Books - शिक्षा व्यवस्था कैसी हो?
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Language: HINDI
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प्रौढ़ पाठशाला कैसे चलाएँ
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इसके लिए प्रौढ़ पाठशालाओं की आवश्यकता है और रात्रि पाठशालाओं की, इसका जाल बिछाया जाना चाहिए। ये कार्य लोकसेवियों के द्वारा और सार्वजनिक संस्थाओं के द्वारा किया जाना चाहिए। देहात में किसानों का प्रश्न आता है और शहरों में मजदूरों का प्रश्न आता है। मजदूरों को भी सुविधा नहीं है। उनके बच्चे छोटी उमर से काम करने लगते हैं। जब थोड़ा सा श्रम करने लगते हैं, तो घर वालों को मोह हो जाता है कि इनको क्यों पढ़ाया जाए। पहले रिवाज भी नहीं था, जब वो समझते थे कि नौकरी तो करनी नहीं है, नौकरी के लिए पढ़ाई होती है। नौकरी और पढ़ाई का क्या ताल्लुक, ये तो मनुष्य के विकास की समस्या है। नौकरी और विकास का कोई ताल्लुक नहीं। इसीलिए अब उनको ऐसा करना चाहिए कि जो अशिक्षित लोग हैं उनके लिए बड़े लोगों के लिए रात्रि के समय की पाठशालाएँ चलाई जानी चाहिए। रात्रि का समय प्राय: कामकाज करने वाले लोगों के लिए फुरसत का होता है। प्राय :: सबेरे से लोग काम किया करते हैं और सायंकाल में काम करने की बात खतम हो जाती है। जीविका रोटी कमाना अक्सर और अधिकांश लोग दिन में ही पूरी कर लेते हैं। रात्रि का समय जब आता है, तो खाना-पीना खाने के बाद में अक्सर आदमी को फुरसत रहती है। अपनी बात-चीत करते रहते हैं, गपशप करते हैं, सिनेमा देखते हैं, थोड़ा सा मनोरंजन करते हैं। बस यही ठीक समय हैं जिसमें कि प्रौढ़ लोगों की शिक्षा एवं समस्याओं का समाधान किया जा सके। रात्रि को जब सात बजे के करीब सब लोग काम से आकर के और नित्य कर्म करके खाना पीना खा करके जल्दी निवृत्त हो जाएँ तब सात से नौ तक अथवा ठंडक और गरमी के हिसाब से इस समय को आगे-पीछे बढ़ाया जा सकता है दो घंटे की पाठशालाएँ चल सकती हैं।
शिक्षित लोगों के लिए आवश्यक है कि वो अपना थोड़ा सा समय इसके लिए श्रमदान के रूप में दें और समाज के लिए अनुदान के रूप में दें। पढे़ लिखे लोग यदि उत्साही हों, इस तरह की पाठशाला आपस में मिलजुलकर के चला लें, समय का निर्धारण कर लें और किसी दिन ड्यूटी किसी की हो और किसी दिन ड्यूटी किसी की हो अथवा एक महीना किसी की हो अथवा ऐसे लोग हों जो नियमित रूप से ही समय देने लगें, तो मोहल्ले-मोहल्ले में, गली-गली में, गाँव-गाँव में रात्रि पाठशालाएँ चल सकती हैं। इसके लिए जिन लोगों को संकोच सा लगता है, झिझक लगती है, अपनी तौहीन समझते हैं कि हमारी इतनी बड़ी उमर हो गई और हम बच्चों के तरीके से पढ़ने क्या जाएँ?
शिक्षित लोगों के लिए आवश्यक है कि वो अपना थोड़ा सा समय इसके लिए श्रमदान के रूप में दें और समाज के लिए अनुदान के रूप में दें। पढे़ लिखे लोग यदि उत्साही हों, इस तरह की पाठशाला आपस में मिलजुलकर के चला लें, समय का निर्धारण कर लें और किसी दिन ड्यूटी किसी की हो और किसी दिन ड्यूटी किसी की हो अथवा एक महीना किसी की हो अथवा ऐसे लोग हों जो नियमित रूप से ही समय देने लगें, तो मोहल्ले-मोहल्ले में, गली-गली में, गाँव-गाँव में रात्रि पाठशालाएँ चल सकती हैं। इसके लिए जिन लोगों को संकोच सा लगता है, झिझक लगती है, अपनी तौहीन समझते हैं कि हमारी इतनी बड़ी उमर हो गई और हम बच्चों के तरीके से पढ़ने क्या जाएँ?