Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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समर्पण का बल
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समर्पण की सामर्थ्य अपार, समर्पण का बल पहिचानो।समर्पण ऋद्धि, सिद्धि का सार, बिंदु में सिंधु इसे मानो॥1॥ समर्पण करता नन्हा बीज, वृक्ष बन देता मीठे आम।लहराते खेत और खलिहान, समर्पण का ही है परिणाम॥ कोयला देता अपने आप, दहकती भट्टी को जब सोप।वही बन जाता है अंगार, समर्पण की गरिमा आरोप॥ समर्पण कायाकल्प करे, समर्पण की गरिमा जानो।समर्पण की सामर्थ्य अपार, ...........................॥2॥ हो गये वानर से बजरंग, समर्पण के बल पर हनुमान।सारथी बने, पार्थ के नहीं-समर्पण के, ही तो भगवान॥ बिक गये खुद गिरधर गोपाल, समर्पित-मीरा जी के हाथ।समर्पित हुई अम्बपाली, जुड़ गया नाम बुद्ध के साथ॥ दयानन्द और विवेकानन्द, समर्पण का जादू जाना।समर्पण की सामर्थ्य अपार, ..........................॥3॥ असंभव, संभव हो जाता, इसी जादू के बलबूते।समर्पण में जो शक्ति दुपी, उसे कब तक कोई कूते॥ फिरंगी की सत्ता काँपी, डेढ़-पसली के गाँधी से।हिल गये तख्तों ताज सभी, समर्पण की ही आँधी से। समर्पित-राष्ट्र शहीदों की, तनिक जीवट तो अनुमानो।समर्पण की सामर्थ्य अपार, ................................॥4॥ आज बादल विभीषिका के, मनुजता पर फिर छाये है।बचाने मानवता को आज, समर्पण के क्षण आये है॥ सृजन-सैनिक जो करें अगर, समर्पण सुर-संस्कृति के लिये।लक्ष्य युग-परिवर्तन का पूर्ण न हो क्यों? युग शिल्पी के किये॥ समर्पित-शूर अगर जूझे, अनय की हार हुई माना।समर्पण की सामर्थ्य अपार, ...........................॥5॥ सिद्धि का सिन्धु सामने है, साधना-बिंदु समर्पित हो।ज्योति का पुँज प्रकाशित है, साध के दीप प्रज्वलित हो॥ इन दिनों “युग प्रज्ञा” हुलसित, प्रखर-प्रतिभाएँ विकसाने।और युग करुणा छलक रही, स्नेह-संवेदन सरसाने॥ तुले है महाप्राण देने, सहेजो! प्राणवान-प्राणो।समर्पण की सामर्थ्य अपार, .......................॥6॥ -मंगल विजय *समाप्त*