Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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वायु - प्रदूषण से हमें यज्ञ बचायेंगे।
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एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में लगभग 35 पौण्ड वायु का सेवन करता है यह मात्रा सारे दिन में ग्रहण किए गये अन्न और जल की मात्रा से 6 गुनी अधिक होती है। इससे प्रतीत होता है कि मनुष्य के जीवन में खाद्य से भी अधिक महत्व वायु का है। वायु न मिले तो मनुष्य कुछ क्षण भी जीवित नहीं रह सकता, अन्न के अभाव में तो वह महीनों जीवित बना रह सकता है।
मनुष्य ही नहीं, वायु संसार के सभी जीवित प्राणियों वृक्ष वनस्पतियों के लिए भी आवश्यक तत्व है। संभवतः इसी लिए प्रकृति ने समस्त पृथ्वी मंडल को वायु से आच्छादित कर रखा है।
गन्दा और सड़ा भोजन कर लेने से जी मिचलाने लगता है और तत्काल मृत्यु हो जाती है कुछ विषैले खाद्यान्न शरीर में धीरे-धीरे घुलते रहते हैं और अपनी दूषित प्रतिक्रिया कुछ समय बाद किसी शारीरिक व्याधि- रोग शोक और भयंकर बीमारी के रूप में प्रकट करते हैं। 6 गुनी कम मात्रा वाले अन्न के प्रदूषण से मनुष्य जब इतना प्रभावित हो सकता है,तब दूषित वायु उसके स्वास्थ्य पर कितना घातक दुष्प्रभाव डालती होगी उसकी कल्पना करना भी कठिन है। इसे मानवीय बुद्धि का विद्रूप और विडम्बना ही कहेंगे कि इतना सब जानते और समझते हुए भी आज का प्रबुद्ध कहलाने वाला मनुष्य यान्त्रिक सभ्यता के पीछे बुरी तरह पड़ा हुआ है वह यह देख नहीं पा रहा है कि इससे जो वायुप्रदूषण हो रहा है, उसके परिणाम कितने घातक हो सकते हैं।
अमेरिका में प्रत्येक वर्ष लगभग 200,000000 टन दूषित तत्व वायु में मिलते रहते हैं। जर्मनी, फ्राँस, इटली, रूस, ब्रिटेन आदि भी अमेरिका से पीछे नहीं। इन देशों में बढ़ रहे वायु में विषैले तत्वों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ रही है कि उससे सारी पृथ्वी के भयंकर रूप से गर्म होकर जल जाने अथवा धुएं से घुटकर नष्ट हो जाने का संकट पैदा हो गया है।
वायु कई गैसों का सम्मिश्रण है (1) नाइट्रोजन (2) ऑक्सीजन इनमें प्रमुख हैं। यह अदृश्य, स्वाद और गन्ध रहित होती है, और मनुष्य एवं पशु वनस्पति सबके लिए बहुत आवश्यक है। पर जब अप्राकृतिक रूप से मनुष्य उसमें गन्दगी मिलाने लगता है तो यही वायु मनुष्य के अस्तित्व के लिए कष्टदायक हो जाती है।
आज अकेले अमेरिका में 90000000 (नौ करोड़) से भी अधिक कारें और मोटरें है इनमें से 99 प्रतिशत गैस आइल जलाते हैं इनका धुआँ निरन्तर वायु को दूषित करता रहता है। इसके अतिरिक्त वहाँ फैक्ट्रियों, पावर प्लान्ट्स, लुगदी व कागज की मिलें, आयरन व इस्पात की मिलें, तेल, मिल्स, भट्टियाँ आदि भी करोड़ की संख्या में हैं। 1969 में 90 प्रतिशत से अधिक कारखानों ने सल्फर युक्त कोयला तथा तेल जलाया। उसका धुआँ प्रतिदिन बीस हजार टन के लगभग वायुमंडल में घुलता रहता है। इसके अतिरिक्त अमेरिका का हर व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 1800 पौण्ड कूड़ा तैयार करता है उसकी गन्दगी भी धुएं से कम हानिकारक नहीं। यह समस्त स्रोत मिलकर जो गन्दगी पैदा करते हैं उसका प्रारूप और मात्रा दोनों ही हृदय को कँपा देने वाले हैं।
धुएं के रूप में वायु को गन्दा करने वाला सबसे पहला विषैला तत्व 1 - कार्बन मानो ऑक्साइड है यह अकेले अमेरिका में मोटरों से 65000000 टन, कल-कारखानों से 12000000 टन तथा कूड़े से 170000 टन मात्रा में पैदा होकर हवा में घुलता रहता है। इससे ऑक्सीजन दूषित हो जाती है। खून के प्रवाह में मिल जाने के कारण यह सिर दर्द, थकावट आदि पैदा करता है। यह विशेष रूप से हृदय रोग, अस्थमा, एनीमिया रोग वालों को प्रभावित कर उनका रोग तथा संकट और बढ़ाने में मदद करता है।
वायु-प्रदूषण में भाग लेने वाली दूसरी गैस, सल्फर ऑक्साइड सल्फर युक्त कोयले और तेल के जलाने से उत्पन्न होती है इसके विष से आँखें, नाक, गला, फेफड़े आदि प्रभावित होते हैं। पेड़ पौधों को नष्ट करने में भी इसी का हाथ रहता है। अमेरिका के कई नगरों के सभी इस्पात कारखाने और पेट्रोल उद्योग सल्फर युक्त ईंधन प्रयुक्त करते हैं इससे उत्पन्न सल्फर डाई ऑक्साइड वर्षा के पानी में धुल कर गन्धक के तेजाब के रूप में बरसता है। इससे वहाँ प्रत्येक बरसात के बाद अनेक पक्षियों के पंख जल जाते हैं और सारी वनस्पति झुलस जाती है। इसी से धातुओं में जंग लगती है और वायु मंडल में अंधेरापन छा जाता है जिससे सूर्य की रोशनी की मात्रा बहुत कम आ पाती है।
3- फ्लुओराइड भी ऐसा ही विषैला तत्व है जो वृक्षों को नष्ट करता है। फ्राँस में आल्पस पर्वत में पाये जाने वाले सदाबहार वृक्ष दिनों दिन मरते और नष्ट होते जा रहे हैं। विशेषज्ञ चिन्तित हुए और खोज की तो पाया कि यह उस क्षेत्र में पाये जाने वाले कारखानों द्वारा वमित फ्लुओराइड तत्वों का दुष्प्रभाव है। इस बात की आशंका की जा रही है कि स्थिति ऐसी ही रही तो उस क्षेत्र में एक भी वृक्ष जिन्दा न बचेगा।
सबसे घातक गैस 4 - नाइट्रोजन ऑक्साइड है जो अकेले अमेरिका में विभिन्न स्रोतों से 48000000 टन वायु में घुलती रहती है। यह आँखों को प्रभावित करती है और सूर्य प्रकाश को पृथ्वी में नहीं आने देती इससे और भी हानि होती है। इसकी घातक शक्ति का सही अनुमान उस समय हुआ जब अमेरिका में सन् 1965 में क्लीवलैण्ड नगर के एक अस्पताल में एक दिन दुर्घटनावश एक्स-किरणों की फिल्म में आग लग गई। फिल्मों के जलने से नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड का धुआँ अस्पताल के वायु मण्डल में छा गया इसकी घुटन से कुछ ही घन्टों में 125 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। यह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि 48 मिलियन टन नाइट्रोजन गैसें मनुष्य के स्वास्थ्य को अन्दर ही अन्दर किस कदर खोखला बनाती होंगी?
वायु प्रदूषण में भाग लेने वाला अन्य 5वाँ तत्व हाइड्रोकार्बन है। यह मोटर कारों से 18000000 टन, फैक्ट्रियों कारखानों से 5000000 टन तथा विभिन्न कूड़ों से 4000000 टन कुल 27000000 टन प्रतिवर्ष केवल अमेरिका में पैदा होता है। यह सिगरेट के धुएं के साथ शरीर में पहुँचकर कैंसर और पशुओं में कैंसर रोग उत्पन्न करता है। इसके लगभग 200 प्रकार के यौगिक विभिन्न तरह से मानव जाति को नुकसान पहुँचाते हैं उसकी अभी तक वैज्ञानिकों को भी पूरी तरह जानकारी नहीं हो पाई है।
इन गैसों के अतिरिक्त विषैले तत्वों के छोटे-छोटे कण धुआँ, उड़ती राख, धूलि के कण हाइड्रोकार्बन के साथ मिलकर गैसों का कुहरा सा छा देते हैं इससे वातावरण में सदैव धुन्ध सी छाई रहती हैं। आँखें अच्छी तरह देख नहीं सकतीं। सूर्य का प्रकाश अच्छी तरह पृथ्वी तक आ नहीं सकता। उसके जो दुष्परिणाम हो सकते हैं यथा फेफड़ों का खराब होना, कपड़े व खिड़कियों की गंदगी बढ़ना आँखें कमजोर होना आदि रोग और कष्ट बढ़ते हैं। फोटो केमिकल्स गैसों का कुहरा, नाक और गले में भी उत्तेजना पैदा करता है। साँस लेने में कठिनाई आती है। फसलें तथा जानवर जिनमें दूध देने वाले पशु विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। इस कुहरे के कारण लन्दन में 1952 में 4 दिन के अन्दर 4000 व्यक्ति घुटकर मर गये तब सरकार का ध्यान इधर गया। विशेष प्रबन्ध किए गये तो 1962 में एक दिन फिर अचानक वही स्थिति उत्पन्न हो गई और उसके फलस्वरूप 700 व्यक्ति मर गये। डोनोरा में 1942 में धुन्ध के कारण 20 व्यक्तियों की मृत्यु हुई तथा 5900 व्यक्ति बीमार हुए जिनमें कई को असाध्य तक घोषित किया गया। न्यूयार्क में सामान्य मृत्यु दर की तुलना में 1953, 1963 और 1966 में 700 व्यक्तियों की अधिक मृत्यु हुई।
वायु में बढ़ते हुए धुएं और विषैले तत्वों की जानकारी सारे योरोपीय देशों को है वे अपनी तरह के प्रयत्न भी कर रहे हैं। इस गन्दगी को दूर करने के लिए अकेला अमेरिका प्रतिवर्ष 12 मिलियन डॉलर्स (आठ अरब चालीस करोड़ रुपये से भी अधिक) धन खर्च करता है तो भी वहाँ अब तक व्याप्त गन्दगी के कारण उत्पन्न अकेले इम्पैसिमा रोग, जो इन दिनों वहाँ बहुत तेजी से बढ़ रहा है से 50000 व्यक्ति प्रति वर्ष मर रहे हैं। जीवनी शक्ति में निरन्तर ह्रास हो रहा है। 40 से 60 वर्ष की आयु के प्रत्येक पाँच व्यक्तियों में से एक व्यक्ति ब्रान्चटिस (श्वास नली का रोग) से पीड़ित है। गाँव के वातावरण में यदि कैंसर का एक रोगी है, तो शहर में दो हैं। कफ-अस्थमा के बीमार अलग हैं। सिर दर्द, जम्हाई आना, शीत, साँस लेने में कठिनाई, गले में सूजन, रक्त में विष, फेफड़ों को हानि, नाक व आँखों में उत्तेजना, उल्टी, सीने में दर्द आदि व्याधियाँ वहाँ सामान्य बातें हैं। भारी खर्च के बाद भी स्थिति नियन्त्रण में न आने का अर्थ ही उनकी दोषपूर्ण व्यवस्था की ओर संकेत करता है। वायुमण्डल को दूषित होने से बचाने और जीवधारियों एवं वृक्ष वनस्पतियों की जीवन रक्षा के लिए यज्ञ ही एक-मात्र साधन है। उन्हीं से मानव संस्कृति की रक्षा हो सकती है। इसलिए मानव प्रेम के प्रत्येक अनुयायी को अगले दिनों यज्ञों के तीव्र प्रयत्न करने होंगे। ऋषि इस बात को अच्छी तरह जानते थे। वेदों में प्रयुक्त ‘वायुर्यजुर्वेदः’ अर्थात् ‘वायु ज्ञान से सम्बन्धित विज्ञान, ही यजुर्वेद है।’ अथर्ववेद 5।24।8 में ‘वायुः अन्तरिक्ष-स्याधिपतिः’ वायु अन्तरिक्ष का राजा है- कहकर उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि वायु को शुद्ध रखने के लिए यज्ञ आवश्यक है। यज्ञ में जलाई गई सुगन्धित औषधियाँ और खाद्यान्न केवल दूषित तत्वों कीट कृमियों को ही नहीं मार भगाते वरन् वायु में पौष्टिक तत्वों का अभिवर्द्धन भी करते हैं।
अग्नि अपने में जलाई गई वस्तु को करोड़ों गुना अधिक सूक्ष्म और शक्तिशाली बनाकर फैला देती है। इस तथ्य को फ्राँस के डॉक्टर हैफकिन और मद्रास के सेनेटरी कमिश्नर डॉ. कर्नल किंग आई. एम. एस. ने भी माना है। उनका कहना है कि आग में घी जलाने से कोसों दूर तक के कीटाणु मर जाते हैं। घी, चावल, केसर आदि से धुएँ के विष का नाश हो जाता है और वायु में घुले जहर वर्षा के साथ जमीन में चले जाते हैं और खाद बनकर उपयोगी बनते हैं।
अथर्ववेद 9।2।6 ‘अग्नि होमिणे प्रणुदे सपत्नाम्’ यज्ञ से वायु के शत्रु नष्ट हो जाते हैं- लिखा है।
शिवों नामासि स्वधिनिस्ते पिता नमस्तेऽअस्तु मा माहिं सीः। निवर्त्तयाभ्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रामस्योषाय सु प्रजास्त्वाय सुवीर्याय।
-यजुर्वेद 3।63
अर्थात्- हे यज्ञ! आप बड़े कल्याणकारी हैं आपको नमस्कार। आप हमारी रक्षा करो। दीर्घ आयु, उत्तम अन्न, प्रजनन शक्ति, ऐश्वर्य समृद्धि श्रेष्ठ सन्तान, बल और पराक्रम के लिए हम आपका सेवन करते हैं।
आगे इस बात को निश्चय करके, व्यक्त करते हुए लिखा है-
शर्मास्यवधूँत रक्षोऽबधूताऽयत मोऽदित्यास्त्वगसि प्रतित्वादितिर्वेत्तु अद्रिरसि वानस्पत्यो ग्रावासि पृथुबुदन प्रतित्वादित्यासत्ववेत्तु॥
-यजुर्वेद 1।14
हे यज्ञ! आप सुखकारक और आश्रय लेने योग्य हैं। आप रोगों को नष्ट करते हैं- रोग के कीटाणु ध्वस्त करते हैं। आप पृथ्वी के लिए त्वचा के समान रक्षक हैं। आप ही वनस्पतियों से आच्छादित पर्वतों के समान सुखद हैं और आकाश के जल को हमारी ओर भेजते हैं।
यह उद्धरण प्रमाण है कि अगले दिनों वायु की गन्दगी से प्राणिमात्र के लिए जो संकट उत्पन्न हो रहा है, उससे एकमात्र यज्ञ ही रक्षा करेंगे।