Books - चिंतन-चरित्र को ऊँचा बनाएँ
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Language: HINDI
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सोने का नेवला
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 मित्रो! हवन का, कर्मकाण्ड का जो मूल लाभ है, वह उसके चिंतन का लाभ है। दृष्टिकोण के स्तर की ऊँचाई बढ़ाने का लाभ है, आप यह बात ध्यान रखना। प्राचीनकाल का इतिहास और नया इतिहास यह बराबर बताते हैं कि यदि क्रियाकृत्य सामान्य हों, तो भी उसके फल असामान्य होंगे। पिछले शिविर में एक दिन मैंने आपको एक नेवले की कहानी सुनाई थी। एक ब्राह्मण थे, जो चार रोटी का अनाज कहीं से लाए थे और भूखे रहते हुए उन्होंने चारों रोटियाँ दान कर दी थीं। रोटी एक चांडाल ले गया था। उसके जूठे पानी में नेवले का थोड़ा अंग भीग गया था और वह सोने का हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने जब पाण्डवों का यज्ञ कराया था तो उसमें वह नेवला गया था और कहने लगा था कि साहब! इस यज्ञ का इतना पुण्य नहीं हुआ। तो महाराज जी! किससे होता है पुण्य ?? इससे पुण्य होता है कि तुम अपनी थाली में एक-एक रोटी रख लो और जो कोई भी आदमी आए, उसे चारों रोटी दान कर दो। महाराज जी! तो क्या नेवला इससे सुनहला हो जाएगा? नहीं होगा। अच्छा तो मैं चार रोटी की जगह छह रोटियाँ रख दूँ अथवा एक किलो आटे की रोटियाँ थाली में रख दूँ? और दान कर दूँ तो, तो भी नहीं होगा। क्यों?
क्योंकि इसका जो अर्थ तू समझता हैं, वह दृश्य को समझता है, कृत्य को समझता है, पदार्थ को समझता है, यही मतलब है न तेरा? लेकिन पदार्थ का क्या मूल्य हो सकता है, क्या महत्त्व हो सकता है? पदार्थ को तो घर में चूहे भी खा जाते है। हाँ महाराज जी! अनाज का पुण्य करने से क्या हो जाएगा? कुछ भी नहीं हो जाएगा। कैसे हो जाएगा? बेटे! उसका एक ही आधार है, और दूसरा कोई भी नहीं है और उसका नाम हैं-दृष्टि। अभी मैंने आपको उस आदमी का हवाला दिया, जिसको चार रोटियों ने यह कमाल कर दिया था। उसके पीछे एक दृष्टि थी, एक फिलॉसफी थी और वही यज्ञ हो गई। इतना बड़ा यज्ञ हो गई कि उसके मुकाबले में श्रीकृष्ण का पाण्डवों द्वारा लाखों रुपया खरच करके कराया गया यज्ञ नाचीज हो गया। लेकिन भूखे ब्राह्मण का वह चार रोटी दान करने वाला यज्ञ बड़ा हो गया।
मित्रो! वह क्या था? एक दृष्टि थी, जो उस आदमी के भीतर काम करती थी। वह दृष्टि यह काम करती थी कि मैं अपने पेट पर पट्टी बाँध सकता हूँ, पर मुझसे भी ज्यादा पिछड़े हुए आदमी हैं, गिरे हुए, दुखियारे आदमी समाज में हैं तो उनका यह हक है कि मैं उनकी सेवा करूँ। इसके लिए चाहे मुझे मुसीबतें ही क्यों न उठानी पड़ें, तो उठाऊँ। यह दृष्टि, यह निष्ठा, यह आस्था, यह विश्वास इतना शक्तिशाली था कि देवताओं के सोने के सिंहासन हिल गए।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।
चिंतन बिंदु-
:-परमेश्वर का प्यार केवल सदाचारी और कर्तव्यपरायणों के लिए सुरक्षित है।
:-प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं-आवश्यकताएँ कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बिठाएँ।
:-सभ्यता का स्वरूप है सादगी, अपने लिए कठोरता और दूसरों के लिए उदारता।
:-जो अपनी सहायता आप करने को तत्पर हैं, ईश्वर केवल उन्हीं की सहायता करता है।
:-गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
क्योंकि इसका जो अर्थ तू समझता हैं, वह दृश्य को समझता है, कृत्य को समझता है, पदार्थ को समझता है, यही मतलब है न तेरा? लेकिन पदार्थ का क्या मूल्य हो सकता है, क्या महत्त्व हो सकता है? पदार्थ को तो घर में चूहे भी खा जाते है। हाँ महाराज जी! अनाज का पुण्य करने से क्या हो जाएगा? कुछ भी नहीं हो जाएगा। कैसे हो जाएगा? बेटे! उसका एक ही आधार है, और दूसरा कोई भी नहीं है और उसका नाम हैं-दृष्टि। अभी मैंने आपको उस आदमी का हवाला दिया, जिसको चार रोटियों ने यह कमाल कर दिया था। उसके पीछे एक दृष्टि थी, एक फिलॉसफी थी और वही यज्ञ हो गई। इतना बड़ा यज्ञ हो गई कि उसके मुकाबले में श्रीकृष्ण का पाण्डवों द्वारा लाखों रुपया खरच करके कराया गया यज्ञ नाचीज हो गया। लेकिन भूखे ब्राह्मण का वह चार रोटी दान करने वाला यज्ञ बड़ा हो गया।
मित्रो! वह क्या था? एक दृष्टि थी, जो उस आदमी के भीतर काम करती थी। वह दृष्टि यह काम करती थी कि मैं अपने पेट पर पट्टी बाँध सकता हूँ, पर मुझसे भी ज्यादा पिछड़े हुए आदमी हैं, गिरे हुए, दुखियारे आदमी समाज में हैं तो उनका यह हक है कि मैं उनकी सेवा करूँ। इसके लिए चाहे मुझे मुसीबतें ही क्यों न उठानी पड़ें, तो उठाऊँ। यह दृष्टि, यह निष्ठा, यह आस्था, यह विश्वास इतना शक्तिशाली था कि देवताओं के सोने के सिंहासन हिल गए।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।
चिंतन बिंदु-
:-परमेश्वर का प्यार केवल सदाचारी और कर्तव्यपरायणों के लिए सुरक्षित है।
:-प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं-आवश्यकताएँ कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बिठाएँ।
:-सभ्यता का स्वरूप है सादगी, अपने लिए कठोरता और दूसरों के लिए उदारता।
:-जो अपनी सहायता आप करने को तत्पर हैं, ईश्वर केवल उन्हीं की सहायता करता है।
:-गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।