Magazine - Year 1972 - Version 2
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Language: HINDI
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दुःखी वे रहते हैं जो अज्ञान ग्रस्त हैं
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‘लू’ नगर की एक पिछड़ी बस्ती में रहते थे, दार्शनिक ‘युआन सीन’ फूँस की झोपड़ी, टूटा छप्पर, गीला फर्श, मटकों से बनी खिड़की। ऐसे टूटे-फूटे घर में वे रहते थे और फुरसत के वक्त मस्ती से भरे हुए एक तारा बजाया करते थे।
अमीर ‘त्सी कुँग‘ अपनी शानदार बग्घी में बैठकर उनसे मिलने गये। गली इतनी छोटी थी कि बग्घी उसमें घुस न सकी। उन्हें पैदल जाना पड़ा।
युआन सील अतिथि का स्वागत करने दरवाजे पर आये। फटा जूता, पत्तों की टोपी, पुराने कपड़े पहने उन्हें देख कर कुँग ने कहा - ओह, सन्त आप दुखी, दरिद्र, संकटग्रस्त।
युआन मुसकराये और बोले - मैंने सुना है - धन के अभाव में मनुष्य गरीब भर रहता है। दुःखी वे, रहते हैं जो अज्ञान ग्रस्त हैं। बताओ तो-मैं गरीब हुआ या दुःखी?
त्सी कुँग सिटपिटाये से एक कोने में खड़े थे।