Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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परमार्थ के लिये अनिवार्य है साहस
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समर्थ गुरु रामदास की बालक शिवाजी पर दृष्टि पड़ी। बालक का शरीर तो दुर्बल था पर उसमें आदर्श का निर्वाह करने के लिए साहस बहुत दिखा। समर्थ की इच्छा थी कि उसे आत्मबल का अनुदान देकर देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित भाव से काम करने के लिए तैयार करें। शिवाजी से संपर्क बढ़ाया और वह समर्थ के सत्संगों में आने लगा। उसके साथ घनिष्ठता भी बढ़ी। लगा यह लड़का काम का है। और उपयुक्त प्रयोजन में उसे जुटाया जा सकेगा।
फिर भी उनकी पात्रता परखने का निश्चय किया। कुपात्र के हाथ जो भी लगे वह उसका दुरुपयोग ही करता है। इसलिए अपनी दैवी शक्ति प्रदान करने से पूर्व उसे ठोक बजा लेने की बात उनके मन में आई। वैसी ही योजना भी बनाई।
एक दिन उनने आँख के दर्द का बहाना बनाया और कहा पीड़ा इतनी अधिक है कि जल्दी ही उपचार न हुआ तो आँखें चली जायेंगी।
शिवाजी ने कहा - हम लोग तो अनभिज्ञ है। आप ही कोई उपाय बताएँ। उसे पूरा करने का हर समीप प्रयत्न करेंगे।
समर्थ ने कहा - सिंहनी का दूध चाहिए उसे आंजा जाय तो आंखें अच्छी हो सकती है। सामने वाली पर्वत की एक गुफा में एक सिंहनी ने बच्चे दिये है। कोई वहाँ जाय और सिंहनी का दूध लाए तो काम चले। उसका इशारा शिवाजी को वह कर दिखाने की ओर था।
शिवाजी तैयार हो गये। लोटा लेकर उसी गुफा की ओर निर्भयता पूर्वक बढ़ने लगे। रास्ते में यही सोचते जा रहे थे। सिंहनी ने आक्रमण करके मार डाला तो भी हर्ज नहीं, परमार्थ के निमित्त जीवन जाने से बड़ा सदुपयोग उसका क्या हो सकता है।
सिंहनी बच्चों को दूध पिला रही थी। शिवाजी ने उससे मन ही मन प्रार्थना की वह भी इतनी कृपा करे कि गुरु कि आँखें बच सकें। दूध का पात्र आगे बढ़ाकर दुहना आरंभ कर दिया। सिंहनी शान्त भाव से पड़ी रही। शिवाजी ने दूध लिया। बच्चों ने भी कोई बाधा न पहुँचाई।
दूध लाकर शिवाजी ने गुरु को दिया उनने उसमें से थोड़ा सा लगाकर कहा - आँखें अच्छी हो गई। दर्द चला गया सिंहनी भी उनने अपनी सिद्धि द्वारा उत्पन्न की थी। दूध लाना तो शिवाजी के साहस और परमार्थ की परीक्षा भर थी, जिसमें वे उत्तीर्ण हुए।
समर्थ ने कभी बार न चूकने वाली, कभी हार कर न लौटने वाली भवानी तलवार उन्हें अनुदान स्वरूप दे दी और देश की स्वतंत्रता के लिए संगठन बनाने और संघर्ष करने का आदेश दिया। इतने महत्वपूर्ण कार्य हेतु जिस श्रेणी की चयन प्रक्रिया की अनिवार्यता थी, वह संपन्न हो चुकी थी।
हर अनुदान-उपहार को सस्ती कीमत पर कौड़ी के मोल खरीदने का दिवा स्वप्न देखने वालों को यह समझना चाहिए कि दैवी अनुकम्पाएँ सत्साहसी को ही हस्तगत होती है। पी0 एम॰ टी0 किए बिना मेडिकल कॉलेज में भर्ती नहीं होती। गुरु की कड़ी परीक्षा पर खरे उतरने पर ही विवेकानन्दों पर शक्तिपात होता है एवं शिवाजियों को भवानी तलवार मिलती है। यह एक शाश्वत एवं सुनिश्चित सत्य है। स्रष्टा की यही व्यवस्था भी है।