Magazine - Year 1972 - Version 2
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कर्म में रहकर ही हम कर्म से महान हो सकते हैं। परित्याग करके या पलायन करके किसी प्रकार भी यह सम्भव नहीं है।
-टैगोर
आगे भी वह क्रम न चल पड़े और उनके यहाँ आने का थोड़ा सा किन्तु अति महत्वपूर्ण समय ऐसे ही व्यतीत न हो जाय। इसलिये पिछले अनुभवों के आधार पर उन्होंने इस संदर्भ में प्रतिबन्ध अति कठोर कर दिये हैं। वे कब आयेंगे और कब चले जायेंगे इसकी पूर्व जानकारी उपलब्ध न रहेगी। यहाँ आने पर भी वे एकान्त कक्ष में ही रहेंगे। यह कक्ष लगभग उसी व्यवस्था के अनुरूप बना है जो योगीराज अरविन्द की थी। जब तक वे वहाँ रहेंगे प्रायः पूरे समय उसी में रहेंगे। 18 घण्टे तो उनके साधना क्रम में ही चले जाते हैं। दो चार घण्टे ही उन्होंने लोक मंगल के प्रयोजनों के लिये रखे हैं सो उसका उपयोग हम लोग भी करेंगे। जनसंपर्क एक प्रकार से सम्भव ही न होगा।
अस्तु हम सबको गम्भीर एवं जिम्मेदार लोगों की तरह आचरण करना है। उनके दर्शन को महत्व न देकर उनके निर्देशों पर ही ध्यान केन्द्रित करना है। उनकी इच्छा तथा व्यवस्था में व्यतिक्रम उत्पन्न नहीं करना है भले ही अपनी प्रबल भावुकता पर अंकुश लगाना पड़े। गुरुदेव का समय-उनका तप साधन विशुद्ध रूप से लोक मंगल के लिये नियोजित है। उसमें से जितना अंश हम अपने व्यक्तिगत प्रयोजन के लिये खर्च करायेंगे उतनी ही क्षति विश्वकल्याण के अभीष्ट प्रयोजनों की होगी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए किसी को भी उनके साधना स्थान का पता लगाने या मिलने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये। ऐसे प्रयत्नकर्ताओं के असफल होने पर हमें, उन्हें तथा गुरुदेव को कष्ट ही हो सकता है। इसीलिये जब तक उनका नया निर्देश न हो-जब तक वे किसी को स्वयं ही न बुलायें, तब तक उनसे मिलने के लिये किसी को भी चेष्टा न करनी चाहिये। “दिव्य अनुभूतियाँ” स्तम्भ भी उनके आदेशानुसार अब अखण्ड-ज्योति में नहीं छपेगा।
अखण्ड जप और कन्यायें
शान्तिकुँज में अखण्ड दीपक पर 24 गायत्री महापुरश्चरणों की शृंखला अखण्ड जब के रूप में चल रही है। उसे कुमारी कन्याओं द्वारा चलाया जा रहा है।
कन्यायें डेढ़ घण्टा दिन में और एक घण्टा रात में अर्थात् प्रतिदिन ढाई घण्टा जप करती हैं। शेष समय में मैं उन्हें पढ़ाती थी। संगीत तथा सिलाई सिखाती थी ताकि वे यहाँ से जाने पर हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परिचय दे सकें, सफल स्वावलम्बी एवं लोकोपयोगी जीवन जी सकें।
अब प्रक्रिया को और भी अधिक सुव्यवस्थित किया जा रहा है। लड़कियों के लिये अति उपयोगी प्रशिक्षण गृह-उद्योग, सिलाई, संगीत आदि की शिक्षा व्यवस्था बनाई है। इसके लिये विद्यालय हाल बनाया जा रहा है। अभी तक वे छात्रावास में ही रहती, पढ़ती थी। एक ऐसी सहायिका की आवश्यकता भी छापी गई है जो मेरा हाथ बँटा सके । संगीत, सिलाई आदि जानती हो। पारिवारिक उत्तर-दायित्वों से मुक्त हो। उसके लिये कुमारी होने की शर्त नहीं है। विधवा परित्यक्ता भी उसके लिये उपयुक्त हो सकती है।
विद्यालय हाल बनने एवं सहायक अध्यापिका की व्यवस्था दो तीन महीने में ही हो जायगी। अभी तो जप करने वाली लड़कियाँ मिल-जुल कर ही अपना भोजन बनाती हैं। आगे उस कार्य के लिये भी सेविका रहेगी ताकि उन्हें अधिक से अधिक समय शिक्षा के लिये मिल सके।
पिछली लड़कियों में से कई छह महीने के लिये ही आयी हैं, उन्हें जून में वापिस भेज दिया जायगा। अगले
शान्तिकुँज के लिये आवश्यकता
1-जप करने वाली कन्याओं की शिक्षा व्यवस्था में मेरी सहायता कर सकने वाली एक ऐसी वयस्क महिला की जिसे संगीत एवं सिलाई का भी सामान्य ज्ञान हो, पारिवारिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त होनी चाहिये, कुमारी होना आवश्यक नहीं।
2-भोजन बना सकने में कुशल परिश्रमी महिला की। शिक्षित होना आवश्यक नहीं।
जिन्हें उपरोक्त कार्यों में उत्साह हो, हरिद्वार रह सकें वे अपनी स्थिति का विस्तृत विवरण लिखते हुये पत्र व्यवहार कर लें।
-माता भगवती देवी शर्मा
शान्तिकुँज पो0 सप्तसरोवर,
हरिद्वार।
हरिद्वार।
वर्षों के लिये जो लड़कियाँ आना चाहें अभी से पत्र-व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त कर लें। 24 महापुरश्चरणों का यह अखण्ड जप पूरा होने में अभी पाँच वर्ष का समय है। अच्छा तो यह है कि 5 वर्ष के लिये ही कन्याएं आयें ताकि वे कुछ योग्य बनकर भी जा सकें। कम से कम एक दो वर्ष की बात तो सोचकर ही आना चाहिये। आगे से किसी को भी छः महीने की स्वीकृति नहीं मिलेगी।