Books - मन को भगवान के साथ जोड़िए
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Language: HINDI
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काम में मन लगाइए
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बेटे! मैं क्या कहता हूँ? यह कहता हूँ कि अपने सामान्य जीवन के सारे क्रिया-कलाप, चाहे वे बहिरंग जीवन के हों या अंतरंग जीवन के, मामूली काम के लिए भी अगर आपने काम में तबियत नहीं लगाई, आपने मन नहीं लगाया, तब काम बड़ा फूहड़, कुरूप, बेसिलसिले का, बेहूदा, बेढंगा हो जाएगा। अगर किसी काम में मन लगा दिया जाए तो उसमें एक चमत्कार दिखाई पड़ेगा, जादू दिखाई पड़ेगा। मन लगाकर किए हुए काम और बिना मन लगाए किए हुए कामों में जमीन-आसमान का फर्क होता है। स्पष्ट दिखाई देता है कि यह मन लगाकर किया गया है या नहीं। यह मशीन हमारे सामने रखी है। इसमें दो तार हैं, एक निगेटिव कहलाता है और एक पॉजिटिव कहलाता है। इन्हें ठंडे और गरम तार भी कहते हैं। दोनों मिल जाते हैं तो करंट चालू हो जाता है और अगर दोनों को अलग कर देते हैं, तो एक तार बेकार सा हो जाता है, दूसरा भी बेकार पड़ा हुआ है, कुछ काम आता नहीं। शरीर को हम अलग कर दें और मन को हम अलग कर दें, दोनों का हम समन्वय न करें, तो हमारे जो भी काम होंगे बेसिलसिले के और बेहूदे होंगे।
मित्रो! एक काम है भजन। भजन के संबंध में भी यही बात है। बिना मन से किया हुआ भजन और मन से किए हुए भजन में जमीन-आसमान का फर्क होता है। बिना मन से किया हुआ भजन ऐसा है, जिसमें केवल जबान की नोंक की लपालपी और हाथों की उँगलियों की नोंक की हेरा-फेरी की क्रिया भर होती रहती है। चावल यहाँ रख दिया, नमस्कारं करोमि, जैसी क्रियाएँ दीपक इधर का उधर किया, आरती उतार दी, यह कर दिया, वह कर दिया। हाथों की हेरा-फेरी, वस्तुओं की उलटा-पलटी और जीभ की लपालपी, बस भजन हो गया। अच्छा तो हो गया अनुष्ठान, हो गई साधना? नहीं बेटे, कुछ नहीं हुआ। यह तो केवल शारीरिक क्रिया हुई है। शरीर की क्रियाओं का जो फल मिलना चाहिए बस वही मिलता है। इससे ज्यादा कुछ और फल नहीं मिल सकता।
मित्रो! एक काम है भजन। भजन के संबंध में भी यही बात है। बिना मन से किया हुआ भजन और मन से किए हुए भजन में जमीन-आसमान का फर्क होता है। बिना मन से किया हुआ भजन ऐसा है, जिसमें केवल जबान की नोंक की लपालपी और हाथों की उँगलियों की नोंक की हेरा-फेरी की क्रिया भर होती रहती है। चावल यहाँ रख दिया, नमस्कारं करोमि, जैसी क्रियाएँ दीपक इधर का उधर किया, आरती उतार दी, यह कर दिया, वह कर दिया। हाथों की हेरा-फेरी, वस्तुओं की उलटा-पलटी और जीभ की लपालपी, बस भजन हो गया। अच्छा तो हो गया अनुष्ठान, हो गई साधना? नहीं बेटे, कुछ नहीं हुआ। यह तो केवल शारीरिक क्रिया हुई है। शरीर की क्रियाओं का जो फल मिलना चाहिए बस वही मिलता है। इससे ज्यादा कुछ और फल नहीं मिल सकता।