Magazine - Year 1973 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
करुणा ही सबसे बड़ी शक्ति है
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युग सन्धि की इस अति महत्वपूर्ण बेला में जागृत आत्माओं के कन्धों पर कुछ विशेष कर्तव्य और उत्तरदायित्व आयें है। इनकी पूर्ति में उन्हें बिना असमंजस और प्रमाद अपनाये तत्परतापूर्वक लगना चाहिये। यह तथ्य गम्भीरतापूर्वक समझा जाना चाहिये कि युग समस्याओं एवं प्रत्यक्ष विभीषिकाओं के मूल में आस्था संकट ही प्रमुख कारण है। सुधार समाधान के लिये किये जाने वाले भौतिक प्रयत्नों से सहयोग देने के अतिरिक्त सूक्ष्मदर्शियों को अदृश्य के अनुकूलन, जन-मानस के परिष्कार एवं प्रज्ञा विस्तार के लिये विशेष रूप से प्रयत्न करना चाहिये। इन क्षेत्रों में इन दिनों प्रयत्नशीलता नहीं के बराबर है जबकि वस्तुस्थिति को ध्यान में रखते हुए इन्हीं प्रयत्नों पर अधिकाधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस उपेक्षित किन्तु सर्वोपरि महत्व के कार्यक्षेत्र को अध्यात्म अभिरुचि के लोग सम्भालें, यही उपयुक्त है। युग परिवर्तन के इस विशिष्ट अवसर पर गायत्री परिवार के परिजन युग पुरश्चरण आरम्भ कर रहे हैं। जिसमें हर दिन 240 करोड़ गायत्री जब नैष्ठिक उपासकों द्वारा सम्पन्न होता रहेगा। देश को दस साधना खण्डों में बाँटा गया है। हर खण्ड में दस हजार नैष्ठिक उपासकों द्वारा सम्पन्न होता रहेगा। देश को दस साधना खण्डों में बाँटा गया है। हर खण्ड में दस हजार नैष्ठिक उपासक होने पर देश भर में एक लाख नैष्ठिक उपासक होते हैं। इनके द्वारा हर प्रान्त में 24 करोड़ जप होने का उपक्रम चलेगा और कुछ मिलाकर 240 करोड़ जप नित्य पूरा होता रहेगा। यह संकल्प प्रस्तुत गायत्री जयन्ती 13 जून 90 से आरम्भ होकर आगामी बोस वर्ष तक चलेगा। युग सन्धि की यही मध्य बेला है।
नैष्ठिक उपासकों को पाँच नियम पालन करने होते हैं (1) न्यूनतम पाँच माला गायत्री जप, शक्ति संचार साधना सहित। (2) गुरुवार को अस्वाद व्रत, ब्रह्मचर्य एवं दो घण्टे का मौन। (3) महीने में एक बार अग्नि-होत्र (4) आश्विन, चैत्र की नवरात्रियों में अनुष्ठान (5) दस अन्य व्यक्तियों को साधना रत बनाये रहना। इन नियमों का पालन करने वाले ही नैष्ठिक माने जायेंगे ऐसी साधना ही व्यक्ति और विश्व के लिये प्रभावी परिणाम प्रस्तुत कर सकने में समर्थ होती है। इसी स्तर के नैष्ठिक साधकों की युग साधना में प्रस्तुत पुरश्चरण सम्पन्न होगा और उपयुक्त परिवर्तन के दूरगामी परिणाम उत्पन्न करेगा। शौकिया अस्त-व्यस्त उपासना तो मात्र सुरुचि उत्पन्न करने भर का थोड़ा-सा प्रयोजन पूरा करती है अस्तु जिसे आत्म-शक्ति का बिन्दु संचय युग शक्ति बनने जा रहा है, उसको प्रचुर परिणाम में उत्पन्न करने के लिए प्रस्तुत युग पुरश्चरण का अभूत पूर्व आयोजन किया गया है और इसके लिये एक लाख नैष्ठिक साधक नया संकल्प देकर इन्हीं दिनों बनाये जा रहे है। यह देखने में छोटा किन्तु परिणाम में अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य है। इसे सम्पन्न करने में सहायता करने की अपेक्षा सभी जागृत आत्माओं से की गई है।
गायत्री महामन्त्र में सन्निहित ऋतम्भरा प्रज्ञा का आलोक ही नवयुग का आधार भूत कारण बनेगा। नवयुग के समस्त सूत्र संकेत एवं सन्देश महाप्रज्ञा में बीज रूप में विद्यमान हैं। इस आलोक को जन-जन तक पहुँचाने के लिये इन दिनाँक बड़े गायत्री शक्ति पीठों मझले प्रज्ञा पीठों और छोटे प्रज्ञा मन्दिरों का निर्माण हो रहा है। इनमें से प्रज्ञा मन्दिर सबसे सस्ता और हर गाँव में अति सरलतापूर्वक बन जाने योग्य है। प्रयत्न यह होना चाहिये कि यह छोटे देवालय हर गाँव में बन सकें और उनके माध्यम से युगान्तरीय चेतना का आलोक जन-जन के अन्तराल तक पहुँचाया जा सकना सम्भव हो सके।
युग संधि के इस प्रथम वर्ष में प्राणवान अग्रदूतों से अनुरोध है कि वे यह अंक पढ़ने के दिन से लेकर गायत्री जयन्ती तक का समय निजी कामों से अवकाश लेकर अपने परिचित क्षेत्र में जन-संपर्क के लिये निकलें। मिशन से परिचितों के और साधना में श्रद्धा रखने वालों के सर्वप्रथम दरवाजा खटखटायें नैष्ठिक उपासना की आवश्यक जानकारी देने वाली 20 पैसे वाली पुस्तिका अधिक संख्या में गायत्री तपोभूमि से मँगा लें और उसे पढ़ाने सुनाने का प्रयत्न करें। इस प्रयत्न से नैष्ठिक उपासकों की संख्या बढ़ने में प्रयत्न की तुलना में सफलता ही अधिक मिलेगी। अन्तरिक्ष में प्रवाहित युगान्तरीय चेतना इस सफलता में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होगी। साथ ही छोटे प्रज्ञामन्डलों की स्थापना के लिये भी श्रद्धालुओं के संयुक्त प्रयास को प्रोत्साहित किया जाये, तो हर क्षेत्र में इन्हीं दिनों अनेकों प्रज्ञामन्डल बन सकेंगे और उनका अनुकरण अन्य गाँवों में भी चल पड़ेगा सभी जागृत आत्माओं से गायत्री जयन्ती तक की अवधि इस प्रयोजन के लिए समयदान करने के लिए इन पंक्तियों द्वारा विशेष अनुरोध किया जा रहा हैं।