Magazine - Year 2000 - Version 2
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Language: HINDI
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विभूतिवानों का सृजनशील संगठन
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परमपूज्य गुरुदेव का अवतरण नवयुग सृजन के ईश्वरीय संकल्प को साकार रूप देने के लिए ही हुआ । ‘आत्मशक्ति के उद्भव’ का सूत्र उन्होंने हम सभी को दिया। इस आत्मशक्ति को जाग्रत करने वाली युगसाधना पर उन्होंने पर्याप्त बल दिया, ताकि मनुष्य की तमाम शक्तियों को भटकाव से रोककर नवसृजन में लगाया जा सके। इस हेतु उन्होंने हमें शतसूत्रीय युगनिर्माण योजना दी।
युगसंधि के अंतिम महत्वपूर्ण कालखंड (1989 से 2000) में पूज्यवर ने युगसंधि महापुरश्चरण प्रारंभ कराया। लाखों की भागीदारी से आरंभ हुआ यह अभियान करोड़ों तक जा पहुँचा है। सामूहिक साधना की शक्ति से सूक्ष्मजगत् का परिशोधन होकर एक ‘समूह-मन’ के जागरण की प्रक्रिया संपन्न हो, इस निमित्त यह पुरुषार्थ नियोजित हुआ है और बड़ी संख्या में विभूतिसंपन्नों-समर्थ प्रतिभाशालियों में नवसृजन के लिए संकल्पपूर्वक कुछ कर गुजरने को उत्साह जगा रहा है।
इस महापूर्णाहुति वर्ष में हमारे इष्ट-आराध्य के निर्देशानुसार पूरे वर्ष में दीपयज्ञों की शृंखला द्वारा विभूति यज्ञ संपन्न होना है। दो करोड़ प्रतिभासंपन्नों को संकल्पपूर्वक नवसृजन के अभिनव कार्यों में लगाया जाना है। इसके लिए एक लाख संगठन समारोह इस वर्ष होने हैं। इन दो करोड़ विभूतिवानों के सुसंगठित सुनियोजन हेतु ताना-बाना कई लाख प्रज्ञापरिजन एवं प्रज्ञापुत्र स्तर के अग्रदूत बनेंगे।
युगऋषि के निर्देशानुसार पाँच चरणों में निर्धारित महापूर्णाहुति के दो चरण तीन दिसंबर 1999 एवं दस फरवरी 2000 को सफलतापूर्वक संपन्न हो रहा है। प्रथम दो चरण इसी अति महत्वपूर्ण चरण के प्रयाज रूप में संपन्न हुए हैं। युगऋषि के निर्देशानुसार इस चरण में राष्ट्र व विश्वभर में विद्यमान विभूतियों में से दो करोड़ प्रतिभाओं को खोजने-नियोजित करने हेतु सक्रिय प्रज्ञापुत्रों को दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं कई लाख समयदानी प्रज्ञापुत्रों में से दो लाख अग्रदूत स्तर के प्राणवान इसी गहन मंथन से उभरकर आएँगे।
तीसरे चरण के राष्ट्रजागरण तीर्थयात्रापरक एवं क्षेत्रीय संगठनात्मक मंथनपरक कार्यक्रमों की शृंखला का समापन 21 मई से 11 जून के बीच 108 स्थानों पर केंद्रीय टोलियों के द्वारा होने जा रहा है, इसलिए सारे देश के जिला समूहों के संभाग स्तर पर हैं, इसलिए सारे देश के ऐसे 108 स्थान चुने गए हैं, जिनका प्रभाव-क्षेत्र अति व्यापक है। दो दिवसीय इन आयोजनों को स्वरूप कुछ इस प्रकार है-
(1) केंद्रीय टोली आयोजन की पूर्व संध्या पर शाम तक निर्धारित स्थान पर पहुँच जाएगी। इस दिन स्थानीय स्तर पर कलशयात्रा-नगरफेरी का क्रम पूरा हो चुका होगा।
(2) अगले दिन प्रातः 9 बजे से कार्यक्रम आरंभ होगा। संबंधित जिलों के प्रतिनिधित्व तब तक वहाँ आ जाएँगे। 9 से 10 सामूहिक ध्यानशक्ति संचारपरक कार्यक्रम के बाद 1ि0.30 से 12.30 की अवधि में सभी लों के क्षेत्रव्यापी सृजन संगठन-दीपयज्ञों के निष्कर्षों का लेखा-जोखा लिया जाएगा।जिनने भी क्षेत्रीय स्तर पर ग्रामसमूह, ब्लॉक, नगर या जिला स्तर पर अभियान को गति देते रहने की जिम्मेदारी स्वीकार की है। व उसके लिए समय भी दे सकते हैं, ऐसे ही नर-नारी इसमें भाग लेंगे, सामान्य जनता नहीं इसके अतिरिक्त गायत्री तीर्थ से आरंभ किए गए सात आँदोलनों (साधना शक्ति संवर्द्धन, शिक्षा-विद्याविस्तार, जन स्वास्थ्य संवर्द्धन स्वावलंबन, पर्यावरण परिशोधन, महिला-जागरण तथा व्यसन-मुक्ति व कुरीति -उन्मूलन) में से एक या अधिक की जिनने जिम्मेदारी उठाई है, वे भी इसमें भागीदारी करेंगे। इन विधाओं के विशेषज्ञ, जो गायत्री परिवार की विचारधारा से सहमति रखते हैं, भी इसमें सम्मिलित हो सकते हैं।
इन गोष्ठियों में समीक्षा की जाएगी कि जिलों के ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में कहाँ-कहाँ सृजनशिल्पियों की व्यूहरचना बन गई है, कहाँ शेष है, कितने सहयोगी, समर्थक, नियमित समयदानी हैं। कौन-कौन से आँदोलनों के लिए विभिन्न विभूतियों को संकल्पित किया गया है। इस सारी चर्चा का सार-संक्षेप ही सायंकालीन दीपयज्ञ में रखा जाएगा व प्रतिभाओं द्वारा जिम्मेदारी निभाने के संकल्प लिए जाएँगे।
(3) शाम का सार्वजनिक कार्यक्रम 4.30 से 8.30 के बीच संपन्न होगा। इसमें वर्तमान व भविष्य संबंधी लोकमानस के नवनिर्माण संबंधी मार्गदर्शन, 2001 के अंत तक मिशनरी योजनाओं, प्रातः हुई चर्चा के निष्कर्षों की चर्चा होगी, जनसमूह को मार्गदर्शक उद्बोधन केंद्रीय कार्यकर्त्ताओं द्वारा दिया जाएगा। हर जिले या ब्लॉक के दो-चार जिम्मेदार प्रतिनिधि केंद्रीय टोली से अगले चरण की कार्ययोजना की तैयारी की चर्चा हेतु रुक जाएंगे। शेष सभी परिजन वापस लौट सकेंगे।
(4) अगला पूरा दिन जिले व संभागीय प्रतिनिधियों द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली कार्ययोजना को मूर्तरूप देने में निर्धारण हेतु लगाया जाएगा। केंद्र व क्षेत्र के समन्वित प्रयासों की -प्रज्ञासंस्थानों-प्रज्ञामंडलों की उनमें भूमिका की रूपरेखा बनाई जाएगी । तत्पश्चात टोली अगले कार्यक्रम के लिए प्रस्थान करेगी।
मध्यवर्ती इस तीसरे चरण के फलितार्थ कितने महत्वपूर्ण एवं स्थायी होंगे, इसे पाठक-परिजन समझ सकते हैं। प्रज्ञापुत्रों-समर्थ प्रतिभासंपन्नों के नियोजन की प्रक्रिया कैसे साकार होगी, उसकी रूपरेखा इसी चरण से निकल कर आएगी।
क्राँतिधर्मी साहित्य नाम से विख्यात बीस पुस्तकें क्राँतदर्शी प्रज्ञापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा 1989 -90 में महाप्रयाण के एक वर्ष पूर्व की अवधि में एक ही प्रवाह में सृजी गई थीं। बीस छोटी-छोटी पुस्तिकाओं में बिखरे इस साहित्य के विषय में स्वयं हमारे आराध्य परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का मत था-”हमारे ये विचार क्राँति के बीज हैं। ये थोड़े भी फैल गए, तो लोगों को हिलाकर रख देंगे। सारे विश्व को नक्शा बदल देंगे।” वस्तुतः इन पुस्तकों में मात्र विचार ही नहीं, क्राँति की आग है, युगपरिवर्तन की दिशाधारा है।
इस अमूल्य साहित्य को मात्र लागत मूल्य पर छापने, वितरित करने का निर्देश स्वयं गायत्री परिवार के अधिष्ठाता परमपूज्य गुरुदेव दे गए हैं। कोई भी इन विचारों को जनहित में प्रकाशित व वितरित कर सकता है। इन्हें जितने अधिक व्यक्तियों तक पहुँचाया जाएगा, उतना ही पुण्य का अधिकारी वह पाठक-परिजन कहाएगा। क्राँतिधर्मी साहित्य की बीस पुस्तकों का महापूर्णाहुति सेट अब गायत्रीतीर्थ शाँतिकुँज हरिद्वार में मात्र 50 में उपलब्ध हैं। पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं-
(1) इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग (1)
(2) इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग (2)
(3) युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग (1)
(4) युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग (2)
(5) सतयुग की वापसी
(6) परिवर्तन के महान क्षण
(7) जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
(8) महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
(9) प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
(10) नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
(11) समस्याएँ आज की समाधान कल के
(12) मनः स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
(13) स्रष्टा का परम प्रसाद प्रखर प्रज्ञा
(14) आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
(15) शिक्षा ही नहीं विद्या भी
(16) संजीवनी विद्या का विस्तार
(17) भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
(18) महिला जागृति अभियान
(19) जीवन देवता की साधना-आराधना
(20) समयदान ही युगधर्म