Books - युग परिवर्तन कब और कैसे ?
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सुनियोजन की सही परिणिति
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
बड़े शहर बसाने और बढ़ाने में लगी हुई बुद्धिमत्ता यदि अपनी योजनाओं को ग्रामोन्मुखी बना देने की दिशा में मुड़ गयी होती, तो अब तक सर्वत्र मात्र छोटे- छोटे स्वावलम्बी और फूलते- फूलते कस्बे ही दिखाई पड़ते ।। न शहरों को घिचपिच, गंदगी तथा विकृतियों का भार वहन करना पड़ता और न गाँवों से प्रतिभा पलायन होते जाने के कारण, उन्हें गई गुजरी स्थिति में रहने के लिए बाध्य होना पड़ता ।।
युद्धों को निजी या सार्वजनिक क्षेत्रों में समान रूप से अपराध घोषित किया जाता ।। छोटी पंचायतों की तरह अन्तर्राष्ट्रीय पंचायतें भी विवादों को सुलझाया करती ।। आयुध सीमित मात्रा में पुलिस या अन्तर्राष्ट्रीय पंचायतों के पास ही रहते और धनशक्ति तो युद्ध सामग्री बनाने में विशाल धनशक्ति और जनशक्ति लगाने के लिए वैसा कुछ न बन पड़ता, जैसा कि इन दिनों हो रहा है ।। यह जनशक्ति यदि शिक्षा संवर्धन, उद्योगों के संचालन, वृक्षारोपण आदि उपयोगी कामों में लगी होती, तो युद्ध के निमित्त लगी हुई शक्ति को सृजन कार्य में नियोजित करके इतना कुछ प्राप्त कर लिया गया होता, जो अद्भुत और असाधारण होता ।।
शिक्षा का प्रयोजन अफसर या क्लर्क बनना न रहा होता और उसे जन- जीवन तथा समाज व्यवस्था के व्यावहारिक पक्षों के समाधान में प्रयुक्त किया गया होता, तो सभी शिक्षित, सभ्य, सुसंस्कृत होते और अपनी समर्थता का ऐसा उपयोग करते, जिससे सर्वत्र विकास और उल्लास बिखरा- बिखरा फिरता ।। हर शिक्षित को दो अशिक्षितों को साक्षर बनाने के उपरान्त ही यदि किसी बड़ी नियुक्ति के योग्य होने का प्रमाण- पत्र मिलता, तो अब तक अशिक्षा की समस्या का समाधान कब हो गया होता उद्योगों का प्रशिक्षण भी विद्यालयों के साथ अनिवार्य जुड़ा होता तो बेकारी, गरीबी की कहीं किसी को शिकायत न करनी पड़ती ।।
प्रेस और फिल्म, यह दो उद्योग जन- मानस को प्रभावित करने में असाधारण भूमिका निभाते हैं ।। विज्ञान की इन दो उपलब्धियों के लिये यह अनुशासन रहा होता, कि उनके द्वारा उपयोगी मान्यता प्राप्त विचारधारा को ही छापा या फिल्माया जायेगा, तो इनसे मनुष्य की बहुर्मुखी शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति होती जन साधारण को सुविज्ञ और सुसंस्कृत बना सकने में सफलता मिल गयी होती ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? पृ. 6.15)
युद्धों को निजी या सार्वजनिक क्षेत्रों में समान रूप से अपराध घोषित किया जाता ।। छोटी पंचायतों की तरह अन्तर्राष्ट्रीय पंचायतें भी विवादों को सुलझाया करती ।। आयुध सीमित मात्रा में पुलिस या अन्तर्राष्ट्रीय पंचायतों के पास ही रहते और धनशक्ति तो युद्ध सामग्री बनाने में विशाल धनशक्ति और जनशक्ति लगाने के लिए वैसा कुछ न बन पड़ता, जैसा कि इन दिनों हो रहा है ।। यह जनशक्ति यदि शिक्षा संवर्धन, उद्योगों के संचालन, वृक्षारोपण आदि उपयोगी कामों में लगी होती, तो युद्ध के निमित्त लगी हुई शक्ति को सृजन कार्य में नियोजित करके इतना कुछ प्राप्त कर लिया गया होता, जो अद्भुत और असाधारण होता ।।
शिक्षा का प्रयोजन अफसर या क्लर्क बनना न रहा होता और उसे जन- जीवन तथा समाज व्यवस्था के व्यावहारिक पक्षों के समाधान में प्रयुक्त किया गया होता, तो सभी शिक्षित, सभ्य, सुसंस्कृत होते और अपनी समर्थता का ऐसा उपयोग करते, जिससे सर्वत्र विकास और उल्लास बिखरा- बिखरा फिरता ।। हर शिक्षित को दो अशिक्षितों को साक्षर बनाने के उपरान्त ही यदि किसी बड़ी नियुक्ति के योग्य होने का प्रमाण- पत्र मिलता, तो अब तक अशिक्षा की समस्या का समाधान कब हो गया होता उद्योगों का प्रशिक्षण भी विद्यालयों के साथ अनिवार्य जुड़ा होता तो बेकारी, गरीबी की कहीं किसी को शिकायत न करनी पड़ती ।।
प्रेस और फिल्म, यह दो उद्योग जन- मानस को प्रभावित करने में असाधारण भूमिका निभाते हैं ।। विज्ञान की इन दो उपलब्धियों के लिये यह अनुशासन रहा होता, कि उनके द्वारा उपयोगी मान्यता प्राप्त विचारधारा को ही छापा या फिल्माया जायेगा, तो इनसे मनुष्य की बहुर्मुखी शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति होती जन साधारण को सुविज्ञ और सुसंस्कृत बना सकने में सफलता मिल गयी होती ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? पृ. 6.15)