Books - शिक्षा व्यवस्था कैसी हो?
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Language: HINDI
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शिक्षा की आवश्यकता
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जिस तरीके से पेट की भूख को मिटाने के लिए रोटी की जरूरत है। ठीक उसी तरीके से मन और मस्तिष्क की भूख को बुझाने के लिए शिक्षा की जरूरत है और यह प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोकसेवियों से लेकर के सरकारों तक हर एक के लिए और हर एक को पूरा पूरा प्रयत्न करना चाहिए। मनुष्य की इस प्रारंभिक आवश्यकता को पूरा करने में कुछ उठा नहीं रखना चाहिए। निरक्षरता को दूर करने के लिए सरकारी प्रयास जो चल रहे हैं, वो पर्याप्त नहीं हैं। भारत सरकार और प्रांतीय सरकारें जिस गति से काम कर रही हैं, उस गति से हमारा देश सौ वर्ष में भी शिक्षित नहीं हो सकता क्योंकि जिस हिसाब से स्कूल बढ़ते हैं और शिक्षा योजना में सुधार होता है, उस हिसाब से उसकी अपेक्षा कहीं ज्यादा तेज गति से आबादी बढ़ जाती है। जब आबादी बढ़ जाएगी तो वो पिछले वाले शिक्षा की दिशा में किए हुए उन्नति के प्रयास भी कम पड़ जाएँगे।
इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले में पूरी तरीके से सरकार पर निर्भर न रह करके लोकसेवियों के माध्यम से जनता के स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। खासतौर से बड़े लोगों की शिक्षा की समस्या है। बड़े लोगों को मरा हुआ तो नहीं माना जा सकता। महिलाएँ अपने देश में पचास फीसदी हैं और पचास फीसदी महिलाओं में से दस फीसदी की शिक्षा है, नब्बे फीसदी महिलाएँ जो आमतौर से देहातों में रहती हैं और शहरों में भी रहती हैं, उनकी शिक्षा शून्य के बराबर है। ये इतना बड़ा वर्ग विश्व का अशिक्षित बना रहे, ये बड़े दुर्भाग्य की बात है। करोड़ों लोगों में, जिनमें किसान आते हैं और मजदूर आते हैं, उनकी शिक्षा का भी सवाल है। बच्चों की बात तो जाने दीजिए बच्चों के लिए सरकार भी प्रयत्न कर रही है और अभिभावकों का भी ध्यान थोड़ा बहुत इस ओर गया है कि बालकों को शिक्षण दिया जाए लेकिन बालक जो इस समय है, जिनकी उम्र पाँच साल है, दस साल है, वो तो कहीं दस-बीस साल में इस लायक होंगे कि उनको भी कोई एक समर्थ नागरिक और सुशिक्षित नागरिक बना सके और वे देश की समस्याओं में और अपने जीवन की समस्याओं में दिलचस्पी ले सकने में समर्थ हो सकें। बीस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता। हमको आज ही जल्दी से जल्दी ये प्रयत्न करना चाहिए कि अपना निरक्षर देश जितनी जल्दी साक्षर हो जाए उतना अच्छा।
इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले में पूरी तरीके से सरकार पर निर्भर न रह करके लोकसेवियों के माध्यम से जनता के स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। खासतौर से बड़े लोगों की शिक्षा की समस्या है। बड़े लोगों को मरा हुआ तो नहीं माना जा सकता। महिलाएँ अपने देश में पचास फीसदी हैं और पचास फीसदी महिलाओं में से दस फीसदी की शिक्षा है, नब्बे फीसदी महिलाएँ जो आमतौर से देहातों में रहती हैं और शहरों में भी रहती हैं, उनकी शिक्षा शून्य के बराबर है। ये इतना बड़ा वर्ग विश्व का अशिक्षित बना रहे, ये बड़े दुर्भाग्य की बात है। करोड़ों लोगों में, जिनमें किसान आते हैं और मजदूर आते हैं, उनकी शिक्षा का भी सवाल है। बच्चों की बात तो जाने दीजिए बच्चों के लिए सरकार भी प्रयत्न कर रही है और अभिभावकों का भी ध्यान थोड़ा बहुत इस ओर गया है कि बालकों को शिक्षण दिया जाए लेकिन बालक जो इस समय है, जिनकी उम्र पाँच साल है, दस साल है, वो तो कहीं दस-बीस साल में इस लायक होंगे कि उनको भी कोई एक समर्थ नागरिक और सुशिक्षित नागरिक बना सके और वे देश की समस्याओं में और अपने जीवन की समस्याओं में दिलचस्पी ले सकने में समर्थ हो सकें। बीस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता। हमको आज ही जल्दी से जल्दी ये प्रयत्न करना चाहिए कि अपना निरक्षर देश जितनी जल्दी साक्षर हो जाए उतना अच्छा।