र युनिवर्सिटी बसंत (पराजपे-अक्कल कोट निवासी) की शोधों में भी यह पाया गया कि यज्ञ मनुष्य के शारीरिक और मानसिक रोगों में से कितनों में ही अपना आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाता है। अणु विकिरण की भयंकरता को ध्यान में रखते हुए सुरक्षात्मक साधन की दृष्टि से यज्ञ विज्ञान को विकसित किया जाय तो यह अत्यंत सामयिक और अत्यंत महत्वपूर्ण काम होगा।