Books - गायत्री महाविज्ञान भाग 2
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Language: HINDI
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श्री गायत्री चालीसा
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श्री गायत्री चालीसा
दोहा ह्रीं श्रीं क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड । शान्ति, क्रान्ति, जागृति प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ।। जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम । प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ।।
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहूनी ।। अक्षर चौबिस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ।। शाश्वत सतोगुणी सतरूपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ।। हंसारूढ़ सितम्बर धारी । स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी ।। पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ।। ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःखदुरमतिखोई ।। कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अद्भुत माया ।। तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ।। सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ।। तुम्हरी महिमा पार न पावैं । जो शारद शत मुख गुन गावें ।। चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ।। महामन्त्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ।। सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविद्या नासै ।। सृष्टि बीज जग जननि भवानी । कालरात्रि वरदा कल्याणी ।। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ।। तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ।। महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जै जै जै त्रिपदा भय हारी ।। पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ।। तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा ।। जानत तुमहिं तुमहि ह्वै जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ।। तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाईं । माता तुम सब ठौर समाईं ।। ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ।। सकल सृष्टि की प्राण विधाता । पालक, पोषक, नाशक, त्राता ।। मातेश्वरी दया व्रतधारी । तुम सन तरे पातकी भारी ।। जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ।। मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित ह्वै जावें ।। दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ।। गृह कलेश चित चिन्ता भारी । नासै गायत्री भय हारी ।। सन्तति हीन सुसन्तति पावें । सुख सम्पत्ति युत मोद मनावें ।। भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ।। जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ।। घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ।। जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ।। जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ।। सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ।। अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ।। ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, योगी । आरत, अर्थी, चिन्तित भोगी ।। जो जो शरण तुम्हारी आवैं । सो सो मन वांछित फल पावैं ।। बल, बुद्धि, विद्या, शील सुभाऊ । धन, वैभव, यश, तेज उछाऊ ।। सकल बढ़ें उपजें सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ।। यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करै जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
।। आरती ।।
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता । आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री । दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री ।। ब्रह्म रूपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे । भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।। भय हारिणि भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी । अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ।। कामधेनु सतचित आनन्दा जय गंगा गीता । सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।। ऋग्, यजु, साम, अथर्व प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे । कुण्डलिनी सहस्रार, सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।। स्वाहा, स्वथा, शची, ब्रह्माणी, राधा रुद्राणी । जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला कल्याणी ।। जननी हम हैं दीन हीन, दुःख दारिद के घेरे । यदपि कुटिल कपटी कपूत, तऊ बालक हैं तेरे ।। स्नेह सनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै । बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ।। काम, क्रोध, मद लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये । शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।। तुम समर्थ सब भांति तारिणी, तुष्टि पुष्टि त्राता । सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता ।। जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
गायत्री सहस्रनाम का विज्ञान
गायत्री ईश्वरीय दिव्य शक्तियों का एक पुंज है। उस पुंज में कितनी शक्तियां निहित हैं, इसकी कोई संख्या नहीं बतायी जा सकती। उसके गर्भ में शक्तियों का भण्डार है। शास्त्रों में ‘सहस्र’ शब्द ‘अनन्त के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। यों मोटे अर्थ में तो सहस्र, एक हजार को कहते हैं, पर अन्यत्र अनन्त संख्या के लिये भी सहस्र शब्द प्रयुक्त होता है। ईश्वर की प्रार्थना है ‘सहस्र शीर्षा’ आदि। इस प्रार्थना में ईश्वर को सहस्र मस्तक और सहस्र हाथ, पांव, नेत्र आदि वाला बताया है। यहां उस सहस्र का तात्पर्य अनन्त दल हैं न कि एक हजार। ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनसे सहस्र का अर्थ अनन्त सिद्ध होता है। गायत्री की अनन्त शक्तियों में से मनुष्य को बहुत थोड़ी शक्तियों का अभी तक पता चला है और जिन शक्तियों का पता चला है उनमें से बहुत थोड़ी उपयोग में आई हैं। जो शक्तियां अब तक जानी जा चुकी हैं, समझी जा सकती हैं, उनकी संख्या लगभग एक हजार है। इन हजार शक्तियों के नाम उनके गुणों के अनुसार रखे गये हैं। उन हजार नामों का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में ‘गायत्री सहस्रनाम’ करके मिलता है। इन शक्तियों का जानना, समझना और पाठ करना इसलिये आवश्यक है कि हमें पता चलता रहता है कि इस शक्ति के पुंज के अन्दर क्या-क्या विशेषतायें छिपी हुई हैं और गायत्री की प्राप्ति के साथ-साथ हम किन-किन विशेषताओं को अपने में धारण करते हैं। यह पता चल जाने पर ही उनका उपयोग और प्रयोग हो सकता है। जब तक किसी वस्तु का गुण और महत्व न मालूम हो, उसकी शक्ति का परिचय न हो, तब तक उस वस्तु से लाभ नहीं उठाया जा सकता है। गायत्री में क्या-क्या शक्तियां हैं और उन शक्तियों का सहयोग पाने से हम क्या-क्या लाभ उठा सकते हैं, सहस्रनाम में यही परिचय कराया है। क्योंकि इन नामों पर भली प्रकार ध्यान देने से गायत्री की मर्यादा, शक्ति, प्रकृति उपयोगिता आदि का परिचय प्राप्त हो जाता है, यह परिचय उन लाभों की प्राप्ति का सोपान है। इस जानकारी के आधार पर साधक सोचता है कि गायत्री शक्ति की अमुक-अमुक विशेषतायें हैं, जिन्हें आवश्यकता या रुचि के अनुसार प्राप्त किया जा सकता है। यह पता चलने पर एक तो उसकी उपयोगिता की ओर ध्यान जाता है और जीवन को सर्वांगपूर्ण बनाने के उन लाभों का संग्रह करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। साथ ही इस महातत्त्व की महिमा का पता चलता है कि यह इतनी असाधारण वस्तु है। किसी की महिमा, विशेषता था श्रेष्ठता का पता चलने पर ही उसके प्रति श्रद्धा की भावनायें उत्पन्न होती हैं। जो पारस के गुणों को जानता है, वही उसकी खोज करता है, प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, मिल जाने पर उसको सुरक्षित रखता है और उसका उपयोग करके समुचित लाभ उठाता है। जिसे यह सब मालूम न हो, पारस की विशेषताओं से परिचित न हो, तो उसके लिये यह पत्थर के मामूली टुकड़े से अधिक नहीं है। इसलिये सहस्रनाम का श्रद्धापूर्वक पाठ करने का शास्त्रों में बड़ा माहात्म्य बताया गया है। आइये श्रद्धापूर्वक गायत्री सहस्रनाम का पाठ करें और उसमें वर्णित नामों पर विचार करते हुए गायत्री की महिमा को समझें और उनसे लाभ उठाएं।
।। अथ गायत्री सहस्रनाम ।।
श्री नारायण उवाच— साधु-साधु महाप्राज्ञ सम्यक् पृष्टं त्वयाऽनघ । श्रृणु वक्ष्यामि यत्नेन गायत्र्यष्टसहस्रकम् । नाम्नां शुभानां दिव्यानां सर्वपापविनाशनम् ।।1।। सृष्ट्यादौ यद् भगवती पूर्वं प्रोक्तं ब्रवीमि ते । अष्टोत्तरसहस्रस्य ऋषिर्ब्रह्मा प्रकीर्त्तितः ।।2।। छन्दोऽनुष्टुप्तथा देवी गायत्रीं देवता स्मृता । हलो बीजानि तस्यैव स्वराः शक्तय ईरिताः ।।3।। अंगन्यासकरन्यासावुच्येते मातृकाक्षरैः । अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि साधकानां हिताय वै ।।4।। सूर्य्यमण्डलमध्यवासनिरतां श्वेतप्रभारञ्जिताम् । रक्त श्वेतहिरण्यनीलधवलैर्युक्तां कुमारीमिमाम् ।।5।। गायत्रीं कमलासनां करतलव्यानद्धकुण्डांबुजां । पद्माक्षीं च वरस्रजं च दधतीं हंसाधिरूढां भजे ।।6।। अचिंत्यलक्षणाव्यक्ताप्यर्थमातृमहेश्वरी । अमृतार्णवमध्यस्थाप्यजिता चापराजिता ।।7।। अणिमादिगुणाधाराप्यर्कमंडलसंस्थिता । अजरा ऽजाऽपरा धर्मा अक्षसूत्रधराऽधरा ।।8।। अकारादिक्षकारांताप्यरेषड्वर्गभेदिनी । अञ्जनाद्रिप्रतीकाशाप्यंजनाद्रिनिवासिनी ।।9।। अदितिश्चाजपा विद्याप्यरविन्दनिभेक्षणा । अन्तर्बहिः स्थिताऽविद्याध्वंसिनी चान्तरात्मिका ।।10।। अजा चाजमुखा वासाप्यविंदनिभानना । अर्द्धमात्रार्थदानज्ञाप्यरिमण्डलमर्दिनी ।।11।। असुरघ्नी ह्यमावास्याप्यलक्ष्मीघ्न्यत्यजार्चिता । आदिलक्ष्मीश्चादिशक्तिराकृतिश्चायतानना ।।12।। आदित्यपवीचाराप्यादित्यपरिसेविता । आचार्या वर्त्तनाचाराप्यादिमूर्तिनिवासिनी ।।13।। आग्नेयी चामरी चाद्या चाराध्या चासनस्थित । आधारनिलवाधारा चाकाशांतनिवासिनी ।।14।। आद्याक्षरसमायुक्ता चांतराकाशरूपिणी । आदित्यमण्डलगता चान्तरध्वांतनाशिनी ।।15।। इन्दिरा चेष्टदा चेष्टा चेंदीवरनिभेक्षणी । इरावती चेन्द्रपदा चेन्द्राणी चेन्दुरूपिणी ।।16।। इक्षुकोदण्डसंयुक्ता चेषुसन्धानकारिणी । इन्द्रनीलसमाकारा चेडापिंगलरूपिणी ।।17।। इन्द्राक्षी चेश्वरी देवी चेहात्रयविवर्जिता । उमा चोषा ह्युडुनिभा उर्वारुकफलानना ।।18।। उडुप्रभा चोडुमती ह्युडुपा ह्युडुमध्यगा । ऊर्ध्वा चाप्यूर्ध्वकेशी चाप्यूर्ध्वाधोगतिभेदिनी ।।19।। ऊर्ध्वबाहुप्रिया चोर्मिमाला वाग्ग्रन्थदायिनी । ऋतं चर्षिऋतुमती ऋषिदेवनभस्कृता ।।20।। ऋग्वेदा ऋणहर्त्री च ऋषिमण्डलचारिणी । ऋद्धिदा ऋजुमार्गस्था ऋजुधर्मा ऋतुजदा ।।2।। ऋग्वेदनिलया ऋज्वी लुप्तधर्म प्रवर्त्तिनी । लूतारिवरसम्भूता लूतादिविषहारिणी ।।22।। एकाक्षरा चैकमात्रा चैका चैकैकनिष्ठिता । ऐन्द्री सैरावतारूढा चैहिकामुष्मिकप्रदा ।।23।। ओंकारा ह्योषधी चोता चोतप्रोतनिवासिनी । और्वा ह्यौषधसम्पन्ना औपासनफलप्रदा ।।24।। अण्डमध्यस्थिता देवी चाः कारमनुरूपिणी । कात्यायनी कालरात्रिः कामाक्षी कामसुन्दरी ।।25।। कमला कामिनी कान्ता कामदा कलकंठिनी । करिकुम्भस्तनभरा करवीरसुवासिनी ।।26।। कल्याणी कुण्डलवती कुरुक्षेत्रनिवासिनी । कुरुविन्ददलाकारा कुण्डली कुमुदालया ।।27।। कालजिह्वा करालास्या कालिका कालरूपिणी । कमनीयगुणा कान्तिः कलाधारा कुमुद्वती ।।28।। कौशिकी कमलाकारा कामचारप्रभंजिनी । कौमारी करुणापांगी ककुबन्ता करिप्रिया ।।29।। केसरी केशवनुता कदम्ब कुसुमप्रिया । कालिन्दी कालिका कांची कलशोद्भवसंस्तुता ।।30।। काममाता क्रतुमती कामरूपा कृपावती । कुमारी कुण्डनिलया किराती करिवाहना ।।31।। कैकेयी कोकिलालापा केतकी कुसुमप्रिया । कमंडलुधरा काली कर्मनिर्मूलकारिणी ।।32।। कलहंसगतिः कक्षा कृतकौतुकमंगला । कस्तूरीतिलका कग्रा करीन्द्रगमना कुहूः ।।33।। कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया । कूटस्था कुधरा कग्रा कुक्षिस्थाखिलविष्टपा ।।34।। खड्ग खेटकरा खर्वा खेचरीखगवाहना । खट्वांगधारिणी ख्याता खगराजोपरिस्थिती ।।35।। खलघ्नी खंडितजरा खंडाख्यानप्रदायिनी । खंडेन्दुतिलका गंगा गणेशगुहपूजिता ।।36।। गायत्री गोमती गीता गान्धारी गानलोलुपा । गौतमी गामिनी गाधा गन्धर्वाप्सरसेविता ।।37।। मोविन्दचरणाक्रान्ता गुणत्रयविभाविता । गन्धर्वी गह्वरी गोत्रा गिरीशा गहनागमी ।।38।। गुहावासा गुणवती गुरुपापप्रणाशिनी । गुर्वी गुणवती गुह्या गोप्तव्या गुणदायिनी ।।39।। गिरिजा गुह्यमातंगी गरुडध्वजवल्लभा । गर्वापहारिणी गोदा गोकुलस्था गदाधरा ।।40।। गोकर्णनिलयासक्ता गुह्यमण्डलवर्त्तिनी । घर्मदा घनदा घण्टा घोरदानवमर्दिनी ।।41। घृणिमंत्रमयी घोषा घनसम्पातदायिनी । घण्टारवप्रिया घ्राणा घृणिसन्तुष्टकारिणी ।।42।। घनारिमण्डला घृर्णा घृताची घनवेगिनी । ज्ञानधातुमयी चर्चा चर्चिता चारुहासिनी ।।43।। चटुली चण्डिकाचित्राचित्रमाल्यविभूषिता । चतुर्भुजा चारुदन्ता चातुरी चरितप्रदा ।।44।। चूलिका चित्रवस्त्रान्ता चन्द्रमः कर्णकुण्डला । चन्द्रहासा चारुदार्त्री चकोरी चन्द्रहासिनी ।।45।। चन्द्रिका चन्द्रधात्री च चौरी चौरा च चण्डिका । चञ्चद्वाग्वादिनी चन्द्रचूडा चोरविनाशिनी ।।46।। चारुचन्दनलिप्तांगी चञ्चच्चामरवीजिता । चारुमध्या चारुगतिश्चन्दिला चन्द्ररूपिणी ।।47।। चारुहोमप्रिया चार्वा चरिता चक्रबाहुका । चन्द्रमंडलमध्यस्था चन्द्रमंडलदर्पणा ।।48।। चक्रवाकस्तनी चेष्टा चित्रा चारुविलासिनी । चित्स्वरूपा चन्द्रवती चन्द्रमाश्चन्दनप्रिया ।।49।। चोदयित्री चिरप्रज्ञाचातका चारुहेतुकी । छत्रयाता छत्रधरा छायाछन्दः परिच्छदा ।।50।। छायादेवी छिद्रनखा छन्नेन्द्रियविसर्पिणी । छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता छिद्रोपद्रवभेदिनी ।।51।। छेदा छत्रेश्वरी छिन्ना छुरिका छेदनप्रिया । जननी जन्मरहित जातवेदा जगन्मयी ।।52।। जाह्नवी जटिला जेत्री जरामरणवर्जिता । जम्बूद्वीपवती ज्वाला जयन्ती जलशालिनी ।।53।।
जितेन्द्रिया जितक्रोधी जितामित्रा जगत्प्रिया । जातरूपमयी जिह्वा जानकी जगतीजरा ।।54।। जनित्री जह्नुतनया जगत्त्रयहितैषिणी । ज्वालामुखी जपवती ज्वरघ्नी जितविष्टपा ।।55।। जिताक्रान्तमयी ज्वाला जाग्रती ज्वरदेवता । ज्वलन्ती जलदा ज्येष्ठा ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी ।।56।। जम्भिनी जृंभणा जृंभा ज्वलन्माणिक्यकुण्डला । झिंझिका झणनिर्घोषा झंझामारुतवेगिनी ।।57।। झल्लरीवाद्यकुशला ञरूपा ञभुजा स्मृता । टंकबाणसमायुक्ता टंकिनी टंकभेदिनी ।।58।। टंकीगणकृताघोषा टंकनीयमहोरसा । टंकारकारिणी देवी ठठशब्दनिनादिनी ।।59।। डामरी डाकिनी डिंभा डुंडमारैकनिर्जिता । डामरीतन्त्रमार्गस्था डमड्डमरुनादिनी ।।60।। डिण्डीरवसहा डिम्भलसत्क्रीडापरायणा । ढुंढिविघ्नेशजननी ढक्काहस्ता ढिलिव्रजा ।।61।। नित्यज्ञाना निरुपमा निर्गुणा नर्मदा नदी । त्रिगुणा त्रिपदा तन्त्री तुलसी तरुणातरः ।।62।। त्रिविक्रमपदाक्रान्ता तुरीयपदगामिनी । तरुणादित्यसंकाशा तामसी तुहिनातुरा ।।63।। त्रिकालज्ञानसम्पन्ना त्रिवली च त्रिलोचना । त्रिशक्तिस्त्रिपुरा तुंगा तुरंगवदना तथा ।।64।। तिमिंगिलगिला तीव्रा त्रिस्रोता तामसादिनी । तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञ तनुमध्या त्रिविष्टपा ।।65।। त्रिसन्ध्या त्रिस्तनी तोषासंस्था तालप्रतापिनी । ताटंकिनी तुषाराभा तुहिनाचलवासिनी ।।66।। तन्तुजालसमायुक्ता तारहारावलिप्रिया । तिलहोमप्रिया तीर्थातमालकुसुमाकृतिः ।।67।। तारका त्रियुता तन्वी त्रिशंकुपरिवारिता । तलोदरी तिलोभूषा ताटंक प्रियवादिनी ।।68।। त्रिजटा तित्तिरी तृष्णा त्रिविधा तरुणाकृतिः । तप्तकांचनसंकाशा तप्तकांचनभूषणा ।।69।। त्रैयम्बका त्रिवर्णा च त्रिकालज्ञानदायिनी । तर्पणा तृप्तिदा तृप्ता तामसी तुम्बुरुस्तुता ।।70।। तार्क्ष्यस्था त्रिगुणाकारा त्रिभंगी तनुवल्लरिः । थात्कारी थारवा थांता दोहिनी दीनवत्सला ।।71।। दानवान्तकरी दुर्गा दुर्गासुरनिबर्हिणी । देवरीतिर्दिवारात्रिर्द्रौपदी दुन्दुभिस्वना ।।72।। देवयानी दुरावासा दारिद्र्यभेदिनी दिवा । दामोदरप्रिया दीप्ता दिग्वासा दिग्विमोहिनी ।।73।। दण्डकारण्यनिलया दण्डिनी देवपूजिता । देववन्द्या दिविषदा द्वेषिणी दानवाकृतिः ।।74।। दीनानाथस्तुता दीक्षा दैवतादिस्वरूपिणी । धात्री धनुर्धुरा धेनुर्धारिणी धर्मचारिणी ।।75।। धुरन्धरा धराधारा धनदा धान्यदोहिनी । धर्मशीला धनाध्यक्षा धनुर्वेदविशारदा ।।76।। धृतिर्धन्या धृतपदा धर्मराजप्रिया ध्रुवा । धूमावती धूमकेशी धर्मशास्त्रप्रकाशिनी ।।77।। नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता नन्दनात्मिका । नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया ।।78।। नारायणप्रिया नित्या निर्मला निर्गुणा निधिः । निराधारानिरुपमा नित्यशुद्धा निरंजन ।।79।। नादबिन्दुकलातीता नादबिन्दुकलात्मिका । नृसिंहिनी नगधरा नृपनागविभूषिता ।।80।। नरकक्लेशशमनी नारायणपदोद्भवा । निरवद्या निराकारा नारदप्रियकारिणी ।।81।। नानाज्योतिः समाख्याता निधिदा निर्मलात्मिका । नवसूत्रधरा नीतिर्निरुपद्रवकारिणी ।।82।। नन्दजी नवरत्नाढ्या नैमिषारण्यवासिनी । नवनीतिप्रिया नारी नीलजीमूतनिःस्वना ।।83।। निमेषिणी नदीरूपा नीलग्रीवा निशीश्वरी । नामावलिर्निशुम्भघ्नी नागलोकनिवासिनी ।।84।। नवजाम्बूनदप्रख्या नागलोकाधिदेवता । नूपुराक्रांतचरणा नरचित्त प्रमोदिनी ।।85।। निमग्नारक्तनयना निर्घातसमनिस्वना । नन्दनोद्याननिलया निर्व्यूहोपरिचारिणी ।।86।। पार्वती परमोदारा परब्रह्मात्मिका परा । पञ्चकोश विनिर्मुक्ता पंचपातकनाशिनी ।।87।। परचित्तविधानज्ञा पंचिका पंचरूपिणी । पूर्णिमा परमा प्रीतिः परतेजः प्रकाशिनी ।।88।। पुराणी पौरुषी पुण्या पुण्डरीकनिभेक्षणा । पातालतलनिर्मग्ना प्रीता प्रीतिविवर्धिनी ।।89।। पावनी पादसहिता पेशला पवनाशिनी । प्रजापतिः परिश्रान्ता पर्वतस्तनमण्डला ।।90।। पद्मप्रिया पद्मसंस्था पद्माक्षी पद्मसम्भवा । पद्मपत्रा पद्मपदा पद्मिनी प्रियभाषिणी ।।91।। पशुपाशविनिर्मुक्ता पुरन्ध्री पुरवासिनी । पुष्कला पुरुषा पर्वा पारिजातसुमप्रियः ।।92।। पतिव्रता पवित्रांगी पुष्पहासपरायणा । प्रज्ञावती सुता पौत्री पुत्रपूज्या पयस्विनी ।।93।। पट्टिपाशधरा पंक्तिः पितृलोकप्रदायिनी । पुराणी पुण्यशीला च प्रणतार्त्ति विनाशिनी ।।94।। प्रद्युम्नजननी पुष्टा पितामह परिग्रहा । पुण्डरीकपुरावासा पुण्डरीकसमानना ।।95।। पृथुजंघा पृथुभुजा पृथुपादा पृथूदरी । प्रवालशोभा पिंगाक्षी पीतवासाः प्रचापला ।।96।। प्रसवा पुष्टिदा पुण्या प्रतिष्ठा प्रणवागतिः । पंचवर्णा पंचवाणी पंचिका पंजरस्थिता ।।97।। परमाया परज्योतिः परप्रीतिः परागतिः । पराकाष्ठा परेशानी पाविनी पावकद्युतिः ।।98।। पुण्यप्रदा परिच्छेद्या पुष्पहासा पृथूदरी । पीतांगी पीतवसना पीतशय्या पिशाचिनी ।।99।। पीतक्रिया पिशाचघ्नी पाटलाक्षी पटुक्रिया । पंचभक्षप्रियाचारा पूतना प्राणघातिनी ।।100।। पुन्नागवनमध्यस्था पुण्यतीर्थनिषेविता । पंचांगी च पराशक्तिः परमाहलादकारिणी ।।101।। पुष्पकांडस्थिता पूषा पोषिताखिलविष्टपा । पानप्रिया पंचशिखा पन्नगोपरिशायिनी ।।102।। पंचमात्रात्मिका पृथ्वी पथिका पृथुदोहिनी । पुराणान्यायमीमांसा पाटली पुष्पगन्धिनी ।।103।। पुण्यप्रजा पारदात्री परमार्गैकगोचरा- प्रवालशोभा पूर्णाशा प्रणवा पल्लवोदरी ।।104।। फलिनी फलदा फल्गुः फूत्कारी फलकाकृतिः । फणीन्द्रभोगशयना फणिमंडलमंडिता ।।105।। बालबाला बहुमता बालातपनिभांशुका । बलभद्रप्रिया वन्द्या वडवा बुद्धिसंस्तुता ।।106।। बन्दी देवी बिलवती बडिशघ्नी बलिप्रिया । बांधवी बोधिता बुद्धिर्बन्धूककुसुमप्रिया ।।107।। बालभानुप्रभाकारा ब्राह्मी ब्राह्मणदेवता । बृहस्पतिस्तुता वृन्दा वृन्दावनविहारिणी ।।108।। बलाकिनी बिलाहारा बिलावासा बहूदका । बहुनेत्रा बहुपदा बहुकर्णावतंसिका ।।109।। बहुबाहुयुता बीजरूपिणी बहुरूपिणी । बिन्दुनादकलातीता बिन्दुनादस्वरूपिणी ।।110।। बद्धगोधांगुलित्राणा बदर्याश्रमवासिनी । बृन्दारका बृहत्स्कन्धा बृहती बाणपातिनी ।।111।। बृन्दाध्यक्षा बहुनुता बनिता बहुविक्रमा । बद्धपद्मासनासीना बिल्वपत्रतलस्थिता ।।112।। बोधिद्रुमनिजावासा बडिस्था बिन्दुदर्पणा । बाला बाणासनवती बडवानलवेगिनी ।।113।। ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था ब्रह्मकंकणसूत्रिणी । भवानी भीषणवती भाविनी भयहारिणी ।।114।। भद्रकाली भुजंगाक्षी भारती भारताशया । भैरवी भीषणाकारा भूतिदा भूतिमालिनी ।।115।। भामिनी भोगनिरता भद्रदा भूरिविक्रमा । भूतावासा भृगुलता भार्गवी भूसुरार्चिता ।।116।। भागीरथी भोगवती भवनस्था भिषश्वरी । भामिनी भोगिनी भाषा भवानी भूरिदक्षिणा ।।117।। भर्गात्मिका भीमवती भवबन्ध-विमोचिनी । भजनीया भूतधात्री भञ्जिता भुवनेश्वरी ।।118।। भुजंगवलय भीमा भेरुण्डा भागधेयिनी । माता माया मधुमती मधुजिह्वा मधुप्रिया ।।119।। महादेवी महाभागा मालिनी मीनलोचना । मायातीता मधुमती मधुमासा मधुद्रवा ।।120।। मानवी मधुसम्भूता मिथिलापुरवासिनी । मधुकैटभसंहर्त्री मेदिनी मेघमालिनी ।।121।। मन्दोदरी महामाया मैथिली मसृणप्रिया । महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या महेश्वरी ।।122।। माऽहेन्द्री मेरुतनया मन्दारकुसुमार्चिता । मञ्जुमञ्जीरचरणा मोक्षदा मंजुभाषिणी ।।123।। मधुरद्राविणी मुद्रा मलया मलयान्विता । मेधा मरकतश्यामा मागधी मेनकात्मजा ।।124।। महामारी महावीरा महाश्यामा मनुस्तुता । मातृका मिहिराभासा मुकुन्दपदविक्रमा ।।125।। मूलाधारस्थिता मुग्धा मणिपूरकवासिनी । मृगाक्षी महिषारूढा महिषासुरमर्दिनी ।।126।। योगासना योगगम्या योगा यौवनकाश्रया । यौवनी युद्धमध्यस्था यमुना युगधारिणी ।।127।। यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी । यात्रा यानविधानज्ञा वदुवंशसमुद्भवा ।।128।। यकारादिहकारान्ता यजुषी यज्ञरूपिणी । यामिनी योगनिरता यातुधाने-भयंकरी ।।129।। रुक्मिणी रमणी रामा रेवती रेणुका रतिः । रौद्री रौद्रप्रियाकारा राममाता रतिप्रिया ।।130।। रोहिणी राज्यदा रेवा रमा राजीवलोचना । राकेशी रूपसम्पन्ना रत्नसिंहासनस्थिता ।।139।। रक्तमाल्यांबरधरा रक्तगन्धानुलेपना । राजहंससमारूढा रम्भा रक्तबलिप्रिया ।।132।। रमणीययुगाधारा राजिताखिलभूतला । रुरुचर्मपरीधाना रथिनी रत्नमालिका ।।133।। रोगेशी रोगशमनी राविणी रोमहर्षिणी । रामचन्द्रपदाक्रान्ता रावणच्छेदकारिणी ।।134।। रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना रथस्था रुक्मभूषणा । लज्जाधिदेवता लोला ललिता लिंगधारिणी ।।135।। लक्ष्मीर्लोला लुप्तविषा लोकिनी लोकविश्रुता । लज्जा लम्बोदरीदेवी ललना लोकधारिणी ।।136।। वरदा वन्दिता विद्या वैष्णवी विमलाकृतिः । वाराही विरजा वर्षा वरलक्ष्मीर्विलासिनी ।।137।। विनता व्योममध्यस्था वारिजासनसंस्थिता । वारुणी वेणुसम्भूता वीतिहोत्रा विरूपिणी ।।138।। वायुमण्डलमध्यस्था विष्णुरूपा विधिप्रिया । विष्णुपत्नी विष्णुमती विशालाक्षी वसुन्धरा ।।139।। वामदेवप्रिया वेला वज्रिणी वसुदोहिनी । वेदाक्षरपरीतांगी वाजपेयफलप्रदा ।।140।। वासवी वामजननी वैकुण्ठनिलयावरा । व्यासप्रिया वर्मधरा वाल्मीकिपरिसेविता ।।141।। शाकम्भरी शिवा शान्ता शारदा शरणागतिः । शातोदरी शुभाचारा शुम्भासुर विमर्दिनी ।।142।। शोभावती शिवाकारा शंकरार्धशरीरिणी । शोणाशुभाशयाशुभ्राशिरःसन्धानकारिणी ।।143।। शरावती शरानन्दा शरज्ज्योत्स्ना शुभानना । शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना ।।144।। श्रीमती श्रीधरानन्दा श्रवणानन्ददायिनी । शर्वाणी शर्वरीवन्द्या षड्भाषा षड्ऋतुप्रिया ।।145।। षडाधारस्थिता देवी षण्मुखप्रियकारिणी । षडंगरूपसुमतिः सुरासुरनमस्कृता ।।146।। सरस्वती सदाधारा सर्वमंगलकारिणी । सामगानप्रिया सूक्ष्मा सावित्री सामसम्भवा ।।147।। सर्ववासा सदानन्दा सुस्तनी सागराम्बरा । सर्वैश्वर्य्यप्रिया सिद्धिः साधुबन्धुपराक्रमा ।।148।। सप्तर्षिमंडलगता सोममंडलवासिनी । सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ।।149।। सर्वोत्तुंगा संगहीना सद्गुणा सकलेष्टदा । सरघा सूर्यतनया सुकेशी सोमसंहतिः ।।150।। हिरण्यवर्णा हरिणी ह्रींकारी हंसवाहिनी । क्षौमवस्त्रपरीतांगी क्षीराब्धितनया क्षमा ।।151।। गायत्री चैव सावित्री पार्वती च सरस्वती । वेदगर्भा वरारोहा श्री गायत्री पराम्बिका ।।152।। इति साहस्रकं नाम्नां गायत्र्याश्चैव नारद । पुण्यदं सर्वपापघ्नं महासम्पत्तिदायकम् ।।153।। एवं नामानि गायत्र्यास्तोषोत्पत्तिकराणि हि । अष्टम्यां च विशेषेण पठितव्यं द्विजैः सह ।।154।। जपं कृत्वा होमपूजां ध्यानं कृत्वा विशेषतः । यस्मै कस्मै न दातव्यं गायत्र्यास्तु विशेषतः ।।155।। सुभक्ताय सुशिष्याय वक्तव्यं भूसुराय वै । भ्रष्टेभ्यः साधकेभ्वश्च बान्धवेभ्यो न दर्शयेत् ।।156।। यद्गृहे लिखित शास्त्रं भयं तस्य न कस्यचित् । चंचलापि स्थिरा भूत्वा कमला तत्र तिष्ठति ।।157।। इदं रहस्यं परमं गुह्याद् गुह्यतरं महत् । पुण्यप्रदं मनुष्याणां दरिद्राणां निधिप्रदम् ।।158।। मोक्षप्रदं मुमुक्षूणां कामिनी सर्वकामदम् । रोगाद्विमुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।।159।। ब्रह्महत्यासुरापानसुवर्णस्तेयिनो नराः । गुरुतल्पगतो वापि पातकान्मुच्यते सकृत् ।।160।। असत्प्रतिग्रहाच्चैवाभक्ष्यभक्षाद्विशेषतः । पाखण्डानृतमुख्येभ्यः पठनादेव मुच्यते ।।161।। इदं रहस्यममलं प्रयोक्तं पद्मजोद्भव । ब्रह्मसायुज्यदं नृणां सत्यं सत्यं न संशयः ।।162।।
।। इति गायत्री सहस्रनाम ।।
गायत्री के सहस्र नामों में प्रत्येक नाम बड़ा ही रहस्यमय है। उसमें सूत्र रूप से गायत्री की शक्तियों का परिचय, इतिहास एवं विज्ञान छिपा हुआ है। मोटी दृष्टि से देखने में यह नाम साधारण मालूम होते हैं, पर यदि सूक्ष्म दृष्टि से विवेचन किया जाए, तो प्रत्येक नाम में से बड़े से बड़े रहस्यों का उद्घाटन होता है। यदि एक-एक नाम की व्याख्या और विवेचना की जाए, तो उन तत्वों का उद्घाटन होगा, जिनको समझने के लिये वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, दर्शन, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, स्मृति, नीति, संहिता एवं सूत्र ग्रन्थों की रचना हुई है। प्रत्येक नाम की विशद व्याख्या करना इस छोटे ग्रन्थ में सम्भव नहीं है, कभी सुयोग मिला और माता की प्रेरणा हुई तो इन सहस्र नामों में से एक-एक का सुविस्तृत विवेचन करेंगे। तब सर्वसाधारण के लिये यह जानना सुगम होगा कि आद्यशक्ति गायत्री की रूपरेखा, गतिविधि, प्रक्रिया, उपयोगिता, महत्ता, वैज्ञानिकता एवं वास्तविकता क्या है? यह नाम गायत्री के गुण, इतिहास और विज्ञान का रहस्योद्घाटन करने के अतिरिक्त अनेक प्रकार की दक्षिणमार्गी एवं वाममार्गी साधनाओं की भी शिक्षा देते हैं। अंगुलि निर्देश, संकेत, सूक्ष्म एवं बीज रूप में इन सहस्र नामों के अन्तर्गत गायत्री विद्या का अनन्त भण्डार भरा हुआ है। गायत्री के ऋषि, छन्द और देवता
कुर्यादन्यन्न वा कुर्यादनुष्ठानादिकं तथा । गायत्रीमात्रनिष्ठस्तु कृतकृत्यो भवेद् द्विजः ।।
श्री नारायण बोले—‘‘चाहे अनुष्ठानादिक करे या न करे, पर गायत्री मात्र के जप में निष्ठा रखने वाला ब्राह्मण कृतकृत्य हो जाता है।’’
संध्यासु चार्घ्यदानं च गायत्रीजपमेव च । सहस्रत्रितयं कुर्वन्सुरैः पूज्यो भवेन्मुने ।। —दे. भा. 12/1/8 ‘‘तीनों सन्ध्याओं में अर्घ्य दे और प्रत्येक सन्ध्या में तीन हजार गायत्री जप करे, तो हे मुने! वह मनुष्य देवताओं द्वारा भी पूज्य हो जाता है।’’ न्यासान् करोतु वा मा वा गायत्रीमेव चाभ्यसेत् । ध्यात्वा निर्व्याजया वृत्त्या सच्चिदानन्दरूपिणीम् ।। —देवी. 12.1.10 ‘‘न्यास, करे या न करे, निर्व्याज भक्ति में सच्चिदानन्द रूपिणी भगवती का ध्यान करके गायत्री का अभ्यास करे।’’
यदक्षरैकसंसिद्धेः स्पर्धते ब्राह्मणोत्तमः । हरिशंकरकंजोत्थ सूर्यचन्द्रहुताशनैः ।। —देवी. 12.1.11 जो सच्चा ब्राह्मण गायत्री के एक अक्षर की भी सिद्धि कर लेता है, उसकी स्पर्धा हरि, शंकर, ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि से होने लगती है।’’
अथातः श्रूयतां ब्रह्मन्वर्णऋष्यादिकांस्तथा । छन्दांसि देवतास्तद्वत् क्रमात्तत्त्वानि चैव हि ।। —दैवी 12.1.12
‘‘है ब्रह्मन्! अब गायत्री के चौबीस वर्णों के ऋषि, छन्द, देवता आदि को क्रम से कहते हैं।’’
वामदेवोऽत्रिर्वसिष्ठः शुक्रः कण्वः पराशरः । विश्वामित्रो महातेजाः कपिलः शौनको महान् ।। याज्ञवल्क्यो भरद्वाजो जमदग्निस्तपोनिधिः । गौतमो मुद्गलश्चैव वेदव्यासश्च लोमशः । अगस्त्यः कौशिको वत्सः पुलस्त्यो मांडुकस्तथा । दुर्वासास्तपसां श्रेष्ठो नारदः कश्यपस्तथा । —देवी. 12.1.13-15 ‘‘गायत्री के ऋषि ये हैं—वामदेव, अत्रि, वसिष्ठ शुक्र, कण्व, पराशर, महातेजस्वी विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, जमदग्नि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्त्य, कौशिक, वत्स, पुलस्त्य, माण्डूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप।’’
इत्येते ऋषयः प्रोक्ता वर्णानां क्रमशो मुने । गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् च बृहती पंक्तिरेव च ।। त्रिष्टुभं जगती चैव तथाऽतिजगती मता । शक्वर्यतिशक्वरी च धृतिश्चातिधृतिस्तथा ।। विराट् प्रस्तारपंक्तिश्च कृतिः प्रकृतिराकृतिः । विकृतिः संकृतिश्चैवाक्षर पंक्तिस्तथैव च ।। भूर्भुवः स्वरितिच्छन्दस्तथा ज्योतिष्मती स्मृतम् । इत्येतानि च छंदांसि कीर्तितानि महामुने ।। —देवी. 12.1.17-19
‘‘हे नारद जी! गायत्री के ऋषियों के पश्चात् अब उसके छन्दों को सुनिये—
गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहता, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, अतिजगती, शक्वरी, अतिशक्वरी, धृति, अतिधृति, विराट् प्रस्तार-पंक्ति, कृति, प्रकृति, आकृति, विकृति, संस्कृति, अक्षरपंक्ति, भू, भुवः, स्वः और ज्योतिष्मती ये 24 छन्द क्रम से कहे हैं।’’
दैवतानि श्रृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वशः । आग्नेयं प्रथमं प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम् ।। तृतीयं च तथा सौम्यमीशानं च चतुर्थकम् । सावित्रं पञ्चमं प्रोक्तं षष्ठमादित्य दैवतम् ।। बार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैत्रावरुणमष्टमम् । नवमं भगदैवत्यं दशमं चार्यमेश्वरम् ।। गणेशमेकादशकं त्वाष्ट्रं द्वादशकं स्मृतम् । पौष्णं त्रयोदशं प्रोक्तमैंद्राग्नं च चतुर्दशम् ।। वायव्यं पंचदशकं वामदेव्यं च षोडशम् । मैत्रावरुणिदेवत्यं प्रोक्तं सप्तदशाक्षरम् ।। अष्टादशं वैश्वदेवमूनविंशं तु मातृकम् । वैष्णवं विंशतितमं वसुदैवतमीरितम् ।। एकविंशतिसंख्याकं द्वाविंशं रुद्रदैवतम् ।। त्रयोविंशं च कौबेरमाश्विनं तत्त्वसंख्यकम् । चतुर्विंशतिवर्णानां देवतानां च संग्रहः । कथित परमश्रेष्ठो महापापैकशोधनः । यदाकर्णनमात्रेण सांगं जाप्यफलं मुने ।। —दे. भा. 12.1.20-27
‘‘अब क्रम से सब अक्षरों के देवता बतलाते हैं—प्रथम के अग्नि, द्वितीय के प्रजापति, तृतीय के सोम, चतुर्थ के ईशान, पंचम के सविता, षष्ठ के आदित्य, सप्तम के बृहस्पति, अष्टम के मैत्रावरुणि, नवम के भग, दशम के अर्यमा, एकादश के गणेश, द्वादश के त्वष्ट्रा, त्रयोदश के पूषा, चतुर्दश के इन्द्राग्नी, पंचदश के वायु, षोडश के वामदेव, सप्तदश के मैत्रावरुणि,अष्टादश के विश्वदेवा, उन्नीसवें के मातृका, बीसवें के विष्णु, इक्कीसवें के वसु, बाईसवें के रुद्र, तेईसवें के कुबेर, चौबीसवें के अश्विनी कुमार—ये चौबीस वर्णों के देवता कहे गये हैं, जो परम श्रेष्ठ और महापाप के दूर करने वाले हैं, जिनके श्रवण मात्र से ही सांग जप का फल प्राप्त होता है।’’
आदिशक्ते जगन्मातर्भक्तानुग्रहकारिणि । सर्वत्रव्यापिकेऽनन्ते श्रीसंध्ये वै नमोऽस्तु ते ।। —दे. भा. 12.5.2 ‘‘हे आदि शक्ति, जगन्माता, भक्तों पर अनुग्रह करने वाली, सर्वत्र व्यापक अनन्ता, श्री सन्ध्या तुम्हारे लिये नमस्कार है।’’
त्वमेव सन्ध्या गायत्री सावित्री च सरस्वती । ब्राह्मी च वैष्णवी रौद्री रक्ता श्वेता सितेतरा ।। —दे. भा. 12.5.3‘‘सन्ध्या, गायत्री, सावित्री, सरस्वती, ब्राह्मी, वैष्णवी, रौद्रा, रक्ता, श्वेता, कृष्णा तुम्हीं हो।’’
प्रातर्बाला च मध्याह्ने यौवनस्था भवेत् पुनः । वृद्धा सायं भगवती चिन्त्यते मुनिभिः सदा ।। —दे. भा. 12.5.4 ‘‘प्रातःकाल बालस्वरूपिणी, मध्याह्न में युवती और सायंकाल में वृद्धा भगवती का मुनिगण ध्यान करते हैं।’’ हंसस्था गरुडारूढा तथा वृषभवाहिनी । ऋग्वेदाध्यायिनी भूमौ दृश्यते या तपस्विभिः ।। —दे. भा. 12.5.5
‘‘ब्राह्मी, हंसारूढ़ा, सावित्री वृषभवाहिनी और सरस्वती गरुड़ारूढ़ा है। इनमें से ब्राह्मी ऋग्वेदाध्यायिनी, भूमितल में तपस्वियों द्वारा देखी जाती है।’’
यजुर्वेदं पठंती च अंतरिक्षे विराजते । सा सामगापि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि ।। —12.5.6
‘‘सरस्वती यजुर्वेद पढ़ती हुई, अन्तरिक्ष में विराजमान होती हैं और सावित्री सामवेद गाती हुई, पृथ्वी तल पर सर्वजनों में रमती हैं।’’ रुद्रलोकं गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी । त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी ।। —12.5.7 ‘‘सावित्री रुद्रलोक में, सरस्वती विष्णु लोक में और ब्राह्मी ब्रह्मलोक में विराजमान रहती हैं—ये सब प्राणियों पर कृपा करने वाली हैं।’’
दोहा ह्रीं श्रीं क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड । शान्ति, क्रान्ति, जागृति प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ।। जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम । प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ।।
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहूनी ।। अक्षर चौबिस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ।। शाश्वत सतोगुणी सतरूपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ।। हंसारूढ़ सितम्बर धारी । स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी ।। पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ।। ध्यान धरत पुलकित हिय होई । सुख उपजत, दुःखदुरमतिखोई ।। कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अद्भुत माया ।। तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ।। सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ।। तुम्हरी महिमा पार न पावैं । जो शारद शत मुख गुन गावें ।। चार वेद की मातु पुनीता । तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ।। महामन्त्र जितने जग माहीं । कोऊ गायत्री सम नाहीं ।। सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविद्या नासै ।। सृष्टि बीज जग जननि भवानी । कालरात्रि वरदा कल्याणी ।। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ।। तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ।। महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जै जै जै त्रिपदा भय हारी ।। पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जग में आना ।। तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा ।। जानत तुमहिं तुमहि ह्वै जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ।। तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाईं । माता तुम सब ठौर समाईं ।। ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ।। सकल सृष्टि की प्राण विधाता । पालक, पोषक, नाशक, त्राता ।। मातेश्वरी दया व्रतधारी । तुम सन तरे पातकी भारी ।। जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ।। मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित ह्वै जावें ।। दारिद मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ।। गृह कलेश चित चिन्ता भारी । नासै गायत्री भय हारी ।। सन्तति हीन सुसन्तति पावें । सुख सम्पत्ति युत मोद मनावें ।। भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ।। जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ।। घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ।। जयति जयति जगदम्ब भवानी । तुम सम और दयालु न दानी ।। जो सदगुरु सों दीक्षा पावें । सो साधन को सफल बनावें ।। सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी । लहैं मनोरथ गृही विरागी ।। अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ।। ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, योगी । आरत, अर्थी, चिन्तित भोगी ।। जो जो शरण तुम्हारी आवैं । सो सो मन वांछित फल पावैं ।। बल, बुद्धि, विद्या, शील सुभाऊ । धन, वैभव, यश, तेज उछाऊ ।। सकल बढ़ें उपजें सुख नाना । जो यह पाठ करै धरि ध्याना ।। यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करै जो कोय । तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
।। आरती ।।
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता । आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री । दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री ।। ब्रह्म रूपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे । भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।। भय हारिणि भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी । अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ।। कामधेनु सतचित आनन्दा जय गंगा गीता । सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।। ऋग्, यजु, साम, अथर्व प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे । कुण्डलिनी सहस्रार, सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।। स्वाहा, स्वथा, शची, ब्रह्माणी, राधा रुद्राणी । जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला कल्याणी ।। जननी हम हैं दीन हीन, दुःख दारिद के घेरे । यदपि कुटिल कपटी कपूत, तऊ बालक हैं तेरे ।। स्नेह सनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै । बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ।। काम, क्रोध, मद लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये । शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।। तुम समर्थ सब भांति तारिणी, तुष्टि पुष्टि त्राता । सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता ।। जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
गायत्री सहस्रनाम का विज्ञान
गायत्री ईश्वरीय दिव्य शक्तियों का एक पुंज है। उस पुंज में कितनी शक्तियां निहित हैं, इसकी कोई संख्या नहीं बतायी जा सकती। उसके गर्भ में शक्तियों का भण्डार है। शास्त्रों में ‘सहस्र’ शब्द ‘अनन्त के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। यों मोटे अर्थ में तो सहस्र, एक हजार को कहते हैं, पर अन्यत्र अनन्त संख्या के लिये भी सहस्र शब्द प्रयुक्त होता है। ईश्वर की प्रार्थना है ‘सहस्र शीर्षा’ आदि। इस प्रार्थना में ईश्वर को सहस्र मस्तक और सहस्र हाथ, पांव, नेत्र आदि वाला बताया है। यहां उस सहस्र का तात्पर्य अनन्त दल हैं न कि एक हजार। ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनसे सहस्र का अर्थ अनन्त सिद्ध होता है। गायत्री की अनन्त शक्तियों में से मनुष्य को बहुत थोड़ी शक्तियों का अभी तक पता चला है और जिन शक्तियों का पता चला है उनमें से बहुत थोड़ी उपयोग में आई हैं। जो शक्तियां अब तक जानी जा चुकी हैं, समझी जा सकती हैं, उनकी संख्या लगभग एक हजार है। इन हजार शक्तियों के नाम उनके गुणों के अनुसार रखे गये हैं। उन हजार नामों का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में ‘गायत्री सहस्रनाम’ करके मिलता है। इन शक्तियों का जानना, समझना और पाठ करना इसलिये आवश्यक है कि हमें पता चलता रहता है कि इस शक्ति के पुंज के अन्दर क्या-क्या विशेषतायें छिपी हुई हैं और गायत्री की प्राप्ति के साथ-साथ हम किन-किन विशेषताओं को अपने में धारण करते हैं। यह पता चल जाने पर ही उनका उपयोग और प्रयोग हो सकता है। जब तक किसी वस्तु का गुण और महत्व न मालूम हो, उसकी शक्ति का परिचय न हो, तब तक उस वस्तु से लाभ नहीं उठाया जा सकता है। गायत्री में क्या-क्या शक्तियां हैं और उन शक्तियों का सहयोग पाने से हम क्या-क्या लाभ उठा सकते हैं, सहस्रनाम में यही परिचय कराया है। क्योंकि इन नामों पर भली प्रकार ध्यान देने से गायत्री की मर्यादा, शक्ति, प्रकृति उपयोगिता आदि का परिचय प्राप्त हो जाता है, यह परिचय उन लाभों की प्राप्ति का सोपान है। इस जानकारी के आधार पर साधक सोचता है कि गायत्री शक्ति की अमुक-अमुक विशेषतायें हैं, जिन्हें आवश्यकता या रुचि के अनुसार प्राप्त किया जा सकता है। यह पता चलने पर एक तो उसकी उपयोगिता की ओर ध्यान जाता है और जीवन को सर्वांगपूर्ण बनाने के उन लाभों का संग्रह करने की प्रवृत्ति बढ़ती है। साथ ही इस महातत्त्व की महिमा का पता चलता है कि यह इतनी असाधारण वस्तु है। किसी की महिमा, विशेषता था श्रेष्ठता का पता चलने पर ही उसके प्रति श्रद्धा की भावनायें उत्पन्न होती हैं। जो पारस के गुणों को जानता है, वही उसकी खोज करता है, प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, मिल जाने पर उसको सुरक्षित रखता है और उसका उपयोग करके समुचित लाभ उठाता है। जिसे यह सब मालूम न हो, पारस की विशेषताओं से परिचित न हो, तो उसके लिये यह पत्थर के मामूली टुकड़े से अधिक नहीं है। इसलिये सहस्रनाम का श्रद्धापूर्वक पाठ करने का शास्त्रों में बड़ा माहात्म्य बताया गया है। आइये श्रद्धापूर्वक गायत्री सहस्रनाम का पाठ करें और उसमें वर्णित नामों पर विचार करते हुए गायत्री की महिमा को समझें और उनसे लाभ उठाएं।
।। अथ गायत्री सहस्रनाम ।।
श्री नारायण उवाच— साधु-साधु महाप्राज्ञ सम्यक् पृष्टं त्वयाऽनघ । श्रृणु वक्ष्यामि यत्नेन गायत्र्यष्टसहस्रकम् । नाम्नां शुभानां दिव्यानां सर्वपापविनाशनम् ।।1।। सृष्ट्यादौ यद् भगवती पूर्वं प्रोक्तं ब्रवीमि ते । अष्टोत्तरसहस्रस्य ऋषिर्ब्रह्मा प्रकीर्त्तितः ।।2।। छन्दोऽनुष्टुप्तथा देवी गायत्रीं देवता स्मृता । हलो बीजानि तस्यैव स्वराः शक्तय ईरिताः ।।3।। अंगन्यासकरन्यासावुच्येते मातृकाक्षरैः । अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि साधकानां हिताय वै ।।4।। सूर्य्यमण्डलमध्यवासनिरतां श्वेतप्रभारञ्जिताम् । रक्त श्वेतहिरण्यनीलधवलैर्युक्तां कुमारीमिमाम् ।।5।। गायत्रीं कमलासनां करतलव्यानद्धकुण्डांबुजां । पद्माक्षीं च वरस्रजं च दधतीं हंसाधिरूढां भजे ।।6।। अचिंत्यलक्षणाव्यक्ताप्यर्थमातृमहेश्वरी । अमृतार्णवमध्यस्थाप्यजिता चापराजिता ।।7।। अणिमादिगुणाधाराप्यर्कमंडलसंस्थिता । अजरा ऽजाऽपरा धर्मा अक्षसूत्रधराऽधरा ।।8।। अकारादिक्षकारांताप्यरेषड्वर्गभेदिनी । अञ्जनाद्रिप्रतीकाशाप्यंजनाद्रिनिवासिनी ।।9।। अदितिश्चाजपा विद्याप्यरविन्दनिभेक्षणा । अन्तर्बहिः स्थिताऽविद्याध्वंसिनी चान्तरात्मिका ।।10।। अजा चाजमुखा वासाप्यविंदनिभानना । अर्द्धमात्रार्थदानज्ञाप्यरिमण्डलमर्दिनी ।।11।। असुरघ्नी ह्यमावास्याप्यलक्ष्मीघ्न्यत्यजार्चिता । आदिलक्ष्मीश्चादिशक्तिराकृतिश्चायतानना ।।12।। आदित्यपवीचाराप्यादित्यपरिसेविता । आचार्या वर्त्तनाचाराप्यादिमूर्तिनिवासिनी ।।13।। आग्नेयी चामरी चाद्या चाराध्या चासनस्थित । आधारनिलवाधारा चाकाशांतनिवासिनी ।।14।। आद्याक्षरसमायुक्ता चांतराकाशरूपिणी । आदित्यमण्डलगता चान्तरध्वांतनाशिनी ।।15।। इन्दिरा चेष्टदा चेष्टा चेंदीवरनिभेक्षणी । इरावती चेन्द्रपदा चेन्द्राणी चेन्दुरूपिणी ।।16।। इक्षुकोदण्डसंयुक्ता चेषुसन्धानकारिणी । इन्द्रनीलसमाकारा चेडापिंगलरूपिणी ।।17।। इन्द्राक्षी चेश्वरी देवी चेहात्रयविवर्जिता । उमा चोषा ह्युडुनिभा उर्वारुकफलानना ।।18।। उडुप्रभा चोडुमती ह्युडुपा ह्युडुमध्यगा । ऊर्ध्वा चाप्यूर्ध्वकेशी चाप्यूर्ध्वाधोगतिभेदिनी ।।19।। ऊर्ध्वबाहुप्रिया चोर्मिमाला वाग्ग्रन्थदायिनी । ऋतं चर्षिऋतुमती ऋषिदेवनभस्कृता ।।20।। ऋग्वेदा ऋणहर्त्री च ऋषिमण्डलचारिणी । ऋद्धिदा ऋजुमार्गस्था ऋजुधर्मा ऋतुजदा ।।2।। ऋग्वेदनिलया ऋज्वी लुप्तधर्म प्रवर्त्तिनी । लूतारिवरसम्भूता लूतादिविषहारिणी ।।22।। एकाक्षरा चैकमात्रा चैका चैकैकनिष्ठिता । ऐन्द्री सैरावतारूढा चैहिकामुष्मिकप्रदा ।।23।। ओंकारा ह्योषधी चोता चोतप्रोतनिवासिनी । और्वा ह्यौषधसम्पन्ना औपासनफलप्रदा ।।24।। अण्डमध्यस्थिता देवी चाः कारमनुरूपिणी । कात्यायनी कालरात्रिः कामाक्षी कामसुन्दरी ।।25।। कमला कामिनी कान्ता कामदा कलकंठिनी । करिकुम्भस्तनभरा करवीरसुवासिनी ।।26।। कल्याणी कुण्डलवती कुरुक्षेत्रनिवासिनी । कुरुविन्ददलाकारा कुण्डली कुमुदालया ।।27।। कालजिह्वा करालास्या कालिका कालरूपिणी । कमनीयगुणा कान्तिः कलाधारा कुमुद्वती ।।28।। कौशिकी कमलाकारा कामचारप्रभंजिनी । कौमारी करुणापांगी ककुबन्ता करिप्रिया ।।29।। केसरी केशवनुता कदम्ब कुसुमप्रिया । कालिन्दी कालिका कांची कलशोद्भवसंस्तुता ।।30।। काममाता क्रतुमती कामरूपा कृपावती । कुमारी कुण्डनिलया किराती करिवाहना ।।31।। कैकेयी कोकिलालापा केतकी कुसुमप्रिया । कमंडलुधरा काली कर्मनिर्मूलकारिणी ।।32।। कलहंसगतिः कक्षा कृतकौतुकमंगला । कस्तूरीतिलका कग्रा करीन्द्रगमना कुहूः ।।33।। कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया । कूटस्था कुधरा कग्रा कुक्षिस्थाखिलविष्टपा ।।34।। खड्ग खेटकरा खर्वा खेचरीखगवाहना । खट्वांगधारिणी ख्याता खगराजोपरिस्थिती ।।35।। खलघ्नी खंडितजरा खंडाख्यानप्रदायिनी । खंडेन्दुतिलका गंगा गणेशगुहपूजिता ।।36।। गायत्री गोमती गीता गान्धारी गानलोलुपा । गौतमी गामिनी गाधा गन्धर्वाप्सरसेविता ।।37।। मोविन्दचरणाक्रान्ता गुणत्रयविभाविता । गन्धर्वी गह्वरी गोत्रा गिरीशा गहनागमी ।।38।। गुहावासा गुणवती गुरुपापप्रणाशिनी । गुर्वी गुणवती गुह्या गोप्तव्या गुणदायिनी ।।39।। गिरिजा गुह्यमातंगी गरुडध्वजवल्लभा । गर्वापहारिणी गोदा गोकुलस्था गदाधरा ।।40।। गोकर्णनिलयासक्ता गुह्यमण्डलवर्त्तिनी । घर्मदा घनदा घण्टा घोरदानवमर्दिनी ।।41। घृणिमंत्रमयी घोषा घनसम्पातदायिनी । घण्टारवप्रिया घ्राणा घृणिसन्तुष्टकारिणी ।।42।। घनारिमण्डला घृर्णा घृताची घनवेगिनी । ज्ञानधातुमयी चर्चा चर्चिता चारुहासिनी ।।43।। चटुली चण्डिकाचित्राचित्रमाल्यविभूषिता । चतुर्भुजा चारुदन्ता चातुरी चरितप्रदा ।।44।। चूलिका चित्रवस्त्रान्ता चन्द्रमः कर्णकुण्डला । चन्द्रहासा चारुदार्त्री चकोरी चन्द्रहासिनी ।।45।। चन्द्रिका चन्द्रधात्री च चौरी चौरा च चण्डिका । चञ्चद्वाग्वादिनी चन्द्रचूडा चोरविनाशिनी ।।46।। चारुचन्दनलिप्तांगी चञ्चच्चामरवीजिता । चारुमध्या चारुगतिश्चन्दिला चन्द्ररूपिणी ।।47।। चारुहोमप्रिया चार्वा चरिता चक्रबाहुका । चन्द्रमंडलमध्यस्था चन्द्रमंडलदर्पणा ।।48।। चक्रवाकस्तनी चेष्टा चित्रा चारुविलासिनी । चित्स्वरूपा चन्द्रवती चन्द्रमाश्चन्दनप्रिया ।।49।। चोदयित्री चिरप्रज्ञाचातका चारुहेतुकी । छत्रयाता छत्रधरा छायाछन्दः परिच्छदा ।।50।। छायादेवी छिद्रनखा छन्नेन्द्रियविसर्पिणी । छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता छिद्रोपद्रवभेदिनी ।।51।। छेदा छत्रेश्वरी छिन्ना छुरिका छेदनप्रिया । जननी जन्मरहित जातवेदा जगन्मयी ।।52।। जाह्नवी जटिला जेत्री जरामरणवर्जिता । जम्बूद्वीपवती ज्वाला जयन्ती जलशालिनी ।।53।।
जितेन्द्रिया जितक्रोधी जितामित्रा जगत्प्रिया । जातरूपमयी जिह्वा जानकी जगतीजरा ।।54।। जनित्री जह्नुतनया जगत्त्रयहितैषिणी । ज्वालामुखी जपवती ज्वरघ्नी जितविष्टपा ।।55।। जिताक्रान्तमयी ज्वाला जाग्रती ज्वरदेवता । ज्वलन्ती जलदा ज्येष्ठा ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी ।।56।। जम्भिनी जृंभणा जृंभा ज्वलन्माणिक्यकुण्डला । झिंझिका झणनिर्घोषा झंझामारुतवेगिनी ।।57।। झल्लरीवाद्यकुशला ञरूपा ञभुजा स्मृता । टंकबाणसमायुक्ता टंकिनी टंकभेदिनी ।।58।। टंकीगणकृताघोषा टंकनीयमहोरसा । टंकारकारिणी देवी ठठशब्दनिनादिनी ।।59।। डामरी डाकिनी डिंभा डुंडमारैकनिर्जिता । डामरीतन्त्रमार्गस्था डमड्डमरुनादिनी ।।60।। डिण्डीरवसहा डिम्भलसत्क्रीडापरायणा । ढुंढिविघ्नेशजननी ढक्काहस्ता ढिलिव्रजा ।।61।। नित्यज्ञाना निरुपमा निर्गुणा नर्मदा नदी । त्रिगुणा त्रिपदा तन्त्री तुलसी तरुणातरः ।।62।। त्रिविक्रमपदाक्रान्ता तुरीयपदगामिनी । तरुणादित्यसंकाशा तामसी तुहिनातुरा ।।63।। त्रिकालज्ञानसम्पन्ना त्रिवली च त्रिलोचना । त्रिशक्तिस्त्रिपुरा तुंगा तुरंगवदना तथा ।।64।। तिमिंगिलगिला तीव्रा त्रिस्रोता तामसादिनी । तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञ तनुमध्या त्रिविष्टपा ।।65।। त्रिसन्ध्या त्रिस्तनी तोषासंस्था तालप्रतापिनी । ताटंकिनी तुषाराभा तुहिनाचलवासिनी ।।66।। तन्तुजालसमायुक्ता तारहारावलिप्रिया । तिलहोमप्रिया तीर्थातमालकुसुमाकृतिः ।।67।। तारका त्रियुता तन्वी त्रिशंकुपरिवारिता । तलोदरी तिलोभूषा ताटंक प्रियवादिनी ।।68।। त्रिजटा तित्तिरी तृष्णा त्रिविधा तरुणाकृतिः । तप्तकांचनसंकाशा तप्तकांचनभूषणा ।।69।। त्रैयम्बका त्रिवर्णा च त्रिकालज्ञानदायिनी । तर्पणा तृप्तिदा तृप्ता तामसी तुम्बुरुस्तुता ।।70।। तार्क्ष्यस्था त्रिगुणाकारा त्रिभंगी तनुवल्लरिः । थात्कारी थारवा थांता दोहिनी दीनवत्सला ।।71।। दानवान्तकरी दुर्गा दुर्गासुरनिबर्हिणी । देवरीतिर्दिवारात्रिर्द्रौपदी दुन्दुभिस्वना ।।72।। देवयानी दुरावासा दारिद्र्यभेदिनी दिवा । दामोदरप्रिया दीप्ता दिग्वासा दिग्विमोहिनी ।।73।। दण्डकारण्यनिलया दण्डिनी देवपूजिता । देववन्द्या दिविषदा द्वेषिणी दानवाकृतिः ।।74।। दीनानाथस्तुता दीक्षा दैवतादिस्वरूपिणी । धात्री धनुर्धुरा धेनुर्धारिणी धर्मचारिणी ।।75।। धुरन्धरा धराधारा धनदा धान्यदोहिनी । धर्मशीला धनाध्यक्षा धनुर्वेदविशारदा ।।76।। धृतिर्धन्या धृतपदा धर्मराजप्रिया ध्रुवा । धूमावती धूमकेशी धर्मशास्त्रप्रकाशिनी ।।77।। नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता नन्दनात्मिका । नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया ।।78।। नारायणप्रिया नित्या निर्मला निर्गुणा निधिः । निराधारानिरुपमा नित्यशुद्धा निरंजन ।।79।। नादबिन्दुकलातीता नादबिन्दुकलात्मिका । नृसिंहिनी नगधरा नृपनागविभूषिता ।।80।। नरकक्लेशशमनी नारायणपदोद्भवा । निरवद्या निराकारा नारदप्रियकारिणी ।।81।। नानाज्योतिः समाख्याता निधिदा निर्मलात्मिका । नवसूत्रधरा नीतिर्निरुपद्रवकारिणी ।।82।। नन्दजी नवरत्नाढ्या नैमिषारण्यवासिनी । नवनीतिप्रिया नारी नीलजीमूतनिःस्वना ।।83।। निमेषिणी नदीरूपा नीलग्रीवा निशीश्वरी । नामावलिर्निशुम्भघ्नी नागलोकनिवासिनी ।।84।। नवजाम्बूनदप्रख्या नागलोकाधिदेवता । नूपुराक्रांतचरणा नरचित्त प्रमोदिनी ।।85।। निमग्नारक्तनयना निर्घातसमनिस्वना । नन्दनोद्याननिलया निर्व्यूहोपरिचारिणी ।।86।। पार्वती परमोदारा परब्रह्मात्मिका परा । पञ्चकोश विनिर्मुक्ता पंचपातकनाशिनी ।।87।। परचित्तविधानज्ञा पंचिका पंचरूपिणी । पूर्णिमा परमा प्रीतिः परतेजः प्रकाशिनी ।।88।। पुराणी पौरुषी पुण्या पुण्डरीकनिभेक्षणा । पातालतलनिर्मग्ना प्रीता प्रीतिविवर्धिनी ।।89।। पावनी पादसहिता पेशला पवनाशिनी । प्रजापतिः परिश्रान्ता पर्वतस्तनमण्डला ।।90।। पद्मप्रिया पद्मसंस्था पद्माक्षी पद्मसम्भवा । पद्मपत्रा पद्मपदा पद्मिनी प्रियभाषिणी ।।91।। पशुपाशविनिर्मुक्ता पुरन्ध्री पुरवासिनी । पुष्कला पुरुषा पर्वा पारिजातसुमप्रियः ।।92।। पतिव्रता पवित्रांगी पुष्पहासपरायणा । प्रज्ञावती सुता पौत्री पुत्रपूज्या पयस्विनी ।।93।। पट्टिपाशधरा पंक्तिः पितृलोकप्रदायिनी । पुराणी पुण्यशीला च प्रणतार्त्ति विनाशिनी ।।94।। प्रद्युम्नजननी पुष्टा पितामह परिग्रहा । पुण्डरीकपुरावासा पुण्डरीकसमानना ।।95।। पृथुजंघा पृथुभुजा पृथुपादा पृथूदरी । प्रवालशोभा पिंगाक्षी पीतवासाः प्रचापला ।।96।। प्रसवा पुष्टिदा पुण्या प्रतिष्ठा प्रणवागतिः । पंचवर्णा पंचवाणी पंचिका पंजरस्थिता ।।97।। परमाया परज्योतिः परप्रीतिः परागतिः । पराकाष्ठा परेशानी पाविनी पावकद्युतिः ।।98।। पुण्यप्रदा परिच्छेद्या पुष्पहासा पृथूदरी । पीतांगी पीतवसना पीतशय्या पिशाचिनी ।।99।। पीतक्रिया पिशाचघ्नी पाटलाक्षी पटुक्रिया । पंचभक्षप्रियाचारा पूतना प्राणघातिनी ।।100।। पुन्नागवनमध्यस्था पुण्यतीर्थनिषेविता । पंचांगी च पराशक्तिः परमाहलादकारिणी ।।101।। पुष्पकांडस्थिता पूषा पोषिताखिलविष्टपा । पानप्रिया पंचशिखा पन्नगोपरिशायिनी ।।102।। पंचमात्रात्मिका पृथ्वी पथिका पृथुदोहिनी । पुराणान्यायमीमांसा पाटली पुष्पगन्धिनी ।।103।। पुण्यप्रजा पारदात्री परमार्गैकगोचरा- प्रवालशोभा पूर्णाशा प्रणवा पल्लवोदरी ।।104।। फलिनी फलदा फल्गुः फूत्कारी फलकाकृतिः । फणीन्द्रभोगशयना फणिमंडलमंडिता ।।105।। बालबाला बहुमता बालातपनिभांशुका । बलभद्रप्रिया वन्द्या वडवा बुद्धिसंस्तुता ।।106।। बन्दी देवी बिलवती बडिशघ्नी बलिप्रिया । बांधवी बोधिता बुद्धिर्बन्धूककुसुमप्रिया ।।107।। बालभानुप्रभाकारा ब्राह्मी ब्राह्मणदेवता । बृहस्पतिस्तुता वृन्दा वृन्दावनविहारिणी ।।108।। बलाकिनी बिलाहारा बिलावासा बहूदका । बहुनेत्रा बहुपदा बहुकर्णावतंसिका ।।109।। बहुबाहुयुता बीजरूपिणी बहुरूपिणी । बिन्दुनादकलातीता बिन्दुनादस्वरूपिणी ।।110।। बद्धगोधांगुलित्राणा बदर्याश्रमवासिनी । बृन्दारका बृहत्स्कन्धा बृहती बाणपातिनी ।।111।। बृन्दाध्यक्षा बहुनुता बनिता बहुविक्रमा । बद्धपद्मासनासीना बिल्वपत्रतलस्थिता ।।112।। बोधिद्रुमनिजावासा बडिस्था बिन्दुदर्पणा । बाला बाणासनवती बडवानलवेगिनी ।।113।। ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था ब्रह्मकंकणसूत्रिणी । भवानी भीषणवती भाविनी भयहारिणी ।।114।। भद्रकाली भुजंगाक्षी भारती भारताशया । भैरवी भीषणाकारा भूतिदा भूतिमालिनी ।।115।। भामिनी भोगनिरता भद्रदा भूरिविक्रमा । भूतावासा भृगुलता भार्गवी भूसुरार्चिता ।।116।। भागीरथी भोगवती भवनस्था भिषश्वरी । भामिनी भोगिनी भाषा भवानी भूरिदक्षिणा ।।117।। भर्गात्मिका भीमवती भवबन्ध-विमोचिनी । भजनीया भूतधात्री भञ्जिता भुवनेश्वरी ।।118।। भुजंगवलय भीमा भेरुण्डा भागधेयिनी । माता माया मधुमती मधुजिह्वा मधुप्रिया ।।119।। महादेवी महाभागा मालिनी मीनलोचना । मायातीता मधुमती मधुमासा मधुद्रवा ।।120।। मानवी मधुसम्भूता मिथिलापुरवासिनी । मधुकैटभसंहर्त्री मेदिनी मेघमालिनी ।।121।। मन्दोदरी महामाया मैथिली मसृणप्रिया । महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या महेश्वरी ।।122।। माऽहेन्द्री मेरुतनया मन्दारकुसुमार्चिता । मञ्जुमञ्जीरचरणा मोक्षदा मंजुभाषिणी ।।123।। मधुरद्राविणी मुद्रा मलया मलयान्विता । मेधा मरकतश्यामा मागधी मेनकात्मजा ।।124।। महामारी महावीरा महाश्यामा मनुस्तुता । मातृका मिहिराभासा मुकुन्दपदविक्रमा ।।125।। मूलाधारस्थिता मुग्धा मणिपूरकवासिनी । मृगाक्षी महिषारूढा महिषासुरमर्दिनी ।।126।। योगासना योगगम्या योगा यौवनकाश्रया । यौवनी युद्धमध्यस्था यमुना युगधारिणी ।।127।। यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी । यात्रा यानविधानज्ञा वदुवंशसमुद्भवा ।।128।। यकारादिहकारान्ता यजुषी यज्ञरूपिणी । यामिनी योगनिरता यातुधाने-भयंकरी ।।129।। रुक्मिणी रमणी रामा रेवती रेणुका रतिः । रौद्री रौद्रप्रियाकारा राममाता रतिप्रिया ।।130।। रोहिणी राज्यदा रेवा रमा राजीवलोचना । राकेशी रूपसम्पन्ना रत्नसिंहासनस्थिता ।।139।। रक्तमाल्यांबरधरा रक्तगन्धानुलेपना । राजहंससमारूढा रम्भा रक्तबलिप्रिया ।।132।। रमणीययुगाधारा राजिताखिलभूतला । रुरुचर्मपरीधाना रथिनी रत्नमालिका ।।133।। रोगेशी रोगशमनी राविणी रोमहर्षिणी । रामचन्द्रपदाक्रान्ता रावणच्छेदकारिणी ।।134।। रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना रथस्था रुक्मभूषणा । लज्जाधिदेवता लोला ललिता लिंगधारिणी ।।135।। लक्ष्मीर्लोला लुप्तविषा लोकिनी लोकविश्रुता । लज्जा लम्बोदरीदेवी ललना लोकधारिणी ।।136।। वरदा वन्दिता विद्या वैष्णवी विमलाकृतिः । वाराही विरजा वर्षा वरलक्ष्मीर्विलासिनी ।।137।। विनता व्योममध्यस्था वारिजासनसंस्थिता । वारुणी वेणुसम्भूता वीतिहोत्रा विरूपिणी ।।138।। वायुमण्डलमध्यस्था विष्णुरूपा विधिप्रिया । विष्णुपत्नी विष्णुमती विशालाक्षी वसुन्धरा ।।139।। वामदेवप्रिया वेला वज्रिणी वसुदोहिनी । वेदाक्षरपरीतांगी वाजपेयफलप्रदा ।।140।। वासवी वामजननी वैकुण्ठनिलयावरा । व्यासप्रिया वर्मधरा वाल्मीकिपरिसेविता ।।141।। शाकम्भरी शिवा शान्ता शारदा शरणागतिः । शातोदरी शुभाचारा शुम्भासुर विमर्दिनी ।।142।। शोभावती शिवाकारा शंकरार्धशरीरिणी । शोणाशुभाशयाशुभ्राशिरःसन्धानकारिणी ।।143।। शरावती शरानन्दा शरज्ज्योत्स्ना शुभानना । शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना ।।144।। श्रीमती श्रीधरानन्दा श्रवणानन्ददायिनी । शर्वाणी शर्वरीवन्द्या षड्भाषा षड्ऋतुप्रिया ।।145।। षडाधारस्थिता देवी षण्मुखप्रियकारिणी । षडंगरूपसुमतिः सुरासुरनमस्कृता ।।146।। सरस्वती सदाधारा सर्वमंगलकारिणी । सामगानप्रिया सूक्ष्मा सावित्री सामसम्भवा ।।147।। सर्ववासा सदानन्दा सुस्तनी सागराम्बरा । सर्वैश्वर्य्यप्रिया सिद्धिः साधुबन्धुपराक्रमा ।।148।। सप्तर्षिमंडलगता सोममंडलवासिनी । सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ।।149।। सर्वोत्तुंगा संगहीना सद्गुणा सकलेष्टदा । सरघा सूर्यतनया सुकेशी सोमसंहतिः ।।150।। हिरण्यवर्णा हरिणी ह्रींकारी हंसवाहिनी । क्षौमवस्त्रपरीतांगी क्षीराब्धितनया क्षमा ।।151।। गायत्री चैव सावित्री पार्वती च सरस्वती । वेदगर्भा वरारोहा श्री गायत्री पराम्बिका ।।152।। इति साहस्रकं नाम्नां गायत्र्याश्चैव नारद । पुण्यदं सर्वपापघ्नं महासम्पत्तिदायकम् ।।153।। एवं नामानि गायत्र्यास्तोषोत्पत्तिकराणि हि । अष्टम्यां च विशेषेण पठितव्यं द्विजैः सह ।।154।। जपं कृत्वा होमपूजां ध्यानं कृत्वा विशेषतः । यस्मै कस्मै न दातव्यं गायत्र्यास्तु विशेषतः ।।155।। सुभक्ताय सुशिष्याय वक्तव्यं भूसुराय वै । भ्रष्टेभ्यः साधकेभ्वश्च बान्धवेभ्यो न दर्शयेत् ।।156।। यद्गृहे लिखित शास्त्रं भयं तस्य न कस्यचित् । चंचलापि स्थिरा भूत्वा कमला तत्र तिष्ठति ।।157।। इदं रहस्यं परमं गुह्याद् गुह्यतरं महत् । पुण्यप्रदं मनुष्याणां दरिद्राणां निधिप्रदम् ।।158।। मोक्षप्रदं मुमुक्षूणां कामिनी सर्वकामदम् । रोगाद्विमुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।।159।। ब्रह्महत्यासुरापानसुवर्णस्तेयिनो नराः । गुरुतल्पगतो वापि पातकान्मुच्यते सकृत् ।।160।। असत्प्रतिग्रहाच्चैवाभक्ष्यभक्षाद्विशेषतः । पाखण्डानृतमुख्येभ्यः पठनादेव मुच्यते ।।161।। इदं रहस्यममलं प्रयोक्तं पद्मजोद्भव । ब्रह्मसायुज्यदं नृणां सत्यं सत्यं न संशयः ।।162।।
।। इति गायत्री सहस्रनाम ।।
गायत्री के सहस्र नामों में प्रत्येक नाम बड़ा ही रहस्यमय है। उसमें सूत्र रूप से गायत्री की शक्तियों का परिचय, इतिहास एवं विज्ञान छिपा हुआ है। मोटी दृष्टि से देखने में यह नाम साधारण मालूम होते हैं, पर यदि सूक्ष्म दृष्टि से विवेचन किया जाए, तो प्रत्येक नाम में से बड़े से बड़े रहस्यों का उद्घाटन होता है। यदि एक-एक नाम की व्याख्या और विवेचना की जाए, तो उन तत्वों का उद्घाटन होगा, जिनको समझने के लिये वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास, दर्शन, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, स्मृति, नीति, संहिता एवं सूत्र ग्रन्थों की रचना हुई है। प्रत्येक नाम की विशद व्याख्या करना इस छोटे ग्रन्थ में सम्भव नहीं है, कभी सुयोग मिला और माता की प्रेरणा हुई तो इन सहस्र नामों में से एक-एक का सुविस्तृत विवेचन करेंगे। तब सर्वसाधारण के लिये यह जानना सुगम होगा कि आद्यशक्ति गायत्री की रूपरेखा, गतिविधि, प्रक्रिया, उपयोगिता, महत्ता, वैज्ञानिकता एवं वास्तविकता क्या है? यह नाम गायत्री के गुण, इतिहास और विज्ञान का रहस्योद्घाटन करने के अतिरिक्त अनेक प्रकार की दक्षिणमार्गी एवं वाममार्गी साधनाओं की भी शिक्षा देते हैं। अंगुलि निर्देश, संकेत, सूक्ष्म एवं बीज रूप में इन सहस्र नामों के अन्तर्गत गायत्री विद्या का अनन्त भण्डार भरा हुआ है। गायत्री के ऋषि, छन्द और देवता
कुर्यादन्यन्न वा कुर्यादनुष्ठानादिकं तथा । गायत्रीमात्रनिष्ठस्तु कृतकृत्यो भवेद् द्विजः ।।
श्री नारायण बोले—‘‘चाहे अनुष्ठानादिक करे या न करे, पर गायत्री मात्र के जप में निष्ठा रखने वाला ब्राह्मण कृतकृत्य हो जाता है।’’
संध्यासु चार्घ्यदानं च गायत्रीजपमेव च । सहस्रत्रितयं कुर्वन्सुरैः पूज्यो भवेन्मुने ।। —दे. भा. 12/1/8 ‘‘तीनों सन्ध्याओं में अर्घ्य दे और प्रत्येक सन्ध्या में तीन हजार गायत्री जप करे, तो हे मुने! वह मनुष्य देवताओं द्वारा भी पूज्य हो जाता है।’’ न्यासान् करोतु वा मा वा गायत्रीमेव चाभ्यसेत् । ध्यात्वा निर्व्याजया वृत्त्या सच्चिदानन्दरूपिणीम् ।। —देवी. 12.1.10 ‘‘न्यास, करे या न करे, निर्व्याज भक्ति में सच्चिदानन्द रूपिणी भगवती का ध्यान करके गायत्री का अभ्यास करे।’’
यदक्षरैकसंसिद्धेः स्पर्धते ब्राह्मणोत्तमः । हरिशंकरकंजोत्थ सूर्यचन्द्रहुताशनैः ।। —देवी. 12.1.11 जो सच्चा ब्राह्मण गायत्री के एक अक्षर की भी सिद्धि कर लेता है, उसकी स्पर्धा हरि, शंकर, ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि से होने लगती है।’’
अथातः श्रूयतां ब्रह्मन्वर्णऋष्यादिकांस्तथा । छन्दांसि देवतास्तद्वत् क्रमात्तत्त्वानि चैव हि ।। —दैवी 12.1.12
‘‘है ब्रह्मन्! अब गायत्री के चौबीस वर्णों के ऋषि, छन्द, देवता आदि को क्रम से कहते हैं।’’
वामदेवोऽत्रिर्वसिष्ठः शुक्रः कण्वः पराशरः । विश्वामित्रो महातेजाः कपिलः शौनको महान् ।। याज्ञवल्क्यो भरद्वाजो जमदग्निस्तपोनिधिः । गौतमो मुद्गलश्चैव वेदव्यासश्च लोमशः । अगस्त्यः कौशिको वत्सः पुलस्त्यो मांडुकस्तथा । दुर्वासास्तपसां श्रेष्ठो नारदः कश्यपस्तथा । —देवी. 12.1.13-15 ‘‘गायत्री के ऋषि ये हैं—वामदेव, अत्रि, वसिष्ठ शुक्र, कण्व, पराशर, महातेजस्वी विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, जमदग्नि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्त्य, कौशिक, वत्स, पुलस्त्य, माण्डूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप।’’
इत्येते ऋषयः प्रोक्ता वर्णानां क्रमशो मुने । गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् च बृहती पंक्तिरेव च ।। त्रिष्टुभं जगती चैव तथाऽतिजगती मता । शक्वर्यतिशक्वरी च धृतिश्चातिधृतिस्तथा ।। विराट् प्रस्तारपंक्तिश्च कृतिः प्रकृतिराकृतिः । विकृतिः संकृतिश्चैवाक्षर पंक्तिस्तथैव च ।। भूर्भुवः स्वरितिच्छन्दस्तथा ज्योतिष्मती स्मृतम् । इत्येतानि च छंदांसि कीर्तितानि महामुने ।। —देवी. 12.1.17-19
‘‘हे नारद जी! गायत्री के ऋषियों के पश्चात् अब उसके छन्दों को सुनिये—
गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहता, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, अतिजगती, शक्वरी, अतिशक्वरी, धृति, अतिधृति, विराट् प्रस्तार-पंक्ति, कृति, प्रकृति, आकृति, विकृति, संस्कृति, अक्षरपंक्ति, भू, भुवः, स्वः और ज्योतिष्मती ये 24 छन्द क्रम से कहे हैं।’’
दैवतानि श्रृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वशः । आग्नेयं प्रथमं प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम् ।। तृतीयं च तथा सौम्यमीशानं च चतुर्थकम् । सावित्रं पञ्चमं प्रोक्तं षष्ठमादित्य दैवतम् ।। बार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैत्रावरुणमष्टमम् । नवमं भगदैवत्यं दशमं चार्यमेश्वरम् ।। गणेशमेकादशकं त्वाष्ट्रं द्वादशकं स्मृतम् । पौष्णं त्रयोदशं प्रोक्तमैंद्राग्नं च चतुर्दशम् ।। वायव्यं पंचदशकं वामदेव्यं च षोडशम् । मैत्रावरुणिदेवत्यं प्रोक्तं सप्तदशाक्षरम् ।। अष्टादशं वैश्वदेवमूनविंशं तु मातृकम् । वैष्णवं विंशतितमं वसुदैवतमीरितम् ।। एकविंशतिसंख्याकं द्वाविंशं रुद्रदैवतम् ।। त्रयोविंशं च कौबेरमाश्विनं तत्त्वसंख्यकम् । चतुर्विंशतिवर्णानां देवतानां च संग्रहः । कथित परमश्रेष्ठो महापापैकशोधनः । यदाकर्णनमात्रेण सांगं जाप्यफलं मुने ।। —दे. भा. 12.1.20-27
‘‘अब क्रम से सब अक्षरों के देवता बतलाते हैं—प्रथम के अग्नि, द्वितीय के प्रजापति, तृतीय के सोम, चतुर्थ के ईशान, पंचम के सविता, षष्ठ के आदित्य, सप्तम के बृहस्पति, अष्टम के मैत्रावरुणि, नवम के भग, दशम के अर्यमा, एकादश के गणेश, द्वादश के त्वष्ट्रा, त्रयोदश के पूषा, चतुर्दश के इन्द्राग्नी, पंचदश के वायु, षोडश के वामदेव, सप्तदश के मैत्रावरुणि,अष्टादश के विश्वदेवा, उन्नीसवें के मातृका, बीसवें के विष्णु, इक्कीसवें के वसु, बाईसवें के रुद्र, तेईसवें के कुबेर, चौबीसवें के अश्विनी कुमार—ये चौबीस वर्णों के देवता कहे गये हैं, जो परम श्रेष्ठ और महापाप के दूर करने वाले हैं, जिनके श्रवण मात्र से ही सांग जप का फल प्राप्त होता है।’’
आदिशक्ते जगन्मातर्भक्तानुग्रहकारिणि । सर्वत्रव्यापिकेऽनन्ते श्रीसंध्ये वै नमोऽस्तु ते ।। —दे. भा. 12.5.2 ‘‘हे आदि शक्ति, जगन्माता, भक्तों पर अनुग्रह करने वाली, सर्वत्र व्यापक अनन्ता, श्री सन्ध्या तुम्हारे लिये नमस्कार है।’’
त्वमेव सन्ध्या गायत्री सावित्री च सरस्वती । ब्राह्मी च वैष्णवी रौद्री रक्ता श्वेता सितेतरा ।। —दे. भा. 12.5.3‘‘सन्ध्या, गायत्री, सावित्री, सरस्वती, ब्राह्मी, वैष्णवी, रौद्रा, रक्ता, श्वेता, कृष्णा तुम्हीं हो।’’
प्रातर्बाला च मध्याह्ने यौवनस्था भवेत् पुनः । वृद्धा सायं भगवती चिन्त्यते मुनिभिः सदा ।। —दे. भा. 12.5.4 ‘‘प्रातःकाल बालस्वरूपिणी, मध्याह्न में युवती और सायंकाल में वृद्धा भगवती का मुनिगण ध्यान करते हैं।’’ हंसस्था गरुडारूढा तथा वृषभवाहिनी । ऋग्वेदाध्यायिनी भूमौ दृश्यते या तपस्विभिः ।। —दे. भा. 12.5.5
‘‘ब्राह्मी, हंसारूढ़ा, सावित्री वृषभवाहिनी और सरस्वती गरुड़ारूढ़ा है। इनमें से ब्राह्मी ऋग्वेदाध्यायिनी, भूमितल में तपस्वियों द्वारा देखी जाती है।’’
यजुर्वेदं पठंती च अंतरिक्षे विराजते । सा सामगापि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि ।। —12.5.6
‘‘सरस्वती यजुर्वेद पढ़ती हुई, अन्तरिक्ष में विराजमान होती हैं और सावित्री सामवेद गाती हुई, पृथ्वी तल पर सर्वजनों में रमती हैं।’’ रुद्रलोकं गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी । त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी ।। —12.5.7 ‘‘सावित्री रुद्रलोक में, सरस्वती विष्णु लोक में और ब्राह्मी ब्रह्मलोक में विराजमान रहती हैं—ये सब प्राणियों पर कृपा करने वाली हैं।’’