समाजोपयोगी परम्पराओं को जन्म देती प्रगतिशील प्रेरणाएँ
रक्षाबंधन पर्व से जुड़ी वीरपोस की परम्परा से जोड़ा वृक्षारोपण
खरगोन। मध्य प्रदेश
निमाड़ क्षेत्र में रक्षाबंधन से पूर्व भाई अपनी बहिन के घर रक्षाबंधन का निमंत्रण देने जाते हैं। इस अवसर पर वे अपनी बहिन के लिए उपहार स्वरूप कुछ जीवनोपयोगी वस्तुएँ भी ले जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसे वीरपोस (इसपोस) कहा जाता है। परम पूज्य गुरूदेव ने कहा कि परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व दें। गायत्री परिवार के डॉ. संतोष पाटीदार ने इस तथ्य के आधार पर वीरपोस के साथ एक प्रगतिशील परम्परा जोड़ी है, जिसके अंतर्गत बहिन के घर जाने वाले भाई उसे एक फलदार वृक्ष का पौधा भेंट करते हैं। बहिनों द्वारा संरक्षित, पोषित यह पौधा वृक्ष बनकर बहिन के परिवार का पोषण तो करता ही है,पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को भी पूरी करता है। 12 वर्ष पूर्व आरंभ की गई यह परम्परा गायत्री परिवार में तो लोकप्रिय है ही, अब यह एक सामाजिक आन्दोलन का रूप ले चुकी है। इस वर्ष भी गायत्री शक्तिपीठ खरगोन द्वारा वीरपोस के लिए बहिनों के घर जा रहे भाइयों को फलदार वृक्षों की पौध भेंट की गई। इस वर्ष 150 आम के व 100 पौधे बिल्व पत्र के वितरण किए गए।