Books - सुख-शांति की साधना
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Language: HINDI
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मन का भार हल्का रखिये
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कल न जाने क्या होगा? नौकरी मिलेगी या नहीं, परीक्षा में उत्तीर्ण होंगे या अनुत्तीर्ण, लड़की के लिये योग्य वर कहां मिलेगा, मकान कब तक बन कर पूरा होगा, कहीं वर्षा न हो जाय, जो पकी फसल खराब हो जाय आदि बातों की निराशाजनक कल्पना द्वारा आप मन में घबराहट न पैदा किया करें। जो होना है, वह एक निश्चित क्रम से ही होगा, तो फिर घबराने, व्यर्थ विलाप करने अथवा भविष्य की चिन्ता में पड़े रहने से क्या लाभ? अवांछित कल्पनाएं करेंगे तो आपका जीवन अस्त-व्यस्त होगा और व्यर्थ की कठिनाई से आप अपने को पीड़ित अनुभव करते रहेंगे।
समय पर कार्य प्रायः सभी के पूरे हो जाते हैं, इसलिए प्रयास तो जारी रखें, पर घबराहट पैदा कर काम को बोझीला न बनायें। आपका मन भार-मुक्त रहेगा, तो काम अधिक रुचि और जागरुकता के साथ कर सकेंगे। यह स्थिति आपको प्रसन्नता भी देगी और सफलता भी।
घबराने वाले व्यक्ति फूहड़ माने जाते हैं, उनका कोई काम सही नहीं होता। पुस्तकें लिये बैठे हैं, पर फेल हो जाने की घबराहट सता रही है। फलतः पेज तो खुला है पर मन कहीं और जगह घूम रहा है। एक गलती आप से हो गई है, उसे छिपाने के चक्कर में आपका दिमाग सही नहीं है, कहीं गड्ढे में गिर जाते हैं, कहीं बर्तनों से टकरा कर पांव फोड़ लेते हैं। सही काम के लिये मन में घबराहट का बोझ न डाला करिये। फल-कुफल की परवाह किये बिना स्वस्थ और पूरे मन से काम किया करिए।
स्टेशन की ओर तो जा ही रहे हैं, रेलगाड़ी मिलेगी या नहीं? मस्तिष्क को इस फिसाद में फंसाने का क्या फायदा? यही तो होगा कि गाड़ी स्टेशन पहुंचने के पूर्व छूट जाय और आपको जहां जाना है, वहां कुछ विलम्ब से पहुंचना हो। आप जहां जा रहे हैं या जो कुछ पूरा कर रहे हैं, उसका भी तो यही लक्ष्य होगा कि वह कार्य पूरा हो तो प्रसन्नता मिले, पर अगली प्रसन्नता के लिये अब की प्रसन्नता क्यों नष्ट करते हैं? पहले से ही मन को अलमस्त क्यों नहीं रखते, यही तो होगा कि कार्य कुछ थोड़ा विलम्ब से होगा। अपना क्रम अपनी व्यवस्थायें ठीक रखिये तो आप पायेंगे कि घबराहट के सारे कारण निराधार हैं। आप अपना काम ठीक रखिये, आपको कोई नौकरी से नहीं निकालेगा। दुकान पर रोज बैठते हैं, तो खाने की क्या चिन्ता? दूसरों की बच्चियों की शादियां होती हैं, फिर आप की बच्ची कुमारी थोड़े ही बैठी रहेगी। लड़का स्वस्थ और सदाचारी मिल जाय तो निर्धनता की घबराहट क्यों हो? आप अपनी व्यवस्था के साथ अपना दृष्टिकोण ठीक रखिये, आपकी सारी कठिनाइयां अपने आप हल होती रहेंगी।
घबड़ाना तो उन्हें चाहिए, जो हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते हैं। कर्मशील व्यक्ति के लिये असफलता की आशंका नहीं होनी चाहिए।
कार्य करते हुए मानसिक असंतुलन रखना एक बड़ी कमजोरी है। इसी से सारी परेशानियां पैदा होती हैं। मन का झुकाव कभी इस ओर, कभी उस ओर होगा तो आप कभी एक काम हाथ में लेंगे और वह पूरा नहीं हो पायेगा, दूसरे काम की ओर दौड़ेंगे। इस गड़बड़ी में आपका न पहला काम पूरा होगा, न दूसरा। सब अधूरा पड़ा रहेगा। आपका मानसिक असन्तुलन सब गड़बड़ करता रहेगा और आपकी परेशानियां भी बढ़ती जायेंगी।
विचार लड़खड़ा जाते हैं, तो दिनचर्या और कार्यक्रम भी गड़बड़ हो जाते हैं और उल्टे परिणाम निकलते हैं। सवारी पाने की जल्दी में पीछे सामान छूट जाता है। स्वागत की तैयारी में ध्यान ही नहीं रहता और खाना जल जाता है। स्त्रियां इसी झोंक में इतनी बेसुध हो जाती हैं कि चूल्हे या स्टोव की आग से उनके कपड़े जल जाते हैं या मकान में आग लग जाती है। प्रत्येक कार्य को एक व्यवस्था के साथ करने का नियम है। एक काम जब चल रहा है, तो दूसरी तरह के विचार को मस्तिष्क में स्थान मत दीजिये। एक बार में एक ही विचार और एक ही कार्य। हड़बड़ाये नहीं अन्यथा आपका सारा खेल चौपट हो सकता है।
जीवन में उदासी, खिन्नता एवं अप्रसन्नता के वास्तविक कारण बहुत कम ही होते हैं, अधिकांश कारण घबराहट से उत्पन्न भय ही होता है। मनुष्य नहीं जानता कि वह इससे अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का कितना बड़ा भाग व्यर्थ गंवाता रहता है? जिन्होंने जीवन में बड़ी सफलतायें पाई हैं, उन सबके जीवन बड़े सुचारू, क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित रहे हैं। जिनके जीवन में विशृंखलता होती है, उसके पास सदैव ‘‘समय कम होने’’ की शिकायत बनी रहती है फिर भी अन्त तक कुल मिलाकर एक-दो काम ही कर पाते हैं, पर जिन लोगों ने विधि-व्यवस्था से, धैर्य से, चिन्ता-विमुक्त कार्य संवारे, उन्होंने असंख्य कार्य किये। इतनी सफलतायें अर्जित कीं, जो सामान्य व्यक्ति के लिये चमत्कार जैसी लग सकती हैं।
यह भी संभव है कि आपकी दुर्बलता पैतृक हो। आप यह अनुभव करते हों कि जिस परिवार में पैदा हुए हैं, वहां की परिस्थितियां उतनी अच्छी नहीं थी। उस घर के लोग असफल, निराश, निर्धन, अनपढ़ या किसी अन्य बुराई से ग्रसित रहे हैं और उनका प्रभाव आपके संस्कारों पर भी पड़ा है। पारिवारिक जीवन का व्यक्ति के जीवन पर निःसंदेह बहुत प्रभाव होता है, किन्तु अपने मनोबल को ऊंचा उठाकर गई-गुजरी स्थिति में भी आशातीत सफलतायें प्राप्त की जा सकती हैं।
कदाचित आप में ऐसी कमजोरियां हों, जिनके कारण आपको घबराहट आती हो। उन कमियों पर गम्भीरता-पूर्वक विचार कीजिये। उन्हें अपने माता-पिता, सहपाठियों, मित्रों से प्रकट कीजिये, उनसे सहायता लीजिये जिन लोगों ने छोटी अवस्थाओं से बढ़कर बड़े कार्य किये हों, उनके जीवन चरित्र पढ़िये, अपनी मानसिक कमजोरियों को दूर करने के लिये अपने सहृदय अभिभावकों और मित्रों के प्रति आपका जीवन एक खुली पुस्तक की तरह होना चाहिए, जिसका हर अच्छा-बुरा अध्याय पाठक आसानी से समझ सकता हो, आप अपनी कमजोरियों का हल औरों से पूछिये और उन्हें दूर करने के प्रयत्न किया कीजिये। अब तक आप आत्म-प्रशंसा के लिये अधीर रहते रहे, अब आप आत्मालोचन से प्रसन्न हुआ करिये, तो आपका जीवन प्रतिदिन निखरता हुआ चला जायगा। उसमें शक्ति, साहस और सफलता की कमी न रहेगी।
काम करते समय आपको जब भी निराशा, बेचैनी, बोझ या घबराहट लगा करे, उस समय अपने आत्म-विश्वास को जगाने का प्रयत्न किया कीजिये। आध्यात्मिक चिन्तन किया कीजिये। आप यह सोचा करिये कि आप भी दूसरों की तरह एक बलवान् आत्मा हैं, आपके पास शक्तियों का अभाव नहीं है। अभी तक उनका प्रयोग नहीं किया है, इसीलिए भय, संकोच या लज्जा आती है। पर अब आपने जान लिया है कि आपको भी सामर्थ्य कम नहीं है। आप निर्धन परिवार के सदस्य नहीं, वरन् परमात्मा के वंश में उसकी उत्कृष्ट शक्तियां लेकर अवतरित हुए हैं फिर आपको घबराहट किस लिये होनी चाहिये?
जब भी कभी आपको कोई मानसिक भय, उलझन या निराशा उत्पन्न हो, आप कुछ देर के लिये एकान्त में चले जाया कीजिये। कल्पना में शुभ और पौरुषपूर्ण चित्र बनाया कीजिये। असफलता की बात मन से जितनी दूर भगा देंगे उतनी ही आपके अन्दर रचनात्मक प्रवृत्तियां जागृत होंगी और आपका जीवन सुख-सुविधाओं से पूर्ण होता चलेगा। प्रत्येक कार्य शान्ति और स्थिरता पूर्वक किया कीजिये। आप महान् आत्मा हैं, आपका जन्म किन्हीं महान् उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हुआ है। बड़ी सफलता के लिये बड़ा साहस चाहिये। वह साहस आप में सोया है, उसे जाग्रत करना आपका काम है। आप इस लक्ष्य को समक्ष रखकर शुभ कल्पनाएं किया कीजिये और मन को भय, घबराहट तथा निराशा आदि के बोझ से मुक्त रखा कीजिये। आपका मन हल्का रहे तो उसमें से रचनात्मक स्रोत फूट पड़ें और आपको सब तरह की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण करदें। ऋषि की इस प्रार्थना में बड़ा बल है—
अपेहि मनसस्पतेऽप क्राम परश्चर । परो निर्ऋत्या आ चक्ष्व बहुधाजीवनोमनः ।। —ऋग्. 10। 164। 1
अर्थात्—‘‘मन को अपवित्र करने वाले बुरे विचारों के बोझ मुझ से दूर रहें। मेरा चित्त कभी मलिन न हो। मेरा अन्तरात्मा निर्भय और मेरा मन शुभ विचारों वाला हो।’’
समय पर कार्य प्रायः सभी के पूरे हो जाते हैं, इसलिए प्रयास तो जारी रखें, पर घबराहट पैदा कर काम को बोझीला न बनायें। आपका मन भार-मुक्त रहेगा, तो काम अधिक रुचि और जागरुकता के साथ कर सकेंगे। यह स्थिति आपको प्रसन्नता भी देगी और सफलता भी।
घबराने वाले व्यक्ति फूहड़ माने जाते हैं, उनका कोई काम सही नहीं होता। पुस्तकें लिये बैठे हैं, पर फेल हो जाने की घबराहट सता रही है। फलतः पेज तो खुला है पर मन कहीं और जगह घूम रहा है। एक गलती आप से हो गई है, उसे छिपाने के चक्कर में आपका दिमाग सही नहीं है, कहीं गड्ढे में गिर जाते हैं, कहीं बर्तनों से टकरा कर पांव फोड़ लेते हैं। सही काम के लिये मन में घबराहट का बोझ न डाला करिये। फल-कुफल की परवाह किये बिना स्वस्थ और पूरे मन से काम किया करिए।
स्टेशन की ओर तो जा ही रहे हैं, रेलगाड़ी मिलेगी या नहीं? मस्तिष्क को इस फिसाद में फंसाने का क्या फायदा? यही तो होगा कि गाड़ी स्टेशन पहुंचने के पूर्व छूट जाय और आपको जहां जाना है, वहां कुछ विलम्ब से पहुंचना हो। आप जहां जा रहे हैं या जो कुछ पूरा कर रहे हैं, उसका भी तो यही लक्ष्य होगा कि वह कार्य पूरा हो तो प्रसन्नता मिले, पर अगली प्रसन्नता के लिये अब की प्रसन्नता क्यों नष्ट करते हैं? पहले से ही मन को अलमस्त क्यों नहीं रखते, यही तो होगा कि कार्य कुछ थोड़ा विलम्ब से होगा। अपना क्रम अपनी व्यवस्थायें ठीक रखिये तो आप पायेंगे कि घबराहट के सारे कारण निराधार हैं। आप अपना काम ठीक रखिये, आपको कोई नौकरी से नहीं निकालेगा। दुकान पर रोज बैठते हैं, तो खाने की क्या चिन्ता? दूसरों की बच्चियों की शादियां होती हैं, फिर आप की बच्ची कुमारी थोड़े ही बैठी रहेगी। लड़का स्वस्थ और सदाचारी मिल जाय तो निर्धनता की घबराहट क्यों हो? आप अपनी व्यवस्था के साथ अपना दृष्टिकोण ठीक रखिये, आपकी सारी कठिनाइयां अपने आप हल होती रहेंगी।
घबड़ाना तो उन्हें चाहिए, जो हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते हैं। कर्मशील व्यक्ति के लिये असफलता की आशंका नहीं होनी चाहिए।
कार्य करते हुए मानसिक असंतुलन रखना एक बड़ी कमजोरी है। इसी से सारी परेशानियां पैदा होती हैं। मन का झुकाव कभी इस ओर, कभी उस ओर होगा तो आप कभी एक काम हाथ में लेंगे और वह पूरा नहीं हो पायेगा, दूसरे काम की ओर दौड़ेंगे। इस गड़बड़ी में आपका न पहला काम पूरा होगा, न दूसरा। सब अधूरा पड़ा रहेगा। आपका मानसिक असन्तुलन सब गड़बड़ करता रहेगा और आपकी परेशानियां भी बढ़ती जायेंगी।
विचार लड़खड़ा जाते हैं, तो दिनचर्या और कार्यक्रम भी गड़बड़ हो जाते हैं और उल्टे परिणाम निकलते हैं। सवारी पाने की जल्दी में पीछे सामान छूट जाता है। स्वागत की तैयारी में ध्यान ही नहीं रहता और खाना जल जाता है। स्त्रियां इसी झोंक में इतनी बेसुध हो जाती हैं कि चूल्हे या स्टोव की आग से उनके कपड़े जल जाते हैं या मकान में आग लग जाती है। प्रत्येक कार्य को एक व्यवस्था के साथ करने का नियम है। एक काम जब चल रहा है, तो दूसरी तरह के विचार को मस्तिष्क में स्थान मत दीजिये। एक बार में एक ही विचार और एक ही कार्य। हड़बड़ाये नहीं अन्यथा आपका सारा खेल चौपट हो सकता है।
जीवन में उदासी, खिन्नता एवं अप्रसन्नता के वास्तविक कारण बहुत कम ही होते हैं, अधिकांश कारण घबराहट से उत्पन्न भय ही होता है। मनुष्य नहीं जानता कि वह इससे अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का कितना बड़ा भाग व्यर्थ गंवाता रहता है? जिन्होंने जीवन में बड़ी सफलतायें पाई हैं, उन सबके जीवन बड़े सुचारू, क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित रहे हैं। जिनके जीवन में विशृंखलता होती है, उसके पास सदैव ‘‘समय कम होने’’ की शिकायत बनी रहती है फिर भी अन्त तक कुल मिलाकर एक-दो काम ही कर पाते हैं, पर जिन लोगों ने विधि-व्यवस्था से, धैर्य से, चिन्ता-विमुक्त कार्य संवारे, उन्होंने असंख्य कार्य किये। इतनी सफलतायें अर्जित कीं, जो सामान्य व्यक्ति के लिये चमत्कार जैसी लग सकती हैं।
यह भी संभव है कि आपकी दुर्बलता पैतृक हो। आप यह अनुभव करते हों कि जिस परिवार में पैदा हुए हैं, वहां की परिस्थितियां उतनी अच्छी नहीं थी। उस घर के लोग असफल, निराश, निर्धन, अनपढ़ या किसी अन्य बुराई से ग्रसित रहे हैं और उनका प्रभाव आपके संस्कारों पर भी पड़ा है। पारिवारिक जीवन का व्यक्ति के जीवन पर निःसंदेह बहुत प्रभाव होता है, किन्तु अपने मनोबल को ऊंचा उठाकर गई-गुजरी स्थिति में भी आशातीत सफलतायें प्राप्त की जा सकती हैं।
कदाचित आप में ऐसी कमजोरियां हों, जिनके कारण आपको घबराहट आती हो। उन कमियों पर गम्भीरता-पूर्वक विचार कीजिये। उन्हें अपने माता-पिता, सहपाठियों, मित्रों से प्रकट कीजिये, उनसे सहायता लीजिये जिन लोगों ने छोटी अवस्थाओं से बढ़कर बड़े कार्य किये हों, उनके जीवन चरित्र पढ़िये, अपनी मानसिक कमजोरियों को दूर करने के लिये अपने सहृदय अभिभावकों और मित्रों के प्रति आपका जीवन एक खुली पुस्तक की तरह होना चाहिए, जिसका हर अच्छा-बुरा अध्याय पाठक आसानी से समझ सकता हो, आप अपनी कमजोरियों का हल औरों से पूछिये और उन्हें दूर करने के प्रयत्न किया कीजिये। अब तक आप आत्म-प्रशंसा के लिये अधीर रहते रहे, अब आप आत्मालोचन से प्रसन्न हुआ करिये, तो आपका जीवन प्रतिदिन निखरता हुआ चला जायगा। उसमें शक्ति, साहस और सफलता की कमी न रहेगी।
काम करते समय आपको जब भी निराशा, बेचैनी, बोझ या घबराहट लगा करे, उस समय अपने आत्म-विश्वास को जगाने का प्रयत्न किया कीजिये। आध्यात्मिक चिन्तन किया कीजिये। आप यह सोचा करिये कि आप भी दूसरों की तरह एक बलवान् आत्मा हैं, आपके पास शक्तियों का अभाव नहीं है। अभी तक उनका प्रयोग नहीं किया है, इसीलिए भय, संकोच या लज्जा आती है। पर अब आपने जान लिया है कि आपको भी सामर्थ्य कम नहीं है। आप निर्धन परिवार के सदस्य नहीं, वरन् परमात्मा के वंश में उसकी उत्कृष्ट शक्तियां लेकर अवतरित हुए हैं फिर आपको घबराहट किस लिये होनी चाहिये?
जब भी कभी आपको कोई मानसिक भय, उलझन या निराशा उत्पन्न हो, आप कुछ देर के लिये एकान्त में चले जाया कीजिये। कल्पना में शुभ और पौरुषपूर्ण चित्र बनाया कीजिये। असफलता की बात मन से जितनी दूर भगा देंगे उतनी ही आपके अन्दर रचनात्मक प्रवृत्तियां जागृत होंगी और आपका जीवन सुख-सुविधाओं से पूर्ण होता चलेगा। प्रत्येक कार्य शान्ति और स्थिरता पूर्वक किया कीजिये। आप महान् आत्मा हैं, आपका जन्म किन्हीं महान् उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हुआ है। बड़ी सफलता के लिये बड़ा साहस चाहिये। वह साहस आप में सोया है, उसे जाग्रत करना आपका काम है। आप इस लक्ष्य को समक्ष रखकर शुभ कल्पनाएं किया कीजिये और मन को भय, घबराहट तथा निराशा आदि के बोझ से मुक्त रखा कीजिये। आपका मन हल्का रहे तो उसमें से रचनात्मक स्रोत फूट पड़ें और आपको सब तरह की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण करदें। ऋषि की इस प्रार्थना में बड़ा बल है—
अपेहि मनसस्पतेऽप क्राम परश्चर । परो निर्ऋत्या आ चक्ष्व बहुधाजीवनोमनः ।। —ऋग्. 10। 164। 1
अर्थात्—‘‘मन को अपवित्र करने वाले बुरे विचारों के बोझ मुझ से दूर रहें। मेरा चित्त कभी मलिन न हो। मेरा अन्तरात्मा निर्भय और मेरा मन शुभ विचारों वाला हो।’’