Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष
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देव लोक में अवस्थित उस कल्पवृक्ष की मान्यता सही नहीं है जिसके नीचे बैठकर मनुष्य अपनी आवश्यकता पूर्ण करता है। यदि कल्पना सही हो भी तो तुम किस प्रकार स्वर्ग पहुँच सकोगे और कैसे उसके सान्निध्य में बैठकर अभीष्ट लाभ उठा सकोगे?
एक दूसरा वास्तविक कल्पवृक्ष है जो तुम्हारे समीप भी है और मान्यताओं के अनुरूप भी। अच्छा हो उसी के समीप जाओ और निश्चित रूप से अपना मनोरथ पूरा करो।
वह भूलोक का कल्पवृक्ष तुम्हारा व्यक्तित्व है। धूलि धूसरित होने के कारण ही वह ठीक से परिलक्षित नहीं होता। उस पर जमी मैल की परत बुहारो और देखो कि वह कितना सुन्दर और कितना उदार है।
व्यक्तित्व पर चढ़ी दुर्गुणों की मलीनता ही उसे निरर्थक स्तर पर बनाये रहती है और किसी काम नहीं आती। यहाँ तक कि उसका भारवहन भी कठिन पड़ता है।
परिष्कृत व्यक्तित्व जिसमें मानवी गरिमा के उपयुक्त गुण कर्म स्वभाव का बाहुल्य हो। सन्मार्ग पर चलने वालों के लिए घर में पधारे देवता के समान है। उसकी सज्जा और अर्चना करके तुम उस स्थिति में पहुंच सकोगे जो प्रगति और शान्ति के दोनों ही वरदान बिना माँगे प्रदान करती हैं।