Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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पालब्रिन्टन द्वारा गुप्त भारत की खोज
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इंग्लैण्ड में जन्मे पाल ब्रिन्टन उन दिनों पत्रकारिता से सम्बन्धित कार्य करते थे पर उनका भारत के प्रति आकर्षण फिर भी कम नहीं हुआ। उन्होंने मनोविज्ञान और दर्शन शास्त्र पढ़ा ताकि अपनी अनवरत जिज्ञासा का वे आगे चलकर समाधान कर सकें। भारत की रहस्यमयी विभूतियों के सम्बन्ध में उनका आत्मविश्वास, अध्ययन और जानकार व्यक्तियों से परामर्श मिलकर ऐसी मनःस्थिति उत्पन्न कर सके जिसे रोके रहना देर तक सम्भव न हो सका और वे इंग्लैण्ड में बिखरे हुए कार्यक्रमों को समेटकर भारत की लम्बी यात्रा पर निकले−गुप्त भारत की खोज के लिए।
उनने दर्शनीय स्थानों, बड़े नगरों की ओर तनिक भी ध्यान न दिया वे परिचय संपर्क में आ सकने वाले योगियों का पता लगाते हुए सुदूर यात्राएँ करते रहे। उन्हें भेंट परामर्श करने और अनुकूलता की पृष्ठभूमि बनाने में काफी श्रम करना पड़ा। जिनके साथ उनकी भेंटें हुई उनमें से कितने ही जादूगर थे या तान्त्रिक। उनका जीवन ठाट−बाट का था। कुछ चमत्कारी प्रदर्शन करने की स्थिति में थे और इसके बदले वे कुछ राशि चाहते थे। उस विद्या का तत्व दर्शन, रहस्य या अभ्यास का विधान सिखाने के लिए तैयार न हुए। क्योंकि उनकी जड़ें खोखली थीं। वे केवल उथली हाथ की सफाई या मनोबल के प्रहार से छोटे−मोटे चमत्कार दिखाने की स्थिति में थे। पर वे चमत्कार ऐसे न थे जो कौतूहल उत्पन्न करने से आगे बढ़कर किसी व्यक्ति में परिवर्तन लाने या समाज की किसी समस्या का समाधान करने में समर्थ होते। जादू चमत्कारों से तो केवल बाल-बुद्धि लोगों को अचम्भे में डाला जा सकता है। प्रबुद्ध व्यक्ति तो केवल एक ही बात परखता है कि इन आत्मिक कहे जाने वाले प्रयोगों में व्यक्ति विशेष को अचम्भे में डालने के अतिरिक्त उसे ऊँचा या वरिष्ठ बनाने की क्षमता है या नहीं। उनकी रुचि लोक कल्याण में केन्द्रित हुई या नहीं और उसके निमित्त निजी प्रयत्नों से अथवा अपने भक्तजनों के सहयोग से कुछ किया या नहीं।
इस दृष्टि से उनकी यात्रा का पहला चरण उथला ही रहा। विभिन्न देशों से आने वाले जादूगर तो उनके देश में भी आते रहते थे और अपनी कला के सहारे आजीविका चलाते थे। उसी स्तर के कौतूहलों को देखने भारत नहीं आये थे जिनके बारे में उनने पहले ही बहुत कुछ देखा, सुना या पढ़ा था।
पाल ब्रिटन इसी स्तर के लोगों की प्रशंसा सुनाते भटकते रहे। कुछ ऐसे लोगों से भी मिलना हुआ जो दार्शनिक भूमिकाएँ विस्तारपूर्वक बता सकते थे पर उन्हें स्वयं कर दिखाने की स्थिति की स्थिति में न थे। बताया गया कि इसके लिए उन्हें हिमालय की खोज करनी पड़ेगी। व्यवहार जगत में तो योगी, तान्त्रिक और जादूगर ही अपनी प्रतिभा से भावुक जनों को प्रभावित कर सकते हैं। कठिनाई यह थी कि पाल ब्रिन्टन, दर्शन शास्त्र, मनः शास्त्र और चमत्कारवाद की पृष्ठभूमि से पहले ही अवगत होकर इस देश में आये थे ताकि यथार्थता के बदले भ्रम जंजाल बटोर कर न ले आयें। उनने तथाकथित चमत्कारी व्यक्तियों के प्रश्नों की झड़ी लगाकर वस्तुस्थिति समझने की कोशिश की और चमत्कार दिखाने से पूर्व अपनी तलाशी देने का अनुरोध किया तो वे अपने अपना अपमान मान बैठे। वस्तुस्थिति यही थी जिस भारत में बहु प्रचलित ‘‘चोर की दाढ़ी में तिनका’’ वाली उक्ति में व्यक्त किया गया है।
प्रसिद्ध पुरुषों में− पते ठिकाने वाले चमत्कारी लोगों से मिलकर उनने करामातें तो बहुत देखीं पर ऐसा कुछ न पाया जिससे आत्मवादियों में पाई जाने वाली व्यक्तित्व की महानता का भी परिचय उपलब्ध होता हो। ऐसों में उन्हें केवल एक ही व्यक्ति मिले। अरुणाचलम् के महर्षि रमण जो बालकों की तरह भोले और सज्जनों की तरह विनम्र थे। वे जो जानते थे उसे बताने में भी संकोच न करते थे। उनके साथ मनुष्यों से भी अधिक पशु−पक्षियों का भी परिवार रहता था जो नियम समय पर उनके दर्शन प्रवचन में बिना नागा उपस्थित होता और बिना लड़े−झगड़े अपने−अपने नियम स्थान पर बैठता था।
इन खोज−प्रयासों में उन्हें पैसा अधिक मात्रा में न मिला, जिसके लिए वे प्रसन्न होते और सन्तोष लेकर वापस लौटते।
इसके उपरान्त उनने जाना कि शरीर साधना करने वाले योगी ही जहाँ−तहाँ मिलेंगे। ऋषियों की तलाश करने के लिए उन्हें वहाँ जाना पड़ेगा जहाँ सर्वसाधारण की पहुँच नहीं होती। वे स्थान हिमालय की कन्दराएँ हैं। उपयुक्त वातावरण उन्हें उसी क्षेत्र में मिलता है। शीत की प्रधानता से उनकी लक्ष्य यात्रा सरल पड़ती है और कौतुक प्रिय लोगों के आवागमन में उनके कार्य में विक्षेप भी नहीं पड़ता। ऐसे एकान्तप्रिय व्यक्तित्व ऋषि कहलाते हैं। जब कि योगी अपने प्रदर्शन के लिए जन संकुल स्थानों में अपने अड्डे जमाते रहते हैं।
पाल ब्रिन्टन ने हिमालय क्षेत्र में प्रवेश किया और वहाँ की कन्दराओं में प्रवेश किया। इसमें व्यक्तिगत संपर्क ऐसा नहीं मिला जो उन्हें उपयुक्त स्थानों तक पहुँचा सके और उन ऋषि आत्माओं से मिला सके। यह कार्य उन्हें अपनी अन्तःचेतना को कम्पास मानकर उसकी संकेत सूचना के आधार पर दिशा निर्धारण करना पड़ा। कदाचित ही कभी कोई सहयात्री मिला। यह प्रथम अपरिचित प्रतीत होता था पर नियत स्थान तक पहुँचा देने की उनकी अनुकम्पा का देखते हुए प्रतीत हुआ कि वह अगाध उत्सुकता का समाधान करने में सहयोग देने की इच्छा से ही दूत भेजने का प्रयत्न योजनाबद्ध किया हुआ था।
पाल ब्रिन्टन की ऐसे कितने ही दिव्य पुरुषों से भेंट हुई पर आपका मौखिक रूप से कोई वार्तालाप न हो सका। इतने पर भी उन्हें अन्तःकरण में प्रेरणा प्रवाहों की अनुभूतियों का लाभ उठाते रहने के कारण यह अनुभव नहीं हुआ कि वे निस्तब्ध सुनसानों में बैठे हैं। क्षुधा निवारण के लिए उनका उपहार और रात्रि हो जाने पर रहने की सुविधा भी उन्हें उपलब्ध कराई जाती रही। इस यात्रा में उन्हें उस उत्कण्ठा का समाधान हो गया जिसके लिए वे इंग्लैण्ड छोड़कर कष्ट साध्य और खर्चीली यात्रा करने के लिए यहाँ आये थे।
पाल ब्रिन्टन की शोध सफल और सन्तोषजनक रही यों पूर्वार्ध में उन्हें विलक्षणता दिखाने वाले तथाकथित चमत्कारवादियों के फेर में पड़े रहकर यात्रा का प्रथम चरण अनावश्यक भ्रम जंजाल में भी बिताकर बर्बादी भी बहुत सहनी पड़ी।
पाल ब्रिन्टन अपनी यात्रा समाप्त करते समय अरुणाचलम् महर्षि रमण के आश्रम में अपना उत्साह बने रहने का आशीर्वाद माँगने फिर से गये और वह उन्हें मिल भी गया।
उनने इंग्लैण्ड लौटकर अपने अनुभवों का वर्णन विवेचन करने वाली कितनी ही शोधपूर्ण पुस्तकें लिखीं हैं। जिसके नाम हैं− (1) मैसेज फ्राम अरुणाचलम् (2) एहरमिट इन द हिमालयाज् (3) दि इनर रियलिटी (4) दि हिडेन टीचिंग वियाण्ड योग आदि प्रमुख हैं। इनका संसार की प्रमुख 12 भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।
इन पुस्तकों की भूमिकाएँ ऐसे लोगों ने लिखी हैं जो अपनी प्रामाणिकता और अध्यात्म विषयों की जानकारी के सम्बन्ध में पहले से ही प्रख्यात रहे हैं।
पाल ब्रिन्टन का भारत यात्रा के उपरान्त उत्साह ठण्डा नहीं हुआ। वरन् वे संसार के ऋषियों की स्थिति और विश्व की शान्ति एवं प्रगति के प्रयासों में लगे रहे हैं, यों वर्णन उनने उनका भी किया है जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने और सस्ता सम्मान पाने के लिए कुछ अद्भुत प्रपंच रचते रहते हैं।