Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
तिलहन को पीसता (कहानी)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
पंडित जी के घर का तेल चुक गया। वे पड़ोस के गाँव से तेल खरीदने तेली के घर पहुँचे।
कोल्हू इससे पहले उनने कभी देखा न था। सो इस विचित्र सरंजाम की जानकारी तेली से पूछने लगे। खरीदने वाली बात पीछे पड़ गई।
पंडित जी ने पूछा— "खींचने वाले बैठक पर इतने पत्थर क्यों लादे गए हैं।"
तेली ने कहा— “बोझ भरा रहने पर बैल उसे खींचने में व्यस्त रहता है। हलका होने पर वह किधर भी दौड़ने की बात सोचेगा।”
पंडित जी को नई जिज्ञासा उभरी। पूछा— "अच्छा तो उसकी आँखों पर पट्टी क्यों बाँधी गई है।"
तेली ने कहा— उसे एक ही घेरे में घूमना पड़ता है। आँखें खुली रहने पर वह ऊबने लगेगा न, जब दिखता ही नहीं तो प्रगति-अवगति सब समान है।"
पंडित जी ने नया प्रश्न पूछा— "फिर उसके गले में घंटी क्यों बँधी है?"
तेली ने कहा— “मैं काम में लग जाता हूँ और बैल घूमता रहता है। जब खड़ा होने लगता है तो घंटी न बजने से पता चल जाता है और मैं आकर इसे हाँक देता हूँ।"
नया प्रश्न पूछने के स्थान पर पंडित जी तर्क करने लगे। यह न चलने पर भी सिर हिलाकर घंटी तो बजाता रह सकता है।
तेली हँस पड़ा बोला— "पंडित जी यह इतना पढ़ा-लिखा नहीं है जो चकमा देने का तरीका निकाल सके।"
पंडित जी झेंप गए। तेल लेकर वापस लौटे तो रास्ते भर सोचते रहे। आदमी भी एक प्रकार का कोल्हू का बैल ही है जो पत्थरों का भार खींचता, दायरे में घूमता और गले की घंटी से आफतों को बुलाता है। तिलहन को पीसता और स्वयं पिसते हुए दिन बिताता है।