Magazine - Year 2000 - Version 2
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Language: HINDI
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सत्संग का लाभ (kahani)
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अमरदास सिख संप्रदाय के तृतीय गुरु थे, उन्होंने अपने अनुयायियों को सामूहिक लंकर में भोजन करने की प्रथा का सूत्रपात किया। उन दिनों हिंदुओं में ऊँच-नींच, बड़े-छोटे का भाव अत्यधिक विकृत रूप धारण कर चुका था। गुरु अमरदास की धारणा थी कि इस प्रथा से मनुष्य -मनुष्य के बीच ऊँच-नीच की खाई पटेगी, इसलिए ही उन्होंने अपने अनुयायियों को इस प्रथा से बाँध दिया था।
उनकी विद्वत्ता और गौरव से प्रभावित होकर एक दिन अकबर उनसे मिलने गया। अधिकारियों ने उन्हें सूचना दी- शहंशाह अकबर आपके दर्शन करना चाहते हैं। अमरदास जी ने संदेश भेजा कि यहाँ सब नागरिक समान हैं, एक ही ईश्वर के पुत्र भाई-भाई हैं। भाइयों-भाइयों में मतभेद नहीं होता। अकबर यहाँ आ सकते हैं, पर एक शहंशाह की तरह नहीं सामान्य नागरिक की तरह। यदि वे यहाँ आकर सब आश्रमवासियों के साथ भोजन करें। शहंशाह ने वैसा ही किया, तब कहीं गुरु के दर्शन पा सके और उनके सत्संग का लाभ लिया।