Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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हड्डियाँ कमजोर करनी हों, तो माँस खाइए।
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हार्वर्ड मेडिकल स्कूल अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. ए. वाचमैन और डॉ. डी. एस. बर्नस्टीन को आश्चर्य था कि माँस से स्वास्थ्य में सुधार की मान्यता के बावजूद माँसाहारियों की हड्डियाँ कमजोर क्यों होती हैं? इस बात का निश्चित पता लगाने के लिये दोनों वैज्ञानिकों ने माँसाहारियों तथा शाकाहारियों की शारीरिक गतिविधियों का लंबे समय तक अध्ययन किया।
जो निष्कर्ष सामने आये, वह माँसाहारियों को चौंका देने वाले थे। इन वैज्ञानिकों ने एक सम्मिलित रिपोर्ट में बताया-माँसाहारियों के मूत्र की जाँच से पता चला है कि उसमें अधिकाँश मात्रा तेजाब और क्षार की होती है। यह तेजाब और क्षार शरीर के शुद्ध रक्त से माँस पचाने के लिये तेज हुई शारीरिक मशीन की गर्मी के कारण उसी तरह स्खलित होता है जिस तरह कामुक चिन्तन से वीर्य। बड़ी मात्रा में पेशाब के साथ रक्त का जो क्षार और तेजाब बाहर निकल आता है। उसे पूरा करने के लिये शरीर में हड्डियों के अतिरिक्त और कोई दूसरा स्रोत मिलता नहीं। फलस्वरूप रक्त अपना संतुलन बनाये रखने के लिये क्षार और तेजाब हड्डियों से चूसने लगता है। इस प्रकार माँसाहारी व्यक्ति की हड्डियाँ कमजोर होती चली जाती हैं।
यह तो शरीर प्रणाली में उत्पन्न हुई पहली अवस्था हुई। सच बात यह है कि इस अनपेक्षित प्रतिक्रिया का दूषित प्रभाव शरीर और मन सब पर पड़ता हैं। यह नहीं मानना चाहिये कि रक्त हड्डियों से आवश्यक सामग्री ले लेता है, तो उसकी अपनी तेजस्विता स्थिर हो जाती हैं। लन्दन के सुप्रसिद्ध डॉक्टर अलेक्जेण्डर हेग एम. ए. एम-डी., एफ. आर. सी. पी. (लन्दन) ने एक पौंड माँस के यूरिक एसिड विष का अध्ययन करने के बाद पाया कि-
काड मछली में 4 ग्रेन, पलीस मछली में 5 ग्रेन, सुअर के माँस में 6 ग्रेन, भेड़-बकरी में 6.5 ग्रेन, बछड़े के माँस में 8 ग्रेन, सुअर की कमर और रान के हिस्से वाले माँस में 8.5 ग्रेन, चूजे में 9 ग्रेन, गाय की पीठ और पुट्ठे वाले अंगों के माँस में 9 ग्रेन, बोटी जो भूनकर खाई जाती है उसमें 14 ग्रेन, जिगर में 19 ग्रेन और शोरबे में 50 ग्रेन विष पाया जाता है।
‘यह विष जब सामान्य स्थिति में रहता है, तब तक उसके दुष्परिणाम दिखाई नहीं देते। पर कुछ ही दिन के माँसाहार के बाद जब यह विष रक्त में अच्छी तरह मिल जाता है तब दिल की जलन, जिगर की खराबी, साँस रोग, रक्त-अल्पता, टी.बी., गठिया, हिस्टीरिया, आलस्य, निद्रा का अधिक आना, अजीर्ण, शरीर में दर्द, मौसम के हल्के परिवर्तन से जुकाम व एन्फ्लुएंजा हो जाना, निमोनिया व मलेरिया आदि सैंकड़ों बीमारियाँ हो जाती हैं।
इन दुष्परिणामों को देखकर ही ‘लैं ऐण्ट’ पुस्तक के 1962 के संस्करण में वाल्यूम 1 पृष्ठ 958 में अमेरिका के उक्त दोनों डाक्टरों ने लोगों से अपील की है कि कमजोर हड्डियों वाले लोगों तथा माँसाहार द्वारा रक्त-दूषण से बचने के लिये अधिकतर फल, सब्जियाँ, सब्जियों के प्रोटीन और दूध का सेवन करना चाहिये। शाकाहार से माँसाहार की अपेक्षा शक्ति और पोषक तत्व भारी मात्रा में मिलते हैं। यह लाभ देखकर आज अमेरिका में लाखों लोग माँसाहार त्यागकर शाकाहारी बन रहे हैं। अब वहाँ शाकाहारियों की संख्या 5 करोड़ तक जा पहुँची है। फिर भारत जैसे जीव-दया, अहिंसक तथा शाकाहारी देश में लोग माँस खायें, तो यह निरा पागलपन ही होगा।