Books - युग परिवर्तन कब और कैसे ?
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बाईबिल में संकट के संकेत
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बाइबिल की 'सेवन टाइम' नाम से विख्यात भविष्यवाणियों में भी विभीषिकाओं का ऐसा ही उल्लेख मिलता है ।।
इन्हें लेकर कई पुस्तकें लिखी गई ।। इनकी विवेचनाओं के लिए सैकड़ों ने अपना समय और श्रम खपाया है ।। बाइबिल की यह भविष्यवाणियाँ 'डैनियल तथा रिवेलेशन' अध्यायों में दी गई है ।। यद्यपि इन सबकी भाषा काफी गूढ़ है और इन्हें मुख्यतः रूपक शैली में ही लिखा गया है ।। इन भविष्यवाणियों में कहा गया है कि जब 'सात समय' का जमाना आएगा और नये युग की शुरुआत होगी उस समय तमाम दुनिया में लड़ाई- झगड़े फैल जायेंगे और प्रकृति इतनी क्रुद्ध हो उठेगी कि उसके कारण बड़ी संख्या में लोग मरने लगेंगे ।।
बाइबिल के '''मैथ्यू' अध्याय 24 में इस समय की विभीषिकाओं का चित्रण इन शब्दों में किया गया है- 'उस वक्त चारों तरफ लड़ाइयाँ होने लगेंगी और लड़ाई की अफवाहें सुनाई देने लगेंगी ।। एक मुल्क दूसरे मुल्क के खिलाफ खड़ा होगा और एक सल्तनत दूसरी सल्तनत के ।। उस समय अकाल पड़ेंगे, महामारी फैलेगी और जगह- जगह भूकम्प आयेंगे यह हालत तो शुरू में होगी और इसके बाद इससे कहीं ज्यादा कष्ट भोगने पड़ेंगे ।'
बाइबिल के 'रिवेलेशन '' अध्याय में महात्मा ज्ञान की निम्नलिखित भविष्यवाणियाँ उल्लेखनीय है- ''जब उसने दूसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से दूसरा जानवर निकला ।। यह लाल रंग का घोड़ा था ।। जो उस पर बैठा था, उसे इस बात की शक्ति दी गई थी कि संसार की शान्ति को भंग कर दे और युद्ध आरम्भ करा दे ।। उस सवार के हाथ में एक बहुत बड़ी तलवार दी गई थी ।''(रिवेलेशन अ. 6)
लाल रंग का आशय युद्ध से लगाया गया है ।। यद्यपि इन दिनों प्रकट तौर पर किन्हीं देशों में युद्ध नहीं चल रहा, परन्तु इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि विभिन्न देशों में जो आपसी तनातनी, गुटबंदी और शीत युद्ध की सी स्थिति बनी हुई है, वह कभी भी युद्ध का विस्फोट कर सकती है ।। कब किस बात को लेकर कौन- सा देश युद्ध की घोषणा कर देगा? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।।
बाइबिल के रिवेलेशन अध्याय छः में कहा है- ''जब उसने तीसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें तीसरा जानवर निकला ।। वह एक काले रंग का घोड़ा था और उसके ऊपर बैठे हुए सवार के हाथ में एक तराजू दी गई थी ।। मैंने यह आवाज सुनी कि एक सिक्के का एक पैमाना गेहूँ मिलेगा और तीन पैमाने जौ का दाम एक सिक्का होगा ।''
यों महँगाई और वस्तुओं का अभाव तो पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है किन्तु इन दिनों वस्तुओं के मूल्य जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उस वृद्धि ने निश्चित ही अब तक हुए मूल्यों की वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है ।। मूल्य वृद्धि का एक कारण वस्तुओं का अभाव भी है ।। जैसे- जैसे जनसंख्या बढ़ती जाएगी वैसे- वैसे अन्न संकट और भयंकर होता जायेगा ।।
बाइबिल की 'लैमेनटेशन' नामक पुस्तक में इनका वर्णन करते हुए लिखा है- 'लोगों के चेहरे कोयले की तरह काले हो जायेंगे ।। वे गलियों में मारे- मारे फिरेंगे ।। जो लोग तलवार से मारे जाते हैं वे उन भूख से मरने वालों की अपेक्षा सुख में रहेंगे ।'
अकाल के अतिरिक्त विनाश की परिस्थितियाँ उत्पन्न करने वाले दूसरे कारणों की ओर संकेत करते हुए रिवेलेशन अध्याय 6 में लिखा गया है- ''जब उसने चौथी मोहर को तोड़ा तो उसमें से चौथा जानवर निकला ।। वह एक पीले रंग का घोड़ा था ।। उस पर मृत्यु का देवता बैठा था ।। इस देवता को इस बात की ताकत दी गई थी कि वह पृथ्वी के चौथाई भाग में तलवार, प्लेग, अकाल और जंगली जानवरों आदि के द्वारा मनुष्यों का नाश करे ।''
जब उसे छठी मोहर को तोड़ा तो मैंने एक भयंकर भूकम्प देखा ।। उस समय सूर्य काले कपड़े की तरह लाल पड़ गया ।। आसमान के तारे इस तरह टूटने लगे जिस प्रकार किसी पेड़ को हिलाने से पके फल गिरने लगते हैं ।। हर एक पहाड़ और टापू हटने लगा ।। राजा बादशाह से लेकर गरीब आदमी तक ईश्वर के इस भयंकर कोप से घबराकर पहाड़ों की गुफाओं और चट्टानों में जा छुपे ।।
इस परिवर्तनों के स्वरूप बहुत तरह के होते हैं ।। सौर- मण्डल की गतिविधियों की एक- दूसरे ग्रह पर भी पारस्परिक प्रतिक्रिया होती है व प्रभाव पड़ता है ।। ज्वालामुखियों को विस्फोट, तूफान, भूकम्प, ऊपरी वातावरण, विषमता से उत्पन्न हलचलें अथवा सौर- मण्डल की कोई भी असामान्य गतिविधि ऐसे तीव्र परिवर्तनों का कारण बन जाती हैं ।। अन्तरिक्ष में आवारागर्दी करने वाली कुछ उल्काएँ भी अपनी सत्साहसिकता के कारण स्वयं को तो क्षति पहुँचाती ही हैं, पृथ्वी या कि अन्य ग्रहों को भी उथल- पुथल से भर देती हैं ।। इन उद्दण्ड उल्काओं की आवारागर्दी की गाथाएँ दुनिया भर के पौराणिक साहित्य में रोचक ढंग से वर्णित हैं ।।
यूनान की पौराणिक गाथाओं में ''इकोरस'' नाम के एक युवक की कथा है ।। यह सूर्य से मिलने की महत्त्वाकाँक्षा रख, नकली पंख लगाकर चल पड़ा ।। पंख उसने मोम से चिपका लिए थे ।।
अधिक ऊँचे जाने पर उसके पंख को जोड़ने वाली मोम गर्मी के कारण पिघल गई और पंख नीचे गिर पड़े, इकोरस भी औंधे मुँह नीचे समुद्र में आ गिरा तथा मर गया ।।
पिछले दिनों इसी युवक की तरह का एक दुस्साहसी उल्का- पिंड भी देखा गया ।। इसका नाम भी इकोरस ही रखा गया ।। यह इकोरस उल्का पिंड कभी सूर्य के अधिक निकट जा पहुँचता है इतना कि बस थोड़ा और पास जाए तो भाप बन ही बन जाए ।। कभी लगता है वह बुध से कभी मंगल और कभी शुक्र से अब टकराया, तब टकराया ।। सूर्य के अति निकट पहुँचकर वह आग का गोला ही बन जाता है ।। तो कभी सूर्य से इतनी दूर जा पहुँचता है कि शीत की अति ही हो जाती है ।। जून 1968 में इस उद्दण्ड क्षुद्र ग्रह के पृथ्वी के ध्रुव प्रदेश से आ टकराने की सम्भावना बढ़ गई थी ।
यदि खगोल- शास्त्रियों की यह आशंका सत्य सिद्ध होती तो पृथ्वी में भीषण हिम तूफान आते, समुद्र उफनकर दुनिया का थल- भाग अपनी चपेट में ले लेता, साथ ही लाखों वर्ग मील भूमि में गहरा गड्ढा हो जाने की सम्भावना थी जहाँ यह उफनता समुद्री जल भर जाता तथा कुल मिलाकर करोड़ों मनुष्य का सफाया हो जाता ।। सन् 1908 में मात्र हजार फुट व्यास की एक उल्का साइबेरिया क जंगल में गिरी थी तो वहाँ अणुबम विस्फोट जैसे दृश्य उपस्थित हो गये थे ।। इकोरस तो उस उल्का से हजारों गुना बड़ा है, अतः परिणाम का अनुमान किया जा सकता है ।।
सौभाग्यवश इकोरस पृथ्वी के समीप होकर गुजर गया और एक भीषण दुर्घटना टल गई ।। सौर- मण्डल में ऐसे अनेक छुद्र ग्रह हिडालगो, इरोस, अलबर्ट, अलिण्डा, एयोर, अपोलो, एडोरस, हर्मेस आदि चक्कर काट रहे हैं, जो सहसा टकराकर कभी भी धरती के जीवन में उथल- पुथल मचा सकते हैं ।।
वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पर जो हर 11वें वर्ष कुछ धब्बे से बन जाते हैं, उनका कारण सौरमण्डल के ग्रहों की गतिविधियाँ ही है स्पष्ट है कि सौर- मण्डलीय ग्रहों की प्रत्येक गतिविधि का सूर्य पर प्रभाव पड़ता है ।। जिस तरह सूर्य की हर गतिविधि से सौर- मण्डलीय ग्रह प्रभावित होते हैं ।। सभी ग्रह पश्चिम से पूर्व की ओर सूर्य की परिक्रमा करते हैं, और पृथ्वी की ही भाँति अपनी धुरी पर भी घूमते हैं ।। इस परिभ्रमण काल में जो अगणित प्रकार की उथल- पुथल होती है उनसे पृथ्वी ग्रह- उपग्रह प्रभावित होते हैं ।।
ऐसी उथल- पुथल की स्मृतियाँ मानवीय इतिहास में सुरक्षित है ।। पुराण कथाओं में इनका रोचक वर्णन मिलता है ।। मात्र क्षुद्र नक्षत्रों के टकराने अथवा सूर्य या किसी बड़े नक्षत्र में व्यापक परिवर्तन होने, उथल- पुथल मचाने से ही धरती में जलप्लावन आदि की घटनाएँ नहीं घटती ।। बल्कि धरती के भीतर की हलचलें और उसके सिकुड़ने- फैलने की विभिन्न प्रक्रियाएँ भी जल प्रलय आदि के दृश्य उपस्थित करती है ।।
सभी जानते हैं कि कभी भू- मण्डल के सभी महाद्वीप एक- दूसरे से जुड़े थे ।। ग्रहों की हलचलों और आकुंचन प्रसार की प्रक्रियाओं से वे एक दूसरों से दूर हटते गए ।। हिमालय अभी भी लगातार उत्तर की ओर खिसक रहा है और भू- वैज्ञानिकों का कथन है है कि 5 करोड़ वर्ष बाद सम्पूर्ण उत्तरी भारत का अधिकांश इलाका हिमालय के पेट में समा जायेगा ।। इसी तरह सन् 1966 में मास्को में सम्पन्न द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रो. डा. ब्रूस सी हीजेन और डॉ. नील यू डाइक ने घोषणा की थी कि आज से लगभग 2 हजार 32 वर्ष बाद पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति घटेगी ।। इसमें मनुष्यों का आकार व जीवन भी प्रभावित होगा ।।
वृक्ष- वनस्पति, कीट- पतंग आदि पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा ।। प्रशांत महासागर की तलहटी से निकाली गई मिट्टी और रेडियो सक्रियता एवं ''लारिया'' नामक एककोशीय जीव में हो रहे क्रमिक परिवर्तन से पता चलता है कि सन् चार हजार तक चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन होगा, जिससे ध्रुवों का स्थान भी परिवर्तित होगा ।। परिणामस्वरूप धरती में खण्डप्रलय की स्थिति हो जायेगी ।। बर्फीले तूफान चारों ओर उठेंगे ।। धरती में बेहद गर्मी और बेहद ठंडक की स्थितियाँ पैदा हुआ करेंगी ।। समुद्र तल भी लगातार ऊपर उठ रहा है ।। इसका भी परिणाम अवश्यंभावी है ।। ऐसी ही विशिष्ट प्राकृतिक उथल- पुथल अतीत में भी जल प्रलय जैसी घटनाओं का कारण बनती रही हैं ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? :: पृ- 2.24)
इन्हें लेकर कई पुस्तकें लिखी गई ।। इनकी विवेचनाओं के लिए सैकड़ों ने अपना समय और श्रम खपाया है ।। बाइबिल की यह भविष्यवाणियाँ 'डैनियल तथा रिवेलेशन' अध्यायों में दी गई है ।। यद्यपि इन सबकी भाषा काफी गूढ़ है और इन्हें मुख्यतः रूपक शैली में ही लिखा गया है ।। इन भविष्यवाणियों में कहा गया है कि जब 'सात समय' का जमाना आएगा और नये युग की शुरुआत होगी उस समय तमाम दुनिया में लड़ाई- झगड़े फैल जायेंगे और प्रकृति इतनी क्रुद्ध हो उठेगी कि उसके कारण बड़ी संख्या में लोग मरने लगेंगे ।।
बाइबिल के '''मैथ्यू' अध्याय 24 में इस समय की विभीषिकाओं का चित्रण इन शब्दों में किया गया है- 'उस वक्त चारों तरफ लड़ाइयाँ होने लगेंगी और लड़ाई की अफवाहें सुनाई देने लगेंगी ।। एक मुल्क दूसरे मुल्क के खिलाफ खड़ा होगा और एक सल्तनत दूसरी सल्तनत के ।। उस समय अकाल पड़ेंगे, महामारी फैलेगी और जगह- जगह भूकम्प आयेंगे यह हालत तो शुरू में होगी और इसके बाद इससे कहीं ज्यादा कष्ट भोगने पड़ेंगे ।'
बाइबिल के 'रिवेलेशन '' अध्याय में महात्मा ज्ञान की निम्नलिखित भविष्यवाणियाँ उल्लेखनीय है- ''जब उसने दूसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से दूसरा जानवर निकला ।। यह लाल रंग का घोड़ा था ।। जो उस पर बैठा था, उसे इस बात की शक्ति दी गई थी कि संसार की शान्ति को भंग कर दे और युद्ध आरम्भ करा दे ।। उस सवार के हाथ में एक बहुत बड़ी तलवार दी गई थी ।''(रिवेलेशन अ. 6)
लाल रंग का आशय युद्ध से लगाया गया है ।। यद्यपि इन दिनों प्रकट तौर पर किन्हीं देशों में युद्ध नहीं चल रहा, परन्तु इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि विभिन्न देशों में जो आपसी तनातनी, गुटबंदी और शीत युद्ध की सी स्थिति बनी हुई है, वह कभी भी युद्ध का विस्फोट कर सकती है ।। कब किस बात को लेकर कौन- सा देश युद्ध की घोषणा कर देगा? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।।
बाइबिल के रिवेलेशन अध्याय छः में कहा है- ''जब उसने तीसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें तीसरा जानवर निकला ।। वह एक काले रंग का घोड़ा था और उसके ऊपर बैठे हुए सवार के हाथ में एक तराजू दी गई थी ।। मैंने यह आवाज सुनी कि एक सिक्के का एक पैमाना गेहूँ मिलेगा और तीन पैमाने जौ का दाम एक सिक्का होगा ।''
यों महँगाई और वस्तुओं का अभाव तो पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है किन्तु इन दिनों वस्तुओं के मूल्य जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उस वृद्धि ने निश्चित ही अब तक हुए मूल्यों की वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है ।। मूल्य वृद्धि का एक कारण वस्तुओं का अभाव भी है ।। जैसे- जैसे जनसंख्या बढ़ती जाएगी वैसे- वैसे अन्न संकट और भयंकर होता जायेगा ।।
बाइबिल की 'लैमेनटेशन' नामक पुस्तक में इनका वर्णन करते हुए लिखा है- 'लोगों के चेहरे कोयले की तरह काले हो जायेंगे ।। वे गलियों में मारे- मारे फिरेंगे ।। जो लोग तलवार से मारे जाते हैं वे उन भूख से मरने वालों की अपेक्षा सुख में रहेंगे ।'
अकाल के अतिरिक्त विनाश की परिस्थितियाँ उत्पन्न करने वाले दूसरे कारणों की ओर संकेत करते हुए रिवेलेशन अध्याय 6 में लिखा गया है- ''जब उसने चौथी मोहर को तोड़ा तो उसमें से चौथा जानवर निकला ।। वह एक पीले रंग का घोड़ा था ।। उस पर मृत्यु का देवता बैठा था ।। इस देवता को इस बात की ताकत दी गई थी कि वह पृथ्वी के चौथाई भाग में तलवार, प्लेग, अकाल और जंगली जानवरों आदि के द्वारा मनुष्यों का नाश करे ।''
जब उसे छठी मोहर को तोड़ा तो मैंने एक भयंकर भूकम्प देखा ।। उस समय सूर्य काले कपड़े की तरह लाल पड़ गया ।। आसमान के तारे इस तरह टूटने लगे जिस प्रकार किसी पेड़ को हिलाने से पके फल गिरने लगते हैं ।। हर एक पहाड़ और टापू हटने लगा ।। राजा बादशाह से लेकर गरीब आदमी तक ईश्वर के इस भयंकर कोप से घबराकर पहाड़ों की गुफाओं और चट्टानों में जा छुपे ।।
इस परिवर्तनों के स्वरूप बहुत तरह के होते हैं ।। सौर- मण्डल की गतिविधियों की एक- दूसरे ग्रह पर भी पारस्परिक प्रतिक्रिया होती है व प्रभाव पड़ता है ।। ज्वालामुखियों को विस्फोट, तूफान, भूकम्प, ऊपरी वातावरण, विषमता से उत्पन्न हलचलें अथवा सौर- मण्डल की कोई भी असामान्य गतिविधि ऐसे तीव्र परिवर्तनों का कारण बन जाती हैं ।। अन्तरिक्ष में आवारागर्दी करने वाली कुछ उल्काएँ भी अपनी सत्साहसिकता के कारण स्वयं को तो क्षति पहुँचाती ही हैं, पृथ्वी या कि अन्य ग्रहों को भी उथल- पुथल से भर देती हैं ।। इन उद्दण्ड उल्काओं की आवारागर्दी की गाथाएँ दुनिया भर के पौराणिक साहित्य में रोचक ढंग से वर्णित हैं ।।
यूनान की पौराणिक गाथाओं में ''इकोरस'' नाम के एक युवक की कथा है ।। यह सूर्य से मिलने की महत्त्वाकाँक्षा रख, नकली पंख लगाकर चल पड़ा ।। पंख उसने मोम से चिपका लिए थे ।।
अधिक ऊँचे जाने पर उसके पंख को जोड़ने वाली मोम गर्मी के कारण पिघल गई और पंख नीचे गिर पड़े, इकोरस भी औंधे मुँह नीचे समुद्र में आ गिरा तथा मर गया ।।
पिछले दिनों इसी युवक की तरह का एक दुस्साहसी उल्का- पिंड भी देखा गया ।। इसका नाम भी इकोरस ही रखा गया ।। यह इकोरस उल्का पिंड कभी सूर्य के अधिक निकट जा पहुँचता है इतना कि बस थोड़ा और पास जाए तो भाप बन ही बन जाए ।। कभी लगता है वह बुध से कभी मंगल और कभी शुक्र से अब टकराया, तब टकराया ।। सूर्य के अति निकट पहुँचकर वह आग का गोला ही बन जाता है ।। तो कभी सूर्य से इतनी दूर जा पहुँचता है कि शीत की अति ही हो जाती है ।। जून 1968 में इस उद्दण्ड क्षुद्र ग्रह के पृथ्वी के ध्रुव प्रदेश से आ टकराने की सम्भावना बढ़ गई थी ।
यदि खगोल- शास्त्रियों की यह आशंका सत्य सिद्ध होती तो पृथ्वी में भीषण हिम तूफान आते, समुद्र उफनकर दुनिया का थल- भाग अपनी चपेट में ले लेता, साथ ही लाखों वर्ग मील भूमि में गहरा गड्ढा हो जाने की सम्भावना थी जहाँ यह उफनता समुद्री जल भर जाता तथा कुल मिलाकर करोड़ों मनुष्य का सफाया हो जाता ।। सन् 1908 में मात्र हजार फुट व्यास की एक उल्का साइबेरिया क जंगल में गिरी थी तो वहाँ अणुबम विस्फोट जैसे दृश्य उपस्थित हो गये थे ।। इकोरस तो उस उल्का से हजारों गुना बड़ा है, अतः परिणाम का अनुमान किया जा सकता है ।।
सौभाग्यवश इकोरस पृथ्वी के समीप होकर गुजर गया और एक भीषण दुर्घटना टल गई ।। सौर- मण्डल में ऐसे अनेक छुद्र ग्रह हिडालगो, इरोस, अलबर्ट, अलिण्डा, एयोर, अपोलो, एडोरस, हर्मेस आदि चक्कर काट रहे हैं, जो सहसा टकराकर कभी भी धरती के जीवन में उथल- पुथल मचा सकते हैं ।।
वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पर जो हर 11वें वर्ष कुछ धब्बे से बन जाते हैं, उनका कारण सौरमण्डल के ग्रहों की गतिविधियाँ ही है स्पष्ट है कि सौर- मण्डलीय ग्रहों की प्रत्येक गतिविधि का सूर्य पर प्रभाव पड़ता है ।। जिस तरह सूर्य की हर गतिविधि से सौर- मण्डलीय ग्रह प्रभावित होते हैं ।। सभी ग्रह पश्चिम से पूर्व की ओर सूर्य की परिक्रमा करते हैं, और पृथ्वी की ही भाँति अपनी धुरी पर भी घूमते हैं ।। इस परिभ्रमण काल में जो अगणित प्रकार की उथल- पुथल होती है उनसे पृथ्वी ग्रह- उपग्रह प्रभावित होते हैं ।।
ऐसी उथल- पुथल की स्मृतियाँ मानवीय इतिहास में सुरक्षित है ।। पुराण कथाओं में इनका रोचक वर्णन मिलता है ।। मात्र क्षुद्र नक्षत्रों के टकराने अथवा सूर्य या किसी बड़े नक्षत्र में व्यापक परिवर्तन होने, उथल- पुथल मचाने से ही धरती में जलप्लावन आदि की घटनाएँ नहीं घटती ।। बल्कि धरती के भीतर की हलचलें और उसके सिकुड़ने- फैलने की विभिन्न प्रक्रियाएँ भी जल प्रलय आदि के दृश्य उपस्थित करती है ।।
सभी जानते हैं कि कभी भू- मण्डल के सभी महाद्वीप एक- दूसरे से जुड़े थे ।। ग्रहों की हलचलों और आकुंचन प्रसार की प्रक्रियाओं से वे एक दूसरों से दूर हटते गए ।। हिमालय अभी भी लगातार उत्तर की ओर खिसक रहा है और भू- वैज्ञानिकों का कथन है है कि 5 करोड़ वर्ष बाद सम्पूर्ण उत्तरी भारत का अधिकांश इलाका हिमालय के पेट में समा जायेगा ।। इसी तरह सन् 1966 में मास्को में सम्पन्न द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रो. डा. ब्रूस सी हीजेन और डॉ. नील यू डाइक ने घोषणा की थी कि आज से लगभग 2 हजार 32 वर्ष बाद पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति घटेगी ।। इसमें मनुष्यों का आकार व जीवन भी प्रभावित होगा ।।
वृक्ष- वनस्पति, कीट- पतंग आदि पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा ।। प्रशांत महासागर की तलहटी से निकाली गई मिट्टी और रेडियो सक्रियता एवं ''लारिया'' नामक एककोशीय जीव में हो रहे क्रमिक परिवर्तन से पता चलता है कि सन् चार हजार तक चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन होगा, जिससे ध्रुवों का स्थान भी परिवर्तित होगा ।। परिणामस्वरूप धरती में खण्डप्रलय की स्थिति हो जायेगी ।। बर्फीले तूफान चारों ओर उठेंगे ।। धरती में बेहद गर्मी और बेहद ठंडक की स्थितियाँ पैदा हुआ करेंगी ।। समुद्र तल भी लगातार ऊपर उठ रहा है ।। इसका भी परिणाम अवश्यंभावी है ।। ऐसी ही विशिष्ट प्राकृतिक उथल- पुथल अतीत में भी जल प्रलय जैसी घटनाओं का कारण बनती रही हैं ।।
(युग परिवर्तन कैसे? और कब? :: पृ- 2.24)