Books - मन को भगवान के साथ जोड़िए
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Language: HINDI
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मन क्यों भाग जाता है?
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मित्रो! अगर साधना का चमत्कार आपको देखने का मन हो और साधना से सिद्धि की जो बात बताई गई है, वह करना हो तो आपको पहला काम क्या करना पड़ेगा? आपको सबसे पहले अपने काम में मन लगाना पड़ेगा। कोई भी काम हो, जिसमें भजन भी शामिल है, मन लगाकर करना पड़ेगा। भजन के साथ में मन लगाना चाहिए। मन लगाने से क्या मतलब है? मन लगाने से मतलब यह है कि मन भागना नहीं चाहिए और उपासना में लगना चाहिए। महाराज जी, यही तो हमको शिकायत है। क्या शिकायत है? मन भाग जाता है, अच्छा तो आपको यह शिकायत है। चलिए हम बताते हैं, फिर मन भाग जाए तो आप हमसे कहना। अब क्या करें? बेटे! मन को किसी काम में लगाया जाए। मन की बनावट ऐसी है कि जब कोई काम नहीं होगा तो मन भाग जाएगा। जब मन के भागने की आप शिकायत करते हैं, तो मैं हमेशा उसका उत्तर यह देता हूँ कि शायद आपने मन को किसी काम में नहीं लगाया। मन को काम में नहीं लगाया जाएगा तो मन भागेगा ही। घोड़े को आप काम में लगा दीजिए ताँगे में लगा दीजिए सवारी में चला दीजिए कहीं भी लगा दीजिए तो घोड़ा काम में लगा रहेगा। घोड़े को आप खोल दीजिए उसके गले में से रस्सी खोल दीजिए फिर देखिए घोड़ा भागेगा ही। फिर आप कहेंगे कि साहब हमारा घोड़ा भाग गया। बैल को आप खाली छोड़ दीजिए वह भाग जाएगा।
मित्रो! उपासना के समय भी हम अकसर अपने मन को खाली छोड़ देते हैं, छुट्टल छोड़ देते हैं। उसे कोई काम सौंपते नहीं, कोई जिम्मेदारी सौंपते नहीं, इसीलिए मन भाग जाता है। मन भागेगा नहीं तो क्या करेगा? नहीं साहब! मन भागना नहीं चाहिए। बेटे! मन भागेगा नहीं तो क्या करेगा? भागना तो उसकी आदत है। उसकी तो बनावट ही ऐसी है, उसकी संरचना ही ऐसी है, उसकी इलेक्ट्रानिक संरचना ही ऐसे ढंग से की गईं है कि उसको भागना चाहिए। भागना तो उसका स्वाभाविक गुण है। अगर वह भागेगा नहीं तो आदमी या तो सिद्धपुरुष हो जाएगा, समाधि में चला जाएगा या फिर पागल हो जाएगा। दो में से एक काम हो जाएगा। मन को तो भागना ही चाहिए। भागना उसका स्वाभाविक गुण है इसलिए उसका कोई कसूर नहीं है। मन का भागना बंद कीजिए। नहीं बेटे! यह नहीं हो सकता।
मन का भागना बंद करने के क्या तरीके हैं? यह मैं कल आपको समझा रहा था कि उपासना में क्रिया के साथ-साथ मन को भी लगाइए। मन कैसे लगाएँ? बेटे, मैं यही तो समझा रहा था। प्रत्येक क्रिया के साथ क्या संकेत जुड़े हुए हैं, क्या शिक्षण भरा हुआ है, उस पर गौर कीजिए। साथ ही यह भी गौर कीजिए कि किस काम के लिए यह किया जा रहा है? जिस काम के लिए भी किया जा रहा है, क्रियाएँ जो भी की जा रही हैं, उनका उद्देश्य क्या है आम लोगों ने क्रियाओं को यह समझ रखा है कि कोई ऐसी बात नहीं है। कुछ लोगों का यह भी ख्याल है कि क्रियाओं को देखकर भगवान भी प्रसन्न हो जाते हैं। क्या कर रहे हैं? बच्चों जैसी उलटी पुलटी हरकतें करते हैं। मम्मी हम यह घर बना रहे हैं: हाँ बहुत खूब बेटे, अच्छा है घर बनाओ। भगवान जी! हमारे बच्चे को गायत्री मंत्र आता है। कैसा गायत्री मंत्र आता है? '' ॐ भूः भुव: स्वः''। अच्छा तो तू भी ऐसे ही भू भुव: कर लेता है। भगवान जी वैसे तो समझते हैं कि आदमी जबान से क्या क्या बकवास कर लेता है? अब चलिए मैं आपके मंत्रों को बकवास कहता हूँ। जीभ की नोंक से आप क्या बक बक मचाते रहते हैं? उससे भगवान प्रसन्न नहीं होता है, तो क्या केवल हाथों की उलटा पुलटी और जीभ की नोंक की हेरा-फेरी से भगवान प्रसन्न नहीं होता है? हाँ बेटे, नहीं होता है। तो किससे प्रसन्न होता है? आपके मन से, हृदय से और भावनाओं से।
मित्रो! उपासना के समय भी हम अकसर अपने मन को खाली छोड़ देते हैं, छुट्टल छोड़ देते हैं। उसे कोई काम सौंपते नहीं, कोई जिम्मेदारी सौंपते नहीं, इसीलिए मन भाग जाता है। मन भागेगा नहीं तो क्या करेगा? नहीं साहब! मन भागना नहीं चाहिए। बेटे! मन भागेगा नहीं तो क्या करेगा? भागना तो उसकी आदत है। उसकी तो बनावट ही ऐसी है, उसकी संरचना ही ऐसी है, उसकी इलेक्ट्रानिक संरचना ही ऐसे ढंग से की गईं है कि उसको भागना चाहिए। भागना तो उसका स्वाभाविक गुण है। अगर वह भागेगा नहीं तो आदमी या तो सिद्धपुरुष हो जाएगा, समाधि में चला जाएगा या फिर पागल हो जाएगा। दो में से एक काम हो जाएगा। मन को तो भागना ही चाहिए। भागना उसका स्वाभाविक गुण है इसलिए उसका कोई कसूर नहीं है। मन का भागना बंद कीजिए। नहीं बेटे! यह नहीं हो सकता।
मन का भागना बंद करने के क्या तरीके हैं? यह मैं कल आपको समझा रहा था कि उपासना में क्रिया के साथ-साथ मन को भी लगाइए। मन कैसे लगाएँ? बेटे, मैं यही तो समझा रहा था। प्रत्येक क्रिया के साथ क्या संकेत जुड़े हुए हैं, क्या शिक्षण भरा हुआ है, उस पर गौर कीजिए। साथ ही यह भी गौर कीजिए कि किस काम के लिए यह किया जा रहा है? जिस काम के लिए भी किया जा रहा है, क्रियाएँ जो भी की जा रही हैं, उनका उद्देश्य क्या है आम लोगों ने क्रियाओं को यह समझ रखा है कि कोई ऐसी बात नहीं है। कुछ लोगों का यह भी ख्याल है कि क्रियाओं को देखकर भगवान भी प्रसन्न हो जाते हैं। क्या कर रहे हैं? बच्चों जैसी उलटी पुलटी हरकतें करते हैं। मम्मी हम यह घर बना रहे हैं: हाँ बहुत खूब बेटे, अच्छा है घर बनाओ। भगवान जी! हमारे बच्चे को गायत्री मंत्र आता है। कैसा गायत्री मंत्र आता है? '' ॐ भूः भुव: स्वः''। अच्छा तो तू भी ऐसे ही भू भुव: कर लेता है। भगवान जी वैसे तो समझते हैं कि आदमी जबान से क्या क्या बकवास कर लेता है? अब चलिए मैं आपके मंत्रों को बकवास कहता हूँ। जीभ की नोंक से आप क्या बक बक मचाते रहते हैं? उससे भगवान प्रसन्न नहीं होता है, तो क्या केवल हाथों की उलटा पुलटी और जीभ की नोंक की हेरा-फेरी से भगवान प्रसन्न नहीं होता है? हाँ बेटे, नहीं होता है। तो किससे प्रसन्न होता है? आपके मन से, हृदय से और भावनाओं से।