Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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भूत, भविष्य की नहीं, मात्र वर्तमान की सोचें
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जो चला गया वह वापस नहीं लौट सकता। उसके लिए शोक करना व्यर्थ है। न मुर्दे पुनर्जीवित होते हैं और न गये क्षण वापस लौटते हैं। जो सम्भव नहीं, उसके लिए क्यों शिर धुना जाय, इसमें दुहरी हानि है। जो गया उसकी हानि हो चुकी। उसकी क्षति पूर्ति नहीं हो सकती पर इतना तो हो ही सकता है कि उसे विगत के लिए स्मरण करने से मन को रोका जाय। इससे समय तो नष्ट होता है साथ ही शोक की व्यथा भी कम कष्टकारक नहीं होती। उससे मन का विक्षोभ बढ़ता है। अनिद्रा जैसे रोग आ धमकते हैं। रोने से आंखें खराब होती हैं। सबसे बड़ी विपत्ति है शोकातुर का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाना। यह अर्धविक्षिप्त जैसी स्थिति में जा पहुँचता है और परिवर्तित परिस्थिति में क्या सोचा और क्या किया जाना चाहिए इसका निर्णय करने में असमर्थ हो जाता है। विगत के स्मरण से उत्पन्न होने वाली व्यथा का त्रास इतना समय ले जाता है कि उसे बचा लिये जाने पर कुछ काम बनता। यह स्व उपार्जित दूसरी क्षति है जिससे समझदारी अपनाने पर सहज ही बचा जा सकता है।
मृतकों को भूत कहते हैं। भूत डरावने होते हैं। भूतकाल के सम्बन्ध में भी यही बात है। जो बीत गया उसकी स्मृति कई बार व्यथित करती है। जो अच्छा था उसे लौटने की आकाँक्षा उठती है। जो बुरा था उसके प्रति आक्रोश विक्षोभ उभरता है। दोनों ही दृष्टि से विगत का अनावश्यक स्मरण हानिकारक है। उस चिन्तन में जो समय नष्ट होता है और विक्षोभ उभरता है उसे बचा लेना ही बुद्धिमानी है। चिन्तन को उस केन्द्र से हटाकर जो सम्भव है उसे करने में क्यों नियोजित न किया जाय?
यही बात भविष्य कल्पनाओं के सम्बन्ध में भी है। जैसा हम सोचते या चाहते हैं वैसा बन ही पड़ेगा इसका कोई निश्चय नहीं। जो कुछ घटित होने वाला है वह अपने इच्छित ही हो इसकी कोई गारन्टी नहीं। आकाँक्षाओं के फलित होते रहने का ही यहाँ क्रम नहीं चलता। परिस्थितियाँ उनमें से कितनों को ही विफल बनाकर रख देती हैं। पुरुषार्थ भी सदा सफल नहीं होता। यहाँ अप्रत्याशित भी बहुत कुछ होता है।
अच्छे भविष्य की आशा करनी चाहिए किन्तु बुरे के लिए भी तैयार रहना चाहिए। मनुष्य के हाथ में केवल वर्तमान ही है उस पर सारा ध्यान केन्द्रित किया जाय। समय, श्रम और मनोयोग उसी पर नियोजित किया जाय। इसी में औचित्य है भूत की वापसी सम्भव नहीं। उन घटनाक्रमों से जो सीखा जा सकता हो सीखना चाहिए। अनुभव अर्जित करने और भविष्य के लिए शिक्षा लेने भर के लिए विगत का स्मरण करना चाहिए। उसे स्मरण करके विक्षोभ उभारा जाय उसकी अपेक्षा तो यह अच्छा है कि जो बीत गया उस पर रेत डाला जाय।
भविष्य के लिये योजना बनाने में योग्यता, परिस्थिति, साधन सामग्री, मेहनत, हिम्मत आदि अनेकों के सम्मिलन से भविष्य बनता है। इतने पर भी अनेक बार ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियाँ आ धमकती हैं जिनके कारण सुयोगों को भी अयोग्यों की तरह असफल रहना पड़े।
सामने वर्तमान है। वही अपने हाथ में भी है। अच्छा हो हम अपना समूचा ध्यान उसी के श्रेष्ठतम सदुपयोग पर नियोजित करें। बूढ़े भूतकाल का बखान करते और विगत की स्मृति और चर्चा से व्यथित होते रहते हैं। बच्चे भविष्य की बिना पर के रंगीनी उड़ाने उड़ते रहे हैं। परी लोक की कल्पनाएँ और भविष्य की सुखद सम्भावना बाल−बुद्धि को ही शोभा देती हैं। जो प्रौढ़ हैं वे वर्तमान की वास्तविकता समझते हैं और उसे सार्थक बनाने के लिए पराक्रमपूर्वक जुटते हैं।