Books - विचार-क्रांति ही एकमात्र उपचार
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Language: HINDI
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धर्म-अध्यात्म का ढाँचा-उद्देश्य
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मित्रो! ईश्वर के बारे में इतना ज्यादा लिखा और कहा गया है कि मैंने बारीकी से देखा और यह सोचा कि पूजा-पाठ से लेकर ईश्वर की चर्चा और लीला कहने तक इस सबका क्या प्रयोजन है? मुझे एक ही प्रयोजन जान पड़ा कि ईश्वर-परब्रह्म तो अपार शक्ति है। वह नियामक शक्ति है और आदमी के काम को देखती रहती है तथा आदमी के चाल-चलन, आदमी के विचार-कार्य के अनुसार फल देती रहती है। उसे किसी आदमी की प्रशंसा से और निंदा से क्या मतलब है? गाली देने से क्या मतलब है? जब मैंने यह विचार किया कि पूजा-पाठ से लेकर धर्म-अध्यात्म तक का सारा ढाँचा किस वजह से खड़ा किया गया है और इसका क्या मतलब है? तो मैंने पाया कि इसका एक ही मतलब है। और कोई दूसरा मतलब नहीं है कि इन सारे के सारे कलेवरों में जकड़ा गया मनुष्य ऊँचे किस्म के विचार करना सीखे। आदर्शवादी विचारों को अपने मन में, अंतरंग में स्थापित किए रह सके। यही मनुष्य जीवन की महानतम सेवा है और मनुष्य जीवन की महानतम सफलता है।
मित्रो! जिस मनुष्य के मन में श्रेष्ठ किस्म के विचार रहते हों और इस तरह के विचार रहते हों, जो उसके व्यक्तिगत जीवन को पवित्र बना सकें और जो उसके व्यक्तिगत जीवन के दोष-दुर्गुणों का समाधान कर दें। इस तरह के विचार, जो मनुष्य को उदार बना दें और जो मनुष्य को स्वार्थपरता और संकीर्णता के जाल-जंजाल से निकाल दें। वे विचार, जो मनुष्य की परिधि को, सीमा को अपने शरीर से आगे बढ़ाते अपने कुटुंब से आगे बढ़ाते हैं और अपने बच्चों से आगे बढ़ाते हैं और इतना विशाल बना देते हैं कि वह सारे समाज का अंग हो जाता है। सारे समाज की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझता है और सारे समाज की सुविधाओं को अपनी सुविधा समझता है। सारे समाज के कष्टों को अपने कष्ट समझता है। सारे समाज की सेवा को अपनी सेवा समझता है। जब इतना ऊँचा स्तर मनुष्य का हो जाए तो समझना चाहिए कि आपके पास धर्म की मान्यता आ गई। सही अध्यात्म की समझ आ गई। ईश्वर की भक्ति आ गई।
मित्रो! जिस मनुष्य के मन में श्रेष्ठ किस्म के विचार रहते हों और इस तरह के विचार रहते हों, जो उसके व्यक्तिगत जीवन को पवित्र बना सकें और जो उसके व्यक्तिगत जीवन के दोष-दुर्गुणों का समाधान कर दें। इस तरह के विचार, जो मनुष्य को उदार बना दें और जो मनुष्य को स्वार्थपरता और संकीर्णता के जाल-जंजाल से निकाल दें। वे विचार, जो मनुष्य की परिधि को, सीमा को अपने शरीर से आगे बढ़ाते अपने कुटुंब से आगे बढ़ाते हैं और अपने बच्चों से आगे बढ़ाते हैं और इतना विशाल बना देते हैं कि वह सारे समाज का अंग हो जाता है। सारे समाज की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझता है और सारे समाज की सुविधाओं को अपनी सुविधा समझता है। सारे समाज के कष्टों को अपने कष्ट समझता है। सारे समाज की सेवा को अपनी सेवा समझता है। जब इतना ऊँचा स्तर मनुष्य का हो जाए तो समझना चाहिए कि आपके पास धर्म की मान्यता आ गई। सही अध्यात्म की समझ आ गई। ईश्वर की भक्ति आ गई।