Books - प्रज्ञा पुत्रों को इतना तो करना ही है
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Language: HINDI
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द्वितीय कार्यक्रम
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दूसरा कार्यक्रम है—विचार क्रान्ति अभियान। नव-युग में जन-सामान्य को अपनी विचारणा और कार्य पद्धति में क्या सुधार और क्या अभिवर्धन करना चाहिए? इसकी सुनियोजित रूपरेखा युग निर्माण योजना, मथुरा और शान्तिकुंज हरिद्वार द्वारा अत्यन्त सस्ते और सारगर्भित मार्गदर्शन से परिपूर्ण बनाकर प्रकाशित की गई हैं। इसे अपने क्षेत्र के हर शिक्षित को बिना मूल्य पढ़ने देने और दुबारा जाकर वापिस लेने की झोला पुस्तकालय प्रक्रिया हर प्रज्ञापुत्रों को अपनाने के लिए कहा गया है। नित्य दो घंटे का समय इसी प्रयोजन के लिए लगाया जाता रहे, तो उतने समय में प्रायः 20 व्यक्तियों से इस निमित्त सम्पर्क साधा जा सकता है। सात दिनों के लिए सात क्षेत्र चुन लिए जायं तो 140 व्यक्तियों से सम्पर्क सध सकता है और युग साहित्य पढ़ाने-वापिस लेने का सिलसिला चल सकता है। जो लोग पढ़ने के लिए पुस्तकें लें, उन्हें इसके लिए भी सहमत किया जाय कि वे कम से कम पांच शिक्षितों को उपलब्ध पुस्तक को पढ़ाने के लिए दिया करेंगे एवं अनपढ़ों को सुनाया करेंगे। इस प्रकार 140×5=700 व्यक्ति एक प्रज्ञा पुत्र के झोला पुस्तकालय से लाभान्वित होते रहेंगे और युग परिवर्तन के लिए जो बताया एवं कहा जा रहा है, उसकी प्रेरणा प्राप्त करते रहेंगे। इसी बात को यों भी समझा जा सकता है कि एक झोला पुस्तकालय संचालक, युग प्रशिक्षक की भूमिका निभायेगा और यह मानेगा कि 700 छात्रों का नियमित अध्यापन करने वाला विद्यालय चला रहा है। यह इतना बड़ा काम है कि उसकी भावी परिणति की कल्पना करने भर से रोमांच हो आता है।
इस युग विद्यालय को चलाने के लिए थोड़ी अर्थ व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। यह कार्यभार भी समयदानियों के जिम्मे ही किया गया है कि वे न्यूनतम 20 पैसा नित्य निकाला करें और उसे एक डिब्बे में जमा किया करें। यह राशि महीने भर में छै रुपये जितनी हो जाती है। इसी पैसे से युग साहित्य और मिशन की पत्रिकायें इतनी आ सकती हैं जिनसे 700 शिक्षार्थियों को बिना जेब से एक पैसा खर्च किये पाठ्य पुस्तकों का लाभ निरन्तर मिलता रहे। दो घंटे के समयदान के अतिरिक्त 20 पैसा नित्य का अंशदान निकालना भी सृजनशिल्पियों के जिम्मे किया गया है। विचार क्रान्ति का सिलसिला इतने भर से अग्रगामी होता रह सकता है।
विचार क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत सद्विचारों तथा सुसंस्कारों की स्थापना का कार्य हर स्तर पर किया जाना है। जहां व्यवस्था बन सके, वहां बच्चों को स्कूल से छुट्टी पाने के उपरान्त बचने वाले खाली समय में ‘‘बाल संस्कार शालाएं’’ चलायी जायें। जिनमें स्कूली पाठ्यक्रम को होमवर्क की तरह ही पूरा कराने के अतिरिक्त स्काउटिंग आदि ऐसे अन्य विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए, जो विकास के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है। स्वास्थ्य, शिष्टाचार आदि ऐसे ही विषय हैं। स्कूली पाठ्यक्रम तो स्कूलों में किसी प्रकार पूरे करा भी दिए जाते हैं, किन्तु इन अति महत्त्वपूर्ण विषयों का शिक्षण विचार क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत ही किया जाना है।
इस युग विद्यालय को चलाने के लिए थोड़ी अर्थ व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। यह कार्यभार भी समयदानियों के जिम्मे ही किया गया है कि वे न्यूनतम 20 पैसा नित्य निकाला करें और उसे एक डिब्बे में जमा किया करें। यह राशि महीने भर में छै रुपये जितनी हो जाती है। इसी पैसे से युग साहित्य और मिशन की पत्रिकायें इतनी आ सकती हैं जिनसे 700 शिक्षार्थियों को बिना जेब से एक पैसा खर्च किये पाठ्य पुस्तकों का लाभ निरन्तर मिलता रहे। दो घंटे के समयदान के अतिरिक्त 20 पैसा नित्य का अंशदान निकालना भी सृजनशिल्पियों के जिम्मे किया गया है। विचार क्रान्ति का सिलसिला इतने भर से अग्रगामी होता रह सकता है।
विचार क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत सद्विचारों तथा सुसंस्कारों की स्थापना का कार्य हर स्तर पर किया जाना है। जहां व्यवस्था बन सके, वहां बच्चों को स्कूल से छुट्टी पाने के उपरान्त बचने वाले खाली समय में ‘‘बाल संस्कार शालाएं’’ चलायी जायें। जिनमें स्कूली पाठ्यक्रम को होमवर्क की तरह ही पूरा कराने के अतिरिक्त स्काउटिंग आदि ऐसे अन्य विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए, जो विकास के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक है। स्वास्थ्य, शिष्टाचार आदि ऐसे ही विषय हैं। स्कूली पाठ्यक्रम तो स्कूलों में किसी प्रकार पूरे करा भी दिए जाते हैं, किन्तु इन अति महत्त्वपूर्ण विषयों का शिक्षण विचार क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत ही किया जाना है।