Books - सुख-शांति की साधना
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Language: HINDI
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समय जरा भी बर्बाद न कीजिए
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समय को सम्पत्ति कहा गया है। यह गलत भी नहीं है। समय का सदुपयोग करके ही लोग धनवान बनते हैं, विद्वान तथा कर्तृत्ववान बनते हैं। कभी किसी प्रकार भी एक क्षण खराब करना अपनी बड़ी हानि करना है।
जिस प्रकार समय का सदुपयोग लाभकारी होता है उसी प्रकार समय का दुरुपयोग हानिकारक होता है। खाली हाथ बैठा नहीं जा सकता। मनुष्य यदि कोई शारीरिक कार्य न करता हो तो उसके मानसिक तरंग दौड़ रहे होंगे। जिन विचारों के पीछे उद्देश्य नहीं होता, जिनके उपयोग की कोई योजना नहीं होती वे मन मस्तिष्क को विकृत कर देते हैं। फिजूल की कल्पनायें मन में इच्छाओं का जागरण कर देती हैं, ऐसी इच्छायें जिनका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं होता, यों ही मन में उमड़-घुमड़ कर मनुष्य को इधर-उधर लिए घूमती हैं। ऐसी इच्छाओं में काम-वितर्क जैसी विकृत इच्छायें ही अधिक होती हैं।
चौबीस घण्टों में ज्यादा से ज्यादा सामान्य लोग आठ-दस घण्टे ही काम किया करते हैं। बाकी का समय उनके पास बेकार ही रहता है। उस बेकार समय में आठ घण्टे के लगभग नहाने-धोने, सोने में निकल जाते हैं, तब भी उसके पास चार-छह घण्टे तक का समय बिल्कुल बेकार रहता है। इस समय में या तो लोग इधर-उधर मारे-मारे घूमते हैं या यार-दोस्तों के साथ गप मारते, ताश-चौपड़ या शतरंज खेलते हैं। बहुत लोग इसी समय में सिनेमा या स्वांग देखने जाते हैं या घर में ही बैठ कर पत्नी से मुंह-जोरी या बच्चों पर शासन चलाते हैं, जिससे गृह-कलह होती है। घर का वातावरण खराब होता, बच्चों की हंसी-खुशी मिट जाती है। तात्पर्य यह है कि अपने खाली समय में लोग कुछ ऐसा ही काम किया करते हैं जिसका कोई लाभ तो होता ही नहीं उल्टे कोई हानि या बुराई ही पैदा होती है।
यदि मनुष्य शेष समय का सार्थक सदुपयोग करना सीख जाए तो बहुत-सी बुराइयों से बच जाय और कुछ लाभ भी उठा सकता है। समय का सदुपयोग ही उन्नति का मूल-मन्त्र है। स्त्रियों के पास तो पुरुषों से भी अधिक फालतू समय बचता है। भोजन बनाने खिलाने के उपरान्त उनके पास कोई काम नहीं रहता। काम से निपट कर या तो पड़ी-पड़ी अलसाया करती हैं, या सोया करती हैं अथवा दूसरी स्त्रियों के साथ बैठ कर बातें करेंगी। निन्दा और आलोचना-प्रत्यालोचना का प्रसंग चलायेंगी और कोई बहाना मिल जाने से लड़ाई-झगड़ा करेंगी। फालतू रहना झगड़े-फसाद को आमन्त्रित करना है। यदि पढ़ी-लिखी हुई तो मासिक पत्र-पत्रिकायें और उपन्यास वगैरह पढ़ती रहेंगी सो भी निरुद्देश्य। न ज्ञान के लिए, न स्वास्थ्य, मनोरंजन के लिए, केवल अपना यह फालतू समय काटने के लिये।
आज समय बड़ा तंगी का है। युग पुकार-पुकार कर चेतावनी दे रहा है, ‘उठो तन्द्रा छोड़ो, हर समय काम में जुटे रहो। अपने समय के प्रत्येक क्षण का सार्थक उपयोग करो। संसार आगे बढ़ रहा है तुम बहुत पीछे छूटे जा रहे हो। अपनी, अपने परिवार और अपने समाज, राष्ट्र की उन्नति के लिए काम करो। सुस्ती, आलस्य, तुच्छ मनोरंजन, व्यर्थ की टीका-टिप्पणी करने अथवा लड़ने-झगड़ने में समय और शक्ति बरबाद मत करो। समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है जो उसे नष्ट करता रहता है। इसलिए उठो, चेतो और हर क्षण काम में लगे रहो। जो समय जा रहा है वह बहुत मूल्यवान है। एक बार निकल जाने के बाद फिर वापस नहीं आता। वर्तमान का विकृत अभ्यास भविष्य के आगामी समय को नष्ट कर डालता है। जीवन की अवधि सीमित है। इसी सीमित अवधि में सभी कुछ कर डालना है।
युग की पुकार उपयोगी तथा शिक्षाप्रद है। समय का सदुपयोग सारी उन्नतियों का मूलमन्त्र है। राष्ट्र, देश, समाज पिछड़ा हुआ है, व्यक्तिगत उन्नति रुकी हुई है। यह सब अभियान समय का सदुपयोग करने से आगे बढ़ेगा। आलस्य, प्रमाद, अकर्मण्यता तथा ठल्लेनवीसी हानिकारक है। इससे शरीर सुस्त और मन मृत जैसा हो जाता है। कार्यक्षमता कम हो जाती है, दक्षता कुण्ठित हो जाती है, मनुष्य संकीर्णता के दायरे में पड़ा-पड़ा मर जाता है। इसलिए जिसके पास जो कुछ समय शेष बचे उसका बुद्धिमानी पूर्वक सदुपयोग करते ही रहना चाहिये। एक नहीं ऐसे अनेक कार्य हो सकते हैं जो फालतू समय में पिये जा सकते हैं। उनसे आर्थिक लाभ भी हो सकता है और मनोरंजन की आवश्यकता भी पूरी हो सकती है।
निश्चय ही हर सामान्य व्यक्ति के पास बहुत-सा फालतू समय बचता है। परन्तु सभी यह शिकायत करते देखे जाते हैं कि उनके पास समय की कमी है। मारे काम-काज और दौड़-धूप के दम मारने की फुरसत नहीं मिलती। लेकिन यह बात सत्य से दूर है। उन्हें काम की बहुतायत तथा समय की कमी का भ्रम बना रहता है। यह भ्रम पैदा होने का कारण है। वह यह कि लोग अपना सारा काम अव्यवस्थित तथा अस्त-व्यस्त ढंग से किया करते हैं। जिससे जिस काम में जितना समय लगना चाहिये उससे कहीं अधिक लग जाता है। काम पूरे नहीं हो पाते और सदैव सिर पर सवार रहते हैं। दिन निकल जाता है, रात आ जाती है और बहुत से काम अनकिये पड़े रहते हैं। लोग यह समझते हैं कि उनके पास काम अधिक है और समय कम, जिससे वे हर समय परेशान और व्यग्र रहते हैं।
यह काम का बटवारा समय के अनुसार रहे और निर्धारित समय के लिए निश्चित किया हुआ काम तत्परता पूर्वक एक क्षण भी नष्ट किये बिना पूरी तन्मयता और शक्ति से किया जाए तो कोई भी काम अपेक्षित समय से अधिक समय न ले। सारे काम समय से पूरे हो जायेंगे। लोग समय और काम का बटवारा करते नहीं। जब जिस काम को चाहा पकड़ लिया और जिसको चाहा छोड़ दिया। काम का समय है लेकिन अलसा रहे हैं। करने के लिए अभी सोच ही रहे हैं। या धीरे-धीरे कर रहे हैं। बैठकर सुस्ताने लगे। ये ऐसे दोष हैं जो समय तो खराब कर ही देते हैं और साथ ही किसी काम को पूरी सफलता के साथ पूरा भी नहीं होने देते। निदान समय का अभाव बना रहता है और काम पड़े रहते हैं।
यदि किये जाने वाले कामों की योजना पहले से ही बनी रहे, यह निश्चित रहे कि कौन-सा काम किस समय प्रारम्भ करके कब तक खत्म कर देना है तो यह दिक्कत न रहे। निश्चित समय आते ही काम में लग जाया जाए और प्रयत्नपूर्वक समय तक समाप्त कर दिया जाये। इसका सबसे सरल तथा उचित उपाय यह है कि दूसरे दिन के सारे कामों की योजना रात में ही बना ली जाये कि दिन प्रारम्भ होते ही कौन-सा काम किस समय प्रारम्भ करना है और किस समय तक उसे समाप्त कर देना है। तो कोई कारण नहीं कि हर काम अपने क्रम से अपने निर्धारित समय पर शुरू होकर ठीक समय पर समाप्त न हो जाये। बहुत से लोग काम का दिन शुरू होने पर—आज क्या-क्या करना है—यह सोचना प्रारम्भ करते हैं। न जाने कितना काम का समय इस सोच विचार में ही निकल जाता है। बहुत-सा समय पहले ही खराब करने के बाद काम शुरू किये जायें तो स्वाभाविक है आगे चलकर समय की कमी पड़ेगी और काम अधूरे पड़े रहेंगे जो दूसरे दिन के लिए और भी भारी पड़ जायेंगे। वासी काम वासी भोजन से भी अधिक अरुचिकर होता है। इसलिए बुद्धिमानी यही है कि दूसरे दिन किये जाने वाले काम रात को ही निश्चित कर लिये जायें। उनका क्रम तथा समय भी निर्धारित कर लिया जाये और दिन शुरू होते ही बिना एक क्षण खराब किये उनमें जुट पड़ा जाये और पूरे परिश्रम तथा मनोयोग से किए जायें। इस प्रकार हर आवश्यक काम समय से पूरा हो जायेगा और बहुत-सा खाली समय शेष बचा रहेगा, जिसका सदुपयोग कर मनुष्य अतिरिक्त लाभ तथा उन्नति का अधिकारी बन सकता है। समय की कमी और काम की अधिकता की शिकायत गलत है। वह अस्त-व्यस्तता का दोष है जो कभी ऐसा भ्रम पैदा कर देता है।
जहां तक फालतू समय का प्रश्न है, उसका अनेक प्रकार से सदुपयोग किया जा सकता है। जैसे कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति बच्चों की ट्यूशन कर सकता है। किसी नाइट स्कूल में काम कर सकता है। किसी फर्म अथवा संस्थान में पत्र-व्यवहार का काम ले सकता है। अर्जियां तथा पत्र टाइप कर सकता है। खाते लिख सकता है, हिसाब-किताब लिखने-पढ़ने का काम कर सकता है। ऐसे एक नहीं बीसियों काम हो सकते हैं जो कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने फालतू समय में आसानी से कर सकता है और आर्थिक लाभ उठा सकता है। बड़े-बड़े शहरों और विशेष तौर से विदेशों में अपना दैनिक काम करने के बाद अधिकांश लोग जगह-जगह ‘पार्ट टाइम’ काम किया करते हैं। पढ़े-लिखे लोग अपने बचे हुये समय में कहानी, लेख, निबन्ध, कविता अथवा छोटी-छोटी पुस्तकें लिख सकते हैं। उनका प्रकाशन करा सकते हैं। इससे जो कुछ आय हो सकती है वह तो होगी ही साथ ही उनकी साहित्यिक प्रगति होगी, ज्ञान बढ़ेगा, अध्ययन का अवसर मिलेगा और नाम होगा। कदाचित् पढ़े-लिखे लोग परिश्रम कर सकें तो यह अतिरिक्त काम उनके लिए अधिक उपयोगी लाभकर तथा रुचिपूर्ण होगा।
बिना पढ़े लोग रात-दिन चलने वाले कारखानों में काम खोज सकते हैं। किसी मशीनी कारखाने में जाकर श्रम कर सकते हैं। रात को दुकानों में होने वाले बहुत से कामों में श्रम कर सकते हैं। मजदूर वर्ग के लोग लकड़ी, सींक, कांस, सेंठा, नरकुल, बांस, घास, पटेरा, पतेल, वनस्पतियां, औषधियां, जड़ी-बूटियां जैसी न जाने कितनी चीजें लाकर बाजार में बेच सकते हैं। अत्तारों और हकीम वैद्यों से उनकी आवश्यकता मालूम कर बहुत-सी जंगली चीजें सप्लाई कर सकते हैं। जानवरों का चारा, पत्ते, बेर, करौंदा, जामुन, मकोय, बेल, कैथ आदि बहुत तरह के जंगली फल लाकर बेच सकते हैं। अनेक लोग इन्हीं चीजों के आधार पर अपनी पूरी जीविका चलाया करते हैं। मिट्टी, रेत तथा दातूनों की सप्लाई भी बड़े-बड़े शहरों में लाभदायक होती है। काम करने की लगन तथा जिज्ञासा होनी चाहिये। दुनिया में काम की कमी नहीं है।
इसी प्रकार न जाने कितने घरेलू धन्धे तथा कुटीर-उद्योग हैं जिन्हें करके समय का सदुपयोग किया जा सकता है। उनमें से कढ़ाई-बुनाई, कताई-सिलाई तो साधारण है इसके अतिरिक्त तेल, साबुन, डलिया, झाबे, चटाई, झोले, लिफाफे, थैले, चूरन, चटनी, अचार, मुरब्बे आदि का भी काम किया जा सकता है। इन कामों में लगभग सभी सामान्य घरों की स्त्रियां दक्ष होती हैं। फसल पर आम, नीबू, आंवला, खीरा, ककड़ी, तरबूज, करेला आदि के अनेक प्रकार के अचार बनाकर बाजार में सप्लाई किये जा सकते हैं। बहुत से परिवार पापड़, बरियां तथा मगौड़ियां बना कर भी बनियों को सप्लाई करते रहते हैं। पढ़ी-लिखी योग्य स्त्रियां अपने घर पर सिलाई-कटाई का छोटा-मोटा स्कूल चला सकती हैं। बहुत-सी परिश्रमी नारियां हाथ से सिलने योग्य कपड़ों को दर्जी से लेकर सीकर अर्थ लाभ कर सकती हैं। अनेक परिवार मिल कर अपने घरों पर कताई-बुनाई, दरी-कालीन तथा निबाड़ बुनने के छोटे कारखाने लगा सकते हैं, जिनको घरों की स्त्रियां अपने खाली समय में आराम से चला सकती हैं। कागज, गत्ता तथा मिट्टी के खिलौने और कपड़ों की गुड़िया बना कर बेची जा सकती हैं। इस प्रकार के और भी न जाने कितने काम हो सकते हैं जिनको घर की स्त्रियां अपने फालतू समय में आसानी से कर सकती हैं। आजकल घरों के हाथ से बनी देशी चीजों का समाज में बड़ा आदर किया जाता है। परिश्रमपूर्वक तथा कम मुनाफे पर करने से यह सब काम आसानी से चल सकते हैं।
गरीब आदमियों की अपेक्षा अमीर स्त्री-पुरुषों के पास फालतू समय अधिक होता है। एक तो उनके पास विशेष काम नहीं होता, जो होता भी है वह अधिकतर नौकर-चाकर ही किया करते हैं। उन्हें पैसे की इतनी आवश्यकता भी नहीं होती जिसके लिये वे मगज और शरीर मारी करें। तब भी स्वास्थ्य, कार्यक्षमता तथा विविध प्रकार की बुराइयों तथा व्यसनों से बचने के लिए उन्हें अपने फालतू समय में कुछ न कुछ काम करना ही चाहिये। ऐसे लोग अपने मनोरंजन के लिए बागवानी कर सकते हैं। निरक्षरों को निःशुल्क साक्षर बना सकते हैं। समाज सेवा तथा परोपकार के बहुत से काम कर सकते हैं।
इस प्रकार शेष समय में पढ़े-लिखे, अपढ़ तथा गरीब-अमीर पुरुष सभी कुछ न कुछ अपने योग्य काम कर सकते हैं। फिर वह चाहे आर्थिक हो अथवा अनार्थिक। इस काम को करने में जितना महत्व समय के सदुपयोग का है उतना पैसे का नहीं। फालतू समय में काम करते रहने वाले अनेक रोगों तथा बुराइयों से बच सकते हैं। इसलिए ठल्ले-नबीसी करने के बजाय कुछ न कुछ काम करना चाहिये।
जिस प्रकार समय का सदुपयोग लाभकारी होता है उसी प्रकार समय का दुरुपयोग हानिकारक होता है। खाली हाथ बैठा नहीं जा सकता। मनुष्य यदि कोई शारीरिक कार्य न करता हो तो उसके मानसिक तरंग दौड़ रहे होंगे। जिन विचारों के पीछे उद्देश्य नहीं होता, जिनके उपयोग की कोई योजना नहीं होती वे मन मस्तिष्क को विकृत कर देते हैं। फिजूल की कल्पनायें मन में इच्छाओं का जागरण कर देती हैं, ऐसी इच्छायें जिनका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं होता, यों ही मन में उमड़-घुमड़ कर मनुष्य को इधर-उधर लिए घूमती हैं। ऐसी इच्छाओं में काम-वितर्क जैसी विकृत इच्छायें ही अधिक होती हैं।
चौबीस घण्टों में ज्यादा से ज्यादा सामान्य लोग आठ-दस घण्टे ही काम किया करते हैं। बाकी का समय उनके पास बेकार ही रहता है। उस बेकार समय में आठ घण्टे के लगभग नहाने-धोने, सोने में निकल जाते हैं, तब भी उसके पास चार-छह घण्टे तक का समय बिल्कुल बेकार रहता है। इस समय में या तो लोग इधर-उधर मारे-मारे घूमते हैं या यार-दोस्तों के साथ गप मारते, ताश-चौपड़ या शतरंज खेलते हैं। बहुत लोग इसी समय में सिनेमा या स्वांग देखने जाते हैं या घर में ही बैठ कर पत्नी से मुंह-जोरी या बच्चों पर शासन चलाते हैं, जिससे गृह-कलह होती है। घर का वातावरण खराब होता, बच्चों की हंसी-खुशी मिट जाती है। तात्पर्य यह है कि अपने खाली समय में लोग कुछ ऐसा ही काम किया करते हैं जिसका कोई लाभ तो होता ही नहीं उल्टे कोई हानि या बुराई ही पैदा होती है।
यदि मनुष्य शेष समय का सार्थक सदुपयोग करना सीख जाए तो बहुत-सी बुराइयों से बच जाय और कुछ लाभ भी उठा सकता है। समय का सदुपयोग ही उन्नति का मूल-मन्त्र है। स्त्रियों के पास तो पुरुषों से भी अधिक फालतू समय बचता है। भोजन बनाने खिलाने के उपरान्त उनके पास कोई काम नहीं रहता। काम से निपट कर या तो पड़ी-पड़ी अलसाया करती हैं, या सोया करती हैं अथवा दूसरी स्त्रियों के साथ बैठ कर बातें करेंगी। निन्दा और आलोचना-प्रत्यालोचना का प्रसंग चलायेंगी और कोई बहाना मिल जाने से लड़ाई-झगड़ा करेंगी। फालतू रहना झगड़े-फसाद को आमन्त्रित करना है। यदि पढ़ी-लिखी हुई तो मासिक पत्र-पत्रिकायें और उपन्यास वगैरह पढ़ती रहेंगी सो भी निरुद्देश्य। न ज्ञान के लिए, न स्वास्थ्य, मनोरंजन के लिए, केवल अपना यह फालतू समय काटने के लिये।
आज समय बड़ा तंगी का है। युग पुकार-पुकार कर चेतावनी दे रहा है, ‘उठो तन्द्रा छोड़ो, हर समय काम में जुटे रहो। अपने समय के प्रत्येक क्षण का सार्थक उपयोग करो। संसार आगे बढ़ रहा है तुम बहुत पीछे छूटे जा रहे हो। अपनी, अपने परिवार और अपने समाज, राष्ट्र की उन्नति के लिए काम करो। सुस्ती, आलस्य, तुच्छ मनोरंजन, व्यर्थ की टीका-टिप्पणी करने अथवा लड़ने-झगड़ने में समय और शक्ति बरबाद मत करो। समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है जो उसे नष्ट करता रहता है। इसलिए उठो, चेतो और हर क्षण काम में लगे रहो। जो समय जा रहा है वह बहुत मूल्यवान है। एक बार निकल जाने के बाद फिर वापस नहीं आता। वर्तमान का विकृत अभ्यास भविष्य के आगामी समय को नष्ट कर डालता है। जीवन की अवधि सीमित है। इसी सीमित अवधि में सभी कुछ कर डालना है।
युग की पुकार उपयोगी तथा शिक्षाप्रद है। समय का सदुपयोग सारी उन्नतियों का मूलमन्त्र है। राष्ट्र, देश, समाज पिछड़ा हुआ है, व्यक्तिगत उन्नति रुकी हुई है। यह सब अभियान समय का सदुपयोग करने से आगे बढ़ेगा। आलस्य, प्रमाद, अकर्मण्यता तथा ठल्लेनवीसी हानिकारक है। इससे शरीर सुस्त और मन मृत जैसा हो जाता है। कार्यक्षमता कम हो जाती है, दक्षता कुण्ठित हो जाती है, मनुष्य संकीर्णता के दायरे में पड़ा-पड़ा मर जाता है। इसलिए जिसके पास जो कुछ समय शेष बचे उसका बुद्धिमानी पूर्वक सदुपयोग करते ही रहना चाहिये। एक नहीं ऐसे अनेक कार्य हो सकते हैं जो फालतू समय में पिये जा सकते हैं। उनसे आर्थिक लाभ भी हो सकता है और मनोरंजन की आवश्यकता भी पूरी हो सकती है।
निश्चय ही हर सामान्य व्यक्ति के पास बहुत-सा फालतू समय बचता है। परन्तु सभी यह शिकायत करते देखे जाते हैं कि उनके पास समय की कमी है। मारे काम-काज और दौड़-धूप के दम मारने की फुरसत नहीं मिलती। लेकिन यह बात सत्य से दूर है। उन्हें काम की बहुतायत तथा समय की कमी का भ्रम बना रहता है। यह भ्रम पैदा होने का कारण है। वह यह कि लोग अपना सारा काम अव्यवस्थित तथा अस्त-व्यस्त ढंग से किया करते हैं। जिससे जिस काम में जितना समय लगना चाहिये उससे कहीं अधिक लग जाता है। काम पूरे नहीं हो पाते और सदैव सिर पर सवार रहते हैं। दिन निकल जाता है, रात आ जाती है और बहुत से काम अनकिये पड़े रहते हैं। लोग यह समझते हैं कि उनके पास काम अधिक है और समय कम, जिससे वे हर समय परेशान और व्यग्र रहते हैं।
यह काम का बटवारा समय के अनुसार रहे और निर्धारित समय के लिए निश्चित किया हुआ काम तत्परता पूर्वक एक क्षण भी नष्ट किये बिना पूरी तन्मयता और शक्ति से किया जाए तो कोई भी काम अपेक्षित समय से अधिक समय न ले। सारे काम समय से पूरे हो जायेंगे। लोग समय और काम का बटवारा करते नहीं। जब जिस काम को चाहा पकड़ लिया और जिसको चाहा छोड़ दिया। काम का समय है लेकिन अलसा रहे हैं। करने के लिए अभी सोच ही रहे हैं। या धीरे-धीरे कर रहे हैं। बैठकर सुस्ताने लगे। ये ऐसे दोष हैं जो समय तो खराब कर ही देते हैं और साथ ही किसी काम को पूरी सफलता के साथ पूरा भी नहीं होने देते। निदान समय का अभाव बना रहता है और काम पड़े रहते हैं।
यदि किये जाने वाले कामों की योजना पहले से ही बनी रहे, यह निश्चित रहे कि कौन-सा काम किस समय प्रारम्भ करके कब तक खत्म कर देना है तो यह दिक्कत न रहे। निश्चित समय आते ही काम में लग जाया जाए और प्रयत्नपूर्वक समय तक समाप्त कर दिया जाये। इसका सबसे सरल तथा उचित उपाय यह है कि दूसरे दिन के सारे कामों की योजना रात में ही बना ली जाये कि दिन प्रारम्भ होते ही कौन-सा काम किस समय प्रारम्भ करना है और किस समय तक उसे समाप्त कर देना है। तो कोई कारण नहीं कि हर काम अपने क्रम से अपने निर्धारित समय पर शुरू होकर ठीक समय पर समाप्त न हो जाये। बहुत से लोग काम का दिन शुरू होने पर—आज क्या-क्या करना है—यह सोचना प्रारम्भ करते हैं। न जाने कितना काम का समय इस सोच विचार में ही निकल जाता है। बहुत-सा समय पहले ही खराब करने के बाद काम शुरू किये जायें तो स्वाभाविक है आगे चलकर समय की कमी पड़ेगी और काम अधूरे पड़े रहेंगे जो दूसरे दिन के लिए और भी भारी पड़ जायेंगे। वासी काम वासी भोजन से भी अधिक अरुचिकर होता है। इसलिए बुद्धिमानी यही है कि दूसरे दिन किये जाने वाले काम रात को ही निश्चित कर लिये जायें। उनका क्रम तथा समय भी निर्धारित कर लिया जाये और दिन शुरू होते ही बिना एक क्षण खराब किये उनमें जुट पड़ा जाये और पूरे परिश्रम तथा मनोयोग से किए जायें। इस प्रकार हर आवश्यक काम समय से पूरा हो जायेगा और बहुत-सा खाली समय शेष बचा रहेगा, जिसका सदुपयोग कर मनुष्य अतिरिक्त लाभ तथा उन्नति का अधिकारी बन सकता है। समय की कमी और काम की अधिकता की शिकायत गलत है। वह अस्त-व्यस्तता का दोष है जो कभी ऐसा भ्रम पैदा कर देता है।
जहां तक फालतू समय का प्रश्न है, उसका अनेक प्रकार से सदुपयोग किया जा सकता है। जैसे कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति बच्चों की ट्यूशन कर सकता है। किसी नाइट स्कूल में काम कर सकता है। किसी फर्म अथवा संस्थान में पत्र-व्यवहार का काम ले सकता है। अर्जियां तथा पत्र टाइप कर सकता है। खाते लिख सकता है, हिसाब-किताब लिखने-पढ़ने का काम कर सकता है। ऐसे एक नहीं बीसियों काम हो सकते हैं जो कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने फालतू समय में आसानी से कर सकता है और आर्थिक लाभ उठा सकता है। बड़े-बड़े शहरों और विशेष तौर से विदेशों में अपना दैनिक काम करने के बाद अधिकांश लोग जगह-जगह ‘पार्ट टाइम’ काम किया करते हैं। पढ़े-लिखे लोग अपने बचे हुये समय में कहानी, लेख, निबन्ध, कविता अथवा छोटी-छोटी पुस्तकें लिख सकते हैं। उनका प्रकाशन करा सकते हैं। इससे जो कुछ आय हो सकती है वह तो होगी ही साथ ही उनकी साहित्यिक प्रगति होगी, ज्ञान बढ़ेगा, अध्ययन का अवसर मिलेगा और नाम होगा। कदाचित् पढ़े-लिखे लोग परिश्रम कर सकें तो यह अतिरिक्त काम उनके लिए अधिक उपयोगी लाभकर तथा रुचिपूर्ण होगा।
बिना पढ़े लोग रात-दिन चलने वाले कारखानों में काम खोज सकते हैं। किसी मशीनी कारखाने में जाकर श्रम कर सकते हैं। रात को दुकानों में होने वाले बहुत से कामों में श्रम कर सकते हैं। मजदूर वर्ग के लोग लकड़ी, सींक, कांस, सेंठा, नरकुल, बांस, घास, पटेरा, पतेल, वनस्पतियां, औषधियां, जड़ी-बूटियां जैसी न जाने कितनी चीजें लाकर बाजार में बेच सकते हैं। अत्तारों और हकीम वैद्यों से उनकी आवश्यकता मालूम कर बहुत-सी जंगली चीजें सप्लाई कर सकते हैं। जानवरों का चारा, पत्ते, बेर, करौंदा, जामुन, मकोय, बेल, कैथ आदि बहुत तरह के जंगली फल लाकर बेच सकते हैं। अनेक लोग इन्हीं चीजों के आधार पर अपनी पूरी जीविका चलाया करते हैं। मिट्टी, रेत तथा दातूनों की सप्लाई भी बड़े-बड़े शहरों में लाभदायक होती है। काम करने की लगन तथा जिज्ञासा होनी चाहिये। दुनिया में काम की कमी नहीं है।
इसी प्रकार न जाने कितने घरेलू धन्धे तथा कुटीर-उद्योग हैं जिन्हें करके समय का सदुपयोग किया जा सकता है। उनमें से कढ़ाई-बुनाई, कताई-सिलाई तो साधारण है इसके अतिरिक्त तेल, साबुन, डलिया, झाबे, चटाई, झोले, लिफाफे, थैले, चूरन, चटनी, अचार, मुरब्बे आदि का भी काम किया जा सकता है। इन कामों में लगभग सभी सामान्य घरों की स्त्रियां दक्ष होती हैं। फसल पर आम, नीबू, आंवला, खीरा, ककड़ी, तरबूज, करेला आदि के अनेक प्रकार के अचार बनाकर बाजार में सप्लाई किये जा सकते हैं। बहुत से परिवार पापड़, बरियां तथा मगौड़ियां बना कर भी बनियों को सप्लाई करते रहते हैं। पढ़ी-लिखी योग्य स्त्रियां अपने घर पर सिलाई-कटाई का छोटा-मोटा स्कूल चला सकती हैं। बहुत-सी परिश्रमी नारियां हाथ से सिलने योग्य कपड़ों को दर्जी से लेकर सीकर अर्थ लाभ कर सकती हैं। अनेक परिवार मिल कर अपने घरों पर कताई-बुनाई, दरी-कालीन तथा निबाड़ बुनने के छोटे कारखाने लगा सकते हैं, जिनको घरों की स्त्रियां अपने खाली समय में आराम से चला सकती हैं। कागज, गत्ता तथा मिट्टी के खिलौने और कपड़ों की गुड़िया बना कर बेची जा सकती हैं। इस प्रकार के और भी न जाने कितने काम हो सकते हैं जिनको घर की स्त्रियां अपने फालतू समय में आसानी से कर सकती हैं। आजकल घरों के हाथ से बनी देशी चीजों का समाज में बड़ा आदर किया जाता है। परिश्रमपूर्वक तथा कम मुनाफे पर करने से यह सब काम आसानी से चल सकते हैं।
गरीब आदमियों की अपेक्षा अमीर स्त्री-पुरुषों के पास फालतू समय अधिक होता है। एक तो उनके पास विशेष काम नहीं होता, जो होता भी है वह अधिकतर नौकर-चाकर ही किया करते हैं। उन्हें पैसे की इतनी आवश्यकता भी नहीं होती जिसके लिये वे मगज और शरीर मारी करें। तब भी स्वास्थ्य, कार्यक्षमता तथा विविध प्रकार की बुराइयों तथा व्यसनों से बचने के लिए उन्हें अपने फालतू समय में कुछ न कुछ काम करना ही चाहिये। ऐसे लोग अपने मनोरंजन के लिए बागवानी कर सकते हैं। निरक्षरों को निःशुल्क साक्षर बना सकते हैं। समाज सेवा तथा परोपकार के बहुत से काम कर सकते हैं।
इस प्रकार शेष समय में पढ़े-लिखे, अपढ़ तथा गरीब-अमीर पुरुष सभी कुछ न कुछ अपने योग्य काम कर सकते हैं। फिर वह चाहे आर्थिक हो अथवा अनार्थिक। इस काम को करने में जितना महत्व समय के सदुपयोग का है उतना पैसे का नहीं। फालतू समय में काम करते रहने वाले अनेक रोगों तथा बुराइयों से बच सकते हैं। इसलिए ठल्ले-नबीसी करने के बजाय कुछ न कुछ काम करना चाहिये।