Magazine - Year 1972 - Version 2
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Language: HINDI
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उगते सूरज की आवाज (Kavita)
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उठो! सुनो!! प्राची से उगते सूरज की आवाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज॥
देश की जिसने सबसे पहले जीवन ज्योति जगाई।
और ज्ञान की किरणें सारी दुनिया में पहुँचाई॥
मोह निशा में फँसे विश्व को बन्धन मुक्त कराया।
भ्रातृ-भावना का प्रकाश सारे जग में फैलाया॥
अगणित बार बचाई इसने मानवता की लाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज॥
इतना प्रेम की पशु-पक्षी तक प्राणों से भी प्यारे।
इतनी दया की जीव मात्र सब परिजन सखा हमारे॥
श्रद्धा अपरम्पार की पत्थर में भी प्रीति जगाई।
रिपु को लगा हृदय से अद्भुत शरणागति है पाई॥
क्षमा उन्हें भी किया दुष्टता से न रहे जो बाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज।
मानवता के लिये हड्डियाँ तक हमने दे डालीं।
माताओं ने करीं अनेकों बार गोदियाँ खाली॥
पर न अन्याय के आगे किंचित अपना शीश झुकाया।
चोटी नहीं कटाई हमने हँस-हँस शीश कटाया॥
रहा शिवाजी अर्जुन को निज दृढ़ चरित्र पर नाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज॥
देह सुखा डाली न पुण्य से तन-मन जिनके रीते।
गीध गिलहरी तक न रहे थे परमारथ से पीछे॥
इसी भूमि में शोभा पाते आये वेद-पुराण।
जन्म अनेकों बार यहीं लेते आये भगवान्॥
नव जागृति का सदा यहीं से गूँजा स्वागत-साज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज॥
सोये स्वाभिमान को आओ सब मिल पुनः जगायें।
नव-जागृति के आदर्शों को दुनिया में पहुँचायें॥
ज्ञान-यज्ञ की यह मशाल हर लेगी युग-तम सारा।
“हम बदलेंगे-युग बदलेगा”-आज लगाओ नारा॥
उठो! सुनो!! प्राची से उगते सूरज की आवाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज॥
-बलराम सिंह परिहार
*समाप्त*