Magazine - Year 1972 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
युग परिवर्तन को असम्भव न माना जाय
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अमेरिका का प्रसिद्ध पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने अन्तरिक्ष विज्ञानी स्वर्गीय राबर्ट गोगार्ड से अपनी उस टिप्पणी के लिए माफी माँगी जो उसने सन् 1920 में छापी थी।
गोगार्ड उन दिनों अन्तरिक्ष विज्ञान की शोध कर रहे थे। उन्होंने प्रतिपादित किया था कि ‘शून्य आकाश में राकेटों का चलाया जाना सम्भव है और उस आधार पर अन्तर्ग्रहीय यात्राएं की जा सकेंगी।’
इस प्रतिपादन पर व्यंग करते हुए न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा था-”गोगार्ड महाशय विज्ञान की लम्बी-चौड़ी बातें करते हैं पर वे जानते उतना भी नहीं जितना कि स्कूली बच्चे पढ़ते हैं। जिन्हें पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का ज्ञान होगा वह कैसे कह सकता है कि राकेट उस आवरण को बेध कर ऊपर निकल जायेंगे और अन्य ग्रहों की यात्रा करेंगे।”
उस टिप्पणी के 49 वर्ष बाद गोगार्ड का प्रतिपादन सही सिद्ध हुआ। कैप केनेडी रॉकेट में सवार होकर नील आर्मस्ट्रांग और उसके साथी चन्द्रमा पर पहुँचे। इस पर न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी 49 वर्ष पूर्व की टिप्पणी के लिए स्वर्गीय गोगार्ड से क्षमा माँगी कि उन्हीं का प्रतिपादन सही था और टिप्पणीकर्ता गलती पर।
नया युग बढ़ता हुआ चला आ रहा है। मनुष्य को दुष्प्रवृत्तियां छोड़नी पड़ेंगी और उसे अपने सोचने तथा करने की रीति-नीति में परिवर्तन करना पड़ेगा। यह बात आज असम्भव लगती है। मर्यादाओं के बन्धन जिस बुरी तरह टूटते चले जा रहे हैं। एक आदमी दूसरे को ठगने के लिए जिस बेहयाई के साथ उतारू है। सुधार का बाना ओढ़ने वाले भी आवरण के भीतर क्या-क्या कुकृत्य कर रहे हैं इसकी तह में जाने से सहज ही आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगता है और प्रतीत होता है कि अभी दिल्ली दूर है, विकृतियाँ पूरी प्रौढ़ता पर हैं और उन्हें चुनौती देने के लिए उपयुक्त मोर्चे बन नहीं रहे हैं। जो सुधार और निर्माण की बातें करते हैं, उनकी कथनी और करनी में भारी अन्तर है। ऐसी दशा में यह प्रतीत नहीं होता कि परिस्थितियाँ जल्दी ही बदल जायेंगी।
पर वर्तमान स्थिति देखकर भविष्य का सुनिश्चित निर्णय नहीं किया जा सकता। उसे दूरदर्शी देखते हैं-जिनकी आँखें निकट का ही देख पाती हैं उनके लिए उन परिवर्तनों की कल्पना कठिन ही लगती है जो आज की स्थिति से तालमेल नहीं खाते। गोगार्ड का प्रतिपादन न्यूयार्क टाइम्स को ऐसा ही भोंड़ा लगा था। पर समय ने बताया कि आज जो बात असम्भव लगती है कल सम्भव भी हो सकती है।
जलयानों की सम्भावना भी किसी समय अवास्तविक लगती थी। नैपोलियन बोनापार्ट इंग्लैण्ड पर हमले की तैयारी कर रहा था। इसी समय एक इंजीनियर राबर्ट फुल्टन यह योजना लेकर पहुँचा कि किस प्रकार भाप से चलने वाले जलयान बन सकते हैं और उनसे शत्रु जहाजों के दाँत कैसे खट्टे किये जा सकते हैं।
नैपोलियन झल्ला पड़ा-क्या बकवास कर रहे हैं आप आग पर पानी गरम करके उससे हवा के रुख और पानी की धार काटते हुए जहाज चल सकते हैं। ऐसी बेतुकी सनक सुनने की मुझे फुरसत नहीं है।
बेचारा इंजीनियर चला गया, जलयान बनने और चलने लगे तो भी बुद्धिमान कहलाने वालों ने इस प्रयास का उपहास ही उड़ाया। डबलिन के रायल सोसाइटी के सामने अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए प्रो0 लाडेस्कर ने कहा-ये मामूली मनोरंजन कर सकते हैं पर इन जलयानों से अटलांटिक पार करने की कल्पना बेहूदा है।
वह बेहूदा कल्पना आज कितनी सार्थक और साकार सिद्ध हो रही है इसे हर कोई देख सकता है। पानी के जहाज परिवहन, यातायात और युद्धों में कैसी भूमिका प्रस्तुत कर रहा है। इसे समझने में नैपोलियन जैसे ‘समझदार’ असफल रहे। साधन सम्पन्न इंजीनियरों को यह कल्पना निरर्थक लग रही थी, पर आखिर वह साकार ही हो गई।
मनुष्य की पशु संस्कारों से ग्रसित बुद्धि और आदत को मर्यादा में चलने के लिए सधाया जा सकेगा। ध्वंस और विघटन मैं लगे हुए तत्व अपनी प्रतिभा सृजन में नियोजित करेंगे। स्वार्थों के पीछे अन्धा बना हुआ जमाना परमार्थ को प्रधानता देने की प्रवृत्ति अपनायेगा। यह बात आज असम्भव लगती है, पर किसी इंजीनियर को इन परिस्थितियों में भी पक्का विश्वास है कि यह परिवर्तन भले ही आज असम्भव लगता हो पर कल सम्भव होकर रहेगा।
आविष्कारों के क्षेत्र में सदा यही होता रहा है कि आरम्भ में उस कल्पना और चेष्टा को सनक बताया गया और असम्भाव्य कहा गया। टैंक बनाने की योजना जब सामने लाई गई तो इंग्लैण्ड के सेनापति ने कहा-लोहे की गाड़ियाँ घुड़सवारों के स्थान ग्रहण कर सकती हैं यह कल्पना नितान्त मूर्खतापूर्ण है।
रूस ने जब प्रथम अन्तरिक्ष यान ‘स्पूतनिक’ आकाश में भेजा तो अमेरिका के तत्कालीन सेनापति और पीछे के राष्ट्रपति आइजन होवर ने उसका मजाक उड़ाया और कहा-’रूसियों द्वारा आसमान में उछाली गई एक छोटी-सी गेंद युद्ध समस्या को किस प्रकार प्रभावित कर सकती है? इसका कोई महत्व मेरी समझ में नहीं आता।’
उस समय वे बातें बेकार मालूम पड़ती थीं पर आज टैंकों का अपना स्थान है और उन्होंने घुड़सवार सेना को निरर्थक सिद्ध कर दिया है। अन्तरिक्ष यान आज अन्तिम युद्ध में सब से महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करते दीखते हैं और उसी प्रतिद्वन्द्विता में अरबों रुपया खर्च हो रहा है।
विचार क्रान्ति की बात सुनकर आज भी हँसी उड़ाई जा सकती है। सोचने भर से दुनिया की परिस्थितियाँ और आदमी की आदतें कैसे बदली जा सकती हैं, यह समझ सकना समझदारों के लिए भी कठिन पड़ रहा है। विचार दिमाग तक सीमित हैं। क्रिया परिस्थितियों से संबंध रखती है। विचार परिस्थितियों को कैसे बदल सकते हैं और बिना मजबूरी सामने आये कोई सचाई के कष्ट साध्य रास्ते पर क्योंकर चल सकता है। निहित स्वार्थों को विचारों की प्रेरणा भर से कैसे अपने स्वार्थ छोड़ने के लिए सहमत किया जा सकता है, यह बात जटिल और पेचीदा प्रतीत होती है, पर वह दिन दूर नहीं जब यह स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ेगा कि संसार में मानव-जीवन की सबसे बड़ी शक्ति विचार ही है और उनके बरताव से व्यक्ति और समाज का सारा ढाँचा ही बदला जा सकता है। मार्कोनी का रेडियो आविष्कार सामने आया तो कौतूहल से उसे देखा गया। पर जब यह कहा गया कि उससे अटलांटिक पार भी सन्देश भेजे जा सकते हैं, तो तत्कालीन वैज्ञानिकों ने उसे नामुमकिन बताते हुए दलील दी कि ऐसा तभी हो सकता है जब अमेरिका द्वीप जितना विशाल रेडियो स्टेशन खड़ा किया जा सके।
अणु विस्फोट के आविष्कार के बाद लार्ड रदर फोर्ड ने कहा इस खोज की कोई उपयोगिता मुझे दिखाई नहीं पड़ती।
युद्ध उपकरणों की खोज को आगे जारी रखने को निरर्थक बताते हुए रोम के बड़े सैनिक इंजीनियर जुलियस फोन्टिनस ने कहा था-अब इन प्रयत्नों को बन्द कर देना चाहिए क्योंकि युद्ध उपकरणों के संबंध में जितने आविष्कार सम्भव थे वे चरम सीमा पर पहुँच गये हैं। इसी प्रकार सन् 1899 में अमरीकी आविष्कार पेटेन्ट विभाग के डायरेक्टर ने तत्कालीन राष्ट्रपति मैककिल्ले को सलाह दी थी कि अब इस विभाग को बन्द कर दिया जाय। क्योंकि जितने आविष्कार अब तक हो चुके हैं उनसे आगे और कोई आविष्कार होने की गुंजाइश नहीं रही। पर हम देखते हैं कि इसके बाद पिछली पौन शताब्दी में कितने अधिक आविष्कार हुए और पेटेन्ट डायरेक्टर का अनुमान कितना गलत निकला।
अब तक कितने धर्म सम्प्रदाय निकल चुके, आचार संहिताएं बन चुकीं, योग और अध्यात्म की खोज हो चुकी अब इससे आगे कुछ सोचने करने को बाकी नहीं रह गया-यह आज भले ही माना जाता हो, पर कल बतायेगा कि प्रगति की सम्भावना अभी और भी बहुत कुछ विद्यमान है। समस्त विश्व का एक धर्म, एक आचार, एक शास्त्र, एक राष्ट्र, एक भाषा, एक लक्ष्य होना आज भले ही समझ में न आये पर कल यह नया आविष्कार होने ही वाला है। और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’-कृष्वन्तोविश्व आर्षम् की प्राचीन कल्पना को अगले दिनों साकार होना है आज असम्भव दीखने वाला यह भविष्य कल प्रत्यक्ष हो चले तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए इस दुनिया में न कुछ सम्भव है न आश्चर्य।
अब से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व विज्ञानी यह मानते थे कि हवा से भारी वजन की चीजों का आसमान में उड़ जाना कभी भी सम्भव न होगा। जब पहला हवाई जहाज बना और उसके आसमान में उड़ने की सूचना अखबारों को दी गई तो उन्होंने उसे ‘गप्प’ कह कर छापने से इनकार कर दिया। पहली बार बिना आदमी बिठाये जहाज उड़ा दूसरी बार आदमी बिठा कर उसने उड़ान की। तब ‘पापुलर साइन्स’ अखबार ने बड़ी बेरुखी के साथ सिर्फ इतना छापा-’यह खेल-तमाशे जैसे छुट-पुट काम ही कर सकेगा। किसी बड़े प्रयोजन में इसके आ सकने की आशा नहीं करनी चाहिए।
जब हवाई जहाज अपनी प्रौढ़ावस्था में आ गये, भारी बोझ लेकर वे द्रुतगति से बढ़ने लगे तो वैज्ञानिकों ने भावी महत्वाकाँक्षाओं का निषेध किया। शब्द की गति से अधिक तीव्रता लाया जाना सर्वथा अशक्य है, एक स्वर से वैज्ञानिकों ने यही कहा। शब्द की गति प्रति घण्टा 660 मील है। इससे अधिक गति वायुयान की हो सकती है इसे मानने के लिए कोई तैयार न था। पर प्रगति होती रही। बोइंग 707 की चाल 550 मील हुई। इसके बाद वी0सी0 10 ने 600 मील की चाल बढ़ा दी। जब ‘ग्लैमरस ग्लेसिस प्रति घण्टा 670 मील की चाल से उड़ा और उसने शब्द की गति का अतिक्रमण कर लिया तो वैज्ञानिकों को पिछली भूल सुधारनी पड़ी और कहना पड़ा ‘गति’ को कितना ही अधिक बढ़ाया जा सकता है। भविष्य में कर्न्कड वायुयान 1500 मील की चाल से उड़ेंगे। अन्तरिक्ष यान अभी भी 25 हजार मील की चाल से उड़ रहे हैं। भविष्य में उनकी चाल 50 हजार मील हो जायगी। योजना तो 6 लाख मील प्रति घण्टे चलने वाले अन्तरिक्ष यानों की भी है।
चिरकाल से एक ढर्रे पर मन्थर गति से लुढ़कती चली आ रही समाज व्यवस्था में अब कोई परिवर्तन नहीं हो सकता, उसे द्रुतगामी नहीं बनाया जा सकता; यह सोचना ठीक नहीं। नये समाज के आधार और सिद्धान्त अधिक प्रगतिशील हो सकते हैं। मनुष्य के सोचने और करने का प्रतिगामी ढर्रा बदल सकता है। स्वार्थ भरी संकीर्णता एवं अवाँछनीय ध्वंसात्मक प्रवृत्ति का परिशोधन करके उन्हें सुरुचि सम्पन्न बनाया जा सकता है। खारी समुद्र के जल को अणु ऊर्जा से उबाल कर मीठे पानी के रूप में बदल देने की योजना यदि सही है तो नव-निर्माण की यह योजना गलत कैसे हो सकती है कि जन-मानस में इन दिनों भरा हुआ कड़ुआ पन-खारी पन भी सौजन्य के मिठास से बदल दिया जायगा।
खगोलवेत्ता चिरकाल से यह मानते चले आ रहे थे कि-कभी कोई व्यक्ति भूमध्य रेखा पार न कर सकेगा। क्योंकि उस क्षेत्र में सूर्य की किरणें सीधी पड़ने के कारण इतनी गर्मी होगी कि समुद्र भी खौले। इस क्षेत्र में यदि कोई जहाज निकलेगा तो जलकर खाक हो जायेगा। खगोल विद्या के इस सनातन प्रतिपादन को पुर्तगाल के हेनरी ने भूमध्य रेखा को पार करके असत्य सिद्ध कर दिया।