Books - शिक्षा व्यवस्था कैसी हो?
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Language: HINDI
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बच्चों को क्या पढ़ाया जाए?
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अब बच्चों का सवाल आता है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाए? इसे दुर्भाग्य कहना चाहिए कि हमारे देश में शिक्षा की मनोवृत्ति और शिक्षा का स्वरूप कुछ ऐसा विलक्षण हो गया है कि हर आदमी पढ़ने के साथ-साथ में इस बात को जोड़ लेता है कि हमको पढ़ने के बाद में नौकरी मिल ही जाएगी और नौकरी करनी ही चाहिए। नौकरी अर्थात शिक्षा ये दोनों पर्यायवाची शब्द हो गए हैं आज। विद्यार्थियों से, स्कूलों और कॉलेजों में जाकर पूछा जाए कि आपका भविष्य क्या है और आप क्या करेंगे? उनमें से 99 प्रतिशत बच्चों का एक ही उत्तर होगा कि हम नौकरी करेंगे। इतनी नौकरी कहाँ से आएँगी? जब सारे के सारे देश के नागरिक पढ़ने लगेंगे और हर नागरिक की यह इच्छा होगी कि हमको नौकरी ही मिलनी चाहिए। तो सबको नौकर कौन रखेगा? नौकर की कहीं-कहीं जरूरत पड़ती है। फिर क्या होगा? पढ़ाई और नौकरी बिलकुल अलग-अलग बात है।
नौकरी का अर्थ यह जरूर है कि शिक्षा के साथ लोगों को इतना ज्ञान और बुद्धि होनी चाहिए ताकि अगर आवश्यकता पड़े, तो वह स्वावलंबी बन सके। उनके पैतृक व्यवसाय जो कुछ भी होते हैं, उसमें उनको निष्णात करना शिक्षा का काम है। जो किसानों के बच्चे हैं, उनको खेती बाड़ी की शिक्षा, पशुपालन की शिक्षा, इसके बारे में आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए और वो बच्चे अपने बड़े होने के बाद में पढ़ लिख करके अपने माँ बाप के तरीके से भी अच्छी तरह खेती बाड़ी करना शुरू करें, पशु पालन शुरू करें, नया उद्योग शुरू करें। ऐसी जानकारी मिले तो किसानों के बालकों को नौकरी तलाश करने की आवश्यकता क्यों हो? शिक्षा का यह उद्देश्य है, किस ओहदे का लड़का है, प्राइमरी शिक्षा लेने के बाद में बच्चों की रुचि और व्यवसाय का निर्धारण वहीं हो जाना चाहिए। ये देखा जाना चाहिए कि नौकरी तो सब को नहीं मिल सकती आखिर उनको जीविका के लिए क्या करना है? किसान के बच्चों को किसान के लायक शिक्षा, दुकानदार के बच्चों को दुकानदार के लायक शिक्षा, जिनके माँ-बाप जिनके घर वाले व्यापार करते हैं उनको उस तरह की शिक्षा की व्यवस्था कर देनी चाहिए छोटी उमर से ही।
नौकरी का अर्थ यह जरूर है कि शिक्षा के साथ लोगों को इतना ज्ञान और बुद्धि होनी चाहिए ताकि अगर आवश्यकता पड़े, तो वह स्वावलंबी बन सके। उनके पैतृक व्यवसाय जो कुछ भी होते हैं, उसमें उनको निष्णात करना शिक्षा का काम है। जो किसानों के बच्चे हैं, उनको खेती बाड़ी की शिक्षा, पशुपालन की शिक्षा, इसके बारे में आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए और वो बच्चे अपने बड़े होने के बाद में पढ़ लिख करके अपने माँ बाप के तरीके से भी अच्छी तरह खेती बाड़ी करना शुरू करें, पशु पालन शुरू करें, नया उद्योग शुरू करें। ऐसी जानकारी मिले तो किसानों के बालकों को नौकरी तलाश करने की आवश्यकता क्यों हो? शिक्षा का यह उद्देश्य है, किस ओहदे का लड़का है, प्राइमरी शिक्षा लेने के बाद में बच्चों की रुचि और व्यवसाय का निर्धारण वहीं हो जाना चाहिए। ये देखा जाना चाहिए कि नौकरी तो सब को नहीं मिल सकती आखिर उनको जीविका के लिए क्या करना है? किसान के बच्चों को किसान के लायक शिक्षा, दुकानदार के बच्चों को दुकानदार के लायक शिक्षा, जिनके माँ-बाप जिनके घर वाले व्यापार करते हैं उनको उस तरह की शिक्षा की व्यवस्था कर देनी चाहिए छोटी उमर से ही।