Magazine - Year 2000 - Version 2
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Language: HINDI
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मोरचा लेने की सामर्थ्य (kahani)
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नरेंद्र स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास दक्षिणेश्वर अक्सर जाते थे। त्रिकाला परमहंस तो नरेंद्र का भावी स्वरूप जानते थे, पर अपने शिष्य को साँसारिक जाल से निकालकर आत्मबोध कराने में उन्हें कुछ समय लगा। जब समय आ ही पहुँचा तो उन्हीं की प्रेरणावश नरेंद्र ने अपनी नौकरी की समस्या उनके समझ रखी। परमहंस ने उसे काली की शरण में जाने का निर्देश दिया। काली के समक्ष जाकर उसका विराट् स्वरूप साक्षात् सामने देखकर वे मात्र आत्मशक्ति व भक्ति की याचना के और कुछ नहीं माँग सके। काली के इस साक्षात्कार व रामकृष्ण के मार्गदर्शन ने नरेंद्र को विवेकानंद उसी दिन बना दिया था, शक्ति भले ही गुरु से उन्होंने अवसान के पूर्व पाई हो।
सद्गुरु की प्राप्ति एक बहुत बड़ा सौभाग्य है। यह जिस-जिसको मिला है, वह परमलक्ष्य की ओर बढ़ सकने में सफल हुआ है, मार्ग में आने वाले अवरोधों से मोरचा लेने की सामर्थ्य भी उसे ही मिलती रही है।