Books - चिंतन-चरित्र को ऊँचा बनाएँ
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Language: HINDI
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चिंतन उच्चस्तरीय हो
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इसीलिए मित्रो! यह बात ध्यान में रखकर चलना पड़ेगा कि आपको बनना क्या है और बनाना क्या है? करना क्या है और कराना क्या है? इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में एक ही जवाब है कि हमको अपनी दृष्टि का परिशोधन करना है। स्वयं का प्रश्न जहाँ तक आए, आप एक ही बात ध्यान रखिए कि हमारी दृष्टि परिष्कृत होनी चाहिए। हमारा चिंतन उच्चस्तरीय होना चाहिए। हमारे मनों में सिद्धांतों के लिए, आदर्शों के लिए ऊँची निष्ठा होनी चाहिए। अगर ये आपके भीतर हैं, तो आप क्या क्रिया करते हैं, क्या नहीं करते? चलिए आपकी क्रिया घटिया किस्म की हो तो भी मैं यह कहूँगा कि आप योगी हैं, आप संत हैं आप तपस्वी हैं और आप ज्ञानी है। क्रियाकृत्य आपका सामान्य जैसा दिखाई पड़ता हो तो भी, उसके लिए हँसी-मजाक उड़ाया जाता हो तो भी, इतिहास में नाम छपने लायक न हो तो भी। इसका बड़ा भारी असर पड़ेगा, फिर आपके लिए तो पड़ना भी चाहिए। इसलिए दृष्टि को ऊँचा करना, चिंतन को ऊँचा करना, आस्थाओं -निष्ठाओं को ऊँचा करना, यह हमारा पहला काम है।
मित्रो! यह मुख्य काम है और आखिरी काम भी है। इसी के लिए हम तरह-तरह के क्रियाकृत्य करते हैं। उसमें जप भी शामिल है, भजन भी शामिल है, अनुष्ठान भी शामिल है। ये जप, भजन और अनुष्ठान एक कृत्य हैं। अगर आपने इनको उच्चस्तरीय दृष्टिकोण बनाने के लिए किया है, तो मैं आपको बधाई देता हूँ और ये कहता हूँ कि भगवान करे ऐसा भाव हरेक के मन में उत्पन्न हो। ऐसा अनुष्ठान हरेक के मन में हो, लेकिन अगर आपकी दृष्टि अनुष्ठानों के पीछे निकृष्ट है। किसी का पैसा लेकर जप करने की आपके मन में दृष्टि है तो मैं समझता हूँ कि कोई खास फायदा नहीं है। आप एक मजदूरी करते हैं। गायत्री माता का कोई फल मिलेगा? बेटे! मैं कह नहीं सकता, क्योंकि तेरा उद्देश्य मजदूरी है। गायत्री माता का फल मिलेगा? बेटे। जरूर मिलेगा, अगर तेरी दृष्टि ऊँची रहेगी तब। दृष्टि का उसमें समावेश नहीं हुआ तो मैं जानता हूँ कि शायद ही उसका कोई परिणाम और शायद ही कोई अच्छा फल तुझे मिल सकता होगा।
मित्रो! यह मुख्य काम है और आखिरी काम भी है। इसी के लिए हम तरह-तरह के क्रियाकृत्य करते हैं। उसमें जप भी शामिल है, भजन भी शामिल है, अनुष्ठान भी शामिल है। ये जप, भजन और अनुष्ठान एक कृत्य हैं। अगर आपने इनको उच्चस्तरीय दृष्टिकोण बनाने के लिए किया है, तो मैं आपको बधाई देता हूँ और ये कहता हूँ कि भगवान करे ऐसा भाव हरेक के मन में उत्पन्न हो। ऐसा अनुष्ठान हरेक के मन में हो, लेकिन अगर आपकी दृष्टि अनुष्ठानों के पीछे निकृष्ट है। किसी का पैसा लेकर जप करने की आपके मन में दृष्टि है तो मैं समझता हूँ कि कोई खास फायदा नहीं है। आप एक मजदूरी करते हैं। गायत्री माता का कोई फल मिलेगा? बेटे! मैं कह नहीं सकता, क्योंकि तेरा उद्देश्य मजदूरी है। गायत्री माता का फल मिलेगा? बेटे। जरूर मिलेगा, अगर तेरी दृष्टि ऊँची रहेगी तब। दृष्टि का उसमें समावेश नहीं हुआ तो मैं जानता हूँ कि शायद ही उसका कोई परिणाम और शायद ही कोई अच्छा फल तुझे मिल सकता होगा।