Books - प्रज्ञा पुत्रों को इतना तो करना ही है
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पुरातन गरिमा का नवीन संस्करण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ध्यान रहे कि प्रज्ञा अभियान बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन का उत्तरार्ध है। उसे पूर्वार्ध से भी अधिक व्यापक विस्तृत सशक्त और प्रभावी बनकर रहना है। उस समय कुछ प्रतिभाशाली समर्थकों ने उस प्रेरणा-ऊर्जा को व्यापक बनाने के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया था। उसी का प्रभाव था कि भारतीय उपमहाद्वीप एवं सुदूर पूर्व सहित लगभग सारा एशिया उसके प्रभाव की लपेट में आ गया था। तक्षशिला, नालन्दा जैसे विश्वविद्यालय तथा बौद्ध विहारों द्वारा ऐसे प्रतिभा सम्पन्न धर्म प्रचारक गढ़े गये, जिन्होंने संसार भर को शान्ति सद्भावना से अनुप्राणित कर दिया। शोध-कर्ताओं का मत तो यह भी है कि महात्मा ईसा ने बौद्धधर्म से प्रभावित होकर, उन्हीं सूत्रों को यूरोप की स्थानीय भाषाओं में प्रचारित किया। बौद्ध संस्कृति के चिह्न विश्व में अनेक स्थानों पर आज भी प्राप्त होते हैं।
यह सब इसी लिए संभव हुआ कि धर्मचक्र प्रवर्तन के साथ जुड़ी हुई प्रतिभाएं निरन्तर सुदूर क्षेत्रों में परिभ्रमण करती रहीं और अपनी महान आन्दोलन की गहरी जड़ें सभी क्षेत्रों में जमती रहीं।
शांतिकुंज का प्रज्ञा अभियान भी उन्हीं चरण चिह्नों पर अपनी प्रव्रज्या आरम्भ कर रहा है। अब केन्द्रिय टोलियां प्रचार उपकरणों एवम् साहित्य सहित दूरवर्ती प्रवास पर निकलेंगी और अब तक मिशन का प्रकाश जहां नहीं पहुंचा है, वहां अलख जगाने और आलोक वितरण में लगेंगे। योजना है कि देश का कोई कोना इन परिव्राजकों का कार्य क्षेत्र बने बिना न रहने पाएगा। अगले चरण में संसार के हर क्षेत्र में नवयुग का सन्देश पहुंचाने और उसके लिए उपयुक्त वातावरण बनाने हेतु प्रव्रज्या की जायेगी। युग परिवर्तन के लिए हरिद्वार और मथुरा से ही दो छोटे झरने प्रवाहित न होते रहेंगे, वरन् महान उद्गम सहस्र धारायें प्रवाहित होंगी नदी, नाले के रूप में अपनी सत्ता एवं महत्ता का प्रदर्शन करेंगी। युग परिवर्तन तंत्र के वर्तमान संयोजक ने अपने अस्सी वर्ष के जीवन में जितनी ऊर्जा का निर्माण और वितरण किया है, विश्वास किया जाना चाहिए कि उसके अभिन्न, अंग बन कर रहे पुत्री-पुत्र युग संधि का प्रस्तुत दस वर्षों में उससे कई गुना कार्य कर गुजरेंगे।
जो इस कार्य के लिए उत्साह पूर्वक आगे बढ़ेंगे, उन्हें शान्तिकुंज के प्रशिक्षण के माध्यम से उपयुक्त योग्यता तथा नैष्ठिक सक्रियता के आधार पर शक्ति अनुदान प्राप्त होते रहेंगे। वह सब क्रम सहज रूप में चलते रहेंगे। चिंता तो केवल उनके लिए होनी चाहिए जो अपने अहंकार में ऐंठे जाते हैं। स्वयं सर्वशक्ति सम्पन्न और नेता होने की छाप छोड़ने के लिए लालायित हैं। ऐसे ही लोग महान लक्ष्यों का अहित करते हैं और अपनी क्षुद्रता के बोझ से स्वयं ही दब मरते हैं। परिजनों में कहीं कोई ऐसा केकड़ा छिपा न बैठा हो। इसी कि देखभाल रखें और जो अनुपयुक्त है, उस अनाधिकारी को कोई उच्चस्तरीय जिम्मेदारी हाथ न लगने दें। नम्रता और निस्पृहता अपनाये बिना कोई भी व्यक्ति, दैवी प्रयोजनों के लिए पात्रता अर्जित नहीं कर सकता।
----***----
*समाप्त*
यह सब इसी लिए संभव हुआ कि धर्मचक्र प्रवर्तन के साथ जुड़ी हुई प्रतिभाएं निरन्तर सुदूर क्षेत्रों में परिभ्रमण करती रहीं और अपनी महान आन्दोलन की गहरी जड़ें सभी क्षेत्रों में जमती रहीं।
शांतिकुंज का प्रज्ञा अभियान भी उन्हीं चरण चिह्नों पर अपनी प्रव्रज्या आरम्भ कर रहा है। अब केन्द्रिय टोलियां प्रचार उपकरणों एवम् साहित्य सहित दूरवर्ती प्रवास पर निकलेंगी और अब तक मिशन का प्रकाश जहां नहीं पहुंचा है, वहां अलख जगाने और आलोक वितरण में लगेंगे। योजना है कि देश का कोई कोना इन परिव्राजकों का कार्य क्षेत्र बने बिना न रहने पाएगा। अगले चरण में संसार के हर क्षेत्र में नवयुग का सन्देश पहुंचाने और उसके लिए उपयुक्त वातावरण बनाने हेतु प्रव्रज्या की जायेगी। युग परिवर्तन के लिए हरिद्वार और मथुरा से ही दो छोटे झरने प्रवाहित न होते रहेंगे, वरन् महान उद्गम सहस्र धारायें प्रवाहित होंगी नदी, नाले के रूप में अपनी सत्ता एवं महत्ता का प्रदर्शन करेंगी। युग परिवर्तन तंत्र के वर्तमान संयोजक ने अपने अस्सी वर्ष के जीवन में जितनी ऊर्जा का निर्माण और वितरण किया है, विश्वास किया जाना चाहिए कि उसके अभिन्न, अंग बन कर रहे पुत्री-पुत्र युग संधि का प्रस्तुत दस वर्षों में उससे कई गुना कार्य कर गुजरेंगे।
जो इस कार्य के लिए उत्साह पूर्वक आगे बढ़ेंगे, उन्हें शान्तिकुंज के प्रशिक्षण के माध्यम से उपयुक्त योग्यता तथा नैष्ठिक सक्रियता के आधार पर शक्ति अनुदान प्राप्त होते रहेंगे। वह सब क्रम सहज रूप में चलते रहेंगे। चिंता तो केवल उनके लिए होनी चाहिए जो अपने अहंकार में ऐंठे जाते हैं। स्वयं सर्वशक्ति सम्पन्न और नेता होने की छाप छोड़ने के लिए लालायित हैं। ऐसे ही लोग महान लक्ष्यों का अहित करते हैं और अपनी क्षुद्रता के बोझ से स्वयं ही दब मरते हैं। परिजनों में कहीं कोई ऐसा केकड़ा छिपा न बैठा हो। इसी कि देखभाल रखें और जो अनुपयुक्त है, उस अनाधिकारी को कोई उच्चस्तरीय जिम्मेदारी हाथ न लगने दें। नम्रता और निस्पृहता अपनाये बिना कोई भी व्यक्ति, दैवी प्रयोजनों के लिए पात्रता अर्जित नहीं कर सकता।
----***----
*समाप्त*