Books - हमारी युग निर्माण योजना
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Language: HINDI
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बौद्धिक क्रान्ति की तैयारी
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मनुष्य शरीर में विचार ही प्रधान हैं। भावनाओं के अनुरूप ही मनुष्य का व्यक्तित्व उठता-गिरता है। वैयक्तिक जीवन की समस्त असुविधाओं और कुण्ठाओं का प्रधान कारण विचारणा का दोषयुक्त होना ही होता है। सामाजिक समस्याएं और कठिनाइयां भी जन-मानस के नीचे-ऊंचे होने पर ही उलझती-सुलझती हैं। नव-निर्माण का आधार भी विचार स्तर को ऊंचा उठाया जाना ही हो सकता है। ज्ञान से ही मुक्ति मिलती है। विवेक से ही कल्याण होता है। भावना से ही यह जड़, जगत, चेतन, ब्रह्म का मंगलमय स्वरूप परिलक्षित होने लगता है।
धरती पर स्वर्ग का अवतरण—नव-युग का आगमन बौद्धिक क्रान्ति के द्वारा ही सम्भव होगा। जन-समाज की विचारधारा को आकांक्षाओं और आदर्शों को बदल देने से युग परिवर्तन स्वयमेव उपस्थित हो जाता है। भौतिकवाद से मुंह मोड़कर यदि हम आध्यात्मिक आदर्शों को अपनालें तो मनुष्य की स्थिति देवताओं जैसी दिव्य बन सकती है और वह हर घड़ी स्वर्गीय सुख का आनंद लेता रह सकता है।
बौद्धिक क्रान्ति के लिए (1) लेखनी (2) वाणी और (3) प्रक्रिया के तीन ही माध्यम होते हैं। युग-निर्माण योजना अपने साधनों के अनुरूप इन तीनों ही माध्यमों को कार्यान्वित कर रही है। ‘‘अखण्ड-ज्योति’’ मासिक पत्रिका विचार क्रान्ति के सारे ढांचे प्रस्तुत करती रहती है और ‘‘युग-निर्माण योजना’’ पाक्षिक के द्वारा उन विचारों को कार्यान्वित किये जाने का व्यवहारिक मार्ग दर्शन होता रहता है। सिद्धान्त और कार्यक्रम—थ्योरी और प्रेक्टिस—का प्रयोजन यह दोनों पत्रिकाएं जिस सुन्दर ढंग से पूर्ण कर रही हैं उससे लाखों व्यक्ति चमत्कृत, प्रभावित, उत्साहित और कर्मरत हुए हैं। इन्हें नियमित रूप से पढ़ने वाले ही योजना के सदस्य होते हैं। इन दो उपकरणों के माध्यम से उनका व्यक्तित्व एवं मानसिक स्तर इतना ऊंचा उठा है कि उसे देखते हुए हमें प्रस्तुत योजना बना डालने और उसे उसकी सफलता पर पूर्ण विश्वास करने का साहस हो सकता है। नव-निर्माण की दिशा में यह दो माध्यम ऐतिहासिक भूमिका उपस्थित कर रहे हैं। एक शब्द में यों भी कहा जा सकता है कि योजना शरीर के अन्तर्गत श्वास प्रश्वास की क्रिया इन्हीं दो नासारंध्रों से होती है। इन्हें ही उसका जीवन प्राण एवं मेरुदण्ड कहना चाहिये। इन्हीं से पाठकों का यह परिवार बना है। उन्हीं को सदस्य मानकर शाखा संगठनों के आगे बढ़ाया जा रहा है।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप विशुद्ध अध्यात्मदर्शन की रूप रेखा प्रस्तुत करने के लिये आर्ष ग्रन्थों को सर्वसुलभ बनाने की आवश्यकता अनुभव हुई। उसकी पूर्ति के लिये चारों वेदों का सायण भाष्य के आधार पर हिन्दी अनुवाद किया गया और उसे सर्वसुलभ मूल्य पर छापा गया। उसी प्रकार 108 उपनिषदों का भाष्य तीन बड़ी जिल्दों में और छह को दर्शनों का विस्तृत भाष्य छह जिल्दों में प्रस्तुत करके उसे प्रकाशित कराया गया। अब गीता का एक विश्व कोष तैयार किया जा रहा है जो 18 बड़ी-बड़ी जिल्दों में प्रकाशित होगा। इसमें संसार भर के समस्त गीता भाष्यों का समावेश तथा उनमें दीखने वाली उलझनों का विस्तृत समाधान होगा। यह ग्रन्थ इस दृष्टि से इन पंक्तियों के लेखक ने विगत 65 वर्षों के निरन्तर श्रम से प्रस्तुत किया है ताकि बौद्धिक क्रान्ति तथा सामाजिक क्रान्ति की अपनी योजना को भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार मात्र सिद्ध किया जा सके।
युग-निर्माण विचार धारा को स्थायी साहित्य का रूप देने के लिये सर्व साधारण के उपयुक्त ‘युग-निर्माण पुस्तक माला’ प्रकाशित की जा रही है। हर वर्ष की प्रकाशित पुस्तकों का विज्ञापन प्रायः पुस्तक के अन्तिम टाइटिल पृष्ठ पर छपा होता है। आगे भी प्रयत्नपूर्वक बौद्धिक क्रान्ति का प्रयोजन पूर्ण करने वाला साहित्य छपता रहेगा। प्रयत्न यह किया जा रहा है कि उठते हुए राष्ट्र की बौद्धिक भूख बुझाने के लिए अनेक संस्थानों द्वारा अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार का प्रकाशन बहुत बड़े पैमाने पर होने लगे। हर शाखा में युग-निर्माण पुस्तकालय स्थापित किए जा रहे हैं। जहां से निःशुल्क घर-घर पुस्तकें पहुंचाने और वापिस लाने की प्रक्रिया आरम्भ करके जन मानस को अभीष्ट दिशा में ढाला जा सके।
पिछले दिनों मथुरा गायत्री तपोभूमि में दो प्रकार के शिक्षण शिविरों की योजनाएं चलती रही हैं। (1) संजीवन विद्या शिविर। (2) गीता प्रशिक्षण शिविर। दोनों ही एक-एक महीने के लिये होते रहे किस महीने में कौन शिविर होगा इसकी सूचनाएं समय-समय पर अखण्ड ज्योति में छपती रहती थी। इन दोनों शिविरों की रूप रेखा आगे दी जा रही है।
धरती पर स्वर्ग का अवतरण—नव-युग का आगमन बौद्धिक क्रान्ति के द्वारा ही सम्भव होगा। जन-समाज की विचारधारा को आकांक्षाओं और आदर्शों को बदल देने से युग परिवर्तन स्वयमेव उपस्थित हो जाता है। भौतिकवाद से मुंह मोड़कर यदि हम आध्यात्मिक आदर्शों को अपनालें तो मनुष्य की स्थिति देवताओं जैसी दिव्य बन सकती है और वह हर घड़ी स्वर्गीय सुख का आनंद लेता रह सकता है।
बौद्धिक क्रान्ति के लिए (1) लेखनी (2) वाणी और (3) प्रक्रिया के तीन ही माध्यम होते हैं। युग-निर्माण योजना अपने साधनों के अनुरूप इन तीनों ही माध्यमों को कार्यान्वित कर रही है। ‘‘अखण्ड-ज्योति’’ मासिक पत्रिका विचार क्रान्ति के सारे ढांचे प्रस्तुत करती रहती है और ‘‘युग-निर्माण योजना’’ पाक्षिक के द्वारा उन विचारों को कार्यान्वित किये जाने का व्यवहारिक मार्ग दर्शन होता रहता है। सिद्धान्त और कार्यक्रम—थ्योरी और प्रेक्टिस—का प्रयोजन यह दोनों पत्रिकाएं जिस सुन्दर ढंग से पूर्ण कर रही हैं उससे लाखों व्यक्ति चमत्कृत, प्रभावित, उत्साहित और कर्मरत हुए हैं। इन्हें नियमित रूप से पढ़ने वाले ही योजना के सदस्य होते हैं। इन दो उपकरणों के माध्यम से उनका व्यक्तित्व एवं मानसिक स्तर इतना ऊंचा उठा है कि उसे देखते हुए हमें प्रस्तुत योजना बना डालने और उसे उसकी सफलता पर पूर्ण विश्वास करने का साहस हो सकता है। नव-निर्माण की दिशा में यह दो माध्यम ऐतिहासिक भूमिका उपस्थित कर रहे हैं। एक शब्द में यों भी कहा जा सकता है कि योजना शरीर के अन्तर्गत श्वास प्रश्वास की क्रिया इन्हीं दो नासारंध्रों से होती है। इन्हें ही उसका जीवन प्राण एवं मेरुदण्ड कहना चाहिये। इन्हीं से पाठकों का यह परिवार बना है। उन्हीं को सदस्य मानकर शाखा संगठनों के आगे बढ़ाया जा रहा है।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप विशुद्ध अध्यात्मदर्शन की रूप रेखा प्रस्तुत करने के लिये आर्ष ग्रन्थों को सर्वसुलभ बनाने की आवश्यकता अनुभव हुई। उसकी पूर्ति के लिये चारों वेदों का सायण भाष्य के आधार पर हिन्दी अनुवाद किया गया और उसे सर्वसुलभ मूल्य पर छापा गया। उसी प्रकार 108 उपनिषदों का भाष्य तीन बड़ी जिल्दों में और छह को दर्शनों का विस्तृत भाष्य छह जिल्दों में प्रस्तुत करके उसे प्रकाशित कराया गया। अब गीता का एक विश्व कोष तैयार किया जा रहा है जो 18 बड़ी-बड़ी जिल्दों में प्रकाशित होगा। इसमें संसार भर के समस्त गीता भाष्यों का समावेश तथा उनमें दीखने वाली उलझनों का विस्तृत समाधान होगा। यह ग्रन्थ इस दृष्टि से इन पंक्तियों के लेखक ने विगत 65 वर्षों के निरन्तर श्रम से प्रस्तुत किया है ताकि बौद्धिक क्रान्ति तथा सामाजिक क्रान्ति की अपनी योजना को भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार मात्र सिद्ध किया जा सके।
युग-निर्माण विचार धारा को स्थायी साहित्य का रूप देने के लिये सर्व साधारण के उपयुक्त ‘युग-निर्माण पुस्तक माला’ प्रकाशित की जा रही है। हर वर्ष की प्रकाशित पुस्तकों का विज्ञापन प्रायः पुस्तक के अन्तिम टाइटिल पृष्ठ पर छपा होता है। आगे भी प्रयत्नपूर्वक बौद्धिक क्रान्ति का प्रयोजन पूर्ण करने वाला साहित्य छपता रहेगा। प्रयत्न यह किया जा रहा है कि उठते हुए राष्ट्र की बौद्धिक भूख बुझाने के लिए अनेक संस्थानों द्वारा अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार का प्रकाशन बहुत बड़े पैमाने पर होने लगे। हर शाखा में युग-निर्माण पुस्तकालय स्थापित किए जा रहे हैं। जहां से निःशुल्क घर-घर पुस्तकें पहुंचाने और वापिस लाने की प्रक्रिया आरम्भ करके जन मानस को अभीष्ट दिशा में ढाला जा सके।
पिछले दिनों मथुरा गायत्री तपोभूमि में दो प्रकार के शिक्षण शिविरों की योजनाएं चलती रही हैं। (1) संजीवन विद्या शिविर। (2) गीता प्रशिक्षण शिविर। दोनों ही एक-एक महीने के लिये होते रहे किस महीने में कौन शिविर होगा इसकी सूचनाएं समय-समय पर अखण्ड ज्योति में छपती रहती थी। इन दोनों शिविरों की रूप रेखा आगे दी जा रही है।