Magazine - Year 1988 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
जीवन की सार्थकता (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
चील आसमान में अपने परों के सहारे उड़ रही थी। उसे किसी का
सहारा नहीं लेना पड़ रहा था।
पतंग ने भी उसकी होड़ की और सोचा मैं क्यों डोरी का सहारा लूँ। अपने बलबूते ही क्यों न उड़ूं? उसने डोरी से अपना संबंध तोड़ दिया।
पतंग को हवा का एक झोंका छितराकर रख गया वह जमीन में गिर कर कीचड़ में मिल गई।
दर्शन” नाम दिया जाना इस युग में सब प्रकार से उपयुक्त होगा।
इन दोनों की अविच्छिन्नता को अब सभी मानने लगे है। अस्तु वैज्ञानिक दर्शन एक नये विषय के रूप में सामने आया है। विज्ञानी वारनगर हाइज़ेनबर्ग ने अपने ग्रन्थ “भौतिक विज्ञान एवं दर्शन” में अनिश्चितता के नियमों पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-”विज्ञान वस्तुतः दर्शनशास्त्र की स्थूल जातिक निरूपण करने की शैली मात्र है।”
“फिलासॉफी ऑफ फिजीकल साइन्स” के लेखक सर ए॰ एम॰ एडिगटन ने अपनी मान्यता व्यक्त करते हुए लिखा है विज्ञान के सिद्धांतों का समझना और समझाना अध्यात्मदर्शन के सिद्धांतों के सहारे ही संभव है। ‘‘फ्राँम यूक्लिट टू एडिगटन” के लेखक सर एडमण्ड हेटकार ने लिखा है “ प्राचीन शास्त्रों के विवादस्पद सिद्धांतों को वैज्ञानिक ढंग से अधिक प्रमाणिक रीति से परखा जा सकता है। “दि फिलासाँफी ऑफ स्पेस एण्ड टाइम प्रिफेस” के लेखक हैन्सराइवाय ने लिखा है-” वह जमाना समाप्त हो गया जब विज्ञान और अध्यात्म दर्शन को परस्पर पृथक माना जाता था, अब नवीन शोध निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि दोनों में ही एकत्व और साम्य है।”
सचमुच इन दोनों के बाह्य स्वरूप भिन्न दिखायी पड़ने पर भी भिन्नता जैसी कोई बात नहीं। जिस तरह से गंगा और यमुना एक ही हिमालय के दो विभिन्न स्थानों से निकलकर मीलों, कोसों का प्रगति पथ पूरा करती हुई भिन्न दिखती हैं। यहाँ तक कि उनका बाह्य रंग भी स्वेत और श्याम होने के कारण विभेद आभास कराता है। पर यह विभेद तीर्थ राज प्रयाग में सम्मिलित होने पर लुप्त हो जाता है। दोनों ही सागर की ओर चल पड़ती है। उसी तरह आध्यात्म व विज्ञान की दोनों धाराएँ अंतराल की जिज्ञासा से ही प्रस्फुटित हुई है। स्थान भेद अवश्य है, एक है -”अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ जो आध्यात्म तत्वदर्शन के उत्कर्ष वेदान्त का मूल स्त्रोत है दूसरे को अथातो प्रकृति जिज्ञासा’कहा जा सकता है। परन्तु इन दोनों अर्थात् अध्यात्म गंगा और विज्ञान यमुना के ब्रह्म स्वरूप श्वेत और श्याम का विभेद चिरस्थाई नहीं। “क्वाँटमथ्योरी” तथा “थ्योरी ऑफ लेटिविटी” रूपी यमुनोत्री से प्रवेश कर विज्ञान की यमुना का प्रवाह तीव्रता से चलकर मिलन बिन्दु जिसे सही माने में तीर्थराज कहा जाना ही उपयुक्त है- पहुँच गा है। अब ये दोनों ही एकाकार होकर परम सत्य के असीम सागर की ओर लहराती-बलखाती तीव्रता से चल पड़ी है।
श्वेत-श्याम का विभेद विज्ञान की प्राचीनता तथा मध्यकाल में आए अध्यात्म में छाए लोक प्रचलनों रूढ़ि मान्यताओं के कारण ही दिखाता है। पर अब प्रगति प्रवाह बहुत आगे बढ़ गया है। अब विभेद की जगह अभेद है। मिलन के इस तीर्थराज को बुद्धिजीवी, मनीषी, चिन्तक सभी इसे स्पष्ट देख सकते है। यह मात्र ऐसी अभेदता नहीं जहाँ इन मूर्धन्यों को ही सन्तोष मिल। समूची मानव जाति इस अपूर्व संगम में अवगाहन कर अर्थात् आध्यात्म विज्ञान दोनों को अपने बहिरंग अंतरंग जीवन के व्यवहार में लाकर, समृद्धि प्राप्त कर तथा व्यवहार में उत्कृष्टता सम्पूर्ण जगत के प्रति प्रेम आत्मभाव के विस्तार जैसे दिव्य गुणों की प्राप्ति कर सांसारिक जीवन को सुनिश्चित रूप से सफल बना सकती है। साथ ही अंतरंग के निर्मल और प्रखर होने तथा प्रवाह के साथ चल पड़ने से वह दिव्य पथ प्रशस्त हो जाता है जिसे अपनाकर कोई भी चिदानन्द सागर का भी आनन्द ले सकता है। यहाँ मात्र शाँति नहीं, परम शाँति है। विकास के उत्कर्ष तीर्थराज संगम में सज्जन-पान कर शरीर व मन की क्लान्ति, सारे सन्देहों, पूर्वाग्रहों से मुक्त प्रसन्नचित हो विकास यात्रा पर चल पड़ने का उत्साह उत्पन्न होता है। समय की माँग है कि दोनों ही विधाओं के पक्षधर अब इस महायात्रा पर चल ही पड़े। उसी में जीवन की सार्थकता भी निहित है।