Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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सारी शक्ति गँवा देते है (Kahani)
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एक तपस्वी ने ब्रह्माजी की आराधना की। उससे प्रसन्न होकर वे वरदान देने आये। तपस्वी ने इन्द्रासन और उसका वज्र माँगा।
ब्रह्माजी उसकी क्षुद्रता स्वार्थपरता और बाल बुद्धि पर खिन्न होकर वापस चले गये। जिसकी यश लिप्सा और महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ी-चढ़ी हो वह तपस्वी कैसा।
तपस्वी को अपनी भूल प्रतीत हुई। उसने जाना कि मात्र कर्मकांड और शरीर शोषण ही तप नहीं है। उसके लिए मन का शोधन भी आवश्यक है।
उसने नये सिरे से नया तप प्रारम्भ किया जिसमें मन का परिशोधन प्रमुख था। ब्रह्माजी दुबारा आयें। साथ में वे इन्द्रासन और वज्र भी लाये। वरदान के संबन्ध में पूछा। तपस्वी ने कहा अहंकार और लिप्सा को बढ़ाने वाले वे पूर्ण याचित साधन सुख अब निरर्थक प्रतीत होते हैं। मुझे तो ब्रह्मपरायणता चाहिए।
ब्रह्माजी अबकी बार पूर्ण संतुष्ट थे। उनने उसकी नई कामना पूर्ण की।
राजा ने मंत्री से कहा- मेरा मन प्रजाजनों में से जो वरिष्ठ हैं उन्हें कुछ बड़ा उपहार देने का हैं। बताओ ऐसे अधिकारी व्यक्ति कहाँ से और किस प्रकार ढूंढ़ें जाय?
मंत्री ने कहा - सत्पात्रों की तो कोई कमी नहीं, पर उनमें एक ही कमी है कि परस्पर सहयोग करने की अपेक्षा वे एक दूसरे की टाँग पकड़कर खींचते हैं। न खुद कुछ पाते हैं और न दूसरों को कुछ हाथ लगने देते हैं। ऐसी दशा में आपकी उदारता को फलित होने का अवसर ही न मिलेगा।
राजा के गले वह उत्तर उतरा नहीं। बोले! तुम्हारी मान्यता सच है यह कैसे माना जाय? यदि कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हो तो करो। मंत्री ने बात स्वीकार करली और प्रत्यक्ष कर दिखाने की एक योजना बना ली। उसे कार्यान्वित करने की स्वीकृति भी मिल गई।
एक छः फुट गहरा गड्ढा बनाया गया। उसमें बीस व्यक्तियों के खड़े होने की जगह थी।
घोषणा की गई कि जो इस गड्ढे से ऊपर चढ़ आवेगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में मिलेगा।
बीसों प्रथम चढ़ने का प्रयत्न करने लगे। जो थोड़ा सफल होता दीखता उसकी टाँगें पकड़कर शेष उन्नीस नीचे घसीट लेते। वह औंधे मुँह गिर पड़ता। इसी प्रकार सबेरे आरम्भ की गई प्रतियोगिता शाम को समाप्त हो गयी। बीसों को असफल ही किया गया और रात्रि होते-होते उन्हें सीढ़ी लगाकर ऊपर खींच लिया गया। पुरस्कार किसी को भी नहीं मिला।
मंत्री ने अपने मत को प्रकट करते हुए कहा - यदि यह एकता कर लेते तो सहारा देकर किसी एक को ऊपर चढ़ा सकते थे। पर वे ईर्ष्यावश वैसा नहीं कर सकें। एक दूसरे की टाँग खींचते रहे और सभी खाली हाथ रहे।
संसार में प्रतिभावानों के बीच भी ऐसी ही प्रतिस्पर्धा चलती हैं और वे खींचतान में ही सारी शक्ति गँवा देते है।
अस्तु उन्हें निराश हाथ मलते ही रहना पड़ता है।