Books - मन को भगवान के साथ जोड़िए
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
चेतना व चिंतन का मेल हो
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मित्रो! आपका जो वास्तविक अस्तित्व है जो हाथ नहीं आता है, वह पदार्थ नहीं है, चावल और धूपबत्ती नहीं है, जीभ की नोंक नहीं है। आपका जो वास्तविक अस्तित्व है, जिसके द्वारा भजन किया जाना चाहिए वह है आपका चिंतन। चेतना, चिंतन से ताल्लुक रखती है। चेतना का स्रोत है-चिंतन। चिंतन को कहाँ लगाएँ? सीधी सी बात है-चिंतन कहाँ लग रहा है, यह आप देखें। आप कहीं लग रहे हों, जीभ कहीं लग रही हो, वस्तुएँ कहीं भी रखी हों, माला कहीं भी चल रही हो, पर बेटे, आप यह बताइए कि आपका चिंतन कहाँ लग रहा है? गुरुजी! चिंतन तो भागता रहता है। तो बेटे, भजन कहाँ हो रहा है? चिंतन को लगाने का उद्देश्य यह है कि जिस काम के लिए जो क्रियाएँ कराई जा रही हैं, आप उस इशारे पर आ जाइए कि उस इशारे के साथ में आपको क्या चिंतन करना चाहिए?
बेटे! हम सवेरे आत्म-ध्यान कराते हैं। आत्म-ध्यान कराने के साथ-साथ सजेशन देते हैं, निर्देश देते हैं। इसका क्या मतलब है? निर्देश से मतलब है कि जिस समय हम जो बात कहें, वैसे ही आपका विचार चलना चाहिए। जो हम कहें वैसी कल्पना कीजिए। हमने कहा, सप्तऋषियों का तपस्थान, आप ध्यान कीजिए कि सात ऋषि बैठे हुए हैं। बड़ा घना जंगल है और सातों ऋषि समाधि लगाए हुए हैं। यह पुनीत स्थान जहाँ उनके शरीर पेड़ों की सघन छाया में है। आप इस तरह की कल्पना कीजिए मन स्थिर हो जाएगा। बेटे, आपका मन भाग जाए, तो हमसे कहना। हम जो बताते हैं उसमें आपको ध्यान लगाना चाहिए फिर देखिए कैसे मन भाग जाएगा। सवेरे हम आपको जो सजेशन देते हैं, उसके हिसाब से आप अपने चिंतन को और अपने विचार करने की श्रेणी को उसी पर स्थापित कीजिए, केंद्रित कीजिए। हमने आपसे कहा प्रातःकाल का स्वर्णिम सूर्योदय। आप विचार कीजिए कि प्रातःकाल का लाल रँगा सूरज, सवेरे निकलता हुआ बड़ा वाला सूरज, पूरब से निकला, थोड़ा निकला, अभी थोडा़ और बढ़ा, अभी और बढ़ा और पूरा सूरज निकल आया। क्या मतलब है? बेटे, हमने आपसे कहा कि अपने मन को हमारी कही हुई बात पर लगा दें, फिर आपका मन, उस काम पर लग जाएगा, तो भागने का सवाल ही नहीं है। यदि काम पर नहीं लगा, तब तो भागेगा ही।
इसलिए क्या करना चाहिए? प्रत्येक क्रिया के लिए जो कर्मकाण्ड बनाए गए हैं, वे श्रेष्ठ काम के लिए बनाए गए हैं। कर्मकाण्ड करते समय आपका ध्यान डस क्रिया पर जाए जो बोलकर तो नहीं बताई गई है, पर क्रिया के माध्यम से बता दी गई है। कल हमने आपको बताया था कि आचमन से हमारी वाणी का परिष्कार होता है। कल जब आप आचमन करें तो यह ध्यान करें, यह विचार करें कि हमारी वाणी का संशोधन हो रहा है। वाणी को हम धो रहे हैं, वाणी को हम साबुन लगा रहे हैं। वाणी को पत्थर पर पीट रहे हैं, वाणी की ढलाई कर रहे हैं। वाणी पर पानी डाल रहे हैं। जैसे बच्चा गंदा हो जाता है, टट्टी कर आता है, तो उसके ऊपर बाल्टी से पानी डालते हैं, उसे धोते हैं, नहलाते हैं, उसको साफ करते हैं। आप यह विचार कीजिए कि हमारी वाणी जो अभक्ष्य खाने की वजह से, अवांछनीय वार्त्तालाप करने की वजह से गंदी हो गई है, इसको हम धोते हैं और साफ करते हैं। जैसे धोबी, धोबीघाट पर कपड़े ले जाकर पत्थर पर रगड़ता है। आप कल्पना कीजिए कि अपनी जीभ को धोबी की तरह से हम घाट पर ले जाते हैं और पत्थर पर रगड़कर धोते हैं। पानी का जो हमने आचमन कर लिया, उसके सहारे हम अपनी जीभ को दे पिटाई-दे पिटाई, दे डंडा-दे डंडा और उसका सारा का सारा कचूमर निकाल देते हैं। फिर देखिए कि वह गंदी रहेगी कि साफ होगी? साफ होगी।
बेटे! हम सवेरे आत्म-ध्यान कराते हैं। आत्म-ध्यान कराने के साथ-साथ सजेशन देते हैं, निर्देश देते हैं। इसका क्या मतलब है? निर्देश से मतलब है कि जिस समय हम जो बात कहें, वैसे ही आपका विचार चलना चाहिए। जो हम कहें वैसी कल्पना कीजिए। हमने कहा, सप्तऋषियों का तपस्थान, आप ध्यान कीजिए कि सात ऋषि बैठे हुए हैं। बड़ा घना जंगल है और सातों ऋषि समाधि लगाए हुए हैं। यह पुनीत स्थान जहाँ उनके शरीर पेड़ों की सघन छाया में है। आप इस तरह की कल्पना कीजिए मन स्थिर हो जाएगा। बेटे, आपका मन भाग जाए, तो हमसे कहना। हम जो बताते हैं उसमें आपको ध्यान लगाना चाहिए फिर देखिए कैसे मन भाग जाएगा। सवेरे हम आपको जो सजेशन देते हैं, उसके हिसाब से आप अपने चिंतन को और अपने विचार करने की श्रेणी को उसी पर स्थापित कीजिए, केंद्रित कीजिए। हमने आपसे कहा प्रातःकाल का स्वर्णिम सूर्योदय। आप विचार कीजिए कि प्रातःकाल का लाल रँगा सूरज, सवेरे निकलता हुआ बड़ा वाला सूरज, पूरब से निकला, थोड़ा निकला, अभी थोडा़ और बढ़ा, अभी और बढ़ा और पूरा सूरज निकल आया। क्या मतलब है? बेटे, हमने आपसे कहा कि अपने मन को हमारी कही हुई बात पर लगा दें, फिर आपका मन, उस काम पर लग जाएगा, तो भागने का सवाल ही नहीं है। यदि काम पर नहीं लगा, तब तो भागेगा ही।
इसलिए क्या करना चाहिए? प्रत्येक क्रिया के लिए जो कर्मकाण्ड बनाए गए हैं, वे श्रेष्ठ काम के लिए बनाए गए हैं। कर्मकाण्ड करते समय आपका ध्यान डस क्रिया पर जाए जो बोलकर तो नहीं बताई गई है, पर क्रिया के माध्यम से बता दी गई है। कल हमने आपको बताया था कि आचमन से हमारी वाणी का परिष्कार होता है। कल जब आप आचमन करें तो यह ध्यान करें, यह विचार करें कि हमारी वाणी का संशोधन हो रहा है। वाणी को हम धो रहे हैं, वाणी को हम साबुन लगा रहे हैं। वाणी को पत्थर पर पीट रहे हैं, वाणी की ढलाई कर रहे हैं। वाणी पर पानी डाल रहे हैं। जैसे बच्चा गंदा हो जाता है, टट्टी कर आता है, तो उसके ऊपर बाल्टी से पानी डालते हैं, उसे धोते हैं, नहलाते हैं, उसको साफ करते हैं। आप यह विचार कीजिए कि हमारी वाणी जो अभक्ष्य खाने की वजह से, अवांछनीय वार्त्तालाप करने की वजह से गंदी हो गई है, इसको हम धोते हैं और साफ करते हैं। जैसे धोबी, धोबीघाट पर कपड़े ले जाकर पत्थर पर रगड़ता है। आप कल्पना कीजिए कि अपनी जीभ को धोबी की तरह से हम घाट पर ले जाते हैं और पत्थर पर रगड़कर धोते हैं। पानी का जो हमने आचमन कर लिया, उसके सहारे हम अपनी जीभ को दे पिटाई-दे पिटाई, दे डंडा-दे डंडा और उसका सारा का सारा कचूमर निकाल देते हैं। फिर देखिए कि वह गंदी रहेगी कि साफ होगी? साफ होगी।