Books - मन को भगवान के साथ जोड़िए
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Language: HINDI
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साधना ऐसे जीवंत होगी
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गुरुजी! और क्या बताएँगे? बता तो रहे हैं। बेटे, प्रत्येक क्रिया के साथ में चिंतन दिया हुआ है। ऋषियों ने जितने भी कर्मकाण्ड बनाए हैं, उनके साथ में चिंतन दिया है। चिंतन के साथ-साथ क्रिया को मिला देंगे, तो मन और क्रिया का समावेश हो जाएगा। ये दो चीजें शामिल हो जाएँगी-विचारणा और क्रिया तो चमत्कार हो जाएगा। विचारणा और क्रिया को मिला देने से हमारा शरीर और मन जिस तरीके से दोनों एक बन जाते हैं, वैसे ही आपकी साधना जीवंत हो जाएगी। प्रत्येक क्रिया के साथ हम पाँच उपासनाएँ बताते हैं। पाँच उपासनाओं का मोटा-मोटा स्वरूप हमने पत्रिकाओं में भी छाप दिया था और पिछले साल भी हमने स्वर्णजयंती साधना सिखाई थी। गुरुजी हम स्वर्णजयंती साधना वर्ष की साधना करते हैं और भजन भी पैंतालीस मिनट करते हैं। भजन तो करता है बेटा, पर तू एक बात तो बता कि उस कर्मकाण्ड के साथ-साथ जो विचार हैं, उनको भी करता है कि नहीं।
नहीं महाराज जी! मैं तो लगा रहता हूँ बस माला पूरी कर लेता हूँ। माला पूरी कर लेता है तो तेरे लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। तेरे लिए बहुत आशीर्वाद, परंतु बेटा जब माला करता है, तो उसके साथ-साथ विचारों को भी लाता है कि नहीं? महाराज जी, विचार तो मेरे भागते रहते हैं। तो बेटा! भगवान की उपासना तेरी अधूरी है। तेरी उपासना का जो परिणाम मिलना चाहिए था, उससे जिस वातावरण का परिशोधन होना चाहिए था, उस वातावरण का परिशोधन हुआ क्या? जिस उद्देश्य से हमने प्रेरणा दी थी, शक्ति दी थी और दीक्षा दी थी, शिक्षा दी थी। न हमारा उद्देश्य पूरा हुआ, न तेरा हुआ और न ही भगवान का। तीनों में से एक का भी उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, इसलिए क्रिया के साथ-साथ में विचारणा का समावेश करने की शिक्षा मैं हमेशा देता रहा हूँ और देता रहूँगा।
मित्रो! कल मैंने आत्मशोधन की प्रक्रिया आपको बताई थी कि गायत्री पंचमुखी भी है। पाँच कोशों में उसके पाँच मुख हैं। गायत्री उपासना पाँच चरणों में बँटी हुई है। पहला कृत्य है-आत्मशोधन की क्रिया। आत्मसंशोधन की क्रिया जिसमें हम पाँच कृत्य कराते हैं। (१) पवित्रीकरण कराते हैं (२) आचमन कराते हैं, (३) शिखा बंधन कराते हैं, (४) प्राणायाम कराते हैं, (५) न्यास कराते हैं। इन पाँच क्रियाओं का एक उद्देश्य है कि हम अपने पाँचों कोशों को, पाँचों तत्वों को, पाँचों प्राणों को शुद्ध बनाते हैं। उपासना में पहला काम है सफाई करना। हमारे दिमाग में एक बात आनी चाहिए कि हमको भगवान के चरणों में जाने के लिए नहा-धोकर जाना चाहिए। स्वच्छ और पवित्र होकर जाना चाहिए। हमारी जीवन क्रियाएँ पवित्र होनी चाहिए। हमारा चिंतन पवित्र होना चाहिए। हमारे साधन पवित्र होने चाहिए और हमारे जीवन की गतिविधियाँ पवित्र होनी चाहिए। अगर हम पवित्रता का पहला उद्देश्य पूरा कर लेते हैं, तो समझना चाहिए कि पाँच मुख वाली गायत्री की हमारी उपासना सफल हुई।
नहीं महाराज जी! मैं तो लगा रहता हूँ बस माला पूरी कर लेता हूँ। माला पूरी कर लेता है तो तेरे लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। तेरे लिए बहुत आशीर्वाद, परंतु बेटा जब माला करता है, तो उसके साथ-साथ विचारों को भी लाता है कि नहीं? महाराज जी, विचार तो मेरे भागते रहते हैं। तो बेटा! भगवान की उपासना तेरी अधूरी है। तेरी उपासना का जो परिणाम मिलना चाहिए था, उससे जिस वातावरण का परिशोधन होना चाहिए था, उस वातावरण का परिशोधन हुआ क्या? जिस उद्देश्य से हमने प्रेरणा दी थी, शक्ति दी थी और दीक्षा दी थी, शिक्षा दी थी। न हमारा उद्देश्य पूरा हुआ, न तेरा हुआ और न ही भगवान का। तीनों में से एक का भी उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, इसलिए क्रिया के साथ-साथ में विचारणा का समावेश करने की शिक्षा मैं हमेशा देता रहा हूँ और देता रहूँगा।
मित्रो! कल मैंने आत्मशोधन की प्रक्रिया आपको बताई थी कि गायत्री पंचमुखी भी है। पाँच कोशों में उसके पाँच मुख हैं। गायत्री उपासना पाँच चरणों में बँटी हुई है। पहला कृत्य है-आत्मशोधन की क्रिया। आत्मसंशोधन की क्रिया जिसमें हम पाँच कृत्य कराते हैं। (१) पवित्रीकरण कराते हैं (२) आचमन कराते हैं, (३) शिखा बंधन कराते हैं, (४) प्राणायाम कराते हैं, (५) न्यास कराते हैं। इन पाँच क्रियाओं का एक उद्देश्य है कि हम अपने पाँचों कोशों को, पाँचों तत्वों को, पाँचों प्राणों को शुद्ध बनाते हैं। उपासना में पहला काम है सफाई करना। हमारे दिमाग में एक बात आनी चाहिए कि हमको भगवान के चरणों में जाने के लिए नहा-धोकर जाना चाहिए। स्वच्छ और पवित्र होकर जाना चाहिए। हमारी जीवन क्रियाएँ पवित्र होनी चाहिए। हमारा चिंतन पवित्र होना चाहिए। हमारे साधन पवित्र होने चाहिए और हमारे जीवन की गतिविधियाँ पवित्र होनी चाहिए। अगर हम पवित्रता का पहला उद्देश्य पूरा कर लेते हैं, तो समझना चाहिए कि पाँच मुख वाली गायत्री की हमारी उपासना सफल हुई।