Books - प्रज्ञा पुत्रों को इतना तो करना ही है
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Language: HINDI
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अध्यात्म उपचार भी अनिवार्य हैं
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भारत के मशहूर पत्रकार—विलट्ज के संपादक श्री करंजिया, हंगरी के एक प्रख्यात वैज्ञानिक-चिन्तक मनीषी श्री आर्थर कौयस्लर से मिले। अणु शक्ति द्वारा संभावित विनाश पर चर्चा हुई। श्री कौयस्लर ने कहा ‘‘भारत को इससे परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसके पास गायत्री मंत्र का ऐसा छत्र मौजूद है, जिसे तोड़कर कोई उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता।’’ शास्त्रकारों ने भी गायत्री मन्त्र की आध्यात्मिक, दार्शनिक और भौतिक प्रयोजनों में काम आने वाली शक्ति का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। अनुभवी साधक भी ऐसा ही कहते हैं।
यज्ञ के परमार्थ प्रधान तत्वदर्शन और वातावरण के परिशोधन एवम् परिष्कार की कितनी ही क्षमताएं होने की सुविस्तृत विवेचना हुई है। गायत्री, भारत की देव संस्कृति की जननी और यज्ञ को भारतीय धर्म का पिता माना गया है।
उक्त दोनों दिव्य क्षमताओं से सम्पन्न गायत्री यज्ञ का अपना महत्त्व है। उसके बड़े आकार वाले आयोजनों का भी विधान है और संक्षिप्त रूप में उसी के एक छोटे, किन्तु सार तत्व से अभिभूत संस्करण—‘‘दीप यज्ञ’’ की भी अपनी विशिष्ट पद्धति है।
सामयिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में दीप यज्ञ अतीव सस्ता भी है और सर्वसाधारण द्वारा अपनाये जाने योग्य सर्व सुलभ भी। इसे अनेकानेक कर्मकाण्डों के स्थान पर प्रयुक्त भी किया जा सकता है। धर्म तन्त्र के लोक शिक्षण की प्रक्रिया का माध्यम भी इसे बनाया जा सकता है। दीपक सद्ज्ञान का प्रतीक होने से गायत्री की प्रतिमा कहा जा सकता है। यज्ञ का पारमार्थिक प्रतीक—सुगन्धि वितरण, अगरबत्ती जलाकर भी कार्यान्वित किया जा सकता है।
युग संधि के बारह वर्षों की अवधि में शान्तिकुंज के तत्वावधान में, देश विदेश में एक लाख दीप यज्ञों की योजना सम्पन्न की जा रही है। इनमें 24 करोड़ गायत्री मंत्रों का सहपाठ भी सम्मिलित है। इसका सम्मिलित प्रभाव जहां युग अवतरण की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध होगा वहीं युग चेतना से जुड़ी हुई विचारधारा, जन-जन को हृदयंगम कराने का अवसर भी मिलेगा। यह आध्यात्मिक उपचार उन प्रयोजनों में अतीव सहायक सिद्ध होगा, जो ज्ञान-यज्ञ को—विचार क्रान्ति के रूप में विश्वव्यापी बनाये जा रहे हैं।
सुगम किन्तु प्रभावशाली सामयिक उपचार
इस प्रयोजन के लिए इन दिनों दीपयज्ञों की प्रक्रिया को व्यापक बनाया जा रहा है। इस ज्योति जागरण की प्रतीक पूजा में हर गांव, नगर, गली, मुहल्ला आलोकित किया जा रहा है। इसे धर्म तन्त्र से लोक शिक्षण का छोटा किन्तु अत्यन्त दूरगामी परिणाम उत्पन्न कर सकने वाला धर्मकृत्य भी कह सकते हैं। इस आयोजन के माध्यम से कहीं भी भावनाशीलों की एक बड़ी संख्या एकत्रित की जा सकती है और उन्हें गायत्री रूपी सद्भावना और यज्ञ रूपी सत्कर्मों की श्रृंखला के साथ संबद्ध किया जा सकता है। दीपयज्ञों को युग अवतरण के प्रभात पर्व की आरती उतारना भी कहा जा सकता है। उसकी व्याख्या विवेचना करते हुए ही उपस्थित व्यक्ति को समझाया जा सकता है कि हम सबको दीपक की तरह जलते रहने और अगरबत्ती की तरह सुगंध भरा वातावरण बनाने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए। अग्नि की साक्षी में ऐसे व्रत संकल्प ग्रहण करने चाहिए, जो उस क्षेत्र में विद्यमान अवांछनीयताओं को निरस्त कर प्रगतिशीलता की पक्षधर सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन कर सकें।
इन दीप यज्ञों को प्रकारान्तर से संकल्प यज्ञ भी कहा जा सकता है, जिनके साथ एकता और समता के उच्चस्तरीय सिद्धान्तों का समावेश है। नर और नारी एक समान, जाति-वंश सब एक समान; नया संसार बसायेंगे—एकता समता लायेंगे जैसे अनेक आदर्शों का समुचित समावेश है। धर्म-तन्त्र को भी अगले दिनों राजतन्त्र के समान ही समर्थ बनाया जाना है; ताकि शासन सम्पदा और सुरक्षा की अभिवृद्धि में कार्यरत रहे और धर्मतन्त्र आदर्शवादिता एवं सत्प्रवृत्ति संवर्धन की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपनी महत्ता एवं उपयोगिता सिद्ध कर सके। क्षेत्रों में इन दिनों जो कमी रह रही है, उसे पूरी करने में दीपयज्ञों के माध्यम से विनिर्मित भाव भरा वातावरण अप्रत्याशित रूप से समर्थ हो सकेगा।
धार्मिकता और उसकी प्रतीक पूजा, इन दिनों मात्र पंडा-पुरोहितों के हाथ में केन्द्रित होकर रह रही हैं। दीप यज्ञों की प्रक्रिया समस्त कर्मकाण्डों का एक मात्र प्रतीक होने की मान्यता प्राप्त कर सकती है। यह विधा अत्यन्त सस्ती और सुगम होने के कारण हर किसी के लिए क्रियान्वित किये जाने योग्य बन सकती है। प्रतीकों के माध्यम से सद्भावनाओं को उभारना ही तो धर्मतन्त्र से लोक शिक्षण का उद्देश्य रहा है। पिछले दिनों यज्ञीय कर्मकाण्ड बहुत जटिल और खर्चीला तथा एक ही वर्ण विशेष के तत्वावधान में चल सकने वाला बन गया था। अब उसे इतना सर्वसुलभ बना दिया गया है कि धार्मिकता, आध्यात्मिकता और आस्तिकता के समस्त सिद्धान्तों को इस सरल माध्यम से अत्यन्त व्यापक सार्वजनिक प्रचलन में समाविष्ट हुआ देखा जा सके।
सक्रिय परिजनों—प्रज्ञापुत्रों को इस सन्दर्भ में पांच कार्यक्रम सौंपे जा रहे हैं। इन्हें मिशन के विस्तार और नव युग के अवतरण की पृष्ठभूमि बनाने के लिए पंच-तत्वों, पांच-प्राणों, पंचाग्नि की तरह ही अतिमहत्त्वपूर्ण मानकर चलाना चाहिए। इनमें से प्रत्येक कार्यक्रम अपने आप में एक समग्र मोर्चे की तरह विविधताओं से, जिम्मेदारियों से भरा हुआ है। युग की आवश्यकता की पूर्ति, अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा और सौभाग्य की प्राप्ति को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में पूरी तत्परता के साथ प्रवृत्त होना चाहिए।
यज्ञ के परमार्थ प्रधान तत्वदर्शन और वातावरण के परिशोधन एवम् परिष्कार की कितनी ही क्षमताएं होने की सुविस्तृत विवेचना हुई है। गायत्री, भारत की देव संस्कृति की जननी और यज्ञ को भारतीय धर्म का पिता माना गया है।
उक्त दोनों दिव्य क्षमताओं से सम्पन्न गायत्री यज्ञ का अपना महत्त्व है। उसके बड़े आकार वाले आयोजनों का भी विधान है और संक्षिप्त रूप में उसी के एक छोटे, किन्तु सार तत्व से अभिभूत संस्करण—‘‘दीप यज्ञ’’ की भी अपनी विशिष्ट पद्धति है।
सामयिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में दीप यज्ञ अतीव सस्ता भी है और सर्वसाधारण द्वारा अपनाये जाने योग्य सर्व सुलभ भी। इसे अनेकानेक कर्मकाण्डों के स्थान पर प्रयुक्त भी किया जा सकता है। धर्म तन्त्र के लोक शिक्षण की प्रक्रिया का माध्यम भी इसे बनाया जा सकता है। दीपक सद्ज्ञान का प्रतीक होने से गायत्री की प्रतिमा कहा जा सकता है। यज्ञ का पारमार्थिक प्रतीक—सुगन्धि वितरण, अगरबत्ती जलाकर भी कार्यान्वित किया जा सकता है।
युग संधि के बारह वर्षों की अवधि में शान्तिकुंज के तत्वावधान में, देश विदेश में एक लाख दीप यज्ञों की योजना सम्पन्न की जा रही है। इनमें 24 करोड़ गायत्री मंत्रों का सहपाठ भी सम्मिलित है। इसका सम्मिलित प्रभाव जहां युग अवतरण की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध होगा वहीं युग चेतना से जुड़ी हुई विचारधारा, जन-जन को हृदयंगम कराने का अवसर भी मिलेगा। यह आध्यात्मिक उपचार उन प्रयोजनों में अतीव सहायक सिद्ध होगा, जो ज्ञान-यज्ञ को—विचार क्रान्ति के रूप में विश्वव्यापी बनाये जा रहे हैं।
सुगम किन्तु प्रभावशाली सामयिक उपचार
इस प्रयोजन के लिए इन दिनों दीपयज्ञों की प्रक्रिया को व्यापक बनाया जा रहा है। इस ज्योति जागरण की प्रतीक पूजा में हर गांव, नगर, गली, मुहल्ला आलोकित किया जा रहा है। इसे धर्म तन्त्र से लोक शिक्षण का छोटा किन्तु अत्यन्त दूरगामी परिणाम उत्पन्न कर सकने वाला धर्मकृत्य भी कह सकते हैं। इस आयोजन के माध्यम से कहीं भी भावनाशीलों की एक बड़ी संख्या एकत्रित की जा सकती है और उन्हें गायत्री रूपी सद्भावना और यज्ञ रूपी सत्कर्मों की श्रृंखला के साथ संबद्ध किया जा सकता है। दीपयज्ञों को युग अवतरण के प्रभात पर्व की आरती उतारना भी कहा जा सकता है। उसकी व्याख्या विवेचना करते हुए ही उपस्थित व्यक्ति को समझाया जा सकता है कि हम सबको दीपक की तरह जलते रहने और अगरबत्ती की तरह सुगंध भरा वातावरण बनाने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए। अग्नि की साक्षी में ऐसे व्रत संकल्प ग्रहण करने चाहिए, जो उस क्षेत्र में विद्यमान अवांछनीयताओं को निरस्त कर प्रगतिशीलता की पक्षधर सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन कर सकें।
इन दीप यज्ञों को प्रकारान्तर से संकल्प यज्ञ भी कहा जा सकता है, जिनके साथ एकता और समता के उच्चस्तरीय सिद्धान्तों का समावेश है। नर और नारी एक समान, जाति-वंश सब एक समान; नया संसार बसायेंगे—एकता समता लायेंगे जैसे अनेक आदर्शों का समुचित समावेश है। धर्म-तन्त्र को भी अगले दिनों राजतन्त्र के समान ही समर्थ बनाया जाना है; ताकि शासन सम्पदा और सुरक्षा की अभिवृद्धि में कार्यरत रहे और धर्मतन्त्र आदर्शवादिता एवं सत्प्रवृत्ति संवर्धन की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपनी महत्ता एवं उपयोगिता सिद्ध कर सके। क्षेत्रों में इन दिनों जो कमी रह रही है, उसे पूरी करने में दीपयज्ञों के माध्यम से विनिर्मित भाव भरा वातावरण अप्रत्याशित रूप से समर्थ हो सकेगा।
धार्मिकता और उसकी प्रतीक पूजा, इन दिनों मात्र पंडा-पुरोहितों के हाथ में केन्द्रित होकर रह रही हैं। दीप यज्ञों की प्रक्रिया समस्त कर्मकाण्डों का एक मात्र प्रतीक होने की मान्यता प्राप्त कर सकती है। यह विधा अत्यन्त सस्ती और सुगम होने के कारण हर किसी के लिए क्रियान्वित किये जाने योग्य बन सकती है। प्रतीकों के माध्यम से सद्भावनाओं को उभारना ही तो धर्मतन्त्र से लोक शिक्षण का उद्देश्य रहा है। पिछले दिनों यज्ञीय कर्मकाण्ड बहुत जटिल और खर्चीला तथा एक ही वर्ण विशेष के तत्वावधान में चल सकने वाला बन गया था। अब उसे इतना सर्वसुलभ बना दिया गया है कि धार्मिकता, आध्यात्मिकता और आस्तिकता के समस्त सिद्धान्तों को इस सरल माध्यम से अत्यन्त व्यापक सार्वजनिक प्रचलन में समाविष्ट हुआ देखा जा सके।
सक्रिय परिजनों—प्रज्ञापुत्रों को इस सन्दर्भ में पांच कार्यक्रम सौंपे जा रहे हैं। इन्हें मिशन के विस्तार और नव युग के अवतरण की पृष्ठभूमि बनाने के लिए पंच-तत्वों, पांच-प्राणों, पंचाग्नि की तरह ही अतिमहत्त्वपूर्ण मानकर चलाना चाहिए। इनमें से प्रत्येक कार्यक्रम अपने आप में एक समग्र मोर्चे की तरह विविधताओं से, जिम्मेदारियों से भरा हुआ है। युग की आवश्यकता की पूर्ति, अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा और सौभाग्य की प्राप्ति को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में पूरी तत्परता के साथ प्रवृत्त होना चाहिए।