Books - राम का नाम ही नहीं, काम भी
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Language: HINDI
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बहुरूपिया न बनें, मुखौटा उतारें
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महाराज जी! तब हमारी अक्ल, हमारे विचार, हमारे क्रिया-कलाप, हमारा व्यवहार इस तरीके से हो जाते हैं, जैसे दैत्य के होने चाहिए। और जब कोठरी में चले जाते हैं, तब? हम देव हो जाते हैं। और फिर क्या होता है आपका? जब हम रामलीला में जाते हैं तो वहाँ लक्ष्मण भी बन जाते हैं और जब रामलीला खतम हो जाती है, तब हमारा बाप धुनिए की अपेक्षा करता है और तब हम धुनिए हो जाते हैं; अच्छा तो आप यह सब करते हैं? हाँ साहब! हमारा नाम बहुरूपिया है। बहुरूपिया कैसा होता है? बहुरूपिया ऐसा होता है, जो कभी सिपाही बन जाता है, कभी हनुमान जी बन जाता है, कभी स्त्री बन जाता है, तो कभी बाबाजी बन जाता है। बहुरूपिया तरह-तरह के मुखौटे बाँधकर तरह-तरह का बन जाता है। अच्छा! तो अब मेरी समझ में आया कि आपने बहुरूपिया का धंधा कर रखा है। हाँ साहब! जब हम पूजा में जाते हैं तो भगत बन जाते हैं। अच्छा और जब बाजार में जाते हैं, तब? तब हम शैतान बन जाते हैं। अच्छा तो आप कितनी तरह के लिबास बना लेते हैं? गुरुजी! आपको तो अभी मालूम ही नहीं है। हमने अपने पास बहुत तरह के लिबास, बहुत तरह की पोशाकें बना करके रखी हैं, ठीक उसी तरह से, जैसे ड्रामा खेलने वाले रखते हैं। वे कभी दाढ़ी लगाकर महात्मा बन जाते हैं, कभी मुकुट लगाकर राजा बन जाते हैं, कभी झाडू लेकर भंगी बन जाते हैं, कभी क्या बन जाते हैं। हम तरह-तरह के वेश बना सकते हैं और तरह-तरह की शक्ल बना सकते हैं। अच्छा, तो आप यही धंधा करते हैं। नहीं साहब! कभी-कभी हम भजन भी कर लेते हैं। कमाल करते हैं आप! आपने तो जिंदगी का त्रिमुख बिठाया है। नहीं साहब! हम त्रिमुख क्यों बिठाएँ हम तो धंधा करते हैं, मखौल करते हैं, मजाक उड़ाते हैं। भाई साहब! भजन की भर्त्सना बंद कीजिए क्योंकि फिर इससे आपको शिकायत होगी। फिर आप यह कहेंगे कि हमारी सारी मेहनत बेकार चली गई और हमको कुछ फायदा नहीं हुआ।